केसर वन में लकड़बग्घे का एक परिवार रहता था, जो खानदानी चोर था.यानि रोजीरोटी जुटाने का कार्य चोरी से किया जाता. यह उनका पुश्तैनी धंधा था.इसे अपनाना परिवार के सभी सदस्यों के लिए अनिवार्य था.इस लकड़बग्घे परिवार का एक नियम यह भी थाकि परिवार का कोई भी सदस्य कथा और संत्संग नहीं सुनेगा. लेकिन, जब चोरी करने में सफल हो जायेगा तो वन के बाहर काली के मंदिर में जश्न मनाने अवश्य जायेगा.
इस परिवार में भोलू नाम का सबसे छोट़ा लकड़बग्घा था.बड़े होने पर बंश परम्परा के अनुसार वह भी परिवार के साथ चोरी करने लगा.
समय बीतता रहा.भोलू परिवार के साथ चोरी करता रहा.एक रोज भोलू लकड़बग्घा अपने साथियों के साथ सुंदर वन से गुजर रहा था. इसी जंगल में कालू लंगूर नाम के संत थे,जो अपने भक्तों के साथ वहां संत्संग करते रहते थे.
जिस समय भोलू लकड़बग्घा वहां से गुजर रहा था तो पता नहीं कौन सा प्रसंग चल रहा था,पर इतना वाक्य लकड़बग्घे के कान में पड़ गया-"देवी ,देवताओं की छाया नहीं होती क्यूँ कि वह स्वयं छायामात्र हैं."
भोलू लकड़बग्घा अपने साथियों के साथ चोरी करने जा रहा था. वह चोरी की योजना बनाना भूल गया. बार-बार कालू लंगूर संत की बात याद करने लगा.
एकबार की बात भोलू लकड़बग्घे ने अपने साथियों के साथ एक बड़ी योजना बनाई औरकेसर वन के राजा शेर खाँ का खजाना लूटने में सफल हो गये. मामला गंभीर थाऔर राजा की इज्ज़त का भी सवाल था.इसलिए शेर खाँ के सिपाही पूरे केसर वन में फैल गए.
भोलू लकड़बग्घा भी राजा शेर खाँ की कार्यवाही से अनजान न था.उसने राजा का लूटा हुआ खजाना जंगल से दूर एक गुफा में छुपा कर रख दिया था....
सिपाही भेडिये को भोलू लकड़बग्घे पर पूरा शक था.लेकिन, बिना प्रमाण के कुछ भी करने में असमर्थ था.
भोलू लकड़बग्घा राजा शेर खाँ का खजाना लूटने के बाद सफलता का जश्न मनाने काली के मंदिर पहुंचा.उसके साथ उसके परिवार के लोग भी थे.ठीक इसी समय राजा के सिपाही भेड़िये ने भी एक योजना बना डाली.
जब भोलू लकड़बग्घा काली के मंदिर में पूजा के बाद जश्न मना रहा था, तभी साक्षात काली हाथ में खप्पर और नंगी तलवार लिए छमछम करती चली आ रही थीं. सभी काली देवी को प्रणाम करने लगे.साक्षात देवी के दर्शन करके सब प्रसन्न थेऔर अपने आप को धन्य समझ रहे थे. भोलू लकड़बग्घे ने काली देवी को बैठने के लिए आसन दे दिया. लेकिन, काली देवी बोलीं-"मुझे बैठना नहीं है. मैं तुम्हारी पूजा से प्रसन्न हूँ .तुम्हें एंकात में ले जाकर आशीर्वाद देना चाहती हूं."
"धन्य भाग्य हमारे ,देवी जी."भोलू लकड़बग्घा सिर झुका कर बोला.
काली देवी जी भोलू लकड़बग्घे को लेकर दूर एंकात में एक घने पेड़ के नीचे पहुंची.
"आज्ञा, दें देवी."लकड़बग्घे ने अपने दोनों हाथ जोडकर कहा.
"अब,बताओ.राजा शेर खाँ का खजाना कहां रखा है"काली देवी हवा में तलवार लहराते हुए बोलीं.
काली देवी की बात सुनकर भोलू लकड़बग्घा हड़बड़ा गया देवी जी आशीर्वाद देने के लिए लायीं थीं. अब राजा के खजाने की बात क्यूँ कर रही हैं. भोलू लकड़बग्घे को समझ नहीं आ रहा कि यह कैसा आशीर्वाद है.उसे देवी पर संदेह होने लगा.उसने ऊपर से नीचे तक देवी को देखा. पेड़ के पत्तों से छनकर चांदनी देवी जी के ऊपर पड़ रही थी. भोलू लकड़बग्घे ने देखा देवी जी की परछाई जमीन पर पड़ रही है. भोलू को संत लंगूर की बात याद आ गई-"देवी देवताओं की परछाई नहीं होती."
अब भोलू लकड़बग्घे को समझते देर नहीं लगी कि यह राजा शेरखां का सिपाही भेडिया है.भोलू लकड़बग्घे ने बिना देर किये तलवार देवी की गर्दन पर रख दी-"बता तू कौन है?"
साक्षात मौत देखकर सिपाही भेडिया घबरा गया. उसने आत्मसमर्पण कर दिया-"मुझे छोड़ दो.मैं देवी नहीं राजा शेर खाँ का सिपाही भेडिया हूँ."
भोलू लकड़बग्घे ने सिपाही भेडिये को पेड़ से बांधा और अपने परिवार के साथ सुंदर वन में संत कालू लंगूर की शरण में चल दिया. भोलू के परिवार वाले और साथी सभी समझ गये थेकि जिस संत का एक वाक्य हमें मौत के मुँह से बचा सकता है उसका संत्संग रोज सुनने से कल्याण होगा. हमें चोरी का नहीं मेहनत खाना चाहिए और केसरवन के कल्याण के लिए भी कुछ करना चाहिए.
साथ ही भोलू.ने राजा शेर खाँ का खजाना वापस करने का निर्णय ले लिया.
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Abha yadav
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