एक मुट्ठी दाल और कुकर की सीटी Saroj Prajapati द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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एक मुट्ठी दाल और कुकर की सीटी

शाम को 4:00 बजे शॉपिंग करने के बाद प्रिया व उसके पति रौनक थक हार कर घर में घुसे। सामान रखकर जैसे ही वह बैठी थी कि रौनक बोला "यार बहुत तेज भूख लगी है, कुछ बना दो।"
प्रिया उसकी तरफ हैरानी से देखती हुई बोली "क्या रौनक अभी तो 3:00 बजे हमने वहां पर लंच किया था‌, इतनी जल्दी भूख लग गई?"
"अरे यार तुम्हें तो पता है ना कि मेरा बाहर के खाने से पेट नहीं भरता। ज्यादा कुछ नहीं, बस तुम दाल रोटी बना दो।"
"क्या दाल रोटी ऐसे ही बन जाएगी? मैं भी तो सुबह से तुम्हारे साथ निकली हूं। मैं भी तो थक गई हूं ना!"
"प्लीज प्रिया! मेरी प्यारी प्रिया! अरे करना ही क्या है दाल रोटी बनाने में? एक मुट्ठी दाल कुकर में डालो और सीटी लगवा दो औ दो रोटियां बना देना।"
"मुझे तुम्हारी यही बात समझ नहीं आती। कहीं भी जाते हो हमेशा भूखे आते हो।"
"प्रिया तुम्हारे हाथों का बना खाना ना खा लूं पेट नहीं भरता| तुम बनाती ही इतना स्वादिष्ट हो।" पहले जब वह रोनक के मुंह से यह तारीफ सुनती थी तो फूला नहीं समाती थी, लेकिन आप झल्लाहट होने लगी थी उसे इस बात पर। गुस्सा तो उसे खुद पर ही बहुत आ रहा था। उसने ही तो घर में सब की आदत खराब कर दी थी।

शादी करके जब उसने घर में कदम रखा। आदर्श बहू बनने के चक्कर में सबके काम दौड़ दौड़ कर करती। वैसे भी उसे खाना बनाने का बहुत शौक था और चाहती थी कि परिवार को अच्छे से अच्छा बनाकर खिलाए पर उसे नहीं पता था कि 1 दिन यही आदत उसकी सरदर्दी बन जाएगी। जब तक सास थी तो थोड़ा बहुत वह भी कामों में हाथ बटा देती थी लेकिन उनके गुजर जाने के बाद तो घर, नौकरी व बच्चे, थक जाती थी इन सबमें वह। ऊपर से रौनक की एक आदत कि बाहर चाहे कुछ भी खा आए, लेकिन घर में आकर उसको रोटी जरूर चाहिए थी और उसका फेवरेट डायलॉग एक मुट्ठी दाल और कुकर की सीटी लगवाने में लगता ही क्या है प्रिया! बना दो।
उन दोनों की शादी की दसवीं सालगिरह थी। हर बार रौनक उसे, उसकी पसंद का अच्छा गिफ्ट दिलाता और बाहर घुमाने भी ले जाता था। रौनक ने पहले ही कह दिया था "प्रिया कल छुट्टी करेंगे और कल का पूरा दिन तुम्हारे नाम।"
अगले दिन रौनक बोला "आज हमारी बेगम कहां जाना और क्या खाना पसंद करेगी?"
प्रिया हंसते हुए बोली "आज तुम्हारी बेगम घर में ही रहना पसंद करेगी और तुम्हारे हाथों का गरमा गरम खाना खाना पसंद करेगी।"
"अरे वाह आज हमारी प्रिया इतने सस्ते में ही हमें कैसे छोड़ रही हैं? अच्छा बताओ क्या बनाऊं तुम्हारे लिए?"
"कुछ नहीं पति देव! बस आज तुम कुकर में एक मुट्ठी दाल डालकर सीटी लगवा दो और गरमा गरम रोटियां बना कर अपनी बेगम साहिबा को खिला दो तो हमारा दिन बन जाए।"

"बस इतनी सी बात! बंदा अभी 15 मिनट में बना कर आपके सामने हाजिर करता है।" कहते हुए रौनक रसोई में चला गया। कह तो दिया उसने लेकिन उसे ही पता है कि किचन की तो उसे एबीसीडी भी नहीं पता। चाय बनाना भी उसने अभी सीखा था। उसने दाल के डिब्बों पर हाथ मारा और रसोई से ही चिल्लाया "प्रिया कौन सी दाल बनानी है!"
"जो तुम्हारा मन करे वह बनाओ!"
फिर आवाज आई "प्रिया कितनी दाल डालूं"?
"अरे देख लो, हम दोनों ही तो हैं!"
"कितना पानी डालूं"?
"अंदाजा देखो ना तुम।"
"सीटी नहीं बन रही, हवा निकल रही है।"
थोड़ी ही देर में रौनक बाहर आकर बोला "यार माफ करो, यह कुकर और सीटी तुम ही संभालो!"
"नहीं पतिदेव आज तो तुम मुझे करके ही दिखाओ। आपको भी तो पता चले कि एक मुट्ठी दाल और कुकर की सीटी कैसे लग मिनटों में खाना बनता है।"
आज तो रौनक अपने ही लपेटे में आ गया था। वह कान पकड़ मुंह बनाते हुए बोला "मैं समझ गया पत्नी साहिबा! आगे से कभी यह बंदा तुम्हें एक मुट्ठी दाल कुकर में डाल, सीटी लगवाने के लिए नहीं कहेगा।"
इस बात पर दोनों खिलखिला कर हंस पड़े और प्रिया किचन में चल दी रौनक की एक मुट्ठी दाल और कुकर में सीटी लगवाने के लिए।
दोस्तों, कैसी लगी आपको यह रचना? पढ़कर इस विषय में अपने अमूल्य विचार जरूर दें।

सरोज✍️