यादों का बक्सा Saroj Prajapati द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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यादों का बक्सा

रितु की शादी को 7 साल हो गए थे। घर में वह दोनों पति पत्नी, उनके दो बच्चे व सास शीला जी साथ रहते थे। यही उनका परिवार था। शीला जी स्वभाव से बहुत शांत महिला थी। उनका अधिकतर समय पूजा-पाठ , बाकी समय पोता पोतियों के साथ व घर के कामकाज में रितु का हाथ बंटाने में गुजरता था। वह रितु के किसी काम में टोका टाकी नहीं करती थी। न ही उससे कोई बात छुपाती। उनकी कोई बेटी नहीं थी इसलिए वह रितु को बेटी व बहू दोनों का अधिकार व प्यार देती।
इतने वर्षों में रितु को भी उनसे कोई शिकायत नहीं रही। अपने प्रति उनका यह स्नेह देख, वह भी उनका बहुत मान सम्मान करती थी। हर बात उनसे पूछ कर करती। उसे अपनी सास की यह बात बहुत ही अच्छी लगती थी कि वह दूसरी सासों की तरह उस से कोई दुराव छिपाव न करती थी।
संडे का दिन था। रितु अपनी सास के कमरे की साफ सफाई कर रही थी। तभी उसकी नजर अपनी सास के उस पुराने बक्से पर पड़ी। यह बक्सा सदा से ही उसके लिए कोतुहल का विषय रहा है। उसने अपनी सास को कभी उसे सबके सामने खोलते नहीं देखा। वह मन में कई बार सोचती भी कि इसमें ऐसा क्या होगा। जो वह इसे हमारे सामने नहीं खोलती! खोलती भी है या नहीं, पता नहीं! कोई कीमती चीज जिसे वह छुपाना चाहती हो! नहीं नहीं ऐसा उनके बारे में सोचना भी पाप होगा! उन्होंने तो आते ही घर की चाबी उसे सौंप दी थी। अपनी हर छोटी बड़ी बात तो बताती है वह मुझे! और मैं हूं कि! यह सोचते हुए रितु सफाई कर कमरे से बाहर आ गई।
कुछ ही महीनों बाद उसके पति का प्रमोशन हो गया। अब उन्हें दूसरे शहर जाना था। उसने अपनी सास को यह खुशखबरी दी। तो यह बोली "बहु यह सब हितेश की मेहनत और तेरे कर्मों का प्रताप है जो वह इतनी ऊंचाइयों पर पहुंचा।"
"मांजी अब ऑफिस वाले आपके बेटे को एक बहुत बड़ा घर रहने के लिए दे रहे है। जिसमें सब सुख सुविधाएं होंगी।" कुछ ही दिनों बाद जाने का समय भी आ गया । वह सब जरूरी सामान की पैकिंग करने लगे। अपना सामान पैक करने के बाद रितु अपनी सास का सामान पैक करने के लिए जब उनके पास आई तो उन्होंने ले जाने के लिए वह पुराना बक्सा भी रखा हुआ था। उसे देखकर रितु बोली "मांजी यह कह रहे थे कि वहां हर कमरे में लकड़ी की अलमारी बनी हुई है। उन्हीं में सामान रखेंगे। इसे आप यही छोड़ दीजिए और इसमें जो जरूरी सामान है , उसे रख लीजिए। वैसे भी मैंने तो कभी आपको इसे खोलते देखा नहीं। जंग भी लग गया है और कुंडे भी देखो ना टूटने वाले हैं!"
"नहीं बहू, इसे तो मैं साथ लेकर चलूंगी अपने!"
"क्या मांजी ऐसा भी क्या मोह इस पुराने बक्से से! कौन सा खजाना छुपा रखा है इसमें आपने! जो कभी आप इसे हमारे सामने खोलते भी नहीं!" रितु ने यह बात प्रवाह में बोल तो दी लेकिन तुरंत ही उसे एहसास हो गया कि उसने बिना सोचे समझे इतनी बड़ी बात बोल दी है। उसने तुरंत माफी मांगते हुए कहा "माफ करना मांजी! जल्दबाजी में मेरे मुंह से यह सब निकल गया। मेरे कहने का मतलब यह नहीं था।"
"कोई बात नहीं बहू। मुझे पता है तू जानबूझकर कभी मेरा दिल नहीं दुखाएंगी। बहु जानना चाहती है ना कि इस बक्से में क्या!" कहते हुए उन्होंने बक्सा खोल दिया।
"बहु तू ठीक कह रही थी, इसमें मेरा खजाना ही तो है। जिसके सहारे मैं जी रही हूं । लेकिन रुपयों पैसों का नहीं है यादों का खजाना! "
"क्या मतलब मांजी!"रितु ने उत्सुकता से पूछा।
"बहु तुझे पता ही है, हितेश का एक बड़ा भाई भी था। जो 15 वर्ष की आयु में बीमारी के कारण चल बसा। दुनिया तो उसे भूल भी गई होगी लेकिन मैं अपने उस बेटे को कैसे भूल जाऊं। जिसे मैंने अपनी कोख से जन्म दिया था। रोज उसकी यादों के सहारे ही तो जीती हूं। उन्होंने बक्से में से उसकी फोटो , एक जोड़ी कपड़े और कुछ कॉपियां निकाल रितु को दिखाई। देख बहू यह मेरे रितेश का खजाना है। रिश्तेदारों ने तो कह दिया था कि उसके साथ ही उसके सामान को भी प्रवाहित कर दें। पर मैं ऐसे कैसे कर देती बहू ! मैंने उनसे छुपाकर कुछ चीजें रख ली थी। रितेश के जाने के बाद तेरे ससुर भी जवान बेटे के जाने का गम सह ना सके। वह बीमार रहने लगे और 2 साल बाद वह भी चल बसे और मैं अभागन रह गई यह सारे दुख झेलने के लिए। लेकिन मैं तो मां हूं ना। हितेश को अकेले छोड़कर जा भी नहीं सकती थी। कैसे मैं अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेती । यह कह उन्होंने बक्से से एक सुंदर सा हल्के गुलाबी रंग का लहंगा, जो समय के साथ थोड़ा सा पुराना हो गया था निकाला। उस पर सुंदर तार की कढ़ाई हो रखी थी,साथ ही एक पैट शर्ट निकाल अपनी बहू को दिखाते हुए बोली "देख रितु यह वह कपड़े हैं जो मैंने और तेरे ससुर ने अपनी शादी के समय पहने थे। अक्सर मैं और तेरे ससुर जब तब इन कपड़ों को देख उस समय को जीते थे। अब वह तो नहीं रहे लेकिन यादें तो हैं। इन सब को छूकर ऐसा लगता है कि रितेश व उसके पिताजी अब भी मेरे साथ है। लोग कहते हैं दुनिया से जाने के बाद मरने वाले के कपड़े व सामान को घर में ना रखें। शुभ नहीं होता। मैं कहती हूं क्यों शुभ नहीं होता। भगवान ने तो उन्हें हमसे छीन हीं लिया दुनिया वाले क्यों उनकी यादों को भी हमसे दूर करना चाहते हैं! मेरी सास की भी यही सोच थी। मुझे पता था कि अगर उनको पता चल गया कि मैंने कुछ सामान अभी भी अपने पास रखा है तो वह उनको भी नहीं रखने देती। इसलिए मैं हमेशा अकेले में हीं इस बक्से को खोलती थी। तुझे मैं दुखी नहीं करना चाहती थी इसलिए मैंने तुझे नहीं बताया। बस बहू मेरे यादों के बक्से को मेरे साथ ही जाने दे। इससे मेरे बहुत से अहसास जुड़े हुए हैं । यह बक्सा मेरी मां ने भिजवाया था ।रितेश के होने पर । उसके कपड़े व खिलौनों के साथ। इसलिए जब तक मैं जिंदा हूं इसे मुझसे अलग मत कर।" कहते हुए उनकी आंखों से आंसू निकल आए।
"मांजी मुझे माफ कर दो। अनजाने में मैंने आपको इतनी पीड़ा पहुंचाई। यह बक्सा हमारे साथ ही जाएगा और मेरा वादा है आपसे कि आपकी यह बहु आपकी इस अमूल्य धरोहर को हमेशा सहेज कर रखेगी।"
सरोज ✍️
स्वरचित व मौलिक