बरसते मेंह में.... Dr Vinita Rahurikar द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बरसते मेंह में....

बरसते मेंह में....

"क्या तकलीफ है?" चेहरे से नोज मास्क हटाते हुए उसने पूछा।

"जी पीछे की दाढ़ में चार दिन से तेज दर्द हो रहा है।" वह बोला।

"बैठ जाइए।" उसने लेटर हेड निकाल लिया और नाम उम्र और तकलीफ पूछ कर लिखने लगी फिर बोली "यहां आ जाइए बैठ जाइए, सिर यहाँ टिका लीजिए।"

लाइट जला कर उसने उसके खुले मुंह पर फोकस किया और इंस्ट्रूमेंट की सहायता से उसके दांत देखने लगी।

" कितने दिनों से है दर्द?"

"चार-पांच दिन से"

"दाढ़ काफी खराब लग रही है एक एक्स-रे ले लेते हैं ताकि पता चल जाए कि फीलिंग से ही काम चल सकता है या रूट कैनाल करना पड़ेगा।" कहते हुए उसने लड़के के खुले मुंह में एक्स-रे फिल्म डाल दी "आंखें बंद कर लिजिए।" कहते हुए उसने एक्स-रे लिया।

"पाँच मिनट बैठे रहिए।" वह उठ कर चली गई। लड़का सिर घुमाकर कमरा देखने लगा। उसके दाएं तरफ एक्स-रे मशीन थी और बड़ी सी तेज लाइट चमक रही थी। सामने वाली दीवार पर सुनहरी फ्रेम में जड़ा सर्टिफिकेट सजा था। उसी के बगल में एक स्त्री पुरुष की तस्वीर वैसी ही सुनहरी फ्रेम में जड़ी टँगी थी। लड़के ने सोचा शायद इसके माता-पिता की होगी। बाई तरफ वाली दीवार से सटी उसकी बड़ी सी टेबल थी उसके बाद दो अलमारियां और स्टूल थे जिनमें किताबें और तरह-तरह के औजार भरे पड़े थे। औजार देखकर लड़के को झुर्झुरी आ गई और उसने वहां से नजरें हटा ली और उसे देखने लगा जो टेबल पर झुकी कागज पर कुछ लिखने में व्यस्त थी। लड़का उड़ती उड़ती नजर डालकर उसे देखने लगा। गेहुआ रंग, बाल एक पोनी टेल में कसकर बंधे हुए, हल्के रंग का कुर्ता जिस पर फूल बने हुए थे, बादामी आंखें और तीखी नाक भरे भरे होंठ। चेहरे पर एक खास ग्लो था उसके विशेषकर नाक की नोक पर। पहली ही नजर में उसका चेहरा बड़ा भला और मीठा सा लगा। लड़का बारीकी से देखने लगा कहीं विवाहित होने के कोई चिन्ह तो नहीं दिख रहे। हाथ खाली थे बस दो उंगलियों में हीरे जड़ी पतली अंगूठियां थी, गले में बारीक सोने की चेन, मांग भी खाली थी। लड़का सोचने लगा पता नहीं शायद ना पहनती हो। उसका ऑफिस भी इसी बिल्डिंग में था। कितनी ही बार कॉरिडोर या सीढ़ियों पर उसे देख चुका था वो। लड़की कभी आँख उठाकर उसे नहीं देखती थी और यही अदा उसकी लड़के के दिल में बस गयी थी। बहुत पसंद करने लगा था वो उसे। लेकिन कभी हिम्मत नहीं हुई जाकर उससे बात करने की। कितने ही सपने सजा लिए थे मन में उसे लेकर। आज इस दर्द ने ही उससे मिलने की वजह दे दी। हमेशा दूर से एक झलक देख पाता था। आज पहली बार इतने करीब से उसे देख पाया था। कुछ मिनट भर में ही उसके मन में न जाने कितने ही ख्याल उठ गए कि तभी वह फिर से उसके पास स्टूल पर आकर बैठ गई।

"दाढ़ काफी खराब हो चुकी है अंदर से कैविटी नर्व तक पहुंच गई है। फीलिंग करके भी कोई फायदा नहीं है। रूट कैनाल ही करना पड़ेगा।" एक्स-रे फिल्म उसके सामने रखते हुए वह बोली।

"जी ठीक है" लड़के ने कहा।

"आज करें या कल? आपको कुछ दूसरा काम तो नहीं है क्योंकि पूरा एक घंटा लग जाएगा प्रोसेस में।" वह बोली।

"जी कोई काम नहीं है आप कर दीजिए और मुझे इस दर्द से छुटकारा दिलाईये। ऐसा लग रहा है कि मेरा सर फूट जाएगा अब।" लड़का बोला।

"तब ठीक है मैं तैयारी करती हूं।" उसने बाहर वाले कमरे से अपनी असिस्टेंट को बुलाया और एक ट्रे में पता नहीं क्या-क्या जमा करती रही। लड़का इंजेक्शन की सुइयां देख रहा था जो कुछ ही पलों बाद उसके मसूड़ों में लगने वाली थी। वह तय नहीं कर पा रहा था कि अभी वाला दर्द ज्यादा है या बाद वाला ज्यादा होगा।

"बस चींटी काटने जितना दर्द होगा और फिर मसूड़ा सुन्न होने के बाद आपको प्रोसेस का पता भी नहीं चलेगा।" उसने सधे हाथों से लड़के के मुंह में दो इंजेक्शन लगाए और दो मिनट बाद उसके चेहरे के बिल्कुल पास अपना चेहरा लाकर उसके मुंह में ड्रिल चलाकर दाढ़ की सफाई करने लगी। लड़के ने इसके पहले किसी लड़की को अपने इतने पास नहीं देखा था। उसे बड़ा अजीब सा लगा और उसने घबराकर अपनी आंखें बंद कर ली। ड्रिल की आवाज उसके दिमाग पर हथौड़े चला रही थी और लड़की का इतना नजदीक होने का एहसास उसके दिल में एक अजब रूमानियत पैदा कर रहा था। आधे घंटे तक लड़का इन दो विरोधाभासी स्थितियों में डूबता उतराता रहा। जब आखिरकार लड़की ने एक बड़ा सा कॉटन बॉल उसकी दाढ़ के नीचे रखा और उसकी सड़ी हुई नर्व एक फोरसप से पकड़ कर दिखाई

"कैविटी ने नर्व को पूरा ही डैमेज कर दिया था। नर्व निकाल दी है अब आपको दर्द नहीं होगा। दो दिन बाद ड्रेसिंग के लिए आना है।" कहते हुए उसने एक पर्चे पर दवाइयां लिखकर थमा दी।

लड़का फीस चुका कर बाहर आ गया। बाहर बारिश हो चुकी थी। बूंदाबांदी हो रही थी। क्लीनिक के नीचे वाली मंजिल पर ही दवाई की दुकान थी जिससे उसने दवाइयां ली और कार निकालकर घर के रास्ते पर चल पड़ा। शहर की सड़कें भीगी हुई थी और भीगा हुआ था उसका मन भी। एक मेंह बाहर बरस रहा था तो ना जाने कैसी एक फुहार मन पर भी छाई थी। सिली हवा सा मन भी किसी की याद में भारी हो उठा। एक अनजान खुनक भरी गन्ध मन महकाती रही।

दो दिन बाद वह फिर उसके सामने था। आज वह उससे खुलकर बोल रहा था लेकिन देख रहा था कि वह गंभीरता का चोला ओढ़े नपेतुले जवाब दे रही है। उसके मीठे से चेहरे पर बड़ी उदास आंखें चिपकी हुई थी जो उसकी लग ही नहीं रही थी। ऐसा लग रहा था कि बनाने वाले से कहीं कोई गलती हो गई है और उसने किसी उदास चेहरे की आंखें इस खुशनुमा चेहरे पर लगा दी। वह हम उम्र ही तो था उसका तो थोड़ा दोस्ताना तरीके से बात करने की चाहत थी उसे लेकिन लड़की डॉक्टर ही बनी रही जिसके लिए लड़का बस उसका पेशेंट भर ही था। दाढ़ की ड्रेसिंग करके उसने पर्चे पर अगली तारीख लिख दी। लड़का उससे बातें करने की हसरत मन में ही लिए उदास हो चला आया। अगले दो दिन लड़का घर पर, ऑफिस में, जान-पहचान वालों से उनके दांतो के बारे में ही पूछता रहा ताकि किसी को तकलीफ हो तो उसे लड़की के क्लीनिक ले जाए और इसी बहाने उसे और एक बार देख पाए लेकिन अफसोस किसी के दातों में तकलीफ ही नहीं थी।

तीन दिन बाद वह फिर लड़की के सामने था। ड्रेसिंग करके उसने लड़के के दांतो का इंप्रेशन लिया ताकि रूट कैनाल किए हुए दाढ़ की कैप बनवा सके। अबकी बार लड़के को पाँच दिन बाद आना था। उसका दिल डूब गया। कैप लगने के बाद तो यहां आने का कोई कारण ही नहीं बचेगा फिर वह उसे कैसे मिल पाएगा, कैसे देख पाएगा। वह उसे पसंद करने लगा था और अगर लड़की को भी पसंद हो तो वह इस रिश्ते को आगे बढ़ाने को उत्सुक था। लेकिन इसके लिए उसका लड़की से मिलना बात करना तो जरूरी है ना। दो दिन वह बहुत बेचैन रहा और तीसरे दिन वह दर्द का बहाना लेकर उसके क्लीनिक जा पहुंचा। लड़के को यह देखकर बहुत राहत मिली कि आज उसकी असिस्टेंट नहीं थी बस बाहर काउंटर पर रिसेप्शनिस्ट बैठी थी। कैबिन में वह अकेली थी।

दर्द की बात सुनकर वह आश्चर्य करने लगी "जब नर्व ही नहीं है तो दर्द होने का तो सवाल ही नहीं उठता। आपके सामने ही तो मैंने डैमेज्ड नर्व को निकाल दिया था। अब वह दाढ़ दर्द महसूस ही नहीं कर सकती। मैं दूसरे दांत देख लेती हूं हो सकता है पास वाली दाढ़ में दर्द हो।"

एक बार फिर वह उसके बेहद करीब थी। आज उसने मास्क नहीं लगाया था और लड़का अपने चेहरे पर उसकी सांसों को महसूस कर पा रहा था और रोमांचित हो रहा था। जीवन में पहली बार कोई लड़की उसके इतने करीब थी। लड़के का दिल धड़क गया।

"बाकी दांत भी सारे एकदम ठीक है दर्द की कोई वजह तो नहीं दिखती फिर भी एक एंटीबायोटिक लिख रही हूं दो दिन ले लीजिएगा।" लड़की ने फिर पर्चा हाथ में थमा दिया।

बाहर और भी पेशेंट बैठे थे लड़का उदास मन लेकर चला आया। दो दिन बाद कैप लग जाती फिर यहां आने की और उससे मिलने की वजह खत्म। लड़का दो दिन बाद कैप लगवाने नहीं गया उम्मीद की एक डोर उसे दोबारा मिल पाने की उस कैप से ही तो बंधी थी। तीसरे दिन भी नहीं गया। चौथे दिन उसकी असिस्टेंट का फोन आया कि उसकी कैप आ गई है तो उसने व्यस्तता का बहाना बना दिया। छठवें दिन खुद डॉक्टर का फोन आया तो उससे कोई बहाना ना बनाते बना।

कैप लगाने के बाद उसने लड़के के दांत अच्छे से चेक किये "कैप तो ठीक है कुछ तकलीफ होगी तो बताइएगा वैसे तो एकदम सही बैठी है तकलीफ होनी तो नहीं चाहिए।"

"तो इसका मतलब अब अगर तकलीफ ना हो तो मुझे यहां आने की जरूरत नहीं है?" लड़के के मुंह से अचानक निकल गया।

वह थोड़ी हकबकाई सी लड़के को देखती रही। पहली बार था कि उसने इस तरह लड़के की आंखों में एकटक देखा था। उसकी साफ स्वच्छ गहरी आंखों की तलहटी में लड़के को उदासी की काई तैरती स्पष्ट नजर आई। क्या दुख है इसे, कुछ तो है। लड़के के दिल में भी जैसे उस काई का गहरापन उतर गया।

"डॉक्टर के पास तो लोग तकलीफ होने पर ही आते हैं ना?" वह बोली।

"यदि मैं तकलीफ न होने पर भी आना चाहूँ तो आ सकता हूं?" लड़के के मुंह से पता नहीं कैसे निकल गया। अपनी ही कही बात उसे एकदम से अजीब लगी और लड़की एक बार फिर नासमझो जैसी आश्चर्य से उसकी आंखों में देख रही थी।

"मेरा मतलब है मुझे तुम अच्छी लगती हो। किसी गलत नजर से नहीं, एक स्वस्थ नजरिए से। तुम्हें पहली बार देखा था तभी से तुम मुझे बहुत पसंद आई।" लड़का बहुत ही कोमल और संजीदा स्वर में बोला "मेरे दिल में कोई खोट नहीं है यदि तुम्हें कोई एतराज ना हो।"

लड़की अचानक ही व्यस्त हो उठी। आज न काउंटर वाली लड़की थी न ही असिस्टेंट।

"मुझे जाना होगा। पेशंट भी नहीं है तो समय पर क्लीनिक बंद कर दूँ। नौ तो बज ही गए हैं।" उसने कांपते स्वर में कहा और चाबी और पर्स उठा लिया टेबल से।

लड़के को भी बाहर होना पड़ा। उसने क्लीनिक में ताला लगाया और सीढ़ियां उतरने लगी। लड़का भी उसके साथ ही उतरा। जब दोनों नीचे पहुंचे तो देखा बहुत तेज बारिश हो रही थी।

"तुम्हारी कार कहां खड़ी है?" लड़के ने पूछा।

"मैं स्कूटी से आती हूं। आज रेनकोट भी भूल गई।" लड़की जैसे अपने आप से बोली। उसके चेहरे पर परेशानी झलक रही थी। बारिश देखकर लग रहा था कि जल्दी नहीं थमेगी।

"आपको ऐतराज ना हो तो मैं आपको घर पहुंचा देता हूं। स्कूटी ताला लगाकर यहीं रख दीजिएगा, गार्ड तो रहता ही है। और आप अपने घर पर जो भी हो उन्हें फोन करके बता दीजिए कि आप मेरे साथ आ रही हैं।" लड़के ने अपने घर और ऑफिस का पता भी बता दिया ताकि लड़की उस पर विश्वास कर सके।

लड़के की सरलता ने लड़की को बहुत प्रभावित किया और वह उसकी कार में बैठ गई। लड़का उससे घर परिवार की बातें करने लगा। पता चला वह अपने माता-पिता के साथ रहती है। लड़के ने राहत की सांस ली।

"देखो मैं बहुत सीधा सरल सा इंसान हूं। बनावट मेरे स्वभाव में नहीं है। हो सकता है तुम्हें मेरी साफगोई अजीब लगे लेकिन मैं तुम्हें पसंद करने लगा हूं और अगर तुम्हें भी मैं पसंद हूं तो मैं इसे एक रिश्ते का नाम देना चाहूंगा।" लड़का सहज स्वर में बोला।

लड़की ने चुपचाप सुना और चुप ही रही।

"नहीं पसंद तो कह दो मैं आज के बाद कभी तुम्हारे पीछे नहीं आऊंगा।" लड़के का स्वर बहुत शांत और गंभीर था।

लड़की ने एक गहरी सांस ली "मेरा अतीत एक दुखती रग है जो हर समय टीस देता रहता है। मुझे अब उम्र भर उसी दर्द के साथ जीना होगा। मेरे अतीत को सुनकर तुम वैसे ही मेरे पीछे आना छोड़ दोगे। मेरा कोई कसूर नहीं था लेकिन मेरे मन में समाज ने वह दर्द भर दिया और अब उस दर्द के साथ एकाकी जीना ही मेरी नियति है।" कहते हुए उसने अपने अतीत का एक हादसा बताया और बताते हुए भी कांपकर थरथरा गई। अब वह किसी भी लड़के पर विश्वास नहीं कर सकती।

लड़के ने चुपचाप सब सुना और चुप ही रहा।

लड़की जानती थी सच सुनने के बाद यही होना था। बाकी रास्ते भर लड़का कुछ नहीं बोला। बारिश लगभग थम सी गई थी। लड़की का मन बोझिल हो गया, वह थोड़ी देर रुक कर अपनी गाड़ी से ही क्यों नहीं आ गई, क्यों इस अप्रिय स्थिति में पड़ी। वह एकाएक ही बहुत असहज महसूस करने लगी थी। हाथ के इशारे से ही रास्ता बताती गई और अपने घर पहुंच कर उसने राहत की सांस ली और कार से उतर गई। बिना लड़के की ओर देखे वह घर की तरफ बढ़ गई। अभी गेट तक पहुंची ही थी कि पीछे से लड़के की आवाज आई।

"सुनो"

लड़की ने पलटकर देखा।

"तुम तो डॉक्टर हो न, दुखती रगों का इलाज करना जानती हो। जिस तरह से तुमने मेरी दाढ़ की सड़ी हुई नर्ब को बाहर निकाल दिया क्या वैसे ही अपने अतीत की उस लड़के की धोखेबाजी की सड़ी हुई नर्व को निकाल कर फेंक नहीं सकती? मेरी खातिर क्या अपने अतीत का रूट कैनाल नहीं कर सकती? मैं वादा करता हूं अपने प्यार से तुम्हारे सारे घाव भर दूंगा। मुझे तुम्हारे अतीत से कोई लेना-देना नहीं है मैं बस भविष्य में स्वस्थ मन से तुम्हारा साथ चाहता हूं। अगर कर सको तो मैं अपने आप को खुशकिस्मत समझूंगा।" लड़के का स्वर हमेशा की तरह संजीदा और स्थिर था।

तब तक लड़की के पिता भी उसे आया जानकर गेट तक आ चुके थे और लड़के की बात सुनकर आश्चर्य से भरे खड़े रह गए।

"दांत को कैविटी खराब करती है इसमें दांत का क्या कसूर? तभी तुम दांत को बचाने का हर संभव प्रयास करती हो तो अपने जीवन की उस कैविटी का इलाज करके जीवन भी बचा लो न। मैं इंतजार करूंगा तुम्हारा। मैं अगर तुम्हें पसंद नहीं तो कोई बात नहीं लेकिन पसंद हूं तो अपने माता-पिता को तुम्हारे माता-पिता से बात करने भेजूंगा और इसी उम्मीद में तुम से विदा लेता हूं।" कहते हुए लड़का वहां से चला गया।

लड़की को लगा कुछ बरस पहले किसी ने उसे स्याह अंधेरे में खड़ा कर दिया था और इतने बरसों के अंधेरे के बाद आज कोई उसकी आंखों को रोशनी के कुछ कतरे दे गया है कि वह अब अपना आप देख समझ सकती है। बरसों लंबी अमावस की रात के बाद आज जीवन के द्वार पर भोर का सुनहरा उजास दस्तक दे रहा है। आज जैसे आसमान से शबनम के मोती छलक रहे हैं। बरसों बाद आज उसने आईने में खुद से आंखें मिलाई और खुद को देख दोस्ताना सी एक मुस्कुराहट उसके चेहरे पर आ गई। कॉलेज के फर्स्ट ईयर में जब थी तब नोट्स देने के बहाने एक सीनियर ने पानी में दवाई पिलाकर उसकी हंसी, आत्मविश्वास, उमंग, सपने सब चूर-चूर करके उसे खुद से ही नफरत करने पर मजबूर कर दिया था। कॉलेज में उसकी इतनी बदनामी कर दी कि उसके पिता को वो शहर ही छोड़ना पड़ा था। अपने साथ हुए धोखे और हादसे को वह भूल ही नहीं पा रही थी। झूठ बोलकर शादी करना नहीं चाहती थी और सच सुनकर कोई अपनाता नहीं इसलिए अपने मन से हर अहसास और सपने को जला दिया था उसने। आज किसी ने एहसास दिलाया कि वह न गलत है, न बुरी।

अगले बीस दिन तक लड़की अलग-अलग एहसासों में डूबती उतराती, अपने अतीत की रगों को जीवन से अलग करती रही और लड़का उम्मीद और ना उम्मीदी के बीच झूलता रहा। हर बार फोन की रिंग सुनकर उसका दिल धड़क जाता और लड़की का नाम, नंबर न देखकर बुझ जाता। फिर भी मन में एक उम्मीद की किरण अभी बाकी थी कि इक्कीसवें दिन लड़की का एक संक्षिप्त सा संदेश आया 'सुनो मैंने अपने अतीत की वह दुखती रग निकाल कर फेंक दी है'

लड़के को लगा बरसात की घनी बदरिया आज विदा हो गई है और आसमान पर पूरा चांद खिल गया है। आसपास कहीं रात रानी महक रही है। दूसरे दिन सुबह ही लड़का अपने माता-पिता के साथ लड़की के ड्राइंग रूम में बैठा था। दुखती रगों के दूर हो जाने की राहत सबके चेहरों पर छाई थी। लड़की के माता-पिता ऐसा सुलझा हुआ दामाद पाकर धन्य थे। लड़के ने देखा लड़की का चेहरा ग्रहण से उभरे चांद की तरह खूबसूरत और रोशन था और लड़की ने प्रेम भरी दृष्टि से लड़के को देखा जिसने सूरज बनकर उसकी दुनिया को उजाले से भर दिया था। रिश्ता पक्का होने की खुशी में टेबल पर रखी मिठाईयां सबको मिठास बांट रही थी।

विनीता राहुरीकर