Hostel Girls (Hindi) - 3 Kamal Patadiya द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

श्रेणी
शेयर करे

Hostel Girls (Hindi) - 3

[दृश्य 3 : सिमरन from अमृतसर]

सूरज का ढलता हुआ प्रकाश अमृतसर के पास एक गांव में खेत में चारों तरफ फैला हुआ था। जैसे खेतों की फसलों को किसीने सोनेरी रंग से रंग दिया हो। मंद मंद हवा की लहरें चल रही थी, उस हवा के झोंकों से फसल लहरा रही थी, जैसे किसी लड़की ने अपनी चुनरी फसलों पर लहरा दी हो। चारों ओर से मिट्टी की हल्की हल्की खुशबू आ रही थी। पंछियों की चेहकने की आवाजे, कोयल की मीठी बोली, चिड़ियों की किलकारियां और मोर के चहकने की आवाज से पूरा वातावरण गूंज उठा था। बादलों को जैसे पंख मिल गये हो, वैसे वो हवा मे उड रहे थे। धीमे-धीमे पूरा आकाश लाल रंग से रंग गया था, जैसे कोई चित्रकार ने पूरे कनवास को लाल रंग से रंग दिया हो ऐसा नजारा था। प्रकृति ने अपनी मुस्कान बिखेर दी हो, ऐसा खुशनुमा मौसम था।

ऐसे खुशनुमा मौसम में अपने खेत के फामॅहाउस के छत के ऊपर एक लड़की इस प्रकृति को निहारते हुए बैठी हुई थी। मौसम खुशनुमा था लेकिन उसके चेहरे का नूर बिल्कुल उडा हुआ था।

यह फार्म हाउस गांव के सरपंच एवं जमीदार गुरुचरण सिंह कौर का था। उसकी पत्नी सिमरन छत पर बैठे कभी प्रकृति की तरफ तो कभी अपने घर के आंगन में खेलते हुए अपने 4 वर्षीय पुत्र रणवीर को देखकर मुस्कुरा रही थी। आंगन में चारपाई डालकर बैठे हुए उसके सास ससुर उसके बेटे के साथ खेल खेल रहे थे। अपने पुत्र को ऐसे खेलते हुए देखकर सिमरन को बड़ी खुशी मिल रही थी।

सिमरन और गुरुचरण सिंह की शादी को 5 साल हो गए थे, जैसे कल ही की बात हो, चंडीगढ़ के पास एक गांव में रहेनेवाली सिमरन मुंबई के कॉलेज में hotel management की पढ़ाई करने गई थी। सिमरन का सपना था कि वह अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद चंडीगढ़ में अपना छोटा सा ढाबा खोले लेकिन उसकी पढ़ाई खत्म होने के बाद उसके माता पिता ने उसकी शादी अमृतसर के पास एक गांव के जमींदार गुरुचरण सिंह से तय कर दी थी।

गुरुचरण ऊंचा, पहाड़ी, पहलवान जैसा गबरू जवान था। उसका परिवार आर्थिक रूप से सुखी और संपन्न था। गांव में उसके परिवार की काफी प्रतिष्ठा है। गुरुचरण के माता पिता का स्वभाव भी बहुत ही दयालु, मायालु और धार्मिक होता है। सिमरन के माता-पिता की स्थिति बहुत ही साधारण होती है इसीलिए जब सिमरन के लिए जमींदार गुरुचरण का रिश्ता आया तब सिमरन के मां बाप ने अपने बेटी की सपनों की परवाह किए बिना ही उसका हाथ गुरुचरण के हाथ में सौंप दिया। उसको यह आशा थी कि सिमरन वहां पर बहुत ही खुश रहेगी लेकिन जहां पर प्यार की भावना नहीं होती है, अपनापन नहीं होता है, वहां पे जमीन जायदाद से भी कोई फर्क नहीं पड़ता है।

गुरुचरण का स्वभाव बहुत ही ज़िद्दी और आक्रामक था। अगर वह किसी बात को लेकर ठान लेता था तो फिर वो उस पर अड जाता था। वह गांव का सरपंच होने के नाते पूरा गांव को अपनी जागीर समझता था। वह अहंकार और घमंड से भरा हुआ था इसलिए सिमरन के साथ उसका बर्ताव तानाशाह जैसा था। वह जब रात को दारु पी कर आता था तब सिमरन से साथ झगड़ा करता था और कभी कभी हाथ भी उठाता था अगर उसके मां-बाप उसको समझाते तो उसके साथ भी वो झगड़ा करता था।

जब भी सिमरन अपना कुकिंग के शौक को लेकर गुरुचरण को बताती थी तब गुरुचरण का ego बीच में आ जाता था। वह सिमरन पर गुस्सा हो जाता था और कभी कभी सिमरन की खिल्ली भी उड़ाता था। स्त्रियों को घर और बच्चे संभालने चाहिए ऐसी उसकी मान्यता थी। सिमरन की feelings की उसे कोई परवाह नहीं थी उल्टा वह सबके सामने सिमरन को नीचा दिखाने की कोशिश करता रहता था।

सिमरन को गुरुचरण का यह बर्ताव बिल्कुल भी पसंद नहीं आता था लेकिन वह अपने बच्चे के बारे में सोचकर सहम के रह जाती थी। सिमरन के सास ससुर बहुत ही अच्छे थे वह सिमरन का ख्याल अपने बेटी की तरह रखते थे, उसको किसी की भी चीज की कमी का एहसास नहीं होने देते थे लेकिन जब पति का प्यार ना मिले तब बाकी चीजों का कोई मतलब नहीं होता है|

सिमरन भी अपने सास ससुर का ख्याल अपने माता पिता की तरह ही रखती थी। सिमरन को कुकिंग पसंद था इसलिए वह बहुत ही बढ़िया खाना बनाती थी। हर दिन वो नए-नए dishes बनाकर अपने परिवार को खुश कर देती थी| उसके खाने की तारीफ उसका परिवार, उसके रिश्तेदार और उसके गांव के लोग भी करते थे। सिमरन के हाथ का बना हुआ खाना खाने के लिए उसके यहां आए दिन मेहमान आते रहते थे। सिमरन भी पूरे दिल से उन सब की खातिरदारी करती थी और सब को खुश रखने का प्रयास करती थी।

धीरे धीरे शाम हो जाती है, सिमरन छत के ऊपर से दूर खेतों के रास्तों पर नजर घूमाती है तब गुरुचरण अपने ट्रैक्टर को लेकर घर की ओर आता हुआ दिखाई देता है, वह तुरंत ही छत पर से नीचे आती हैं और अपने परिवार के लिए खाना बनाने की तैयारी में लग जाती है।

. क्रमशः