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वैज्ञानिक मुनि अगस्त्य

वैज्ञानिक मुनि अगस्त्य

विध्याचत पार करके समुद्र तट को जाने के लिए निकले मुनियों का एक काफिला विध्याचल से वापस लौट आया और मुनियों के इस काफिले ने त्रयम्बकेश्वर महादेव की पूजा करने हेतु बिश्राम किया । सुबह जब वे अगस्त्य मुनि के आश्रम में सतसंग हेतु गये तो उन्होने अपनी पीड़ा कह सुनाई। किंवदंती है कि विंध्याचल पर्वत रात दिन बढ़ता जारहा था इतना कि हिमालय से उतर कर दक्षिण दिशा में समुद्र तट तक जाने वाले ऋशि मुनि और दूसरे तीर्थ यात्रियों को विध्याचल पार करके उस पार जाना दुर्गम होने लगा था । उन्होनंे तुरंत ही उन मुनियों को साथ लिया और विध्याचल की तरफ बढ़ लिये।

अगस्त्य मुनि अपने सरल स्वभाव और दूसरों की मदद करने की प्रवृत्ति की वजह से बड़े लोकप्रिय थे, लोगों को वह घटना भली प्रकार पता थी ंकि एक बार एक चिड़िया ने जब उन्हें यह बताया था कि समुद्र उसके अण्डे बहाकर अपने साथ ले गया तो वे चिड़िया के साथ समुद्र के पास जा पहुंचे थे और समुदं्र से उस चिड़िया के अण्डे वापस देने को कहा। लेकिन समुद्र की आदत तो जड़ और जिददी होने की है सो समुद्र ने उनकी बात सुनी ही नहीं , वह अपनी बड़ी लहरों और गगनभेदी अटटहास के साथ मस्ती में झूमता रहा। अगस्त्य मुनि को एकाएकगुस्सा आया और उन्होंने एक वैज्ञानिक प्रयोग आरंभ किया और कुछ ही देन में सारे समुद्र को सुखा लिया। लोग कहने लगे कि अगस्त्य मुनि ने समुद्र ही पी लिया है। जो भी सुनता सहज ही विश्वास कर लेता क्योंकि अगस्त्य एक वैज्ञानिक मुनि माने जाते थे। उन्होनंे अपनी पुस्तक अगस्त्य संहिता में विद्युत संग्राहक, विद्युत उत्पादक और गगन गामी यानि आसमान में उड़ने वाले यंत्रों का उल्लेख किया था।

अगस्त्य महर्षि पुलिस्त्य के बेटे थे, अगस्त्य दो भाई थे, दूसरे भाई का नाम था वशिश्ठ था। वशिष्ठ अयोध्या में निवास करते थे और वे दशरथ के राज गुरु थे। अगस्त्य को कुम्भज भी कहा जाता है। अगस्त्य का जन्म बनारस में यानी काशी में हुआ था, उनकी शिक्षा दीक्षा अपने पिता पुलस्त्य मुनि के आश्रम में ही हुई । पुलिस्त्य की दूसरी पत्नी कैकसी से एक बेटे विश्रवा हुए थे । विश्रवा रावण और कुम्भकर्ण के पिता थे । यह भी माना जाता है कि अगस्त का विवाह विदर्भ देश के राजा की बेटी से हुआ था जिनका नाम लोपामुद्रा था लोपामुद्रा अगर दोनों ही संस्कृत के बड़े विद्वान थे।यजुर्वेद के प्रचारक के रूप में भी अगस्त का ही नाम आता है।

कहा जाता है कि भ्रमण प्रिय होने के कारण उनके आश्रम सारे भारतवर्श में पाये जाते है। तमिलनाडु, महाराश्ट और उत्तराखण्ड में अनेक जगह उनके आश्रम बताये जाते हैं। उत्तराख्ण्ड के रूद्रप्रयाग जिले में अगस्त मुनि के नाम की एक बस्ती होने की जानकारी मिली है। कहा जाता है कि अगस्त्य से आतापी और वातापी नाम के दो राक्षस से युद्ध करके उन्हे मार दिया था। महाराश्ट में पंचवटी के पास और तमिलनाडु के तिरूपति में भी इनका आश्रम पाया गया है।

अगस्त्य संहिता संस्कृत में लिखी गई है जिसमें विद्युत बनाने से लेकर आसमान में उड़ने वाले विमानों का भी जिक्र है । अनेक लोग कहते हैं कि अगस्त मुनि ने जावा और सुमात्रा की भी यात्रा की थी क्यों कि जावा और सुमात्रा में अगस्त्य के आश्रम मिलते हैं।

यह कहा जाता है अपने बनाए विमान से समुद्र पार करके अगस्त्य मुनि विदेशों में गए थे । कंबोडिया में एक बड़ा मंदिर भद्रेश्वर के नाम से पाया गया है, जहां माना जाता है कि अगस्त्य ने वहां रहकर उनकी शिव की पूजन की थी।

अगस्त्य जब बनारस में रहते थे तो अन्य मुनियों ने उन से अनुरोध किया कि संस्कृत का प्रचार प्रसार दक्षिण भारत में भी होना चाहिए तो ज्यों ही उन्होंने विंध्याचल पहाड़ के पास सेे लौटे मुनियों की व्यथा सुनी वे उनके साथ चल पडे़।

उन्होने देखा कि विंध्याचल बहुत ऊंचा पहाड़ है कहते है कि तब अगस्त्य ने उससे मार्ग मांगा, और उनके नाम से डरके विंध्याचल नीचे झुक गया तो अगस्त्य ने कहा मैं जब तक लौट कर ना आऊं तब तक तुम यूं ही झुके रहना। विंध्याचल पार करके अगस्त्य दक्षिण भारत में पहुंचे और हमेशा ही वहीं के होकर रह गए। वहां उन्होंने वहां की भाषा तमिल भाषा का व्याकरण लिखा, जिसे अगस्त्य का व्याकरण कहा जाता है । वे भाशा के बड़े जानकार थे, भाषा के बहुत सारे नियम उन्होंने मनाए थे। वे केरल के निःशस्त्र युद्ध कलरीपयट्टु की दक्षिणी प़़द्धति वर्मक्कलै के बड़े जानकार थे जो कि उन्हे कार्तिकेय ने सिखाई थी।

तमिल भाशा में अगस्त्य मुनि का बड़ा सम्मान माना जाता है। अगस्त मुनि द्वारा बताए गए तरीकों से वन को काटकर नई नई तरह की खेती आरंभ करना हुआ था। अगस्त ना केवल यज्ञ करते थे बल्कि जंगल काट कर खेती करने में भी वे बड़े निपुण थे। इस तरह अगस्त ऋषि कि मैं बहुत सारे गुण पाए जाते हैं । वे यज्ञ करते थे और जंगल काटकर खेत बनाना कृषि करवाने में भी भेजे थे, इसके अलावा अपने खाली समय में भी वैज्ञानिक आविश्कार किया करते थे ।

उनके बारे उनके बहुत से लोग बताते हैं कि उन्होंने अनेक प्रकार के आविष्कार किए थे अध्यक्षता में विद्युत का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक अल्स करने का विवरण मिलता है उन्होंने बैटरी द्वारा तांबा हमें तांबे और सोने-चांदी के साथ बैटरी बनाने का भी वर्णन किया है अगस्त संहिता में लिखा है - संस्थाप्य मृण्मये पात्रे तामपत्रं सुसंस्कृतम! छादयेच्छिखियीवेन चार्दाभि काश्ठापांसुभिः !! दस्तालोश्टो निधात्वयः पारदाच्छादितस्ततः! स्ंांयोगाज्जायते तेजो मित्रावरूणसंज्ञितम !!

यही नहीं उन्होंने एक ऐसा वस्त्र बनाया था जिसमें वायु भरी जा सकती थी और उस वायु की वजह से आसमान में उड़ा जा सकता था। वे लिखते हैं - वायुबंधक वस्त्रेण सुबध्दोयनकमस्तकें। उदानस्य लधुत्वेन विभ्यर्त्याकाशयानकम!!

अर्थात वायु को अगर हवा ना निकलने वाले कपड़े में भर दिया जाए तो वह आसमान में उड़ने लगता है, आसमान में यह कपड़ा ऐसे ही देता है जैसे पानी में नौका चलती है ।

कंबोडिया में एक ऐसा शिलालेख मिला है जिसमें कहा जाता है कि शिव की पूजन करते हुए अगस्त का अंतिम समय कंबोडिया में बीता। वहां अन्य भी बहुत सारे शिलालेख मिलते हैं उनमें कहा जाता है कि अगस्त आर्य देश के निवासी थे और हिंदू धर्म के अनुयाई थे। उन्होंने भद्रेश्वर नाम के एक शिवलिंग की स्थापना कर लंबे समय तक पूजा-अर्चना की थी हो सकता है अगस्त एक से ज्यादा हुये हों, क्यों कि एक व्यक्ति द्वारा इतने सारे काम करना असंभव प्रतीत होता है, और एक ही अगस्त्य हो सकते है।

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