आसमान में डायनासौर 10
बाल उपन्यास
राजनारायण बोहरे
बाहर आते ही सचमुच तैरने लगे थे।
अब कुछ लाभ हुआ।
उन यानों के भी दरबाजे खुले और प्रत्येक में से एक एक मनुष्य निकले।
अंदाज प्रो. दयाल ने यान में बैठे अजय अभय ने लगाया कि स्पेस सूट में ढ़के होने के बाद भी वे सबके सब पृथ्वी वासियों जैसे लग रहे थे ।
प्रो. दयाल ने कुछ हरकत आरंभ की।
पहले वे दोनों बांह फैलाकर एक कदम आगे बढ़े और उन लोगों की ओर ताका मगर उन पर कोई प्रतिक्रिया नही हुई।
अंततः प्रो. दयाल ने जाने क्या सोचकर अपना दांया हाथ ऊपर उठाया और मुट्ठी बांधकर अंगुठा ऊँचा कर दिया मानो थम्सअप या डन कर रहे हो।
एकाएक उन सब ने भी अपने-अपने हाथ ऊँचे किये।
दयाल सर को राहत मिली चलो कुछ तो बातचीत आरंभ हुई।
उन यानों से बाहर निकले लोगों में से एक आदमी ने दयाल को अपने पास आनेे का इशारा किया , दयाल आगे बढ़े तो उसने अपने एक विमान मेें बैठने का इशारा किया।
दयाल सर सामने वाले विमान की ओर बढ़े तो उस विमान के समीप बड़ा व्यक्ति एक ओर हट गया और प्रो. दयाल को उसने भीतर बैठने का इशारा किया।
प्रो. दयाल सकुचात हुये उस यान में उस यान में प्रविष्ट हुये तो अपने आप ही यान का दरवाजा बंद हो गया। घबराकर उन्होंने स्क्रीन की ओर देखा तो वे चौकें। यान में उन्हे बैठाने वाला व्यक्ति गगन की और बढ़ रहा था।
वह व्यक्ति भीतर प्रविष्ट हुआ और गगन का दरवाजा भी बंद हो गया था। सबसे बड़ा आश्चर्य तो तब हुआ था जब एकाएक गगन चल पड़ा था। उसके चलते ही बाकी यान भी उसके पीछे लग गये थे।
अजय अभय को याद आया कि जब भारत में कोई विदेशी अतिथी आता है तो हवाई अड्डे से ही उसकी गाड़ी के पीछे दर्जनों कारे फॉलो करती हुई इसी प्रकार चलती हैं। यानि कि वे इस ग्रह पर मेहमान बन गये है। ग्रह वासियो ने उन्हे समझ लिया है।
ग्रह का जीवन अब कुछ स्पष्ट दिखने लगा था और स्क्रीन पर फैलता जा रहा था।
वे लोग हरेक चीज को गौर से देखने लगे।
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एक लंबी चौड़ी हवाई अड्डे जैसी जगह सब यान जाकर उदतर गये। दूर एक छोटी इमारत दिख रही थी।
यानो के रूकते ही उस छोटी इमारत की और से एक जीप जैसी गाड़ी चलती नजर आई जो इधर ही आ रही थी। समीप आने पर उन्होंने देखा कि उस जीप जैसी गाड़ी के ऊपर मंडप की तरह एक छत सी फैली है। वह गाड़ी बिल्कुल आवाज नही कर रही है। प्रो.दयाल तत्काल समझ गये कि ऊपर फैली हुई छत सूर्य की रोशनी से बिजली बनाने वाला सौर पैनल है जिससे बिजली पाकर वह जीप चल रही है । दयान बड़े प्रसन्न हुये कि सौर ऊर्जा का उपयोग करना इस ग्रह के लोग जानते हैं।
प्रो.दयाल यान से उतरने का विचार ही कर रहे थे कि दरवाजा अपने आप
खुल गया और वे जल्दी से नीचे उतर गये। दूसरे यानों के लोग भी उतर रहे थे। गगन मे बैठे अजय और अभय भी उतर गये थे।
हवाई अडडे पर बहुत सारी ऐसी गाड़ी खड़ी थी जैसी पृथ्वी पर जीप होती है जो सड़क पर चलती है।
अब निकट से उन लोगों ने देखा कि उस ग्रह के लोग पृथ्वी के मनुष्यों जैसे हाथ पांव और शरीर वाले है। प्रो.दयाल प्रसन्न हो उठे कि अब वे मनुष्य के ही बीच है । उन सब के बदन पर स्पेस सूट चढ़े हुये थे। अचानक आसमान में कोई अत्यंत चमकीली चीज से किरणें निकली तो प्रो. दयाल ने उपर देखा और वे मुस्कराने लगे क्योंकि आसमान में खूब बड़ी तश्तरी उड़ रही थी। दयाल सर को विचार आया कि कहंी ये ही तो हमारी पृथ्वी पर जाने वाली उड़नतश्तरी नही है। इसका आकार भी काफी बड़ा है। यानो से दूर वह तश्तरी धीरे से नीचे उतरी उसमें से तीन खम्भे निकले और वह बहुंत आराम से धरती पर तीन खंबो के सहारे उतर गई।
प्रो. दयाल ने देखा कि उस तश्तरी के बीच का हिस्सा कुछ मोटा सा है। एकाएक उसमे से एक दरवाजा बना और उसमे से एक आदमी कूदा।
वह भी उन खड़े हुए यानों की ओर बढ़ा तब एक ने आगे बढ़कर उन तीनो की तरफ कई बार अपना हाथ फैलाकर उड़नतश्तरी और जीप की और ईशारा किया।
प्रो.दयाल समझ गये कि वह पूछ रहा है कि आप जाने के लिये कौन सा यान पसंद करेंगे।
प्रो.दयाल ने उड़नतश्तरी की और संकेत किया तो वह धरती पर झुककर उन्हे प्रणाम करने लगा। प्रो.दयाल ने समझा कि वह उनका स्वागत कर रहा है।
वे तीनो अपने आप ही उड़नतश्तरी की ओर बढ़े और उसके तीन खंबो के बीच लटकी सीढ़ी पर पैर रखकर भीतर चढ़ गये।
तश्तरी चालक उसमें चढ़ा तो उड़न तश्तरी का दरवाजा भी बंद हो गया। भीतर बहुत छोटी सी मशीन थी। चालक ने एक दो बटन दबाये और उड़नतश्तरी आसमान में उठने लगी।