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आसमान में डायनासौर - 8

आसमान में डायनासौर 8

बाल उपन्यास

राजनारायण बोहरे

गगन यान को थोड़ा ऊँचा उठाकर वे एक तरफ बढ़े और नीचे का दृश्य गौर से देखने लगे। गगन की रफ्तार इस समय बहुत तेज हो गई थी।

चट्टानी हिस्से से बहुत दूर जहां घना जंगल था उसके पास उन्हें सांड जैसे आकार का एक जंतु गेंडा जैसी मोटी चमड़ी वाला दिखा जिसकी नाक तथा दोनो आंखो के ऊपर तीन नुकीले सींग उठे हुये थे। मुंह से गर्दन तक एक मोटी परत चढ़ी हुई थी जैसे उसने लोहे का कनटोप लगा लिया हो। प्रो. दयाल ने बताया कि यह ट्रोईसेराप्टोस नामक जन्तु है। उन्होंनेे उसके कुछ फोटो खीचे और आगे बढ़ गये।

काफी दूर उन्हें छिपकली जैसी बनावट के लेकिन उससे हजार गुना बड़े दूसरे जानवर का एक झुंड मिला दयाल सर ने बताया कि यह प्रोटोसेराटाप्स जंतुओ है। उसके भी फोटो खींचकर वे आगे बढ़े।

सामने ही समुद्र था और उसके किनारे बने अनेक टीलों से एक पर जो जंतु बहुत संुदर सा बैठा उन्हे देख रहा था, उसकी झलक पाकर अजय और अभय वे बड़े प्रफुल्लित से हो उठे थे।

दयाल सर ने बताया कि यह जंतु साईसोलोकस है, इसके सिर के ऊपर मछली जैसी कलगी थी और हाथों में भी बतख के पंजो जैसी पतली खाल रहती है । मगर की तरह इसकी लंबी नोकदार पूँछ थी तो आदमियो की तरह यह दो पांवो से चल फिर लेता था इसकी चोंच किसी पक्षी जैसी लगती थी अनेक प्राणियों का एक ही जीव में संगम पाकर वे बड़े खुश हुये और उसकी हरकतें और फोटो अपने कैमरे में कैदकर वे आकाश की ऊँचाईयों में फिर से लौटने को तैयार हो गये।

एक दिन एक ग्रह पर वे उतरे तो हाथियों के बराबर आकार के डायनासौर जाति के प्राणियों को उन्होंने आपस में लड़ते और संघर्श करते देखा तो प्रोफेसर दयाल से पूछा कि यह ग्रह पृथ्वी से कितने साल पीछे चल रहा है तो दयाल सर ने बताया कि यह ग्रह हमारी पृथ्वी से साढ़े तीन करोड़ साल पीछ चल रहा है।

अगले एक ग्रह पर उन्होंने गेंड़ो से मिलते जुलते जानवर देखे थे। जो प्रोफेसर दयाल ने ढ़ाई करोड़ साल पहले के बताए थे और जिन्हे एंटलोडौन कहा जाता था।

एक दिन एक अन्य ग्रह पर उतरे तो यहां उन्हें अपने जंगलों में पाए जाने वाले सुपरिचित हिंसक लेकिन बहुंत सुन्दर दिखने वाले जंतु चीते और हाथियों जैसे लगने वाले दो मकान बराबर उंचाई के जानवर दिखे, दयाल सर ने बताया कि पहलेे चीते और हाथी ऐसे ही थी यह जानवर चीता और हाथी के पुरखे यानि पूर्वज कहे जा सकते हैं । इसी ग्र्रह पर एक जंगल में सिंह का पूर्वज बड़े दांत वाला सिंह तलवार दंत देखकर अजय और अभय रोमांचित हो उठे तो उसी के पास जिराफों की जाति में सबसे पहले पैदा होने वाले जानवर “पलियात्रागुस” को देखकर परम प्रसन्न हुये। दयाल सर ने बताया कि यह ग्रह दस लाख साल पहले का हिंसक युग था। यह ग्रह पृथ्वी से दस लाख साल पीछे चल रहा है।

एक ग्रह पर वे उतरे तो लगा कि वे हमारी पृथ्वी की धरती पर ही उतर रहे हैं , क्योंकि उन्होंने “मंग्रान्थ्रोप” नाम का आदमी देखा जिसके बारे में दयाल सर ने बताया कि यह हमारे पुरखे हैं यानि मनुष्य के अपने पैरो पर चलने के कुछ दिन पहले का पचास हजार साल पहले का युग यहां चल रहा है। इस ग्रह में हाथियो की जाति का ‘मेस्टोडॉन’ नाम का प्राणी उन्हें एक जगह घास खाता हुआ मिला तो कटहल के फल जैसे आकार का जंतु “ग्लिप्टोडॉन” देखकर वे आनंद में आ गये क्योकि दूर सेदेखने पर एक बड़ा सा कटलह ढड़कता हुआ बड़ा अच्छा लगता था।

यहां उतर कर अजय-अभय ने पृथ्वी से मिलते जुलते बहुत सारे पेड़, झाड़ी और घास देखी उन्होने हाथ मे दस्ताने पहन कर कुछ फल भी तोड़े और पत्तियां तथा झाड़ियो के नमूने भी लिये और एकदिन रूककर आसमान मे उड़ गये।

एक ग्रह पर उतरे तो दयाल सर ने कहा कि यहां “बर्फ युग” चल रहा है यह जो पृथ्वी से केवल पच्चीस हजार साल पहले का है । अजय और अभय ने पाया कि इस ग्रह में भी हाथियों की जाति के जानवर “मैकथहाथी” घूम रहे थे लेकिन वे पृथ्वी के वर्तमान हाथीयों जैसे सीधे साधे न थे बल्कि बड़े हिंसक थे इनके दांत बहुत बड़े थे और वे चारों ओर बड़े गुस्से से देखते रहते थे। यहां, “बारहसिंघा”,हिरण,गेंडा और गुफा सिंह भी उन्हे दिखा। इस ग्रह का गहन अध्ययन करते हुये वे दो दिन वहां रूके

रोज उनका एक ही नियम था कि वे ग्रह पर नीचे उतरते सब चीजों के वीडियों बनाते, फोटो बनाते और अपने गगन यान में पहुंचने के बाद वे अपने गगन में लगे कम्प्युटर में दर्ज भी करते जाते थे।

कई दिन लगातार वे लोग इसी तरह आनंद लेते रहे। बार बार आकाश गंगा में लौट के आते रहे और अनेक ग्रहांे पर आते और जाते रहे।

बर्फीले ग्रह को देखने के बाद उन तीनो ने तीन दिन अंतरिक्ष में स्थिर होकर विश्राम किया और लगातार प्रयत्न भी करते रहे कि पृथ्वी से संपर्क हो जाये मगर असफल ही रहे।

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