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आसमान में डायनासौर - 3

आसमान में डायनासौर 3

बाल उपन्यास

राजनारायण बोहरे

सामने के पर्दे पर शुक्र के अलावा दूसरे ग्रहों भी दिख रहे थे और प्रो. दयाल दूसरे ग्रहों को भी बारी-बारी से देखने लगे थे। उन्होंनेे अंदाजा लगा लिया कि पृथ्वी के अलावा और कहीं भी जीवन है तो अंतरिक्ष में चलता फिरता कोई यान या उड़नतश्तरी उन्हें जरूर दिखेगी।

सहसा वे चौके।

पर्दे पर शुक्र ग्रह से बहुत दूर एक नारंगी रंग का बिंदू चमकता दिख रहा था। जिसके पीछे लंबी पूंछ दिख रही था। प्रो. दयाल बड़े प्रसन्न हुये-“तो यह है नया भा,पुच्छल तारा वे बुदबुदाये । कि जाने क्या सोचकर उन्होंने अपने यान का रूख उसी पुच्छल तारे की ओर किया तो यान ने उधर ही छलांग लगा दी।

काफी देर तक यात्रा करने के बाद भी प्रो. दयाल और अजय अभय ने देखा कि पुच्छल तारा उतनी ही दूर बना हुआ है। इसका मतलब है कि पुच्छल तारा भी उसी दिशा में चल रहा है जिधर वे लोग जा रहे है। अपने यान की गति और अधिक बढ़ाते हुये प्रो. दयाल ने कुछ क्षण विश्राम करने का सोचा। वे चाहते थे कि अचानक प्राप्त हुआ यह पुच्छल तारा यदि उनके पास आ जाये तो वे पहले उसका अध्ययन कर लें और बाद में ग्रह की और चलें। उनकी बात का समर्थन अजय और अभय ने भी किया।

भारत से उनका संबंध जोड़ने के लिये यान में छोटे और शक्तिशाली ट्रांसमीटर शुरू किया और पृथ्वी पर अपने अधिकारियों को संदेश भेजा कि वे शुक्र ग्रह की यात्रा कुछ देर के लिये रोकते हुये फिलहाल एक नये पुच्छल तारे की खोज में आगे बढ़ रहे है।

भारतीय अधिकारी जानते थे कि गगन में बैठे प्रो. दयाल और अजय-अभय अन्तरिक्ष में पूरी तरह से सुरक्षित हैं। क्योंकि गगन में चारों तरफ तोपे भी लगी थी जिनसे निकलने वाले गोले किसी भी दुश्मन केा नेस्तनाबूद कर सकते थे। इन किरणों का निर्माण लेेंसर किरणो से किया गया था और इनका वजन भी नाम मात्र का था। गगन में कई तरह की नयी चीजे लगी हुई थी गगन यदि धरती के वायुमंडल में उतर आता तो हवाई जहाज की तरह उड़ सकता था और यदि उसे जल में उतरना पड़ता तो पनडुब्बी की तरह तैर भी सकता था।

गगन के भीतर भोजन था कि कई महीनों तक तीनो लोग उसे खाते हुये मजे से यात्रा कर सकते थे। गगन की मोटर चलाने के लिये सूरज की धूप से चलने वाली मशीन के अतिरिक्त अंतरिक्ष में बिजली पैदा करने वाली जैनरेटर मशीन थी ही वक्त जरूरत पर पानी से चलाने वाली मशीन भी लगी थी।

इसलिये प्रो. दयाल को भारत के अंतरिक्ष विभाग के अधिकारियों से शुक्र ग्रह के पहले उस अजनबी पुच्छल तारे के पीछे जाने की इजाजत मिल गई तो वे तो वे आगे बढ़ते रहे।

ट्रांसमीटर बंद करके प्रो. दयाल ने खाने की अल्मारी को थोड़ा खोला और उसमें हाथ डालकर तीन ट्युब उठा ली वे अलमारी को पूरा नही खोलना चाहते थे क्योकि ऐसा करने पर सारी ट्युब एक साथ बाहर निकल पड़ती और यान की छत से जा टकराती।

ट्युब खोलकर उन्होंने चाटना शुरू कर दिया। अंतरिक्ष में खाने और पीने के नाम पर ट्युब ही चलती थी। क्योकि डिब्बा बंद खाना और पका हुआ खाना ले जाना संभव नही इसलिये प्रो. दयाल और अजय अभय की प्रिय चटनी मुरब्बा और अन्य चीजो की ट्युब ढ़ेर सारी भर ली थी।

उन तीनो का लंच समाप्त हुआ तो वे कुछ अलसाये से दिखने लगे। घड़ी में वक्त देखकर उन्होंने अपनी कुर्सी के एक बटन दबाये तो वे कुर्सी पसरती चली गई और एक पलंग की शक्ल में बदल गई। वही लेट गये और सोने का यत्न करने लगे।

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