कर्म पथ पर - 77 Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कर्म पथ पर - 77







कर्म पथ पर
Chapter 77


जय जानता था कि हैमिल्टन की हत्या करने के बाद उसके लिए वापस सिसेंदी गांव आना संभव नहीं होगा। ऐसे में लड़कों की कक्षा जारी नहीं रह पाएगी। इसलिए उसने उर्मिला से बात कर ली थी। उसने उन्हें बताया था कि उसे अपने किसी व्यक्तिगत काम से जाना पड़ेगा। ऐसे में क्या वह लड़कों को पढ़ाने का भी दायित्व ले सकती हैं। उर्मिला ने कहा कि वह कुछ दिनों के लिए संभाल सकती हैं।
जय बहुत दिनों से सोच रहा था कि गांव में सरकारी पाठशाला का होना जरूरी है। कलेक्टर रामकृष्ण अय्यर ने नहर का काम करवा दिया था। उसने रामकृष्ण से प्रार्थना की कि वह गांव में सरकारी स्कूल खुलवाने के लिए भी कोशिश करें। रामकृष्ण ने उसे आश्वासन दिया था कि वह जल्दी ही इस विषय में भी काम शुरू करेंगे। उनके आश्वासन से जय संतुष्ट हो गया था। अब उसे इस बात की चिंता नहीं थी कि उसके और वृंदा के ना रहने से बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पाएगी।

मदन जमुना से एक रिवॉल्वर खरीद कर लाया था। साथ में उसने कारतूस भी खरीदे थे। मदन का संबंध भी कुछ दिनों तक क्रांतिकारियों से रहा था। उसने रिवाल्वर चलाना सिखा था। लेकिन खुद हैमिल्टन को मारना चाहता था। इसलिए मदन ने उसे रिवाल्वर प्रयोग करने के बारे में सिखाया। टीले पर जाकर जय मदन के साथ अभ्यास करता था। उनके पास कारतूस कम थे। इसलिए जय बड़ी सावधानी के साथ अभ्यास कर रहा था। कुछ ही दिनों में वह रिवॉल्वर का इस्तेमाल सीख गया था।
अब उन्हें किसी तरह हैमिल्टन के बंगले में घुसने के लिए प्लान बनाना था। रंजन अभी भी हैमिल्टन पर नजर रखे हुए था। वह लीना की जन्मदिन की तैयारियों के बारे में हर एक खबर लाकर दे रहा था। उसने खबर पहुँचाई थी कि हैमिल्टन लीना को प्रभावित करने के लिए बड़े पैमाने पर पार्टी की तैयारी कर रहा है। उसके लिए बहुत सारे कारिंदों की जरूरत पड़ेगी।
यह सूचना जय और मदन को काम की लगी। उन्होंने तय कर लिया कि अब वह समय आ गया है जब उन्हें सिसेंदी गांव छोड़कर लखनऊ जाना होगा। लेकिन लखनऊ में उन्हें रहने का कोई ठिकाना देखना होगा। जय और मदन अपने‌ अपने घर नहीं जा सकते थे। अन्यथा वह जो करने जा रहे हैं उसकी खबर सबको लग सकती थी। ऐसा होना ठीक नहीं रहता। रंजन के घर ठहर सकते थे। पर वह खुद ही बहुत छोटी सी जगह में रहता था। जय जब कुछ दिनों के लिए वहाँ रुका था तो उसने महसूस किया था कि रंजन के मकान मालिक को भी उसके साथ किसी का ठहरना पसंद नहीं था।
विष्णु के घर के बारे में भी नहीं सोच सकते थे। वहाँ भी खुलकर योजना बना पाना संभव नहीं था। उन्होंने एक बार फिर रंजन की मदद ली। उससे कहा कि उन्हें रहने के लिए एक जगह दिला दे। अगर उसके घर के पास होगी तो और भी अच्छा होगा। उन तीनों का एक साथ मिलकर प्लान बना पाना संभव रहेगा। रंजन को उसके घर से कुछ ही दूर पर एक मकान मिल गया। यह मकान एक बूढ़ी विधवा का था। वह अकेली रहती थी। जो कमरा किराए पर देना चाह रही थी उसने आने जाने के लिए रास्ता बाहर से ही था। आतः किसी भी समय बिना रोक टोक के आना जाना किया जा सकता था। जय ने वह कमरा किराए पर ले लिया।
गांव छोड़ने से पहले जय और मदन भुवनदा से मिलने गए। भुवनदा उनके इरादे जानते थे। ‌वह इस बात से सहमत तो नहीं थे कि ऐसा किया जाए पर उन्होंने उन्हें रोका भी नहीं। जय ने उन्हें आश्वासन दिया कि वैसे तो वह दोनों पकड़े नहीं जाएंगे। लेकिन अगर ऐसा होता भी है तो दोनों भुवनदा के बारे में कुछ भी नहीं बताएंगे। जय ने भुवनदा से कहा कि अब गांव के विकास की जिम्मेदारी उन पर है। उसने रामकृष्ण से स्कूल खुलवाने की बात कही है। उनसे मिलकर इस बात को आगे बढ़ाने की कोशिश करते रहें। हिंद प्रभात वृंदा के जाने के बाद से ही बंद हो गया था। जय जानता था कि भुवनदा के लिए अकेले उसे चलाना संभव नहीं होगा। उसने कहा कि फिलहाल हिंद प्रभात को बंद रहने दें। भविष्य में यदि उचित अवसर मिले तो उसे पुनः आरंभ करें।

जय मदन और रंजन तीनों कमरे में बैठे थे। चार दिन बाद ही लीना का जन्मदिन था। रंजन ने बताया था कि पार्टी में खाना पकाने के लिए लखनऊ के किसी मशहूर खानसामा बशीर खान को जिम्मा सौंपा गया है। वह बंगले के पिछले हिस्से में ही अपनी भट्टी लगाकर खाना बनाएंगे। इसलिए रसद पहुँचाने का काम दो दिन पहले ही शुरू हो जाएगा।
उन लोगों ने योजना बनाई कि पहले मदन रसद पहुँचाने के बहाने किसी तरह बंगले में घुसकर रिवॉल्वर को किसी महफूज जगह छुपा आए। जय ने पार्टी में शराब सप्लाई करने वाली एजेंसी के जरिए बेअरा का काम करने की नौकरी पक्की कर ली थी। उसे बंगले पर पहुँचकर ही उसकी वर्दी मिलनी थी। जय ने सोचा था कि वह बेअरे की पगड़ी के नीचे अपनी रिवॉल्वर छुपा लेगा। इसके लिए जरूरी था कि रिवॉल्वर पहले ही पहुँचा दी जाए।
बाकी सारी रसद पहले पहुँचाई जानी थी। लेकिन दूध और फल सब्जियां पार्टी वादे दिन दोपहर को पहुँचाई जानी थी। इसलिए सब्जियां या दूध पहुँचाने के बहाने मदन बंगले में घुसकर सही जगह पर गन छुपा सकता था।
जय कोई भी कमी नहीं रखना चाहता था। इसलिए उसने अपने और मदन के गेटअप के बारे में भी सोचा। इंद्र के थिएटर ग्रुप में काम करते हुए कुछ-कुछ मेकअप की समझ आ गई थी। जय और मदद ने अपनी दाढ़ी मूछ बढ़ा ली थी। इससे बहुत हद तक उनकी शक्ल पहचान में नहीं आती थी। बाकी जय ने मेकअप से अपना और मदन का रूप बदलने की योजना बनाई।
जिस दिन पार्टी होनी थी मदन मंडी में उस गाड़ी के पास खड़ा था जिसमें हैमिल्टन के बंगले पर जाने के लिए सब्जियां और फल लादे जा रहे थे। जो आदमी लादने का काम कर रहा था वह कुछ बीमार था। बार बार बैठकर सुस्ताने लगता था। गाड़ी का मालिक उसे डांट रहा था। पर बीमार होने के कारण वह जल्दी-जल्दी काम नहीं कर पा रहा था। मदन को अच्छा मौका मिल गया। वह उस आदमी के पास पहुँचकर बोला,
"भैया लगता है तुम बहुत बीमार हो। काहे खट रहे हो‌। घर जाकर आराम करो।"
उस आदमी ने कहा,
"हमारी किस्मत में आराम कहाँ। यह सामान लादकर साहब के बंगले पर पहुँचाना है। वहाँ जाकर सब उतारना होगा।"
"भैया पैसे के लिए जान दे दोगे क्या ?"
"बात पैसों की नहीं है। हमने अपने भतीजे से कहा था कि मेरी जगह काम कर दे। पर ऐन बखत पर वह मुकर गया। अब हमको ही करना पड़ेगा।"
"तो अगर तुम बुरा ना मानो तो हम तुम्हारी जगह है काम कर देते हैं। हमें भी चार पैसे मिल जाएंगे।"
उस आदमी को बात समझ आ गई। वह बोला,
"जो गाड़ी का मालिक है उससे बात कर लो। अगर वह राजी हो जाए तो हम भी घर जाकर आराम करें।"
मदन गाड़ी के मालिक के पास गया। उससे सारी बात कही। उसे अच्छी तरह समझा कर मना लिया।

गाड़ी बंगले के अंदर दाखिल हो गई। मदन का काम सारा सामान उतार कर बताई गई जगह पर रखना था। उसने अपना काम शुरू कर दिया। रिवॉल्वर उसने अपनी धोती के फेटे में छुपा रखी थी। वह उसे छुपाने के लिए सही जगह और मौका देख रहा था। उसे बंगले में एक पेड़ दिखा। उसमें एक जगह रिवॉल्वर को आसानी से छुपाया जा सकता था। जब आधा काम हो गया तो वह सुस्ताने के बहाने उस पेड़ के नीचे बैठ गया। मौका देखकर उसने रिवॉल्वर पेड़ में छुपा दी।
अपना काम सही तरीके से करके मदन जय के पास पहुँचा। उसने उसे बता दिया कि रिवॉल्वर कहाँ छुपाई है। अब आगे का काम जय का था।
शाम को जय पार्टी में सबको शराब परोस रहा था। उसने रिवॉल्वर निकाल कर अपने सर पर पहनी पगड़ी के नीचे छुपा रखा था। अब उसे सही मौके की तलाश थी।
पार्टी में बहुत रौनक थी। बिजली की रंगीन झालरों से सजावट की गई थी। लॉन के एक कोने में एक म्यूजिशियन बैठा पिआनो बजा रहा था। शहर के माने हुए लोग आए हुए थे। अधिकांश अंग्रेज़ थे। एक दो हिंदुस्तानी थे जो अपने आप को अंग्रेजों से कम नहीं समझते थे।
सभी को इंतजार था कि कब लीना तैयार होकर बाहर आएगी। उसके आने पर बर्थडे का केक काटा जाना था। जय ने देखा कि काटने के लिए एक बहुत बड़ा केक लॉन के बीच एक मेज़ पर रखा है।
सबको लीना के आने का इंतजार था। जय अपने लिए सही मौके की राह देख रहा था।