पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 18 harshad solanki द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 18

यह सुनते ही दीपक के चेहरे पे कोई रहस्यमय सी चमक आ गई. जो जेसिका ने न देखी.
दीपक ने एक्साईट होकर जेसिका की पीठ थपथपाते हुए कहा. "तब तो हमें उनका पीछा करना ही पड़ेगा!"
जेसिका: "क्यूँ?" दीपक का मकसद उनकी समझ में न आया.
दीपक: "तुम चलो तो सही! देखते हैं, क्या होता है."
जेसिका भी इन लोगों की हर हरकत को नोट करना चाहती थी. इसलिए वह भी तैयार हो गई.
दोनों पहाड़ी पर थोड़े ऊपर चढ़े. और उन आदि मनुष्यों से तै दूरी रखकर उनका पीछा करने लगे.
*******
रात्रि का अँधेरा घिर आया था. राजू की टीम के अन्य मेम्बर्स ने दिन भर भटक कर खोहों की तलाशी ली थी. और साम होने से पहले तक तै की हुई पहाड़ी पर उन्होंने अपना पड़ाव भी दाल लिया था. वे दिन भर भटके थे. पर उन्हें आज भी मेघनाथजी की कही खोह का पता न चल पाया था. अब वे जेसिका और दीपक के लौटने की ही बात देख रहे थे. उन दोनों को सूरज ढलने से पहले ही लौटना था. पर अब तो रात्रि हो चुकी थी. लेकिन जेसिका और दीपक का कोई पता नहीं था.
अब वे चिंता में पड़े. सायद दीपक और जेसिका किसी आफत में पड़ गए न हो! इस संदेह में वे उन दोनों की तलाश में निकले.
पर तभी दीपक और जेसिका को तेजी से लौटते हुए देखा. इस प्रकार दोनों को तेज तेज लौटते देखकर उनके मन में किसी मुसीबत का संदेह पैदा हुआ. पर जब वे दोनों पास आए और उनके चेहरे पर खुशी की चमक देखी, तो उनका यह संदेह जाता रहा.
"ये दोनों हर रोज़ कोई न कोई अकस्मात् करके आते हैं. पर आज कोई खुशियों वाला अकस्मात् कर लौट रहे हैं." हिरेन ने कोमेंट किया.
दोनों पास आ पहुँचते हैं.
राजू: "क्यूँ. उन्होंने तुम्हें पार्टी दी थी क्या? जो इतने खुश हो रहे हो?"
दीपक: "अरे पार्टी तो क्या! उससे भी बढ़कर बात है!"
हिरेन हस्ते हुए: "तब तो ये भाई जरूर अपनी शादी पक्की कर आए हैं!"
दीपक: "क्यूँ? तुम्हें करनी है? मेरी कई सालियाँ हैं! कहो तो अभी बात चलाऊ."
प्रताप: "जब यहाँ सब दिल वाले हैं, तो क्यूँ दुल्हनियां लेते न चले! हिरेन अकेले की ही क्यूँ! दीपक की एक थोड़ी ही साली होंगी!"
भीमुचाचा: "इस सब दिल वालों में मुझे बाकात ही रखो. हाँ, रफीक चाहे तो उनका घोड़ी चढ़ने का बंदोबस्त कर दो. बाकी, मेरे घर में जो जोगन बैठी है, उससे तो मुझे अकेले को भी घर में पाँव रखने में दर लगता है."
रफिक्चाचा: "हाँ, तभी कहो नाव! कई बार आप को घर के बाहर ही रात गुजारनी पड़ती है. सायद वह तुम पर तुम्हारी जोगन की कृपा ही होगी!"
रफिक्चाचा की बात सुन, सब हंस पड़ते हैं. फिर बातें करते अपने पड़ाव की और पैर उठाते हैं.
राजू: "पर बात तो बताओ! असल मामला क्या है?"
दीपक: "इतनी जल्दी क्या है? सुबह तक इंतज़ार कीजिए! अपने आप पता चल जाएगा." "
दीपक की बात सुन, सब की बेचैनी बढ़ने लगी.
हिरेन: "ये दीपक तो बड़ा भाव खा रहा है! देखो. अब सब मेरी भी बात सुन लो. जब तक दीपक अपना हाल नहीं कहेगा, मैं खाना नहीं खाऊंगा. और बिना खाए अगर मुझे कुछ हुआ, तो इसका जिम्मेदार दीपक को ही ठहराना."
दीपक: "अरे ब्रधर! अगर तुम्हें कुछ हुआ तो तू मेरी जिंदगी हेल्लो ब्रधर जैसी बना देगा. इसलिए तू सुन ले."
इतना कहते हुए दीपक ने हिरेन के कान में कुछ कहा. जिसको सुनते ही दो घड़ी तो हिरेन भौचक्का ही रह गया. फिर दीपक को गोद में उठाकर घुमाते हुए चिल्लाया.
"यार! क्या खबर लाया है! तूने तो जी खुश कर दिया."
हिरेन का हाल देखकर सब की बेताबी और बढ़ गई.
पिंटू: "अरे यार! क्यूँ सस्पेंस खड़ा कर रहा है. जल्दी से बता भी दो ना!"
भीमुचाचा: "क्यूँ जेसिका, खज़ाने का पता मिल गया क्या?"
जेसिका हंस देती है. जिसको देखकर सब को दीपक का इतना सस्पेंस खड़ा करने का मतलब समझ में आ जाता है. दीपक आंखें फाड़ जेसिका को धमकाता है.
राजू बड़ी उत्सुकता से: "मिल गया क्या? कहाँ?"
जेसिका: "वो जो अलग दिखने वाली तलहटी है न! वहीँ."
जेसिका की बात सुन सब लोग चिल्ला उठे. उन लोगों का खुशी का कोई ठिकाना न रहा. वे अब अपने पड़ाव पर पहुँच गए थे. और खाना खाने लगे थे. इस दौरान भी बातों का सिलसिला जारी रहा. शेष टीम मेम्बर्स जानना चाहते थे की उन्हें वह खोह का ठिकाना कैसे मिला.
जिसके उत्तर में दीपक और जेसिका सुबह से साम तक उन्होंने जो जो किया और देखा, वह सारा हाल बताने लगे.
*****
जेसिका और दीपक दोनों उन आदिम मनुष्यों का पीछा करते हुए उनके पीछे पीछे जाने लगे थे.
जेसिका: "पर तुम इनका पीछा क्यूँ कर रहे हो? यह बताया नहीं."
दीपक: "देखो, ये लोग यह सब चीजें लेकर कहाँ जा रहे होंगे? उनके देव स्थान ही न? और हम किस चीज की खोज कर रहे है? एक खोह की. जो एक देवी का निवास स्थान हैं. हो सकता है इनकी और हमारी मंजिल एक ही हो!"
जेसिका अवाक् हो कर. "अरे हाँ! यह बात तो मेरे खयाल से ही निकल गई!"
उन आदिम लोगों की टोली पहाड़ी की तलहटी से गुजरते हुए आगे जा रही थी. दीपक और जेसिका भी पेड़ों, झाड़ियों के पीछे छिपते छिपाते उनका पीछा कर रहे थे. बीच मार्ग में एक तालाब भी आया.
जेसिका: "क्या ये वहीँ तालाब है, जिसमें उस दिन हमने आग का प्रतिबीम देखा था?"
दीपक ध्यान से देखते हुए: "लगता तो कुछ ऐसा ही है."
दोनों ने आसपास देखा. पर कहीं जलती हुई आग दिखाई न दी.
थोड़े आगे चलने पर जेसिका: "हाँ, ये देखो! आग का प्रतिबीम दिखाई देने लगा! ये वहीँ है!"
दीपक चारों और देखकर: "अरे हाँ! और ये देखो! हम तो उस अलग रंग की दिखने वाली तलहटी के नजदीक आ पहुँचे! ये यहाँ से ज्यादा दूर नहीं लगती."
जेसिका खुश होते हुए: "सच कहा तुमने. आज तो हम इस तलहटी और तालाब की आग का राज़ सुल्जा ही लेंगे."
जेसिका फिर से: "अरे! पर इनका रंग तो देखो! ये तो वैसा ही है, जो ये लोग ले जा रहे हैं!"
दीपक: "मतलब ये लोग इन रंगों से वहां जा कर कोई रंगोली करते होंगे?"
जेसिका: "ऐसा ही होगा! तभी तो ये लोग रंग ले जा रहे होंगे न!"
अब वे मनुष्यों की टोली तालाब को पार कर उस रंगीन तलहटी की और बढ़ी.
जेसिका: "ये देखो! वे लोग वहीँ जा रहे हैं!:
दीपक और जेसिका भी उनका पीछा करते हुए तलहटी की और बढ़े. वे अब उस तलहटी के सामने आ पहुँचे थे. अब आगे जाना मुश्किल था. क्यूंकि वहां अब बहुत औरत मर्द जमा थे और ज्यादा आगे बढ़ने पर पकड़े जाने का दर था. वे छिपकर देखने लगे. तभी उनकी नजर सामने जलती आग की धुनी पर पड़ी.
दीपक: "ये देखो! वह आग! जिसका प्रतिबीम तालाब में पड़ता है."
वहां एक खोह का मुहाना था. उनके सामने एक बड़ी आग जल रही थी. और वे मनुष्य वहां किसी क्रिया में लिप्त थे. यह सायद उनका कोई धार्मिक अनुष्ठान था.
जेसिका ने भी देखा. फिर अपनी डायरी निकालकर नोट करने लगी. वह आसपास निरीक्षण करती जा रही थी और नोट्स लिखती जा रही थी.
वे मनुष्य अपने साथ लाए रंगों से वहां विविध चित्र एवं आकृतियाँ बना रहे थे. पहले से बनी आकृतियों और चित्रों में ताजा रंग भरकर उन्हें नयापन दे रहे थे. अपने साथ लाए चमड़े, सींग, हड्डियों से बने साधनों को एक हरोर में विशिष्ट तरीके से सजाते जा रहे थे. आग में वे फल फूल अर्पित कर रहे थे. और आग के सामने बैठे बैठे एवं खड़े खड़े विशिष्ट शारीरिक मुद्राएं बना रहे थे.
वहां बलि कर्म की जगह भी थी. कोई कोई मनुष्य वहां किसी न किसी प्राणी की बलि भी चढ़ा रहे थे. जब किसी प्राणी की बलि चढ़ाई जाती थी तब वहां बहुत से लोग इकठ्ठा हो जाते थे. और मुंह से विचित्र सी आवाज़ निकालते थे. फिर वे खोह के अन्दर चले जाते थे.
खोह के अन्दर क्या था और वे मनुष्य अन्दर जाकर क्या करते थे यह जेसिका और दीपक देख नहीं पा रहे थे. क्यूंकि वे दोनों खोह के मुहाने से काफी दूर थे.
जेसिका की पैनी नज़र चारों और घूम घूम कर निरीक्षण कर रही थी. अचानक वह चीखते रह गई. उसने अपने मुंह पर हाथ लगाकर अपनी आवाज़ को मुश्किल से दबाया. दीपक भारी अजूबे के साथ उसे ऐसा करते देखता रहा.
जेसिका: "तुमने कुछ देखा!?"
दीपक दुविधा में पड़ कर इधर उधर नजर दौड़ाते हुए: "क्या? तुम किसकी बात कर रही हो?"
जेसिका ने दीपक को अपनी उंगली से इशारा करते हुए कुछ देखने को कहा.
दीपक: "ओ माई गोद! शिलपरिरक्षक! क्या यही शिलपरिरक्षक हैं!"
जेसिका: "सायद यही हो! जिनकी हमें तलाश है!"
दीपक: "और हम उनके सामने खड़े हैं!"
जेसिका: "हाँ, वहीँ! पता, एक खोये हुए खज़ाने का! जिनकी तलाश में हम आये हुए हैं."
अब दीपक का मन उन आदि मनुष्यों की प्रवृतियों में नहीं लग रहा था. वह इतना एक्साईट हो गया था कि वह जल्दी से जल्दी अपने अन्य मेम्बर्स को इस खुशी की खबर देना चाहता था. उसने जेसिका को लौटने के लिए कहा. पर जेसिका इन आदिम मनुष्यों की हर हरकत को नोट करना चाहती थी. इसलिए उसने दीपक को भी रोका.
मन मारकर दीपक को भी रुकना पड़ा. अब वह मन्नत करने लगा कि जेसिका का निरीक्षण जल्दी खत्म हो और वे जल्दी से अपने पड़ाव पर पहुँचे. और उसके अन्य टीम मेम्बर्स को यह खबर सुनाए.
जब संध्या होने को आई, तब कुछ आदिम मनुष्य लौटने लगे. दीपक ने भी जेसिका को लौटने का आग्रह किया. अब जेसिका ने भी ज्यादा रुकना उचित न समझा. अतः दोनों उन लौटते हुए आदि मनुष्यों के पीछे पीछे लौटने लगे.
पर जब तक वे दोनों उनकी तै की हुई पहाड़ी तक पहुंचे, दिन पूरी तरह से ढल चूका था. और सामने से उन्होंने अपने साथियों को आते हुए पाया. वे सब सायद हमारी खोज में ही निकले हैं. यह जान वे दोनों तेजी से उनकी और चले. और उनके पास पहुँचने पर दीपक ने वह सारा सस्पेंस पैदा किया.
जेसिका और दीपक की बातों को टीम मेम्बर्स बड़े गौर और उत्सुकता से सुन रहे थे. जब तक दोनों ने अपनी बात ख़त्म की, तब तक अन्य सभी साथी भी उस खोह को देखने के लिए बड़े बेचैन हो उठे थे.
क्रमशः
जब सभी साथी वहां पहुंचेंगे तो क्या होगा? क्या वे उस खोह में घुस पाएंगे? या उनके सामने कोई नयी मुसीबत पैदा हो जाएँगी?
कहानी अब अत्यंत रोचक दौर में प्रवेश कर चुकी है, अतः जानने के लिए पढ़ते रहे.
अगले हप्ते कहानी जारी रहेगी.