पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 9 harshad solanki द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 9

इस आपरेशन में समुद्री लुटेरों एवं अन्य दुश्मनों से भेंट होने की संभावना भी पुरी थी. उसके लिए बंदूकों, गोलियों और अन्य हथियारों की आवश्यकता रहती थी, पर वह अब आसानी से प्राप्त नहीं हो सकता था. इस बारें में उसने अपने दोस्तों से भी बात की, पर कोई हल न मिला.
इसी मनोमंथन में एक सुबह कुछ सोचकर उसने अपना कंप्यूटर शुरू किया. गूगल पर टॉर ब्राउज़र सर्च कर उसे इंस्टोल कर लिया. फिर डार्कवेब खँगालने बैठा. दो तीन दिनों तक उसे कोई सफलता न मिली. पर चौथे दिन उसके हाथों एक वेबसाइट लगी. जिन पर गैरकानूनी चीज़वस्तुएं उपलब्ध करवाने वालों की सूची थी. उसने कई लोगों से कॉन्टेक्ट किए और अपनी ज़रूरतें बताई. आखिर एक से सौदा पक्का हुआ, जो उसकी ज़रूरतें पुरी कर सकता था. सौदे के मुताबिक वेपन्स का पार्सल दो हफ्तों में उसके घर पहुंच जाने वाला था. और बदले में उसे बिट कोइन में एडवांस पेमेंट करना था. उसने सौदा मंजूर रखा और पेमेंट कर दिया.
पेमेंट के बाद राजू बेताबी से पार्सल की इंतजारी करने लगा. उस बात को एक महीना होने को हुआ, पर उसकी इंतजारी खत्म नहीं हो रही थी. अब तो धीरे धीरे उसकी इंतजारी चिंता में बदलने लगी.
तभी एक साम को उसकी डोरबेल बजी. उसने दरवाजा खोला. उसके नाम का कोई कूरियर था. यूँ तो कई बार वह ऑनलाइन शॉपिंग के ज़रिये सामान मँगवाता था, इसलिए हर डिलीवरी बॉय को वह जानता पहचानता भी था. पर इस बार उसे खुशी के साथ ताज्जुब भी हुआ, क्यूंकि इस बार डिलीवरी बॉय नया और अपरिचित था. उसने कूरियर रिसीव कर लिया. अपने कमरे में आकर जब उसने पार्सल खोला, तो उनकी आंखें चौंधिया गई! उसके ऑर्डर के हर हथियार चमचमाते हुए उसमे मौजूद थे. एक के बाद एक सब को निकालकर देखा और जांचा परखा. सब कुछ ठीक था. अब उसके पास हर जरूरत का सामान मौजूद था.
बीते महीने वह बैठे नहीं रहा था. इस दौरान वह आपरेशन पर बहुत कुछ मंथन कर चूका था. आपरेशन में आने वाली हर छोटी छोटी चुनौतियों पर उसने बहुत गौर किया था. उसने महसूस किया कि इस अभियान के दौरान जेसिका की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रहने वाली है. इसलिए जेसिका को उसने इस आपरेशन में अहम हिस्सा बना लिया. और हर योजना के आयोजन में जेसिका की राय भी लेता रहा. जेसिका के साथ मिलकर उसने अपनी टीम भी पक्की कर ली.
अब उनकी टीम में जेसिका के अलावा उनके हाईस्कूल के दौरान NCC के साथी दो दोस्त पिंटू और संजय भी शामिल हुए. कुछ भरोसेमंद लोगों को भी अच्छे वेतन पर जोड़ा गया. जिसमे हिरेन, दीपक, प्रताप, भिमुचाचा और रफीकचाचा थे.
हिरेन एक गेरेज में हेल्पर का काम करता था और थोड़ा बहुत इलेक्ट्रिश्यन का काम भी जानता था. जब कि दीपक एक ऑफिस केंटिन में चाय नाश्ता बनाने एवं वेइटर के रूप में काम करता था. प्रताप यूँ तो पढ़ा लिखा था,, पर नौकरी न मिलने से फिलहाल उसने एक लोहार के यहाँ अस्थाई नौकरी स्वीकार कर ली थी. भिमुचाचा निवृत्त फ़ौजी थे और बैंकों के ATM की चौकी किया करते थे. पर पिछले दिनों मंदी और बैंक मर्जर की वजह से ATM बंध हो गए थे, इसलिए उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा था. राजू ने भिमुचाचा को ख़ास करके उनके फ़ौजी की नौकरी के दरम्यान के अनुभवों की वजह से शामिल करना उपयुक्त समझा था. जब कि रफीकचाचा भी एक प्राइवेट स्कूल में गेटकीपर की नौकरी किया करते थे. राजू ने सभी को अच्छे वेतन पर रख लिया.
ये सब या तो राजू के रिश्तेदार थे या फिर उनके अगल बगल में रहते थे. और राजू की सब लोगों से अच्छी जान पहचान भी थी. उसने अपनी योजना और उसमे आने वाली समस्याओं से सब को अवगत किया. और उनकी मरज़ी पाकर ही उन्हें शामिल किया. इस तरह कुल मिलाकर नौ लोगों की टीम तैयार हो गई. राजू उनका कप्तान था. सब के पासपोर्ट एवं C1/D वीज़ा की औपचारिक प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई.
आपरेशन में जंगली जीवों एवं पशु पंखियों से पाला पड़ने की पुरी संभावना थी. अतः, राजू ने अरुणाचल प्रदेश के घने जंगलों में तीन दिवसीय एक केम्प का आयोजन किया. जहां उन्हें इन चुनौतियों से निपटने का अभ्यास करना था. इस केम्प में उन्हें अपनी ज़रूरतों को सीमित रखते हुए कम से कम संसाधन के साथ दिन गुज़ारने थे.
इससे पहले राजू, पिंटू और संजय ने अपने अपने फैमिली डाक्टर की मदद से थोड़े बहुत इलाज एवं छोटी मोती सर्जरी की तालीम ले ली. जिससे आकस्मिक परिस्थिति में उपयुक्त बन सके.
तै दिन रिसर्च के बहाने केम्प में शामिल होने के लिए जेसिका ने दिल्ली के एयरपोर्ट पर टेक ऑफ किया. उसी दिन बाकी के आठ लोग भी मुंबई से दिल्ली पहुँच गए. आगे अरुणाचल प्रदेश तक की यात्रा सभी ने ट्रेन में साथ साथ की. सब की टिकट राजू ने पहले ही बुक करवा ली थी.
अरुणाचल प्रदेश पहुंचकर उन्होंने जंगल में केम्पेइनिंग एवं ट्रेकिंग के लिए आवश्यक परमिट प्राप्त की. और डेरा डालने में जुट गए.
चार टेंट लगा दिए गए. जिसमे एक जेसिका ने अपने लिए आरक्षित रखा था. बाकि के तीन टेंट में राजू सहित अन्य साथी रहे.
टेंट लगाने का काम पूरा होने पर सारी टीम भोजन के लिए प्राणियों का शिकार करने चली. इस दौरान पेड़ों पर चढ़कर फल तोड़ने का अभ्यास भी किया. मार्ग में से सूखे पेड़ों की टहनियों को काट कर और रास्ते में पड़ी लकड़ियों को बिन कर इंधन भी इकठ्ठा किया.
यह सब क्रिया उनकी तालीम का ही हिस्सा थी. जो उन्हें वास्तविक प्रयाण के दौरान उपयोगी होने वाली थी.
जेसिका को अपने रिसर्च की वजह से दूरवर्ती इलाकों में जाने की जरूरत पड़ती थी, इसलिए उसने करांटे की तालीम ली हुई थी. जिसका थोड़ा बहुत परिचय उसने केम्प के दौरान टीम मेम्बर्स को करवाया.
भिमुचाचा ने भी अपनी फ़ौजी की नौकरी के दौरान जंगल और जंगली जीवों के साथ हुए अनुभव बांटे. इस केम्प के दौरान उनका अनुभव सब को बहुत काम आया. बल्कि यूँ कहिए, इस केम्प में वह पूरी टीम का हीरो बना रहा.
राजू, पिंटू और संजय को NCC केम्प के दरम्यान थोड़ी बहुत बंदूक चलाने की तालीम मिली हुई थी. पर यहाँ भिमुचाचा ने सब को विशेष तालीम दी. भिमुचाचा से लाठी से कैसे अपनी सुरक्षा की जा सकती है, वह भी पाठ पढ़ा.
इस केम्प के दौरान जंगल में उसकी टीम ने पेड़ों की टहनियों और बेल पत्तों की मदद से झोपड़ी बनाकर रात गुजारी. खाना भी जंगली फल फूल और प्राणियों का शिकार कर प्राप्त किया. वहां मिलने वाले विशेष पौधों की पत्तियों को बदन पर मल कर और जलाकर मच्छरों से सुरक्षा का पाठ भी भिमुचाचा से पढ़ा. विशेष वनस्पतियों की जड़ों, पत्तों और बीज को उबालकर काढ़ा बनाने का ज्ञान भी अर्जित किया. जिसको पीने से हमारी रोग प्रतिकारक सकती में वृद्धि की जा सकती थी. जो ऐसे बीहड़ में जरूरी भी था. इन जड़ों और पत्तियों को इकठ्ठा कर वे अपने साथ भी लेते आये. जो उन्हें सायद भविष्य में उपयुक्त हो सकता था.
भीमुचाचा ने जंगल में पायी जाने वाली एक और ऐसी वनस्पति का परिचय भी उन्हें करवाया, जो उनके काम की तो थी नहीं. पर उनका गुण जानकर सब को अजूबा हुआ. इस वनस्पति का विशेष गुण यह था कि इसके सूँघने पर कुछ वक्त के लिए नाक की सूँघने की शक्ति जाती रहती थी. जिसका सबने स्वयं अनुभव भी किया. पर संजय ने इस वनस्पति की पत्तियों को इकठ्ठा कर अपने पास रख लिया. भले ही यह उनके कोई काम की न थी, पर उनका गुण जानकर वह आकर्षित हुआ था.
इस तरह यह केम्प बहुत सफल रहा. जिसमे टीम मेम्बर्स ने आने वाली चुनौतियों से कैसे निपटा जाए, इस बारें में बहुत ही महत्वपूर्ण पाठ पढ़े थे.
आखिर सब लौटे. अब उन्हें अपने अंतिम लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करना था. जेसिका सीधे ब्रिटिश वर्जिन आयरलैंड पहुँचने वाली थी, जहां से उसका केरेबियन क्षेत्र में आदिवासियों पर रिसर्च चल रहा था. बाकी की टीम को याट से पहुँचना था.
जेसिका का रिसर्च और UK की नागरिक होने की वजह से उसे मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा था. उसने एक बहुत महत्वपूर्ण काम को आसान कर दिया था. उसने खुद को एक रिसर्चर और अन्य टीम मेम्बर्स को अपने सहायक के रूप में रजिस्टर करवा लिया. और इस सम्बन्धी दस्तावेज भी प्राप्त कर लिए. वह सीधे ही ब्रिटिश वर्जिन आयरलैंड पहुँच गई और बाकी की टीम का इंतज़ार करने लगी.
अब तक राजू के अन्य टीम मेम्बर्स के पासपोर्ट एवं वीज़ा भी आ गए थे. अतः, उन्होंने भी इंडिया से याट लेकर केरेबियन सागर तक की अपनी जर्नी शुरू कर दी. राजू के माथे पर कप्तान की जिम्मेदारी थी. दीपक को चाय नाश्ता एवं खाना बनाने का कार्य दिया गया था. इंजन की जिम्मेदारी संजय एवं पिंटू के सर थी. भीमुचाचा, रफिक्चाचा, हिरेन और प्रताप के हिस्से संजय, पिंटू एवं दीपक की सहायता करना और याट का अन्य काम देखना था.
यह पूरा क्षेत्र केरेबियन और उत्तरी एटलान्टिक महासागर से घिरा हुआ है. जिनमे करीब सात सो से ज्यादा द्वीप हैं. और ज्यादातर द्वीपों पर मानव बस्ती नहीं हैं. उत्तरी अमेरिका के इन द्वीपों की विशेषता यह हैं की यहाँ किसी एक राष्ट्र का नियंत्रण नहीं पाया जाता, बल्कि यह पूरा क्षेत्र कई स्वतंत्र देशों, अमेरिका और यूरोपियन देशों की सरकारों के आधीन हैं.
राजू की टीम के ब्रिटिश वर्जिन आयरलैंड पहुँचने पर जेसिका भी उनसे जुड़ गई. अब वे मिलकर जेन्गा बेट के लिए निकल पड़े, जहां उसे नानू को मिलना था.
जेन्गा बेट पर उनकी याट देर साम पहुंची. इसलिए उन्होंने तै किया की अब सुबह ही नानू से मिलने चलेंगे. पर यहाँ पहुंचकर उन लोगों को एक बड़ी चिंता सताने लगी कि नानू अब ज़िन्दा होगा भी या नहीं!? क्यूंकि अब तक उसको बहुत साल हो गए थे. और अगर वह ज़िन्दा भी होगा तब भी क्या वह उन लोगों का मार्गदर्शन करने की हालत में होगा?
राजू के पापा और उनके दोस्तों की यात्रा के अनुभवों से नानू के घर का पता लगाने में उन्हें कोई ज्यादा दिक्कत नहीं आई. सेंट लुबरतो चर्च पहुंचकर मछ्वारों के मार्गदर्शन से वें नानू के घर तक पहुँच गए. नानू का घर भी अब नया बन चूका था. राजू ने डोरबेल बजाई. तुरंत एक अधेड़ उम्र की औरत ने दरवाजा खोला.
अपरिचित लोगों को दरवाजे पर खड़े देखकर उनके चेहरे पर प्रश्न भाव उभर आए.
क्रमशः
क्या नानू अब जिन्दा होगा? और अगर जिन्दा भी है तो क्या वह राजू की मदद करने की हालत में होगा? यदि नानू जिन्दा नहीं हैं तब क्या होगा? आगे आगे क्या होता है, पढ़ते रहे...
अगले हप्ते में कहानी जारी रहेगी...