Pata Ek Khoye Hue Khajane Ka - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 3

लखन अंकल ने शराब का गिलास उठाते हुए घडी में देखा. रात्रि के बारह बजने को हुए थे. उसने शुरू किया.
कहानी शुरू होती है हसमुख के दादा मेघ्नाथ्जी के लिखे पत्रों से. हसमुख के दादाजी जो "खारवा" (दरियाखेदु) प्रजाति से आते थे. और वह गोवा के एक बड़े व्यापारी के नावों के काफिले के मुख्य टन्देल हुआ करते थे. उस व्यापारी का बड़ा व्यवसाई अफ्रीका के देशों में चल रहा था. इसलिए परबत का अफ्रीका और इंडिया में लगातार आनाजाना लगा रहता था. यूँ कहिए, उसने अपना एक घर यहाँ तो दूसरा घर अफ्रीका के मोजाम्बिक में बसा रखा था. उसने अपनी कमाई में से दो छोटे जहाज बसा लिए थे. जो उसी काफिले के साथ प्रवास किया करते थे. और उसी व्यापारी के जहाजों के साथ उसके जहाज भी इंडिया और अफ्रीका के मडागास्कर व मापुतो में सामान एवं प्रवासियों को लाया ले जाया करते थे. इस प्रकार उसकी भी बहुत अच्छी कमाई हो जाया करती थी.
यह तब की बात है जब हम सब कॉलेज के फ़स्ट यर में थे. एक बार पुराना सामान खँगालते हुए हसमुख के हाथों में सं 1943 का उसकी दादी के नाम का एक कवर आया. उसने खोलकर देखा तो वह कुछ दिन के अंतराल पर उसके दादा मेघनाथजी के लिखे हुए कुछ कागज थे. एक कागज में कुछ स्थानों का चित्रण था और बाकी के कागज में लिखावट थी. उसने पढ़ना शुरू किया.
यह पत्र दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान लिखे गए थे. शुरुआत में औपचारिक संबोधन के बाद परिवार के हालचाल पूछे गए थे और फिर मुख्य विषयवस्तु थी.
तुम्हें भी सायद पता होगा. अभी पूरी दुनियाँ में लड़ाई छिड़ चुकी है. सारे समंदर पर लड़ाके जहाज़ों का कब्जा हो गया हैं. इस मौके का बदमुराद लश्कर वाले और समुद्री चोर लुटेरे भी अच्छा फायदा उठा रहे हैं. चारों और लूटफाट मच गई है. व्यापारियों के जहाज भी या तो लुट लिए जा रहे हैं या डुबो दिए जा रहे हैं. इस हाल में व्यापार करना अब तो बहुत मुश्किल हो गया है. हम भी अब घर को लौट रहे हैं. पर हमारे काफिले के पीछे लुटेरे पड़ गए थे. मुश्किल से हम उससे जान छुड़ाकर बरसों की मेहनत को एक समंदरभूमि में एक देवता के हवाले करने में सफल हुए हैं.
देखो; यहाँ चारों और मौत अपना खेल खेल रही है. मैं लौटूं या न भी लौटूं; तुम इसको सम्हालकर रखना. और कभी मौका मिले तो किसी बड़े की मदद लेकर खोज निकालना. या फिर जब परबत बड़ा हो जाये तब उसे बताना.
दूसरा कागज़, जो कुछ दिन बाद लिखा हुआ था, उसमे लिखा था:
इसके साथ जो मैं तुम्हें भेज रहा हूँ; वह पिछले वाले को पूरा करता है. समझो, पहला वाला ताला है तो यह कुंजी है. इसको भी उसके साथ ही सम्हाल कर रखना. मेरी जिंदगी भर की मेहनत है इसमें; इसको किसी गलत आदमी के हत्थे न चढ़ने देना; वर्ना उसका अंजाम वह भोकतेगा. इस कार्य में हमारा वह नौकर का बेटा तुम्हारी मदद करेगा. उसे तुम जानती हो. वह छोटा है इसलिए उसकी जिंदगी को मुसीबत में डालना मुझे मंजूर नहीं है. इसलिए हमने उसे वेस्ट इंडीज़ के नजदीकी एक जेन्गा बेत पर उतार दिया है.
पर उसके बाद हसमुख के दादाजी कभी लौट के नहीं आये. न तो उसका कोई अता पता मिला.
हसमुख ने अपनी दादी को पूछा था कि "क्या पिताजी ने इस धन को खोज निकालने की कभी कोशिश नहीं की?" जिसके उत्तर में उनकी दादी ने बताया था कि इस घटना के कुछ साल बाद हसमुख के दादाजी के जहाज पर काम करने वाले उनके कुछ नौकरों की रहस्यमय तरीके से मृत्यु हो गई थी. इन लोगों की मृत्यु पर गाँव में बात कुछ यूँ फैली थी कि उन लोगों ने अपने मालिक मेघ्नाथ्जी के धन को बेईमानी से प्राप्त करने की कोशिश की थी. जब उनको यह पता चला था कि अब मेघ्नाथ्जी की मृत्यु हो गई हैं और अब वे कभी नहीं लौटने वाले, तब वे उनके छिपे खज़ाने को धुन्धने गए थे. तो उन लोगों को वह धन तो मिला नहीं, पर उनके कुछ साथियों की रहस्यमय तरीके से मृत्यु हो गई. और जो भी ज़िन्दा रह गए, उनकी हालत भी ज्यादा ठीक नहीं रही. ऐसा कहा जाने लगा कि कोई अदृश्य सकती ने वह धन गायब कर दिया. और इस बेईमान नौकरों को भी उसी ने मारा. इसलिए मैं तुम्हारे बाप को कैसे जाने देती? हाँ, ये चाबी, तस्वीर और नक्शा भी मेघनाथजी ने इसी नौकरों के ज़रिये भेजा था. तभी उन्होंने धन का रास्ता पता कर लिया होगा. और वहां तक पहुंच गए होंगे.
इतना कहते हुए लखन अंकल ने एक पूरा गिलास मुंह में उढ़ेल दिया. फिर शुरू किया.
सायद पुराने जमाने में धन का उतना मूल्य नहीं था या उस जमाने के लोगों को धन का कोई मोह नहीं था. इसलिए हसमुख के पिताजी ने इस धन को खोज निकालने की कोई कोशिश नहीं की. सायद उनकी माँ ने ही उसे ऐसा करने से रोका भी था. वह खुद एक अच्छा नाविक बन गया था और अच्छी कमाई कर रहा था. इसलिए सायद उसको उतनी फुर्सत ही न मिली हो.
एक दिन जब हम कॉलेज में गुल्ली मार कर कॉलेज की पिछवाड़े वाली झाड़ियों में बैठे हुए नीरा पी रहे थे, तब हसमुख ने यह सारी बात हमें बताई. उसकी बात सुनकर हम तो आसमान में उड़ने लगे. जैसे हमें किसी रहस्यमय तिलस्म का पता मिल गया हो! हम लोगों ने हसमुख को भी इसमें आगे कुछ प्रगति करने के लिए राजी कर लिया. फिर तो क्या था! हसमुख ने अपनी भोली दादी से बातों ही बातों में सारा राज उगलवा लिया. अपने दादाजी की वह सारी ख़ास ख़ास चीजें भी देख ली, जो उसकी दादी ने एक बड़े से बक्से में अन्य चीजों के साथ बहुत सम्हालकर रखी थी. उस नौकर के बेटे का परिचय भी प्राप्त कर लिया.
वह उसके दादाजी के एक वफादार नौकर का बेटा था. उसका परिवार भी मोजाम्बिक में हसमुख के दादाजी के पड़ोस में ही रहता था. जब नानू नौ दस साल का था तब उसके माँ बाप एक बीमारी में चल बसे थे इसलिए उसकी देखभाल की जिम्मेदारी हसमुख के दादाजी ने उठा ली थी. वह भी हसमुख के दादाजी के छोटे मोटे काम उत्साह से किया करता था. उसका जेन्गा बेत पर रहने का कोई अतापता तो था नहीं, पर उसके हुलिये का परिचय मिल गया.
वह अफ्रीका की सीदी जाती से था. उसके माथे पर एक गहरी चोट का उभरा हुआ निशान था. काले रंग का पूरा बदन था. उसके बाल घुंघराले थे. बाएं पैर का पंजा बाईं और मुड़ा हुआ था और वह ज़रा सा लंगड़ाते हुए चलता था. उसके नाम का तो पता नहीं था. पर वह उस नावों के ख़लासियों में सबसे छोटा होने की वजह से उसे सब नानू कहकर बुलाते थे. इतना हुलिया काफी था.
उसने अपनी दादी से यह भी जान लिया की दादाजी के पहले ख़त में एक पीतल की चाबी भी थी और दूसरे ख़त में एक सुन्दर फ्रेम से मढ़ी हुई चर्च की तस्वीर थी.
एक दिन मौका पाकर हसमुख ने दादी की गेर्हाज़री में दादी की वह बक्से वाली चाबी उठाई. और सभी जरूरी नक्शे और तस्वीरों एवं वह चाबी निकाल ली. फिर हमने उस सभी चीजों की नक़ल बनवाई और असल चीजें फिर से वहां रख दी. जिससे किसी को पता न चले. हम लोगों ने उन सब चीजों की एक से ज्यादा नक़ल बनवा ली थी जिससे की अगर कोई जरूरत पड़ जाए तो काम आ जाए.
हम सब एक साथ बैठकर उन सब चीजों को मिलाकर उस गुत्थी को सुल्जाने की कोशिश करने लगे. हसमुख के दादाजी ने वह सब कुछ सरल भाषा में लिखा हुआ न था. सायद यह इसलिए हो की अगर वें पत्र किसी दूसरे के हाथों में पड़ जाएँ तो वह सरलता से उस धन को प्राप्त न कर सके.
पहली किसी नक्शे नुमा तस्वीर में रात्रि का चित्रण था. चाँद सितारे थे. उफान मारता समंदर था. और एक आग का गोला था जो आसमान तक पहुँच रहा था. इस आग के गोले के चारों और कुछ ख़ास तरह की आकृतियाँ बनी हुई थी, जिसकी किनारियाँ चमकीले रंगों से बनी हुई थी. इन सब आकृतियों में से एक आकृति और वह आग के गोले के बीच में दो मुख वाली एक सर्प की आकृति बनी हुई थी. जिनकी आँखों का रंग भी चमकीला था, जैसे उस आकृतियों की किनारियाँ थी. उस सर्प का एक मुख दाहिनी और था और दूसरा मुख फन उठाये आग के गोले की और देख रहा था. हमने ध्यान से देखा तो उस सर्प की पूंछ और उसका दाहिने वाला मुख नब्बे डिग्री के कोण पर एक दूसरे से बिलकुल खड़ी रेखा में थे. इसे देखकर लगता था जैसे उस सर्प की आकृति का उद्देश्य दिशा निर्देश करना हो. बाकी की आकृतियों का मतलब हमें समझ नहीं आया. पर हमें लगा जैसे वह तस्वीर किसी भौगोलिक स्थान का निर्देश करती हो. इसलिए हमने पृथ्वी का नक्शा निकाला और उस तस्वीर को नक्शे से मिलाने लगे. एक जगह पर हमारा ध्यान अटक गया.
केरेबियन सागर में एक जगह पर हमने तस्वीर से मिलता जुलता स्थान देखा. वहां उसी स्थान पर कुछ छोटे बड़े द्वीप थे जैसे तस्वीर में आकृतियाँ बनी हुई थी. और बीच में एक ज्वालामुखी परबत था. हम सब खुशी के मारे उछल पड़े. हमने वह गुत्थी सुल्जा ली थी. हमें उस ज्वालामुखी और उसके सामने वाले द्वीप के बिलकुल बीच में आना था और फिर वहां से दाहिनी और बिलकुल सीधे जाना था.
दूसरी चर्च वाली तस्वीर में एक खूबसूरत प्राकृतिक दृश्य था. उत्तर दक्षिण में हरी भरी पहाड़ियां थी. नदी नाले थे. इस प्रकृति की गोद में बसा एक सुन्दर गाँव. और बीच गाँव में एक चर्च. चर्च में लोग प्रार्थना कर रहे थे. चर्च के ऊपर भगवान ईशु का क्रोस बना हुआ था. हमने ध्यान से देखा तो उस क्रोस का सिरहाना और उत्तर वाली पहाड़ी का सिरहाना बिलकुल मिल रहा था. ये तस्वीर हमारी समझ में ज्यादा कुछ न आई पर हमने सोचा सायद इसी पहाड़ी के किसी स्थान पर हसमुख के दादाजी ने वह धन छिपाया हो! और हमें फिर नानू से तो मिलना ही है! वह इस तस्वीर का रहस्य अवश्य जानते ही होंगे!
फिर यह तै हुआ की अब सारी गुथ्थियाँ सुलझ गई हैं. तो अब हमें सफर की तैयारी करनी चाहिए.
हमारे घर में पैसों की कोई कमी न थी; सिर्फ बंदूकें और कुछ गोलाबारूद की जरुरत थी. अगर किसी मौके पर समुद्री लुटेरे या जंगली प्राणी से भेंट हो जाये. इसलिए वह हमने अन्दर्वल्ड के आदमियों से कोन्टेक्ट कर किसी तरह प्राप्त कर लिया. बाकी की चीजों का इन्तज़ाम पैसों के दम पर अपने आप ही होता रहा. ज्यादा कुछ मुश्किलियाँ न आई. मुसीबत सिर्फ इतनी ही थी की हमारे परिवार वाले इस सफर पर अकेले जाने की अनुमति न देते. इसलिए अफ्रीका की सेर पर जा रहे हैं, इतना जूठ बोल कर हमने अपने परिवार वालों को राजी कर लिया.
हम सात दोस्त थे. हसमुख, कृष्णा, संकर, हरी, विनु, जगलो और मैं. सब नौजवान थे. हमें पैसों की कोई कमी न थी. फिर भी एक रोमांच की तलाश में हमने उस धन को खोज निकालने का बीड़ा उठाया था. बस, फिर क्या था! चल पड़े.
तै दिन पर हमारी नाव ने समुद्र की लहरों पर उछलते, नाचते कूदते, अठखेलियाँ करते हुए अपना सफर आरम्भ किया. नाव में मशीन लगा हुआ था. हवा का रुख भी अनुकूल था इसलिए हमारी राह में बाधा भी कोई न थी. हम सब बहुत खुश थे. उस सफर में हम सब ने पहली बार बीयर और सिगरेट का मजा लिया. अपने दैनिक कार्यों को न्याय देना, बोट की संभाल लेना, मशीन में डीज़ल और ओइल की जांच करना, खाना बनाना, यहीं हमारा काम था. बाकी पूरे दिन रात हम नाव पर सेर करते, समुद्री दृश्यों और व्हेलों को उछलते देखते, मछलियों का शिकार करते, उसे भूनते, खाते, नाचते और मजे करते. बीच बीच में हम मार्ग में आने वाले बेटों पर ठहरते और जरूरी चीज वस्तुएँ प्राप्त कर लेते.
वेस्ट इंडीज़ के टापुओं तक हमारा सफर निर्विघ्न रहा. हम यह मानकर चल रहे थे की हमें सिर्फ नानू को धुंध निकालना है. फिर वह हमें उस चर्च वाली जगह तक ले चलेगा. जहां हसमुख के दादाजी ने अपना सारा धन छिपाया है. पर हमें क्या पता था की यहाँ पहुंचकर हमारा नसीब कौन सी करवट बैठने वाला है!
***
हम जेन्गा बेट के नजदीकी ही किसी बेट पर पहुँच चुके थे. रात्रि का समय था इसलिए हमने सुबह होने का इंतजार किया. उस रात हम इतने खुश थे की ठीक से सो भी न पाएं. मुश्किल से रात कटी. सुबह हुई तो हम जल्दी जल्दी तैयार हो कर किनारे पर पहुँच गए. देखने में तो यह कोई बहुत बड़ा बेट नहीं लगता था.
सब से पहले हमने यह पता करने की कोशिश की कि यह बेट कौन सा है. किनारे पर हमें कुछ मछवारे मिल गए. उन्हें पूछने पर मालूम हुआ की यह जेन्गा (काल्पनिक) बेट ही है. जेन्गा बेट का नाम सुनकर हमारे चेहरे पर खुशी चमक उठी. आखिरकार हम अपने पहले लक्ष्य पर पहुँच ही गए थे.
किनारे पर टहलते हुए हम थोड़ा आगे निकले. हमने वहां कुछ स्थानीय नासते की दुकानें देखी. कई स्थानीय लोग वहां खड़े नमस्ते का लुप्त उठा रहे थे. वहां किसी चाय नुमा पेय भी मिल रहा था. हमने वह पेय और नास्ते का ऑर्डर दिया और हमारी बारी आने तक इंतज़ार करते खड़े रहे.
इस दौरान हमने वहां लोगों से बातचीत करने की कोशिश की. बातचीत शुरू करने के इरादे से वहां खड़े एक आदमी से हमने इस जेन्गा बेट पर घूमने लायक स्थानों के बारें में पूछा. उसने कुछ समुद्री बीच और चर्च के बारें में बताया.
इतने में एक मछवारे ने हमसे बातचीत में जुड़ते हुए बताया की वहां हम सुन्दर तालाब और खूबसूरत परिंदों के दर्शन भी कर सकते हैं.
पहले वाले आदमी ने हमें पूछा की हम कहाँ से आये हैं और क्यूँ आये हैं ?
हमने बताया: "हम इंडिया से समुद्र की सेर के लिए निकले हैं. और यूँ तो हमें सेंट किट्ट्स घूमने जाना हैं. पर मार्ग में जेन्गा बेट आ रहा था तो सोचा यहाँ हमारा एक परिचित रहता है उससे मिलते चले."
फिर हमने नानू के बारें में जानना चाहा. नानू का नाम सुनते ही उन लोगों के चेहरे पे अपरिचितता का भाव उमड़ आया. वें सायद नानू नाम के किसी आदमी को नहीं जानते थे.
हमने अपनी कोशिश जारी रखी. और उसका और ज्यादा परिचय दिया. और बताया की वह पंद्रह सोलह साल की उम्र का था तब से अफ्रीका से यहाँ आ बसा है.
अफ्रीका का नाम पड़ते ही वह मछ्वारा बोल उठा:
"हां, एक अफ्रीका का आदमी है जो बचपन से ही किसी जहाज में से भागकर यहाँ बस गया है.
हमारी आंखे खुशी से चमक उठी. हमने बताया:
"हां, हाँ, वहीँ! उसका एक पाँव थोड़ा सा मुड़ा हुआ है न?" हमने पूछा.
"जी हाँ, वही. वह भी मछ्वारा है इसलिए मैं उसे थोड़ा जानता हूँ." उसने कहा.
"हाँ, हम उसी के बारें में पूछ रहे हैं. वह हमें कहाँ मिलेगा?"
उस मछवारे ने आगे बताते हुए कहा:
"वह यहाँ से पूर्व में आठ नौ किमी. दूर सेंट लुबरतो चर्च के पास रहता है. वहां आप नाव के ज़रिये या टाँगे में पहुँच सकते है. किनारे पर वहां किसी से पूछ लीजिएगा; मिलवा देंगे."
जब हमारी वहां बातचीत चल रही थी, तभी कृष्णा को ऐसा लगा जैसे कोई उन्हें देख रहा हो. उसने मुड़कर एक नजर देखा; और तुरंत ही अपना चेहरा वापस मोड़ लिया. उनके चेहरे पर नापसंदगी के भाव उभर आये थे. उसने हमें आँखों के इशारे से उस और देखने को कहा. हमने जब कृष्णा की बताई दिशा में देखा तो हमारे बदन में से एक भय का जलजला गुजर गया. वहां अधेड़ सा दिखने वाला एक आदमी खड़ा था. वह अजीब सी नज़रों से हमें ही घूर रहा था. हमें उसकी नज़रों में भय का एहसास हुआ. हम लोगों ने तुरंत ही अपनी आंखें वहां से मोड़ ली. और बातचीत में अपना ध्यान लगाया.
क्रमशः
हसमुख और उनके दोस्तों के साथ क्या होने वाला है? क्या वे नानू को धुंध पाएंगे? वह मनहूस सकल वाला आदमी कौन है? और उनको देखकर हसमुख और उनके दोस्त क्यूँ दर गए? जानने के लिए पढ़ते रहे.

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