पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 19 harshad solanki द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 19

जेसिका और दीपक की बातों को टीम मेम्बर्स बड़े गौर और उत्सुकता से सुन रहे थे. जब तक दोनों ने अपनी बात ख़त्म की, तब तक अन्य सभी साथी भी उस खोह को देखने के लिए बड़े बेचैन हो उठे थे.
जेसिका: "अब आप सब जब सुबह को चलेंगे और देखेंगे, तभी हम तै कर पाएंगे कि यह वहीँ खोह है, जिसकी हमें तलाश थी."
राजू: "पर तुम लोग जो बता रहे हो, उससे तो यह पक्का हो जाता है कि यह वहीँ खोह होगी. क्यूंकि मेघनाथजी ने भी ऐसा ही संकेत दिया है कि वह खोह एक देवी का निवास स्थान हैं. और तुम लोगों ने जो खोह देखी, वह इन आदिम इंसानों का देव स्थान है."
राजू की बात का अन्य सभी टीम मेम्बर्स ने समर्थन किया. अब उनकी तलाश का अंत आया था. इसलिए सभी बहुत खुश थे. रात को देर तक सब गुफ्तगू करते रहे. फिर सोने गए. पर खुशी के उन्माद में मुश्किल से नींद आई.
अगली सुबह वे सब उस खोह तक पहुँच गए. और छिपकर देखने लगे. वे निरीक्षण कर सब कुछ पक्का कर लेना चाहते थे.
खोह का मुहाना सच में पूर्व में ही था. जैसा मेघनाथजी ने संकेत किया था. और मुहाने के अगल बगल और सामने मतलब पूर्व दिशा में तीन अत्यंत विशाल शिलाएं थी. जो देखने में ऐसी लगती थी, मानो तीन प्रहरी बैठे हों. और गुफा द्वार की रक्षा कर रहे हों.
अब उनको मेघनाथजी की शिलपरिरक्षक वाली पहेली समझ में आ गई थी. शील मतलब शिला. और परिरक्षक मतलब प्रहरी. अर्थात, शिला रूपी प्रहरी.
पर अब उनके सामने एक नई मुसीबत खड़ी हो गई थी. इन आदिम मनुष्यों की नज़रों में पड़े बिना इस खोह में घुसा कैसे जाए? अगर सीधे ही घूसेंगे तो पकड़े जायेंगे. फिर ये लोग उनका क्या हाल करेंगे? इश्वर ही जाने.
उस गुफा के मुख्य मुहाने के अलावा भी बगल में जरा हटके एक छोटा मुहाना था. पर उस मुहाने पर भी इंसानों का आना जाना लगातार जारी था. इसलिए उस मुहाने से भी छिपकर घुसने की संभावना बिलकुल नहीं थी. पूरे दिन वे खोह के अन्दर घुसने के रास्तों और सम्भावनाओं की तलाश करते रहे. पर उन्हें यह दो मुहाने के अलावा खोह के अन्दर प्रवेश करने का और कोई रास्ता न दिखा. आखिर साम को वे अपने ठिकाने पर लौटे.
रात को वे इसी के बारें में सोच विचार करते रहे. आखिर दूसरे दिन अपने ठिकाने को उस खोह वाली पहाड़ी के आसपास ले जाकर वहीँ डेरा डालना तै किया. और वहीँ से वह खोह वाली पहाड़ी पर रास्ते की खोजबीन करना भी तै हुआ.
अगली सुबह उन्होंने उस खोह वाली पहाड़ी के पीछे ही पेड़ों के झुरमुट में अपना डेरा दाला. और वहां से अपना खोजी अभियान चलाया. उस खोह में रात को भी घुसने का कोई मौका हो तो वह भी जांच लेना निर्धारित किया. इसी संभावना की खोज में उनके चार साथी सारी रात खोह के मुहाने के आगे छिप कर बैठे रहे. पर वे आदिम मनुष्य रात्रि को भी वहां से हटे नहीं. सिर्फ उनकी संख्या दिन के मुकाबले कम रही.
दुसरे दिन भी यही हाल रहा. लगातार दो दिन और दो रात ऐसे ही जाया हुए. पर तीसरे दिन एक अजूबा घटित हुआ.
रोज के मुताबिक जेसिका इस दिन भी आदिम मनुष्यों की गतिविधि का निरीक्षण करने गई हुई थी. उनके साथ और दो साथी भी थे. वे वहां पहुंचकर क्या देखते हैं? जैसे वहां मेला लगा हो. द्वीप के सारें निवासियों ने जैसे वहीँ डेरा डाला हो. गिनती में वे दो हजार से ज्यादा ही लगते थे. पर उस दिन उन्हें वहां किसी आदमी की असल सूरत दिखाई न दी. औरत मर्द,, बच्चे बूढ़े, सब अपने अपने चेहरों पर किसी न किसी प्राणी या पक्षी के मुहाने लगाए हुए थे. कई ने तो अपने सर पर भेड़ बकरियों के सींग भी लगा रखे थे. इतना ही नहीं, अपने बदन पर विविध रंग लगाकर बदन का असली रंग भी छिपा दिया था. बदन पर प्राणी के चमड़े एवं घाँस पत्तियों को लपेट कर बदन का घेराव और कद को भी छिपाने की सफल कोशिश की गई थी. हाल तो यहाँ तक था कि उन आदिम मनुष्यों को भी एक दूसरे को पहचानना मुश्किल हो रहा था. जैसे वे कोई होली जैसा त्यौहार मना रहे हों. और अपनी असल सूरत छुपाना उनके धर्म की परम्परा हो.
यह हाल देखकर जेसिका और उनके साथियों के दिमाग में जैसे बिजली चमकी. उन्हें खोह के अन्दर घुसने का जैसे मार्ग मिल गया. वे अपना हाल भी उन्हीं लोगों जैसा बनाकर छद्म रूप में खोह में दाखिल हो सकते थे. उससे पहचाने जाने की संभावना भी कम रहती थी. इससे बढ़िया मौका दूसरा नहीं हो सकता, यह जान उन्होंने इस मौके का फायदा उठाना तै किया. तुरंत अन्य साथियों को भी इस बारें में बताया गया. उनके पास अब तैयारी करने का वक्त बिलकुल नहीं था. अतः, सब ने मिलकर त्वरित निर्णय लिए और तुरंत योजना बना ली. और उनपर अमल भी शुरू कर दिया.
उसी वक्त चार साथी उस इंसानों की बस्ती की और चले. उन्हें इतना तो पता ही था कि वें सारे आदि मनुष्य उस खोह पर जमा हुए हैं. इसलिए अगर उनकी बस्ती में किसी के अतिरिक्त चमड़े, रंग, मुहाने हो तो उठा ले. और खुद भी भेष बदल उनमें शामिल हो जाए. उम्मीद के मुताबिक उन्हें वहां अपने जरूरत का हर सामान मिल गया. इससे उन्होंने अपने हुलिये बदल लिए. पर अब कोई एक दूसरे को पहचान नहीं पा रहे थे. इसलिए एक दूसरे को पहचानने के लिए कुछ संकेत तै किये. जिसमे ख़ास शारीरिक मुद्राएं तै की, और उनके मतलब भी तै किए. जैसे कोई आकाश की और देखते हुए हवा में अपने दोनों हाथों को हिलाता हैं, तो जो भी साथी उनके नजदीक हो वे पास आ जाए. और किसी को किसी प्रकार की मदद की जरूरत हो, या कोई मुसीबत में फँस गया हो तो वह बंदरों की आवाज़ निकालेगा. इसके अलावा अगर कोई दो उंगली आकाश की और उठाता है तो अगल बगल में जो भी अन्य साथी हो, वे हवा में हाथ से विशिष्ट व्यक्तिगत मुद्रा बनाकर स्वयं की पहचान स्पष्ट करेगा. इत्यादि इत्यादि...
सब से पहले अन्दर क्या है? और मेघनाथजी का छिपाया धन वहां है या नहीं? यह पता लगाना था. अतः, उन्होंने अपने तीन साथियों को अन्दर भेजकर सारा हाल मालूम करना तै किया. इसके लिए स्वयं राजू तैयार हुआ. और अपने साथ प्रताप और संजय को लिया. बाकी के छः लोगों ने तीन टुकड़ियों में बंट कर बाहर अलग अलग स्थान पर अगर कोई मुश्किल हालात पैदा होते है तो उसे बेकप देने के लिए पोजीशन ग्रहण की.
राजू, संजय और प्रताप ने खोह के बाहर वे आदिम लोग जो भी क्रियाएं करते थे, वे सारी क्रियाएं बड़ी सावधानी से पूरी की. फिर खोह के अन्दर घूसे. उन्होंने देखा. वह एक विशाल गुफा थी. जिनकी सामने की दीवार पर एक विचित्र स्त्री का विशाल चित्र बना हुआ था. जिनका चेहरा भालू और इंसान से मिलता जुलता था. पर बाकी का बदन इंसानों जैसा था. और वे मनुष्य फल फूल और प्राणी पंखी का मांस उस देवी को अर्पित कर रहे थे. वे उनके सामने विशिष्ट मुद्राएं भी बना रहे थे. जो सायद उनके पूजा करने का कोई तरीका था. वहां देवी के चित्र के सामने कुछ पत्थर भी रखे हुए थे. जिन पर लाल पीला हरा सफेद रंग लगा हुआ था. और वे मनुष्य इनकी भी पूजा कर रहे थे.
इसके अलावा एक और अजूबे की बात उन्होंने देखी. वहां कई चौकोने पड़े हुए थे. जिन पर भी इन मनुष्यों ने रंग एवं फूल पत्ते लगा रखे थे. जिससे इनका ठीक ठीक हाल मालूम नहीं चल रहा था. पर ध्यान से देखने पर ज्ञात हुआ कि ये तो कोई संदूकें हैं! जो गिनती में कुल मिलाकर ग्यारह थीं. इनपर कारीगरी भी बनी हुई थी. इन मनुष्यों के पास ऐसी संदूकें और उनपर ऐसी कारीगरी निर्माण करने का ज्ञान और साधन हो, इसके प्रमाण राजू की टीम को नहीं मिले थे. इसका मतलब साफ़ था कि ये संदूकें यहाँ के निवासियों द्वारा निर्मित नहीं की गई हैं, पर बाहर से लाई गई हैं. जो मेघनाथजी का ही कार्य हो सकता था. मेघनाथजी ने भी अपनी पहेली में इकादसी की बात की थी. इकादसी मतलब ग्यारह. और ये संदूकें भी ग्यारह ही थी. मतलब ये सारी संदूकें मेघनाथजी की ही थी. मेघनाथजी ने किसी तरह से यह सब संदूकों को यहाँ छिपा दिया हो, पर बाद में इस आदिम मनुष्यों ने इसे देवी की कृपा से स्वतः प्रगट हुआ जान, पूजा करना शुरू कर दिया हो, ऐसा संभव है.
अन्दर का हाल देखने के बाद राजू ने अपने साथियों को अब बाहर चलने का संकेत किया. तीनों बाहर निकल गए. और बाहर खड़े अन्य साथियों को भी निर्धारित किये हुए संकेतो से पास बुला लिए. सब एकांत स्थान पर मिले. राजू ने अन्दर जो देखा था, वह सारा हाल कह सुनाया.
अब उन्हें यह तो विश्वास हो गया था कि वे संदूकें मेघनाथजी की ही हो सकती हैं. पर अब उसे यहाँ से निकाले कैसे? अब तो ये संदूकें इन मनुष्यों की आस्था के साथ भी जुड़ गई थीं. ऐसे ही इसे निकालने की कोशिश की, तो इन लोगों से संघर्ष मोड़ लेना पड़ेगा. जो वे बिलकुल नहीं चाहते थे. अब क्या किया जाए? और मेघनाथजी का वह धन अब तक उन संदूकों में मौजूद है भी या नहीं? यह भी तो पता लगाना था. पर वे आदिम मनुष्यों का ध्यान कैसे भटकाया जाएँ? या उन्हें वहां से हटाया कैसे जाएँ? वे कोई तरीका ढूंढने लगे.
तभी राजू का खुराफाती दिमाग डोड़ा. उसकी आँखे चमक उठी. उसने सब को अपने साथ चलने के लिए कहा. और सब को साथ लिए वह कहीं चल पड़ा.
क्रमशः
राजू अब क्या करेगा? उसके दिमाग में कौनसा खुराफाती ख़याल पैदा हुआ है? वह अपने साथियों को लेकर कहाँ गया था? वे लोग उन आदिम लोगों की नजरों से बच कर कैसे खोह में घुसेंगे? आगे के हप्तों में राज़ खुलेगा.
कहानी अब अत्यंत रोमांचक दौर में प्रवेश कर चुकी है, अतः आगे पढ़ते रहे.
अगले हप्ते कहानी जारी रहेगी.