कर्म पथ पर
Chapter 73
भुवनदा ने गांव वालों को बता दिया कि उनकी भतीजी सावित्री की तबीयत अचानक खराब हो गई थी। इसलिए उन्होंने आदित्य और विलास के साथ शहर उसके घर वालों के पास भिजवा दिया है। अभी कुछ दिनों तक वह वहीं रहेगी।
वह वृंदा को लेकर बहुत परेशान थे। यह सोच सोच कर कि वृंदा के साथ ना जाने क्या हुआ होगा उनका कलेजा फटा जा रहा था। वह बेसब्री से जय और मदन के लौटने की राह देख रहे थे। जब से वृंदावन लापता हुई थी। उन्होंने ठीक से कुछ खाया पिया नहीं था। बंसी उनकी यह हालत देखकर दुखी था।
भुवनदा बाहर बैठक में चिंता में डूबे हुए बैठे थे। बंसी उनके पास आकर बोला,
"दादा आप ठीक से कुछ खा पी नहीं रहे हैं। इस तरह से तो आपकी तबीयत खराब हो जाएगी। मेरी मानिए तो कुछ खा लीजिए।"
भुवनदा ने दुखी होकर कहा,
"वृंदा इतने दिनों से हम मेरे साथ है। अब तो मुझे वह मेरी बेटी लगने लगी है। उसका कोई पता नहीं है। ना जाने किस हाल में होगी। ऐसे में मेरे गले के नीचे से अन्न कैसे उतरेगा। मेरे लिए तो एक एक पल भारी हो रहा है। माँ दुर्गा उसकी रक्षा करें।"
वृंदा से तो बंसी को भी बहुत लगाव हो गया था। वृंदा उसे अपने बड़े भाई जैसा मान देते थी। वृंदा के लापता होने के बाद से वह भी बहुत परेशान था। वृंदा की सलामती के लिए सुबह से उठकर वह दुर्गा सप्तशती का पाठ कर चुका था। उसने भुवनदा से कहा,
"वह सचमुच बहुत प्यारी बच्ची है। सबको उसने किसी ना किसी रिश्ते में बांध लिया है। देखा नहीं कैसे गांव वाले उसकी खोज खबर लेने आए थे। खासकर गांव के बच्चों से तो उसने एक अलग तरह का ही नाता बना लिया है। यह जानकर कि वह बीमार है कैसे सब बच्चे उदास हो गए।"
"सही कह रहे हो बंसी। वृंदा केवल स्नेह की मूर्ति ही नहीं है। बल्कि उसमे गजब का साहस है। इतनी सी उम्र में ना जाने कितना झेला है। पर अभी भी भगवान को ना जाने क्या दिखाना बाकी रह गया है। जो उसके साथ ऐसा करा। बस या मनाओ कि वह सही सलामत हमारे पास आ जाए।"
बंसी और भुवनदा वृंदा के बारे में बात ही कर रहे थे तभी मदन और जय पहुँच गए। उन्हें देखते ही भुवनदा खुश हो गए। उन्हें लगा कि वृंदा भी साथ आई है। पर उसे ना देख कर बोले,
"वृंदा को साथ नहीं लाए ? क्या हुआ उसका कुछ पता नहीं चला क्या ?"
जय और मदन चुपचाप बैठ गए। दोनों समझ नहीं पा रहे थे कि वृंदा के बारे में भुवनदा को कैसे बताया जाए। बंसी भी वृंदा के बारे में जानने को उतावला हो रहा था। वह बोला,
"भैया कुछ तो बोलो। मैं और भुवनदा बहुत परेशान हैं। सारा गांव भी उसके बारे में बहुत परेशान है। बताओ ना वृंदा के बारे में क्या पता चला ?"
बंसी की बात सुनकर जय अपने आप पर काबू नहीं रख सका। वह फफक फफक कर रोने लगा। मदन की आँखों में भी आंसू आ गए। यह देखकर बंसी और भुवनदा घबरा गए। बस समझ गए कि कुछ अनहोनी घटी है। भुवनदा अपना सर पकड़ कर बैठ गए। बंसी भी रोने लगा। कुछ देर तक सभी लोग रोते रहे। फिर खुद को संभाल कर मदन बोला,
"दादा वृंदा हमें छोड़ कर चली गई। उस राक्षस हैमिल्टन ने उसकी हत्या कर दी। उसकी लाश को अपने बंगले के पीछे वाले जंगल में दफना दिया।"
यह सुनते ही भुवनदा ऊपर देखकर बोले,
"हे माँ यह क्या हो गया ? क्यों उस निश्छल प्राणी के साथ तुमने ऐसा अनिष्ट हो जाने दिया ? उस दुष्ट हैमिल्टन का वध क्यों नहीं कर दिया तुमने।"
भुवनदा की बात सुनकर जय बोला,
"दादा भगवान ने भले ही उस नीच को छोड़ दिया हो। लेकिन मैं वृंदा की हत्या का बदला उससे लेकर रहूँगा। मैंने कसम खाई है कि उस राक्षस का वध मैं करूँगा। चाहे कितनी भी कठिनाई का सामना करना पड़े। मैं अपना यह वचन निभा कर रहूँगा।"
जय की बात सुनकर भुवनदा सकते में आ गए। उन्हें वृंदा की हत्या का अफसोस था। उस हैमिल्टन के प्रति उनके मन में क्रोध भी था। लेकिन जय खुद उस हैमिल्टन को मारने की बात कर रहा था। यह सुनकर वह कुछ भयभीत हो गए। उन्होंने मदन की तरफ प्रश्न भरी दृष्टि से देखा। मदन का आशय समझ गया। वह जानता था कि भुवनदा गांधीवादी विचारधारा के हैं। वह अहिंसा के पुजारी हैं। हिंसा की राह उन्हें पसंद नहीं है। लेकिन वह खुद इस बात का पक्षधर था कि अगर आवश्यकता हो तो हथियार खाने में कोई हर्ज नहीं है। उसे याद था कि एक बार इसी तरह की बहस में भुवनदा बार बार अहिंसा के रास्ते पर चलने की बात पर जोर दे रहे थे। जबकि वह इस बात पर अड़ा था कि आवश्यक होने पर हथियार उठाना कोई बुरी बात नहीं। उसके और भुवनदा के बीच तीखी बहस हुई थी। तब वृंदा ने बीच बचाव करते हुए कहा था कि देश के जिसे जो रास्ता सही लगे उसे वही चुनना चाहिए। अहिंसा का मार्ग सर्वोत्तम है। पर कभी कभी हिंसा आवश्यक हो जाती है। इसलिए ऐसे समय में हिंसा से भी परहेज नहीं करना चाहिए।
किंतु यह समय भुवनदा से इस विषय में बहस करने का नहीं था। वृंदा के बारे में जानकर उन्हें बहुत धक्का लगा था। उसने भुवनदा को समझाते हुए कहा,
"दादा अभी जय बहुत परेशान है। इसलिए ऐसी बातें कह रहा है। आप चिंता ना करें। इसे थोड़ा शांत होने दें। फिर मैं समझाऊँगा।"
मदन और जय नवल किशोर के घर अपने कमरे में बैठे थे। दोनों इस बात पर विचार कर रहे थे कि आगे क्या किया जाए। यदि हैमिल्टन को उसके किए की सजा देनी है तो बहुत सोच समझ के अपनी योजना बनानी होगी। इसके लिए आवश्यक है कि हैमिल्टन की गतिविधियों पर नजर रखी जाए। पर जय के लिए यह काम करना मुश्किल हो जाएगा। मदन भी उसके साथ है हैमिल्टन के बंगले पर गया था। इसलिए यह काम किसी ऐसे आदमी द्वारा किया जाना सही होता जिसके बारे में हैमिल्टन कुछ भी ना जानता हो। ऐसे व्यक्ति के बारे में सोचते हुए उनके मन में केवल एक ही नाम आया। उन्हें लगा कि यह काम रंजन ही कर सकता है। जय की हालत ठीक नहीं थी इसलिए मदन सुझाव दिया कि वह खुद लखनऊ जाकर रंजन से इस बारे में बात करेगा।
वृंदा के बारे में जानकर रंजन को बहुत दुख हुआ। उसने बहुत समय तक वृंदा के साथ काम किया था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे कि उसकी बड़ी बहन की मृत्यु हो गई है। मदन ने उसे जय के निश्चय के बारे में बताया। उसने रंजन से कहा,
"जय के वचन को पूरा करने में तुम उसकी सहायता कर सकते हो। अगर तुम हैमिल्टन के बारे में सटीक जानकारी ला कर दो तो उसे उसके किए की सजा देने के लिए हम एक बढ़िया योजना बना सकते हैं। क्या तुम हमारी मदद करोगे ?"
काम कठिन था। रंजन हाँ करने से पहले अच्छी तरह विचार कर अपने मन को मजबूत कर लेना चाहता था। लेकिन मदन को वापस से सिसेंदी गांव जाना था। पर वह रंजन पर कोई दबाव भी नहीं डालना चाहता था। उसने कहा,
"तुम्हारे ऊपर कोई दबाव नहीं है। मुझे पता है कि यह बहुत कठिन काम है। तुम्हें बहुत खतरा उठाना पड़ेगा। इसलिए तुम अच्छी तरह सोच लो। जैसा फैसला हो बता देना। पर जल्दी करना।"
रंजन जानता था कि मदन को वापस जाना है। लेकिन उससे पहले वह अपने घरवालों से जाने वाला था। रंजन ने कहा,
"मदन भाई आप अपने घरवालों से मिलकर आइए। तब तक मैं अपना निर्णय ले लूँगा।"
यह बात मदन को अच्छी लगी। वह अपने घरवालों से मिलने चला गया। उसके जाने के बाद रंजन मदन की बात पर विचार करने लगा। उसे वृंदा की एक बात याद आई। एक बार उसने रंजन से कहा था कि सच्चा पत्रकार वही है जो बिना घबराए सच का पता लगाने के लिए अपने आपको भी दांव पर लगा दे। वृदा की उस बात ने आज रंजन को प्रेरणा दी कि वह हैमिल्टन को उसके किए की सजा देने के लिए अपने आप को खतरे में डाल कर भी उसके बारे में पता करे। ताकि जय अपना वचन पूरा कर सके।
जब मदन लौटकर आया तो उसने उसे अपना फैसला सुना दिया। रंजन ने कहा कि वह बेफिक्र होकर जाए। वह जल्दी से जल्दी हैमिल्टन के बारे में सही जानकारियां जुटा कर उन लोगों से संपर्क करेगा।
जय उसी जगह पर बैठा था जहाँ वृदा और वह मिला करते थे। इस समय भी सूरज डूब रहा था। पर उस दिन की तरह उसके मन में उजास ना होकर अंधेरा था। वह इस बात का इंतजार कर रहा था कि रंजन उसे हैमिल्टन के बारे में जानकारी ला कर दे। जिससे वह और मदन मिलकर हैमिल्टन के कत्ल की योजना बना सकें। लेकिन लगभग एक महीना होने को आया था। रंजन ने कोई खबर नहीं दी थी। जय अंदर ही अंदर छटपटा रहा था। उसके लिए एक एक पल गुजारना कठिन हो रहा था।
उसे अगर कुछ सुकून मिलता था तो इस जगह पर आकर। यहां आकर उसे ऐसा एहसास होता था जैसे कि वृंदा उसके आसपास हो।
जय अंदर से बहुत निराशा महसूस कर रहा था। वृंदा के लिए कुछ भी ना कर पाने की हताशा में वह रोने लगा। अचानक उसे एहसास हुआ जैसे की वृंदा उसके पास बैठी हो। उससे कह रही हो कि तुम तो इतने कमजोर नहीं थे। फिर आज इस तरह से टूटे हुए क्यों हो ? जो तुमने तय किया है वह कमजोर होकर पूरा नहीं हो सकता है। उसके लिए बहुत हिम्मत और हौसले की आवश्यकता है। इसलिए कमजोर की तरह आंसू ना बहाओ। अपने आपको उस काम के लिए तैयार करो। जिसका बीड़ा तुमने उठाया है।
जय ने फौरन अपने आंसू पोंछ लिए। खुद से वादा किया कि अब वह कमजोर नहीं बनेगा। अपने अंदर हिम्मत और हौसला पैदा करेगा।
खुद को हैमिल्टन को सजा देने के लिए तैयार करेगा।