छूटा हुआ कुछ - 14 - अंतिम भाग Ramakant Sharma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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छूटा हुआ कुछ - 14 - अंतिम भाग

छूटा हुआ कुछ

डा. रमाकांत शर्मा

14.

हवाई जहाज से उनकी यह पहली और लंबी यात्रा थी। प्लेन उड़ते ही उनका दिल भारी होने लगा, ऐसा लग रहा था जैसे बहुत कुछ पीछे छूट गया हो। पर, उन्होंने खुद को समझाया कि उन्हें किसके लिए और क्यों अपना दिल भारी करना चाहिए, ऐसा क्या छूट गया था पीछे? सच में, किसी से भी कोई अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। खुश होना चाहिए उन्हें, वे पहली बार यूएस जा रही थीं और अपने बेटे प्रशांत से लंबे अर्से बाद मिलने वाली थीं। उसके लिए उनके मन में ममता उमड़ने लगी। पता नहीं, कब यह लंबी यात्रा खत्म होगी और कब वे प्रशांत को अपनी बांहों में भर सकेंगी। फ्लोरा जैसी प्यारी सी एक बेटी भी मिल गई थी उन्हें, जो उन्हें एक नन्हा फरिश्ता देने वाली थी। वे अब नहीं भागेंगी उस मृग-मरीचिका के पीछे, जिसकी वजह से अपने छोटे से संसार को बिसरा बैठी थीं।

फ्लाइट सुबह छह बजते-बजते सेन-फ्रांसिसको के एयरपोर्ट पर पहुंच गई। प्रशांत उन्हें लेने आया था। उसने जब उनके पैर छुए तो वह खुद को रोक नहीं सकीं और उसे छाती से चिपटा कर हिचकियां भर-भर कर रोने लगीं। प्रशांत ने भी उन्हें बांहों में भर लिया और उनकी पीठ सहला कर उन्हें शांत करने की कोशिश करने लगा। जैसे कभी-कभी चेहरे पर चिपकी मुस्कान दिल में छुपे किसी दर्द का संकेत करती है, वैसे ही कभी-कभी आंखों से बरबस निकल आए आंसू अव्यक्त खुशी का इजहार करते हैं।

छोटा सा, लेकिन खूबसूरत घर था प्रशांत का। सभी सुख-सुविधाएं मौजूद थीं वहां। उनका सामान जिस कमरे में रखा गया उसमें प्रशांत ने उमा जी और उनके पतिदेव की पसंद की सभी जरूरी चीजें लाकर रख दी थीं। फ्लोरा ने जिस गर्मजोशी से उनका स्वागत किया, उससे उनका मन भर आया।

प्रशांत ने कहा – “मां अब आप आ गई हैं तो मेरी सारी चिंताएं दूर हो गई हैं। वैसे फ्लोरा हर वक्त डाक्टर की निगरानी में है और पूरी तरह ठीक है। डाक्टर ने कहा है कि वह अभी पन्द्रह-बीस दिन और आराम से ऑफिस जा सकती है। अभी आप अपनी थकान मिटाओ, वीकेंड पर हम सब आसपास की जगह घूमने चलेंगे।“

ऑफिस के लिए निकलते समय फ्लोरा ने उमा जी को बताया कि उनकी बहुत सी पसंद की खाने की चीजें लाकर प्रशांत ने पूरा फ्रिज भर दिया है। वे जो कुछ खाना चाहें फ्रिज से निकाल लें। किचन में भी इंडियन फूड के लिए जरूरी सारी चीजें मौजूद हैं, वे अपनी पसंद से कुछ भी बना कर खा लें। फिर उसने बड़े गर्व से बताया कि प्रशांत की पसंद की बहुत सी इंडियन डिशेज़ बनाना उसने सीख लिया है और वह शाम को ऑफिस से लौटकर उन्हें बना कर खिलाएगी। उमा जी और पतिदेव उसकी बातें सुन-सुन कर निहाल हुए जा रहे थे।

गाड़ी निकालते समय प्रशांत ने कहा – “मां-बाबूजी, हम दोनों को ऑफिस से लौटने में थोड़ी देर हो जाती है। आप अपना जेटलैग उतारने के लिए खा-पी कर सो सकते हैं। थोड़ा बाहर निकलने का मन करे तो घर से बाहर निकलते ही बांई तरफ पांच मिनट की पैदल दूरी पर एक बहुत खूबसूरत पार्क है, आप वहां जा सकते हैं, तबीयत खुश हो जाएगी।“

पतिदेव ने कहा – “तुम आराम से ऑफिस जाओ बेटा। चिंता मत करो। हम देख लेंगे।“

उन दोनों के जाने के बाद उन्होंने चाय के साथ हैवी नाश्ता लिया और फिर सो गए। जब उनकी आंख खुली शाम के चार बज रहे थे। शरीर को जरूरी आराम मिल गया था और अब वे दोनों खुद को तरोताजा महसूस कर रहे थे। पतिदेव ने फिर से चाय की फरमाइश की तो उमा जी चाय बना लाईं। चाय पीते-पीते पतिदेव ने कहा – “उमा जी, क्यों ना पार्क तक का चक्कर लगा आया जाए।“ उमा जी तुरंत तैयार हो गईं और वे घर बंद करके बाहर निकल आए।

इतनी साफ-सुथरी सड़क उन्होंने कभी नहीं देखी थी। सड़क के दोनों ओर खड़े पेड़ जामुनी और गहरे गुलाबी रंग के फूलों से लदे हुए थे। वाकई वे खुद को एक नई और खूबसूरत दुनिया में विचरण करते महसूस कर रहे थे। सड़कें लगभग सूनी थीं। हां, बीच-बीच में कारें फर्राटा भरती हुई उनके पास से निकल रही थीं। सबकुछ कितना व्यवस्थित कितना सुहावना।

पार्क सचमुच बहुत पास था। उसमें प्रवेश करते ही वे मुग्ध हो उठे। हरियाली के विविध रूपों के साथ कितने ही रंगों के अनचीन्हें फूल पार्क की खूबसूरती को स्वर्गिक बना रहे थे। टहलने के लिए बने रास्तों के दोनों ओर रंग-बिरंगे पत्तों वाली छोटी-छोटी झाड़ियां सी बनी हुई थीं और थोड़ी-थोड़ी दूरी पर छोटे-छोटे झरने बह रहे थे। उनके पास से गुजरते हुए उमा जी के मुंह से बरबस निकल पड़ा – “वाह, सबकुछ कितना सुंदर है।“

“हां, सचमुच बहुत सुंदर है” – साथ चलते पतिदेव ने कहा और धीरे से अपना हाथ बढ़ाकर उमा जी का हाथ अपने हाथ में ले लिया।

उमा जी ने विस्मय से उन्हें देखा और वहीं खड़ी हो गईं। पतिदेव ने पूछा – “क्या हुआ उमा जी, रुक क्यों गईं?” उमा जी ने कुछ नहीं कहा, सिर्फ उनकी आंखों में झांका और फिर उनकी हथेली को और भी कस कर अपनी हथेली में भर लिया।

वे उसी स्थिति में बहुत देर तक साथ-साथ चलते रहे। थोड़ी थकान लगी तो वे पास की बेंच पर जा बैठे। बहती हवा के साथ उमा जी के बाल उड़-उड़ कर उनके माथे पर आ रहे थे। वे अपने हाथों से उन्हें हटा देतीं, पर वे जिद्दी बच्चे की तरह फिर से वहीं आ जाते। पतिदेव ने देखा तो माथे पर बार-बार झूल आने वाली लटों को अपने हाथों से हटाकर उनके कान के पीछे कर दिया। उमा जी हैरत से उन्हें देखती रह गईं। पतिदेव ने उन्हें इस तरह अपनी तरफ देखते पाकर कहा – “क्या हुआ उमा जी। ऐसे क्यों देख रही हो?”

“कुछ नहीं बस, आपको इस रूप में पहली बार देख रही हूं.........।“

“मैं तो वही हू उमा जी, तुम्हें बहुत प्यार करने वाला। आइ लव यू।“

“क्या कहा, एक बार फिर से तो कहना” – उमा जी ने अविश्वास से कहा।

“आइ लव यू उमा जी।“

“उफ, ये तीन शब्द बोलने में आपने इतनी देर लगा दी? काश आपने ये तीन शब्द पहले कहे होते तो मैं क्यों.........।“ उमा जी कहते-कहते रुक गईं।

“कुछ कहने की जरूरत नहीं है उमा जी, मुझे सब पता है।“

“क्या पता है आपको?” उमा जी हड़बड़ाकर उठ खड़ी हुईं।

“उस दिन आप बाथरूम में थीं। मैं कुछ कागज ढूंढ़ने कमरे में गया था। तभी आपका मोबाइल वाइब्रेट होने लगा। मैंने देखा पुष्पा का था। फोन उठाया तो मेरे हलो कहने से पहले ही उधर से आवाज आई – कब से फोन कर रहा हूं उमा जी, कहां हैं आप? मैंने तुरंत फोन बंद कर दिया और फिर से उसी नंबर पर लगाया तो फिर से वही आवाज आई – आपकी आवाज सुनने के लिए तरसता रहता हूं, इसलिए आप जानबूझ कर बोल नहीं रहीं हैं ना उमा जी। मेरे व्हाट्सएप मैसेज का भी आपने कोई जवाब नहीं दिया, किस बात से नाराज हैं आप?”

“पहले तो मैंने सोचा कि कोई गलत आदमी आपको बार-बार फोन करके तंग कर रहा है, फिर पुष्पा के नाम से फोन सेव होने से मेरा माथा ठनका। उसने व्हाट्सएप मैसेज का जिक्र किया था तो मैंने उसे खोल कर देखा। देखते ही मेरे होश उड़ गए। आपके और आपके गगन सर के मैसेज मैं सांस रोक कर पढ़ता चला गया। तभी बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज आई और मैं आपका मोबाइल वहीं रखकर बाहर आ गया था।“

उमा जी के हाथ-पैर कांपने लगे। उनके मुंह से कोई बोल नहीं निकल पा रहा था। उनकी आंखों से बहते आंसू पौंछते हुए पतिदेव ने कहा – “मैं बहुत डिस्टर्ब हो गया था उमा जी। बहुत सोचा मैंने, तुम्हें आखिर इस उम्र में इस सबकी जरूरत क्यों पड़ी। जितना सोचा, उतना खुद का ही दोष नजर आने लगा। मैं स्वभाव से बहुत कम बोलने वाला रहा हूं और खुलकर अपने दिल की बात नहीं कह पाता। मैं ऐसा ही हूं उमा जी। इसे मेरी कमजोरी समझ लें।“

“आपके बिन कहे भी मैंने आपके प्यार को महसूस किया है।“

महसूस किया पर समझा नहीं उमा जी। जहां तक मेरी बात है, मैं समझता रहा कि हम एक-दूसरे की परवाह करते हैं, एक-दूसरे का सम्मान करते हैं, यही प्यार है। मेरे साथ रह कर तुम्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं है, हम आपस में बहुत ज्यादा लड़ते-झगड़ते नहीं हैं, यही प्यार है। मैं जब काम में डूबा रहता हूं तब तुम चाय बना लाती हो और मेरे साथ बैठकर पीती हो, यही प्यार है। मेरी समस्याएं तुम्हारी और तुम्हारी समस्याएं मेरी बन जाती हैं, यही प्यार है। तुम्हारे बिना खुद को अधूरा महसूस करता हूं और तुम खुद पर मेरे अधिकार को कभी चुनौती नहीं देतीं, यही प्यार है। जब तुम मुझे यह आभास कराती हो कि मुझ पर तुम्हारा पूरा अधिकार है तो लगता है, यही तो प्यार है। जब प्रशांत का जन्म हुआ तो मुझे लगा हमारे प्यार को आकार मिल गया है। उसे गोद में लेकर हमारा आनंद से झूम उठना, यही प्यार का चरम रूप है। मेरे आसपास तुम्हारे बने रहने से मुझे जो अपनेपन की, विश्वास की और सुरक्षा की अनुभूति होती है, वही प्यार है। तुम्हें देखकर मन में स्नेह की जो सरिता उमड़ने लगती है, यही प्यार है।

मैं सोचता रहा उमा जी कि तुम्हारा साथ मुझमें जो उत्साह और उमंग भर देता है, वैसा ही तुम भी महसूस करती होंगी। लेकिन, मैं यह नहीं सोच पाया कि मेरे भीतर प्यार की जो नदी बह रही है, वह तुम्हें दिखेगी नहीं तो तुम उसके वुजूद को कैसे महसूस करोगी। तुम उस प्यार की धारा को स्पर्श ही नहीं कर पाओगी तो उसकी मिठास तुम तक कैसे पहुंचेगी। बस, यहीं मैं गलत हो गया उमा जी।“

बड़ी मुश्किल से उमा जी के मुंह से निकला – “नहीं, गलत शायद मैं थी, आपके मौन प्रेम की गहराई को समझते हुए भी, आपमें गोविंद ढूंढ़ती रही। हर स्त्री, हर प्रेमिका की तरह चाहती रही कोई मेरी जम कर तारीफ करे, मुझ पर अपना अधिकार जताए, मुझे बार-बार अहसास कराए कि वह मुझे प्यार करता है, मेरे लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार रहता है, मुझे महसूस कराए कि मैं उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण हूं, उसके शब्द मुझे गुदगुदाएं और मेरे शरीर में सिहरन और रोमांच भर दें। प्रेम में डूबी कहानियां पढ़ीं तो लगा, जिंदगी का यह सबसे मधुर और रोमांचक अनुभव तो छूट ही गया था मुझसे।“

“इसमें कुछ गलत नहीं है, उमा जी। हम जिस चीज का अभाव महसूस करते हैं, उसे पाने की चाह में कभी-कभी अपना सबकुछ दांव पर लगा देते हैं। मैं ही तुम्हारे मन तक नहीं पहुंच पाया तो गलती मेरी हुई ना? हां, इस अहसास ने मुझे जरूर हिला दिया कि यह सब तुम्हें कहीं और ढूंढ़ना पड़ा।“

“मैं एक बहाव में बहती गई थी। बिना कुछ सोचे, बिना कुछ समझे। लगा था, ज़िंदगी में जो कुछ छूट गया था, वह मुझे इस उम्र में आकर मिल गया है। लेकिन, जब आज सोचती हूं तो यह बात मुझे बुरी तरह सालती है कि मैं आपमें किशोर पाकर खुद सरिता क्यों न बन सकी। आपमें गोविंद तो तलाशती रही, पर खुद पुष्पा नहीं बन पाई। काश, मैं आपके लिए खुद को पुष्पा बना पाई होती तो ............।“

“जाने भी दीजिए अब उमा जी। सच तो यह है कि ना तुम पुष्पा हो और ना मैं गोविंद। मेरी तरह तुम्हारा स्वभाव भी शांत और खुद को खुल कर अभिव्यक्त करने का नहीं रहा। दोनों में से एक भी अगर अपनी भावनाओं को खुल कर अभिव्यक्त करने वाला होता तो शायद यह स्थिति पैदा ही नहीं हुई होती। मुझे कभी पता ही नहीं चल पाया कि तुम्हारे मन में क्या चल रहा है। मैं पति होने की अपनी जिम्मेदारी सही तरह से नहीं निभा पाया........।“ उमा जी ने देखा कहते-कहते पतिदेव रुक गए थे, उनका गला रुंध गया था और आंसू बह निकलने के लिए उनकी पलकों पर आ टिके थे।

उमा जी ने उन आंसुओं को गिरने से पहले अपनी हथेलियों में समेट लिया और कहा – “ये आंसू मेरी वजह से निकले हैं, बहुत शर्मिंदा हूं मैं। मैंने प्रेम के अहसास से गुजरना चाहा था, गुजरी भी हूं। पर सच कहूं, आज मैं प्रेम के जिस अहसास से गुजर रही हूं, जो थरथराहट और रोमांच महसूस कर रही हूं, वह मेरे लिए एक दिव्य अनुभव है, बिलकुल नया, बिलकुल अनूठा और बहुत सुखद।“

“मैं अपने को बदलने की कोशिश करूंगा उमा जी....।‘

“आप जैसे हैं, वैसे ही बहुत अच्छे हैं। बदलना मुझे है। चलें अब?”

“हां, चलना चाहिए। बहुत देर हो गई है। प्रशांत और फ्लोरा भी आते ही होंगे।“

वे उस सुंदर और ताजा फूलों की महक से भरी पगडंडी पर साथ-साथ चल रहे थे। पता नहीं कब उमा जी ने उनका हाथ अपने हाथ में ले लिया और इस बार पतिदेव ने उसे अपनी हथेली में कस कर दबा लिया था।

डा. रमाकांत शर्मा, 402- श्रीरामनिवास, टट्टा निवासी हाउसिंग सोसायटी, पेस्तम सागर रोड नं.3, चेम्बूर, मुंबई – 400089 मोबाइल - 9833443274