छूटा हुआ कुछ - 13 Ramakant Sharma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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छूटा हुआ कुछ - 13

छूटा हुआ कुछ

डा. रमाकांत शर्मा

13.

यूएस जाने की तैयारियों के बीच उमा जी को याद आया कि जाने का समय बिलकुल नजदीक आ गया है, लेकिन अभी तक उन्होंने मां-बाबूजी को तो इसकी इत्तला दी ही नहीं है। उन्होंने हाथ के सारे काम छोड़े और मां को फोन लगा दिया। फोन बाबू जी ने उठाया और उमा जी की आवाज सुनते ही उन्होंने कहा – “उमा बिटिया, कितने दिन बाद तेरी आवाज सुन रहा हूं, सब ठीक तो है।“

“हां बाबूजी आपके और मां के आशीर्वाद से सब ठीक है। लगता है, फोन आपके कमरे में शिफ्ट हो गया है, आपसे बात कराने के लिए कहती थी तो मां का यही जवाब होता था कि बाबूजी के लिए इस कमरे तक आना मुश्किल हो जाता है, इसलिए ....“

“हां बिटिया वो तो ठीक ही है। उम्र भी तो हो गई है। तेरी मां अगर घर में नहीं होती और फोन बजता था तो मेरे लिए उठकर जाना अजाब हो जाता, इसलिए कब से सोच रहे थे कि फोन मेरे कमरे में शिफ्ट हो जाए। पर, मेहुल को अपने ऑफिस के काम से ही फुरसत नहीं मिलती थी। अभी पिछले शुक्रवार को ही शिफ्ट हुआ है फोन।“

“अच्छा, तबीयत कैसी है आपकी बाबूजी?”

“ऐसा ही है बिटिया, घुटनों में बहुत दर्द रहता है और पड़े-पड़े खाना भी नहीं पचता।“

“सोच रही थी कुछ दिन आप दोनों को अपने पास बुला लेती, आपका मन भी लग जाता और किसी अच्छे डाक्टर से इलाज भी हो जाता। पर, दो दिन बाद हम यूएस चले जाएंगे, इसलिए.......।“

“अरे, प्रशांत के पास जा रहे हो तुम लोग? पहले नहीं बताया।“

“बस अचानक ही प्रोग्राम बन गया.......।“

“ले तेरी मां आ गई है, इससे बात कर।“

“हलो मां, कैसी हो?”

“ठीक हूं। चल, बहुत दिनों से कह रही थी बाबूजी से बात कराओ, आज हो गई बाबूजी से अच्छी तरह बात?”

“हां, अच्छा लगा उनसे बात करके।“

“सुन रही थी मैं, यूएस जा रहे हो तुम लोग, कब?”

“दो दिन बाद की फ्लाइट है हमारी।“

“बड़ी अच्छी बात है, पर अचानक कैसे बन गया तुम्हारा प्रोग्राम?”

“गुड न्यूज़ देनी थी मां आपको, प्रशांत के घर नन्हा मेहमान आने वाला है।“

“अरे, यह तो बड़ी अच्छी खबर है। कब बन रही है तू दादी?”

“अगले महीने में कभी भी। वैसे 18 अगस्त की तारीख दी है उन्होंने।“

“सुनकर बड़ा अच्छा लग रहा है, मेरी वो छोटी सी उमा अब दादी बनने जा रही है।“

“सब आपका आशीर्वाद है मां। मैं जाऊंगी तो कुछ महीने रुकूंगी वहां। आप लोग अपना पूरा ख्याल रखना। प्रशांत से कहूंगी, कभी-कभी आपसे फोन पर बात करा दिया करेगा। अच्छा रखूं मां?”

“एक मिनट रुक। वो तेरी सहेली थी ना पुष्पा, दो दिन पहले यहां आई थी।

“पुष्पा आई थी? कैसा संयोग है मां, मैं सोच ही रही थी कि यूएस जाऊंगी तो उससे मिलने का कोई रास्ता निकालूंगी। पर, उसका पता ही नहीं था मेरे पास। शादी के बाद उसने अंकल-आंटी को भी तो वहीं बुला लिया था, इसलिए उसका फोन नंबर था ही नहीं किसी के पास। इतने वर्षों में उसने खुद भी तो कभी फोन करने की जहमत नहीं उठाई। कैसी लगती है वो, कहां है वह? मां मैं उससे कैसे बात कर सकती हूं?”

“बालों में सफेदी आ गई है उसके भी। पहले तो मैं उसे पहचानी ही नहीं। बता रही थी कि उसके हस्बैंड के रिटायरमेंट के बाद उन्होंने आगरा के अपने पुश्तैनी घर में रहने का मन बना लिया है। कह रही थी, बहुत रह लिये यूएस में। अभी तो वे अपने यहां के बंद पड़े मकान में रुके हैं। तीन-चार दिन में आगरा चले जाएंगे। उसने तेरा फोन नंबर लिया है मुझसे, आजकल में बात करेगी।“

“आपने नहीं लिया उसका नंबर? मैं ही बात कर लेती।“

“नहीं, थोड़ा सब्र रख, वही बात करेगी तुझसे।“

“ठीक है मां, अब रखूं? बहुत सारा काम पड़ा है अभी।“

“चल, यूएस जाकर पहुंचने की खबर देना और प्रशांत के बच्चा हो जाने पर भी खबर देना मत भूलना।“

फोन रखने के बाद उमा जी यह सोच-सोच कर ही पुलकित हुए जा रही थीं कि इतने लंबे अर्से बाद वे पुष्पा से बात करेंगी। अगर उन्हें यूएस नहीं जाना होता तो वे उससे जाकर मिल भी आतीं। वे बार-बार फोन को देख रही थीं और सोच रही थीं – पता नहीं यह कब बजेगा और कब वे पुष्पा से बातें कर पाएगी।

इंतजार की घड़ियां ऐसी ही होती हैं, लगता ही नहीं कि घड़ी चल रही है। उमा जी सारा दिन इंतजार करती रहीं, पर फोन की घंटी बजने का नाम ही नहीं ले रही थी। उमा जी सोच रही थीं काश मां ने पुष्पा से उसका फोन नंबर ले लिया होता तो वे खुद ही उससे बात कर लेतीं। उन्होंने पुष्पा के फोन की उम्मीद छोड़ ही दी थी कि शाम को पांच बजे के करीब घंटी बजी। उन्होंने लपक कर फोन उठा लिया। दूसरी तरफ पुष्पा ही थी – “हाय उमा, कैसी हो?”

“मैं तो ठीक हूं। जब से मां ने बताया है कि तेरा फोन आने वाला है, तबसे फोन के पास से हटी ही नहीं हूं। तू कैसी है बता? शादी के बाद तूने तो एक बार भी फोन नहीं किया। मेरे पास तेरा कोई कंटेक्ट नंबर होता तो मैं फोन कर लेती।“

“तुझसे क्या छुपा है यार। किन परिस्थितियों में शादी हुई और आगरा से सीधे ही मुझे यूएस जाना पड़ा। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ है और क्या होना है। बाद में मां-बाबूजी भी यूएस आ गए तो यहां से पूरा संपर्क ही टूट गया।“

“कभी याद आई मेरी?”

“क्या बात कर रही है, खूब याद आई है तू। फिर समय के प्रवाह में सबकुछ बहता गया। यहां आने के तुरंत बाद मैं तेरे घर गई और तेरा फोन नंबर ले आई। ये घर भी इतने दिन से बंद पड़ा था ना, तो बस इसे कुछ दिन रहने लायक बनाने में ही सारा समय निकल गया। सोचा, शाम को आराम से बात करूंगी।“

“हां, मां ने बताया था, अब तुम सब आगरा रहने के लिए आ गए हो।

“यूएस में ही बसने की सोच रहे थे, वहां रहने की आदत भी हो गई थी। पर, इनका कहना है कि नौकरी के कारण पूरी ज़िंदगी विदेश में गुजार दी, अब जब आराम करने को मिला है तो क्यों न बाकी ज़िंदगी अपने खुद के देश में गुजारें। फिर, वहां मिलिंद, हमारा बेटा, सैटिल हो ही गया है। जब भी मन करेगा वहां का चक्कर लगा आएंगे।“

“कितने बच्चे हैं?”

“बस एक बेटा और एक बेटी। बेटी सुनंदा तो शादी करके कनाडा चली गई। मिलिंद यूएस में है ही। अच्छा, आंटी ने बताया था कि तेरा बेटा भी यूएस में है और तू वहां जा रही है।“

“हां यार, उसके बच्चा होने वाला है। परसों की फ्लाइट है हमारी।“

कितनी अजीब बात है ना, हम पक्की सहेलियां एक-दूसरे की शादी में शामिल नहीं हो पाईँ। रिटायरमेंट की उम्र तक मिल नहीं पाईँ और अब जब मैं यूएस छोड़ आई हूं तो तू वहां जा रही है। कहां रहता है प्रशांत?”

“सेन-फ्रांसिस्को में और तुम लोग?”

“न्यूयार्क में। दोनों जगह बहुत-दूर-दूर हैं। इतना बड़ा देश है कि न्यूयार्क से सेन-फ्रांसिस्को फ्लाइट से जाने में भी पांच घंटे से ज्यादा लग जाएंगे। मेरा तुझसे मिलने का बहुत मन है। सोचा था, अब तो इंडिया आ गए हैं तो मिल-बैठ कर बचपन की यादें ताजा करेंगे। खैर.......तू वहां से लौट आ, उसके बाद मिलने की कोई जुगत भिड़ाएंगे। अच्छा यह तो बता जीजाजी कैसे हैं?“

“बहुत सीधे-सादे, अपने काम से काम रखने वाले और काम में डूबे रहने वाले भी।“

“कितना ही काम में डूबे रहते हों, पर हमारी उमा जैसी सुंदर और सुघड़ लड़की पर तो जान छिड़कते होंगे, हैं ना?”

“बहुत अच्छे हैं वो, पर रोमांटिक नहीं। उन्हें कभी अपना प्यार जताना नहीं आया। अंतरंग क्षणों में भी उनका स्पर्श ही प्यार जताता है।“

“हूं, प्यार जताना भी बहुत जरूरी होता है, पर जो लोग प्यार जता नहीं पाते उनका प्यार होता बहुत गहरा और सच्चा है। उनसे मिलना पड़ेगा।“

“मिल लेना यार..... पर फिलहाल तो मेरा तुझसे मिलने और बातें करने का बहुत मन कर रहा है। अच्छा, सच बता शादी के बाद तुझे कैसा लगा?”

“कैसा लगता? ऐसा लगा जैसे अपने खूंटे से गाय को जबरन खोल कर किसी दूसरे खूंटे से बांध दिया गया हो। शादी का कितना चाव होता है ना? मुझे तो लगा ही नहीं कि मेरी शादी हो रही है।“

“मैं समझ सकती हूं यार। ऐसे में ज़िंदगी काटना भी तो दूभर हो जाता है।“

“शुरू में तो ज़िंदगी बहुत कठिन लगी। पर सच बताऊं, शिखर को समझने में मुझे थोड़ा समय तो जरूर लगा, पर जब उन्हें कुछ-कुछ समझने लगी तो पता चला उनसे बेहतर इंसान मिलना मुश्किल है। इतने पढ़े-लिखे होने और यूएस की नामी कंपनी में बहुत ऊंचे पद पर होने के बावजूद उनमें जो विनम्रता थी, उससे मैं दंग रह गई थी। उमा, उन्होंने मुझे इतना प्यार दिया और इतनी इज्जत दी कि मैं कुछ ही दिनों में सबकुछ भूल गई। मैं यह नहीं कह रही कि कभी गोविंद का ध्यान नहीं आया, पर मैं शिखर के प्यार की गहराई को महसूस करती तो उसमें डूबने को मन करने लगता। तुझसे तो कह सकती हूं उमा, गोविंद कहीं बहुत पीछे छूटता चला गया था और मैं शिखर की बांहों में खुद को खुशनसीब और महफूज समझती गई। वे मेरे लिए प्यार से भरे ऐसे बादल बनते गए जिनकी फुहारें मेरे शरीर को ही नहीं मन को भी भिगो देतीं और मैं यह सोचने लगती कि भगवान ने स्वर्ग में ही हमारी जोड़ी बनाई होगी।“

“लेकिन, गोविंद के लिए तेरी उन भावनाओं और तड़प का क्या हुआ? मैंने खुद देखा था पुष्पा, क्या उसकी जड़ें इतनी मजबूत नहीं थीं?”

“उमा, हर चीज का अपना समय और महत्व होता है। किसी के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ जाने और फिर उसे खो देने की एक टीस होती है, जो भीतर तक सालती है। पर, यह जुड़ाव एकतरफा हो या फिर समय काटने के लिए हो या फिर अपने अहं की तुष्टि के लिए हो तो .........।“

“क्या बात कर रही है पुष्पा, गोविंद ने ही तो पहल की थी और ..........।“

“जानती हूं मैं, पर अगर कोई सच्चा प्यार करता है तो किसी छोटी सी घटना से घबरा कर अपने प्रेम-पात्र से नाता नहीं तोड़ लेता। गोविंद ने जैसे ही उस घटना के बाद मुझसे बिलकुल संपर्क खत्म कर दिया तभी मुझे समझ में आ गया था कि मैं जिस हद तक उससे जुड़ गई थी, उतना वह नहीं जुड़ा था। अगर उसने मेरा साथ दिया होता तो मैं उसके लिए कुछ भी कर गुजरती।“

“हां, शायद तू ठीक कह रही है। इस तरह तो मैंने सोचा ही नहीं था। पर, तेरे जाने के बाद मैंने उसे मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर आंसू बहाते देखा है।“

“जब किसी पर से अधिकार छूटने लगता है तो वह भी दु:ख देता है। मां-बाप तो खुद होकर अपनी बेटी का हाथ पूरे बाजे-गाजे के साथ किसी और को सौंपते हैं, फिर भी रोते हैं। इसमें बेटी के प्रति प्यार तो होता ही है, पर, उस पर से अधिकार छूट जाने और उसके परायी हो जाने का दु:ख ज्यादा रुलाता है।“

“कहना क्या चाहती है तू?”

“कुछ नहीं। बस इतना बताना चाहती हूं कि कल जब मैं घर के लिए कुछ सामान खरीदने बाजार गई थी तो मुझे गोविंद मिला था।“

“हैं अच्छा, बात हुई तेरी उससे कुछ?”

“साठ साल के गोविंद को पहचानना कुछ मुश्किल जरूर लगा, सारे बाल सफेद हो गए हैं और चश्मा लग गया है। फिर भी मैंने उसे पहचान ही लिया। उसे भी कुछ क्षण लगे मुझे पहचानने में। मुझे सामने देखकर वह हक्काबक्का रह गया। मैंने पूछा – कैसे हो गोविंद? तो उसने जवाब में कहा – तुम तो यूएस चली गई थीं, यहां कैसे? मैंने कहा – क्यों, मुझे देखकर अच्छा नहीं लगा? उसने जवाब दिया – अच्छा क्यों नहीं लगेगा। तुम खुश हो ना? मैंने कहा – मैं तो बहुत खुश हूं, तुम बताओ। तभी उसकी पत्नी हाथ में कुछ सामान उठाये वहां आ गई। मुझसे बातें करते देख उसने उससे पूछा – कौन हैं ये, मैं पहचानी नहीं। गोविंद ने उत्तर दिया – ये पुष्पा हैं, मेरे एक दोस्त की बहन। इनकी शादी यूएस में हुई है। आज अचानक मिल गई यहां। मैं कुछ बोलती उससे पहले ही उसने अपनी पत्नी से कहा – चलें, अम्मा-बाबूजी इंतजार कर रहे होंगे। और वह उसकी बांह पकड़कर वहां से चलता बना। उसने मुझे पलटकर भी नहीं देखा। पता नहीं उसे किस बात का डर था। कुछ क्षण वहीं ठगी सी खड़ी रहने के बाद मैं वहां से चली आई।“

“कमाल है, उससे इस व्यवहार की तो जरा भी उम्मीद नहीं की जा सकती थी।“

“उमा, प्यार बहुत गहरी भावना है। जब किसी से प्यार होता है तो हम सातवें आसमान पर उड़ने लगते हैं। जिसे हम प्यार करते हैं, वह दुनिया का सबसे अच्छा व्यक्ति लगने लगता है। उसके लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार हो जाते हैं हम। पर, जब प्यार में गहराई नहीं होती तो वह सिर्फ दिलों से खेल करने और मन बहलाने का एक साधन मात्र बन कर रह जाता है। मैं खुद को खुशनसीब समझती हूं कि मुझे दिल से चाहने वाला जीवन साथी मिला है।“

“क्या बड़ी उम्र में किसी से प्यार हो सकता है पुष्पा?”

“क्यों पूछ रही है तू यह सब? इस उम्र में किसी से प्यार तो नहीं कर बैठी?”

“पता नहीं। फोन लंबा हो चला है, फिर बात करते हैं।“

“फिर कब? परसों तो तू चली जाएगी। फोन लंबा होने की चिंता मत कर। इन्हें बता दिया था मैंने कि अपने बचपन की सहेली से बात करने जा रही हूं तो टाइम तो लगेगा। इन्होंने हंस कर कहा था जितनी भी बातें करनी हों करो, पर मेरी बुराइयां जरा कम करना। चल तू बता क्या बात है।“

उमा जी ने शुरू से आखिर तक की सारी कहानी पुष्पा को बता दी। पुष्पा बिना उन्हें रोके ध्यान से सब सुनती रही। उमा जी की बात खत्म होने पर उसने कहा – “उमा प्यार तो किसी भी उम्र में हो सकता है। मैं खुश हूं कि तूने भी भगवान की इस सबसे बड़ी देन का अनुभव किया है। तू तो पगली सचमुच प्यार कर बैठी। वो जो तेरे गगन सर हैं ना, उनकी बातें सुन-सुन कर ही तुझे लगा कि वे तुझे प्यार करते हैं। वे कोई अच्छे खिलाड़ी लगते हैं मुझे। तूने बताया भी कि वे स्मार्ट हैं और एकसाथ कई टीचरों को प्यार का पाठ पढ़ाते रहे हैं। तुझे पटाने की अपनी पुरानी इच्छा जता कर उन्होंने बात शुरू की और जब यह देखा कि बिना कोई दायित्व लिये वे तुझे अपनी बातों से अपनी तरफ आकर्षित कर सकते हैं तो उन्होंने वैसा करना शुरू भी कर दिया। ऐसे लोगों को अपनी आकर्षण-शक्ति पर विश्वास होता है, उनका अहम् संतुष्ट होता है कि किसी भी उम्र में किसी भी उम्र की महिला उनकी तरफ आकृष्ट हो सकती है और वे उसे अपने प्रेम-जाल में उलझा सकते हैं। अच्छा बता क्या गगन सर ने तुझसे कभी मिलने की कोशिश की?”

“नहीं। मैंने भी तो कभी नहीं की ऐसी कोशिश।“

“कहते हैं कि प्यार में पागलपन होता है, पर इसके पीछे कोई ना कोई वजह जरूर होती है। हम जिसे चाहते हैं, उसका साथ चाहते हैं। कम से कम उसे देखना तो चाहते ही हैं।“

“हां, पर क्या किसी को हासिल करने की भावना के बिना प्यार नहीं हो सकता? किसी के दिल में जगह बनाना ही प्यार नहीं है?”

“बिलकुल किसी के दिल में जगह बनाना ही प्यार है। पर सिर्फ दिल में ही जगह बनानी है तो वह तो बन गई। फिर उसकी याद में तड़पने का क्या मतलब? क्यों गगन सर से बातें न कर पाने को लेकर दिल परेशान है तेरा। दर्द प्यार करने से होता है या याद करने से या फिर बिछुड़ने की कल्पना से? सोच उमा, सिर्फ बातें या चैट ना कर पाने की कल्पना से ही तू इतनी परेशान क्यों है? सिर्फ उनके दिल में जगह बना लेने से ही संतुष्ट क्यों नहीं है? यह भी सोचने की बात है कि गगन सर उतने परेशान क्यों नहीं हैं?”

“मैंने बहुत सोचा है।“

“कुछ समझा भी है?”

“हां, तुझसे बातें करके तो बहुत सी चीजें और साफ हो गई हैं।“

“प्यार एक बेहद खुशनुमा एहसास है उमा, जो सच्चे दिल से प्यार करता है वही इसकी कद्र कर सकता है। प्यार एक-दूसरे के लिए जीना सिखाता है, एक-दूसरे की भावनाओं को समझना और एक-दूसरे की इज्जत करना सिखाता है। जहां यह नहीं है, वहां सच्चा प्यार कैसे हो सकता है?”

“काश, मैं तुझसे मिल सकती पुष्पा।“

“तू यूएस से दादी बन कर लौट आ। उसके बाद हम जरूर मिलेंगे। मेरा तो मन है कुछ दिन साथ गुजारेंगे।“

“सचमुच, यह तो बहुत अच्छा रहेगा।“

“चल, अब तू अपनी तैयारियां कर, ठीक है। हमारी तरफ से अभी से हैप्पी जर्नी।“

फोन रखने के बाद उमा जी सोच रही थीं, लगा ही नहीं कि पुष्पा से इंतने लंबे अर्से बाद बात हो रही थी। जिस तरह वे तब बातें करती थीं, वैसे ही दोनों अब भी बातें कर रही थीं। पुष्पा से खुल कर बातें करने से उन्हें बड़ी तसल्ली मिली थी। जो बातें वे किसी से नहीं कह सकती थीं और अंदर ही अंदर उन्हें साल रही थीं, उन्हें पुष्पा से कह-सुन कर उन्हें बहुत राहत महसूस हो रही थी। एक लंबी सांस भर कर वे उठीं और अपने काम से लग गईं।

उन्होंने दो दिन से मोबाइल हाथ में उठाया ही नहीं था। सच तो यह है कि कई बार उठाया तो था, पर गगन सर के मैसेज नहीं देखे थे। फिर कुछ सोचकर उन्होंने मैसेज़ बॉक्स खोल डाला। तीन दिन में सिर्फ एक ही मैसेज़ था उनका – ‘सुप्रभात, अपेक्षाएं जहां खत्म होती हैं, सुकून वहीं से शुरू होता है उमा जी।‘

जहां दिन में कभी-कभी दो-तीन मैसेज़ भेज देते थे वे वहां दो दिन में सिर्फ एक ही मैसेज़ था। उमा जी से कोई जवाब न पाकर शायद उन्होंने फिर कोई मैसेज़ नहीं भेजा था। कोई और दिन होता तो वे घबराकर फोन कर बैठते – क्या हुआ है उमा जी, मेरे मैसेज़ का दो दिन से कोई जवाब नहीं है। तबीयत तो ठीक है ना आपकी? लेकिन, अब वे दो दिन से चुप थे। उनका संदेश भी बहुत स्पष्ट था, अगर सुकून चाहिए तो अपेक्षाएं खत्म करनी चाहिए। पर, उन्होंने ऐसी कौनसी अपेक्षा की थी उनसे? उन्हें सिर्फ यही तो बताया था कि उनसे बात या चैट किए बिना वे परेशान होंगी। उनसे यह तो अपेक्षा नहीं जताई थी कि वे भी उनके लिए परेशान हों। हां, यह बात और थी कि वे उनसे सुनना तो वही चाहती थीं। बेखुदी में उनकी आंखों से आंसू निकल कर गालों तक लुढ़क आए।

वे कोई कड़ा सा जवाब देना चाहती थीं, गगन सर को। पर, उन्होंने मोबाइल से उनके सभी मैसेज़ डिलीट किए और फिर मोबाइल बंद करके उसे पलंग पर उछाल दिया। अपनी आंखों से आंसू पौंछते हुए उन्होंने तय कर लिया कि उन्हें सुकून चाहिए था और उसके लिए किसी से कोई अपेक्षा नहीं करनी थी। शायद उन्होंने प्यार के एहसास से गुजरते हुए उसके सभी रंग देख डाले थे, खुशी के भी और दु:ख-दर्द के भी। ज़िंदगी के इस अनजान पहलू से वे अच्छी तरह परिचित हो गई थीं।