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छूटा हुआ कुछ - 9

छूटा हुआ कुछ

डा. रमाकांत शर्मा

9.

आजकल उमा जी का टीवी खोलने का मन बिलकुल नहीं करता था। हां, वे काम करते समय या पढ़ते समय रेडियो चला लेतीं। पुराने गाने सुनना उन्हें हमेशा से अच्छा लगता रहा था, पर अब ये गाने उन्हें और भी अच्छे लगने लगे थे। गाने तो वही थे, पर अब उनके अर्थ उमा जी को अच्छी तरह समझ में आने लगे थे। वे सोचतीं, जिन्होंने भी ये गाने लिखे हैं, भावनाओं में डूब कर लिखे हैं, तभी उनके बोल सुनने वाले के दिल के भीतर तक उतर जाते हैं। कभी-कभी वे स्वयं भी उन गानों को गुनगुनाने लगतीं। कुछ गाने तो उन्हें ऐसे लगते जैसे उनकी मन:स्थिति को पढ़कर ही लिखे गए हों। एकबार उन्हें गीत गुनगुनाते सुनकर उनके पतिदेव ने कहा था – “क्या बात है उमा जी, आजकल तुम्हारा मूड बहुत अच्छा रहता है। पहले मैंने तुम्हें शायद ही कभी गुनगुनाते सुना हो।“

“कुछ भी तो नहीं” – उमा जी ने जवाब दिया। “सारे दिन पत्रिकाएं पढ़ते-पढ़ते या फिर सोते-सोते बोर होती रहती हूं तो रेडियो पर गाने सुनने लगती हूं। कोई-कोई गाना जुबान पर चढ़ जाता है तो उसे गुनगुनाने लगती हूं।“

“ये तो अच्छी बात है, इस बहाने मुझे यह तो पता चला कि तुम गाती भी हो।“

“क्यों हंसी उड़ा रहे हो मेरी। मुझे गाना-वाना कुछ नहीं आता, बस ऐसे ही गुनगुना कर मन बहला लेती हूं।“

“कभी-कभी सोचता हूं उमा जी, प्रशांत के यूएस चले जाने और वहीं बस जाने के बाद तुम बहुत अकेली हो गई हो। रिटायर होने के बाद स्कूल की तुम्हारी साथी टीचर भी इधर-उधर हो गई हैं। उनसे भी संपर्क कट गया है। मैं भी अपने काम में लगा रहता हूं। कई बार सोचता हूं, अब बहुत हो चुका काम-वाम। सबसे मना कर दूं और काम लेना बंद कर दूं। पर, फिर यह सोच कर चुप हो जाता हूं कि सारा दिन करूंगा क्या।“

उमा जी ने तुरंत कहा – “नहीं, नहीं काम बंद कर दोगे तो आपका मन नहीं लगेगा। बोर होने के लिए मैं अकेली ही बहुत हूं। फिर काम करते रहने से आदमी खुद को रिटायर्ड होने और बेकार हो जाने की भावना से बचा रहता है और तरो-ताजा भी महसूस करता है।“

“वही तो मैं कह रहा था। जब तक हाथ-पांव चलते हैं, काम करता रहूं।“

“ठीक सोच रहे हैं आप। चलिए, अब अपने काम से लग जाइये। खाना बन जाएगा तो मैं आपको उठाती हूं।“

“ठीक है, उमा जी।“

किचन का काम निपटाकर उमा जी जब अपने कमरे में आईं तब तक रेडियो चल ही रहा था। वे उसे बंद करना भूल ही गई थीं। उन्होंने उसे बंद करने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि नया गाना शुरू हो गया। गाने के बोल सुनते ही उनके हाथ रुक गए और वे उसे ध्यान से सुनने लगीं – ‘ये ज़िंदगी उसी की है, जो किसी का हो गया, प्यार ही में खो गया। ये बहार ये समां कह रहा है प्यार कर, किसी की आरजू में अपने दिल को बेकरार कर। ज़िंदगी है बेवफा, लूट प्यार का मजा।‘

उमा जी को लगा जैसे राजेन्दर कृष्ण जी उनकी आज की ज़िंदगी पर यह गाना लिख गए हों। गाने के आगे के बोलों पर उनका ध्यान नहीं गया। उन्होंने रेडियो बंद कर दिया और गगन सर को संदेश लिखना शुरू कर दिया – “गगन सर, कैसे हैं आप? आप भी सोचेंगे, इस समय लिखने बैठ गई हूं। पर रेडियो पर आ रहे एक गाने ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि बहुत देर से ही सही, पर आप जैसा दोस्त देकर भगवान ने मुझे तसल्ली दी है। यह ऐसा ही है जैसे मेरे जीवन के शांत पड़े उथले तालाब को अचानक हुई नेह की बरसात ने लबालब भर दिया हो। आपसे जब भी बातें होती हैं तो ऐसा लगता है जैसे किसी ऐसे दोस्त से बात कर रही हूं जो पूरी ज़िंदगी बिछुड़ा हुआ था और अब जाकर अनायास मिल गया है। थैंक्स फॉर बीइंग देयर।“

कुछ ही देर में गगन सर का जवाब आ गया – “मुझे भी लगता है जैसे किसी बहुत अपने से बात कर रहा हूं। कभी-कभी मुझे ताज्जुब होता है, सिर्फ चैट के जरिये हम इतने नजदीक कैसे आ गए। लगता है, हर चीज के लिए एक समय होता है। ना तो समय से पहले कुछ होता है और ना ही समय के बाद।“

“ताज्जुब तो मुझे भी होता है। समय के जिक्र से मुझे कहीं पढ़ी हुई बात याद आ रही है – ‘जब हम इंतजार कर रहे होते हैं तो समय धीरे-धीरे चलता है, जब हम दु:खी होते हैं तो समय रुक सा जाता है और जब हम खुश होते हैं तो समय बहुत तेजी से भागने लगता है। मुझे लगता है, यह समय बहुत तेजी से भाग रहा है, मन करता है इस समय को जी भर कर जी लूं। मुट्ठी से रेत के ये कण फिसलते देर कहां लगेगी?”

“उमा जी, समय तो अपनी ही गति से ही चलता है, हमारी भावनाएं ही उसकी गति को धीमी या तेज कर देती हैं। अब यही देख लो, जब आपसे बात करने का इंतजार करता हूं तो समय बहुत धीरे-धीरे बीतता है, आपसे बातें करते समय कब बीत जाता है, पता ही नहीं चलता और वह क्षण इतनी जल्दी आ जाता है जब आप कहती हैं – चलती हूं, फोन रख रही हूं।“

“बिलकुल सही। आपने मुझे याद दिला दिया कि बनाया हुआ खाना वैसे ही पड़ा है। खुद को और पतिदेव को खाना खिलाना भी है। चलती हूं, अब फोन रख रही हूं।“

“देखा, मैंने कहा था ना” - उधर से गगन सर के हंसने की आवाज आई। उसे अनसुना करते हुए उन्होंने फोन बंद कर दिया और वे उठ गईं। वाकई लंच का टाइम निकला जा रहा था।

लंच करने के बाद वे जैसे ही अपने कमरे में लौटीं, वैसे ही लैंडलाइन फोन की घंटी बजने लगी। उन्होंने यह सोचते हुए फोन उठाया कि कहीं गगन सर ने गलती से उन्हें लैंडलाइन पर तो फोन नहीं लगा लिया। उफ, उन्हें फिर से झूठ बोलना पड़ेगा कि मां का फोन था। उन्होंने फोन का चोगा कान से लगाया तो उधर से आवाज आई – “हलो, मैं बोल रही हूं।“ उमा जी की सांस में सांस आई यह तो सचमुच मां का ही फोन था।

“कैसी हो मां, इस बार तो बहुत दिन बाद फोन किया।“

“मुझे बोल रही है, बहुत दिन बाद फोन किया। खुद को देख, पहले तो तू हफ्ते में एकबार फोन कर ही लिया करती थी, अब तो लगता है जैसे मां-बाबूजी को भूल ही गई है।“

“नहीं मां, ऐसी बात नहीं है। वो ट्यूशन लेती हूं ना बच्चों के, तो टाइम ही नहीं मिलता।“

“अब दिन में भी लेने लगी क्या बच्चों के ट्यूशन? तूने तो बताया था कि शाम को ही आते हैं बच्चे पढ़ने के लिए।“

“नहीं, बच्चे तो शाम को ही आते हैं पढ़ने, पर..........।“

“देख उमा, अब हम दोनों ही बहुत बूढ़े हो गए हैं। तेरे बाबूजी की तो तबीयत लगातार खराब रहने लगी है। पूछ रहे थे, उमा का फोन पहले तो जल्दी-जल्दी आ जाता था, अब क्या हो गया है?”

“कुछ नहीं हुआ है मां। अब मेरी भी उम्र बढ़ रही है। रिटायर हो चुकी हूं। दिमाग ऐसा ही हो गया है। सच कहूं आप दोनों की बहुत चिंता रहती है। अगर शारदा मौसी का बेटा आपके पास नहीं रह रहा होता तो क्या हम आपको अकेला छोड़ते, अपने साथ ही यहां ले आते। आपको जब भी हमारी जरूरत महसूस हो, बस एक फोन कर देना। ये भी आपको याद कर रहे थे। कह रहे थे, मां का फोन आए तो मेरी भी बात करा देना।“

“अच्छा तो दोनों मेरे फोन का इंतजार कर रहे थे। खुद ही फोन क्यों नहीं कर लिया?”

“जाने भी दो मां, मैं इन्हें बुलाती हूं। बाबू जी से भी बात हो सकती हो तो उनसे भी करा देना।“

“बाबूजी तो अपने कमरे में हैं। कब से सोच रहे हैं कि फोन उनके कमरे में ही शिफ्ट करा लें, पर बीमारियों के चलते संपट ही नहीं बैठ पाता। अब उनको चलने-फिरने में भी थोड़ी दिक्कत होने लगी है, इसलिए कभी बाद में करा दूंगी उनसे बात। तू जमाई बाबू को बुला, बहुत दिन बाद उनके मन में आई है सासू मां से बात करने की।“

उमा जी ने वहीं से पतिदेव को आवाज लगाई – “सुनो, मां का फोन है। आपने कहा था ना कि मां का फोन आए तो मेरी बात करा देना, आ जाओ जल्दी से।“

वे तुरंत ही कमरे में आ गए। उमा जी ने उन्हें फोन थमा दिया तो उन्होंने कहा – “हलो मां प्रणाम, आप और बाबूजी कैसे हैं?”

“चल रहा है बेटा, बुढ़ापे का शरीर है, कुछ ना कुछ तो लगा ही रहता है। कभी-कभी हाल-चाल पूछ लिया करो।“

“मैं थोड़ा काम में लगा रहता हूं, पर उमा जी तो आपको फोन कर ही लेती हैं, बहुत देर तक बातें होती रहती हैं आपसे। हालचाल मालूम हो जाते हैं।“

“पहले तो कर लेती थी उमा फोन। अब तो बस इंतजार ही करते रहना पड़ता है। इस बार तो बहुत ही लंबा समय हो गया बात हुए।“

“गलती है हमारी। चलो आप तो फोन कर ही लेती हैं। आपका आशीर्वाद मिल जाता है हमें।“

“मैं भी कहां कर पाई इतने दिनों से फोन।“

“उमा जी तो बता रही थीं कि इस बीच में कई बार आया आपका फोन। घंटी तो मैंने भी सुनी थी।“

“कान बजे होंगे जमाई बाबू आपके” – मां के हंसने की आवाज आई थी।

“हो सकता है मां। आपकी बेटी झूठ कैसे कह सकती है। मैं ही काम में लगा रहता हूं, कुछ भी समझ लेता हूं।“

“कोई बात नहीं बेटा, लेकिन तुम लोगों के अलावा कौन है हमारा। जीवन की सांझ हो चुकी है। याद कर लिया करो हमें।“

“बिलकुल, अब आगे से मैं कर लिया करूंगा आपको फोन। बाबू जी से कहना मैं याद कर रहा था। आपको उमा जी से करनी है कुछ बात?”

“नहीं, बस हालचाल ही जानने थे। हमेशा खुश रहो।“

पति महोदय ने फोन रखते हुए उमा जी से पूछा – “तुमने तो कई बार बताया था कि मां का फोन था। इतनी लंबी बातें हुईं तो मुझे भी लगा कि मां और प्रशांत के अलावा किसी और से तो इतनी लंबी बात करती नहीं तुम।“

उमा जी सकपका गई। पर खुद को संभालते हुए उन्होंने कहा – “मैं झूठ क्यों बोलूंगी? मां की उम्र हो गई है, वे भूल जाती हैं। उन्हें याद नहीं रहता कि कितनी बार उन्होंने फोन किया और कितनी बार मैंने।“

पतिदेव उनके जवाब से संतुष्ट होकर कमरे से बाहर चले गए तो उन्होंने एक लंबी सांस ली। वे धम्म से पलंग पर बैठ गईं और सोचने लगीं – वाकई यह तो अजीब सा घट रहा है कुछ। ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ कि वे मां को फोन करना भूल जाएं। गगन सर के फोन का या फिर हर दिन उनके संदेशों का इंतजार रहने लगा था उन्हें। उनका फोन आता तो फिर बातों में समय का ध्यान ही नहीं रहता था। उनके संदेशों का जवाब देने या उन्हें संदेश भेजने और फिर उनकी टिप्पणियों का इंतजार करने में ही वे मशगूल हो गई थीं। खाली समय होता तो वे उनसे हुई बातों और चर्चा को मन ही मन दोहराने में लगी रहतीं। सारा मन और सारा समय जैसे गगन सर को दे दिया था उन्होंने। उन्हें अपने आप पर हैरत हो आई। ऐसी तो कभी नहीं थी वे। फिर पतिदेव से झूठ बोलने में उन्हें जरा भी तो हिचक नहीं होती थी। कितनी बातें बनाना सीख गई थीं वे। क्या किसी से भावनात्मक रूप से जुड़ जाने से इतना बदल जाता है इंसान? उन्होंने मन ही मन तय किया कि वे अब खुद को संभालने का प्रयास करेंगी। जहां तक हो सकेगा गगन सर से संपर्क कम से कम रखेंगी और अन्य जरूरी बातों पर भी अपना ध्यान लगाएंगी।

वे यह निश्चय करके उठी ही थीं कि उन्हें अपने मोबाइल पर एक मैसेज़ चमकता दिखाई दिया। उन्होंने उसे खोल कर देखा। गगन सर ने लिखा था – “मैं आपको फोन कर सकता हूं क्या?”

“अभी? कोई जरूरी बात है क्या” – उमा जी ने टाइप किया।

“नहीं, ऐसी कोई जरूरी बात तो नहीं है, पर आपकी आवाज सुने बहुत दिन हो गए हैं। सोचा आप इस समय फ्री हो तो आपसे बात कर लूं।“

“फ्री नहीं हूं मैं। फिर कभी बात कर लेंगे।“

“बस एक-दो मिनट की ही तो बात है।“

“मैंने कहा ना कि अभी फ्री नहीं हूं। एक बात आपसे कहनी थी गगन सर। आप प्लीज़ मुझे फोन न करें तो ठीक रहेगा। मेरे पास जब भी समय होगा मैं ही आपको फोन कर लिया करूंगी।“

“कोई बात हुई है क्या?”

“आपको तो पता है, हमारी बात लंबी खिंच जाती है। इतनी देर बात करती हूं तो पतिदेव पूछ ही लेते हैं, किसका फोन था। बार-बार उन्हें क्या बताऊं?”

“ठीक है, मैं आपको कभी किसी परेशानी में नहीं डालना चाहूंगा। पर, आप तो फोन करेंगी ना? कहीं ऐसा तो नहीं कि मैं आपकी आवाज सुनने के लिए तरसता ही रह जाऊं।“

“कहा ना करूंगी।“

“अच्छा आपको मैसेज तो भेज सकता हूं। उसी के बहाने आपसे बातें तो हो जाती हैं। एक बहुत अच्छा मैसेज़ है मेरे पास।“

“मैसेज़ भेजने के लिए मैंने मना किया है क्या आपको? जरूर भेजिए, मैं इंतजार करती हूं।“

“ठीक है।“

उमा जी मोबाइल फोन रख कर बाहर चली गईं। थोड़ी देर में लौटीं तो आते ही उत्सुकतावश उन्होंने मैसेज बॉक्स खोल लिया। बहुत ही अच्छा और अर्थपूर्ण मैसेज था गगन सर का – “सच्चा दोस्त मिलना किस्मत की बात होती है। ऐसा दोस्त आपके दिल पर अपने कदमों के न मिटने वाले निशान छोड़ता है और आप कहीं भी रहें उसकी याद हमेशा आपके साथ रहती है।“

उमा जी को मैसेज़ बहुत अच्छा लगा था। उन्होंने लिखा – “यह तो सच है कि सच्चा दोस्त मिलना किस्मत की बात होती है। आपकी किस्मत क्या कहती है, आपको मिला कोई सच्चा दोस्त?”

“मेरा सच्चा दोस्त ही मुझसे मुझसे पूछ रहा है कि मुझे सच्चा दोस्त मिला क्या।“

“तो आप मुझे सच्चा दोस्त समझते हैं?”

“मैं कहीं भी रहता हूं आपकी याद हमेशा मेरे साथ बनी रहती है तो आपमें मुझे एक सच्चा दोस्त मिला है ना?”

“आप मुझे अपना सच्चा दोस्त मानते हैं, यह मेरी खुशकिस्मती है।“

“सुनो मेरे सच्चे दोस्त, मुझे अपने दिल पर आपके कदमों के निशान नहीं चाहिए।“

“तो फिर क्या चाहिए?”

“आपके दिल में मेरे लिए जो जगह बनी है, वह हमेशा बनी रहनी चाहिए बस।“

“वो तो मुझे भी चाहिए। आपके दिल में कितनी जगह है मेरे लिए?”

“सारी जगह आपके लिए ही है, जितनी चाहो उस पर अपना अधिकार समझ सकती हो।“

“अच्छा, कितना बड़ा है आपका दिल?”

“आकाश जितना, असीम। मेरे दिल की थाह लेनी हो तो पूरी सृष्टि बनना पड़ेगा आपको।“

“ओह, अब बस भी करो गगन सर। आपकी ऐसी ही बातें मुझे आकाश में उड़ाए रखती हैं। बड़ी मुश्किल से पैर जमीन पर पड़ते हैं।“

“तो उड़ती रहो ना आकाश में परी बन कर।“

“पता नहीं, मैं किस अनुभव से गुजर रही हूं आजकल। लगता है कुछ बस में नहीं है मेरे। कभी लगता है, मैं जीत गई हूं और कभी लगता है मैं हारती चली जा रही हूं, वह सबकुछ जो अब तक मेरे नियंत्रण में था।“

“एक बात कहूं उमा जी, प्रेम एक ऐसा अनुभव है जो हमें कभी हारने नहीं देता। यह सिर्फ जीत देता है, सिर्फ जीत।“

“मैं नहीं मानती। कभी-कभी खुद से ही डर जाती हूं। मैंने पुष्पा को बुरी तरह हारते देखा है, मैंने सरिता को उस छोटी सी उम्र में अपनी भावनाएं दांव पर लगाते हुए महसूस किया है।“

“आपसे जुड़ा यह भावनात्मक संबंध मेरा सबसे बड़ा धन बन गया है उमा जी, इसे मैंने दिल की तिजोरी में संभाल कर रख लिया है।“

“मीठी जुबान, अच्छे व्यवहार, खुशमिजाज और दूसरे के मन की बातें आसानी से समझ लेने वाले लोग किसी के भी दिल में सहज ही जगह बना लेते हैं, जैसे आप। अच्छा, यह बताइये आप मेरे मन की बातें समझ कैसे लेते हैं?”

“बहुत सरल पहेली पूछी है आपने, आपका दिल अब मेरा दिल हो गया है ना इसलिए।“

चाय का समय हो गया है, मैं अब चलती हूं। उमा जी ने गगन सर के जवाब का इंतजार किए बिना फोन बंद कर दिया। सच तो यह था कि गगन सर की बातें उन्हें किसी और ही संसार में ले जा रही थीं। उफ, उनका यह कहना कि मेरा दिल अब उनका दिल हो गया है, उनके भीतर एक ऐसी थरथराहट पैदा कर गया था जो उन्हें अस्थिर किए दे रही थी। उन्होंने मैसेज बॉक्स बंद कर दिया और आंखें बंद करके भीतर की उस प्राण-ऊर्जा से उत्पन्न थरथराहट को शिद्दत से महसूस करने लगीं।

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