छूटा हुआ कुछ
डा. रमाकांत शर्मा
6.
चार दिन बीत चुके थे, गगन सर का फोन नहीं आया। इस बीच लैंडलाइन फोन की दो-तीन बार घंटी बजी थी। उन्होंने तुरंत ही फोन उठाया, पर गगन सर का फोन नहीं होने की वजह से उन्हें निराशा ही हाथ लगी। एक बार किसी स्टूडेंट की मम्मी का फोन यह बताने के लिए आया था कि उनका बेटा उस दिन ट्यूशन के लिए नहीं आ पाएगा और दो बार तो रांग नंबर था, उन्हें झुंझलाहट होने लगी।
इंतजार की इंतिहा में उन्हें यह सोचकर खुद पर हंसी आने लगी कि जिन गगन सर से उन्होंने स्कूल में कभी काम की बातों के अलावा कोई बात नहीं की, वे उन्हें फिर से फोन क्यों करने लगे। उन्हें फोन-लिस्ट मिल गई होगी और फिर समय काटने के लिए उन्होंने सभी को बारी-बारी से फोन किया होगा और वही सब कहा होगा जो उनसे कहा था। वे बेकार में ही उनके फोन का इंतजार कर रही थीं। गगन सर कौनसे उनके घनिष्ठ मित्र रहे हैं जो उन्हें इतनी बेताबी से उनके फोन का इंतजार करना चाहिए। उनका फोन आए या नहीं उन्हें इससे क्या।
दो दिन ऐसे ही और निकल गए थे। उमा जी को विश्वास हो गया था कि अब गगन सर का फोन नहीं आएगा, पर मन ही मन वे सोचती रहती थीं कि काश उनका फोन आ जाए। उस दिन जब फोन की घंटी बजी तो उन्हें लगा कोई रांग नंबर होगा क्योंकि इस फोन पर ज्यादातर रांग नंबर ही आते थे, पर जब उन्होंने फोन उठाकर हलो कहा तो उधर से आवाज आई – “हलो उमा जी कैसी हैं आप?”
उमा जी ने कहा था – “अरे, गगन सर आप? आप तो जल्दी ही फोन करने वाले थे।‘
‘ओह, तो इसका मतलब यह हुआ कि आप मेरे फोन का इंतजार कर रही थीं, है ना?”
“नहीं, वैसी बात नहीं है, आपने कहा था ..........।‘
“अच्छा, तो आप मेरे फोन का इंतजार नहीं कर रही थीं, ठीक है?”
“नहीं वो बात भी नहीं है, आपने कहा था कि फिर फोन करूंगा तो सोच रही थी......।“
“जाने भी दीजिए। इधर कुछ व्यस्त रहा तो फोन करने में देर हो गई। बस, सोच रहा था कि जैसे ही समय मिले आपसे बात करूं।“
“कोई खास बात है क्या?”
“आपसे बात करना ही खास बात है, आपकी आवाज सुनकर ही अच्छा लगता है।“
“मेरी आवाज में तो ऐसा कुछ भी नहीं है। बहुत सामान्य सी आवाज है।“
“आपको नहीं पता उमा जी, आपकी आवाज इतनी मीठी है कि बस सुनते रहो।“
“मुझे बना रहे हो ना आप? कभी किसी ने नहीं कहा कि मेरी आवाज मधुर है।“
“आश्चर्य है, किसी ने नहीं कहा? सचमुच आपकी आवाज बहुत प्यारी है? ऐसी आवाज गॉड-गिफ्ट है जो भगवान किसी विशेष व्यक्ति को ही गिफ्ट करते हैं।“
“लो, अब आपने मुझे विशेष भी बना दिया। हो क्या रहा है आपको? मैं बहुत ही साधारण, अपने में डूबी रहने वाली और भीड़ में खुद को अजनबी लगने वाली महिला रही हूं।“
“मैं नहीं मानता। आप सचमुच विशेष हैं, यह बात और है कि आपने न तो खुद यह महसूस किया और ना ही किसी को करने दिया।“
“कैसी बातें कर रहे हैं आप? अगर इतनी ही विशेष होती मैं तो किसी को तो इसका अहसास हुआ होता।“
“किसी की तो मैं नहीं जानता। हां, मुझे तो शुरू में ही इसका अहसास हो गया था। मैंने उस दिन भी कहा था आपका व्यक्तित्व और व्यवहार दोनों बहुत आकर्षक हैं।“
उमा जी ने हंसते हुए कहा था – “मैं इतनी भी बेवकूफ नहीं हूं जो आपकी बातों में आ जाऊं।“
“मेरी बातों में आने की जरूरत नहीं है। आप खुद में इतनी सिमटी रहीं कि आपने ना तो खुद को समझा और ना ही किसी और को जानने-समझने दिया।“
“हां, यह सच है कि मैं अपने स्वभाव की वजह से कभी किसी से खुलकर बात नहीं कर पाई। पर, किसी ने मुझसे भी खुलकर बात नहीं की।“
“मैं कर रहा हूं ना। आपको बुरा ना लगे तो खुलकर कुछ कहूं?”
“मुझे क्यों बुरा लगने लगा?”
“तो सुनो, मुझे आप इतनी अच्छी लगती थीं कि मैंने आपको पटाने की सोची थी।“
“यह क्या कह रहे हैं आप?’
“आपने ही तो खुलकर कहने की इजाजत दी है।“
“शर्म नहीं आती आपको, मैं शादीशुदा हूं, तब भी थी।“
“मैं कौनसा आपको भगाकर ले जाने की सोच रहा था। क्या कोई शादीशुदा व्यक्ति किसी को अच्छा नहीं लग सकता?”
“लग सकता है, पर....... पटाना?”
“देखिए उमा जी, मैं सिर्फ आपसे दोस्ती करना चाहता था। आप भी मुझे अपना दोस्त समझें, बस इसके लिए ही प्रयास करना चाहता था। हो सकता है ‘पटाना’ शब्द यहां बहुत सटीक न हो, पर इच्छा तो यही थी कि आप भी मेरे बारे में वही महसूस करें जो मैं आपके बारे में महसूस करता रहा।“
“क्या महसूस करते रहे?”
‘यही कि मैं आपका दोस्त नहीं विशेष दोस्त बनूं। मैं आपकी और आप मेरी परवाह करें। आपके सुख-दु:ख का ऐसा साथी बनूं कि आप अपनी सभी बातें मेरे साथ शेयर कर सकें। मैं आपके ख्यालों में रहूं और आप मेरे। कभी हम साथ घूम लें, कहीं बैठकर कुछ खा-पी लें। आपके दिल में मेरे लिए एक विशेष जगह हो। मैं दूर रहकर भी आपको महसूस कर सकूं और आप मुझे। एक-दूसरे के लिए विकल हों हम.......।“
“बस करिए, बहुत हो गया। लेकिन मैंने ऐसा कभी महसूस नहीं किया कि आप .....।“
“आपके स्वभाव ने कभी ऐसा करने नहीं दिया। मैंने कई बार पहल करने की सोची, पर खुद ही पीछे हट गया। जब मैंने वैसी कोशिश की ही नहीं तो आपको महसूस कैसे होता?”
“फिर, अब क्यों?”
“उम्र हो गई है अब मेरी भी और आपकी भी। दोनों ही रिटायर हो चुके हैं। पता नहीं, कब ऊपरवाले का बुलावा आ जाए। मैंने तय किया है कि अब आगे की ज़िंदगी खुलकर जियूंगा। अपनी छोटी-मोटी इच्छाओं को दबाऊंगा नहीं। मैंने महसूस किया कि मेरी उन दबी हुई इच्छाओं में कहीं आप भी शामिल रहीं। सोचा, एकबार आपसे खुलकर सबकुछ कह लूं। मुझे इसमें कुछ गलत भी नहीं लगा। सिर्फ अपनी भावनाएं ही तो आप तक पहुंचाना चाहता था।“
“तो आपने अपनी भावनाएं मुझ तक पहुंचा दीं। पर, आपने मेरी भावनाओं के बारे में नहीं सोचा कि मुझे यह सब कैसा लगेगा।“
“हां, सोचा। मुझे अंदाजा था कि आपने अपनी अब तक कि जिंदगी में किसी के अंतर्मन में शायद ही कभी झांका हो और ना ही किसी को अपने अंतर्मन में झांकने दिया हो। सच कहूं, आपको उस दिन फोन करने का मकसद मेरी यह कोशिश भी थी कि आपको अपने खोल से बाहर निकाल सकूं। आपने अपने ऊपर एक अनचाहा आवरण ओढ़ रखा है, उमा जी।“
“हूं, शायद आप सही कह रहे हैं। पर, रिटायर होने के बाद शांत ज़िंदगी जीना चाहती हूं मैं। मेरा परिवार ही सबकुछ है मेरे लिए।“
“मैं कब कह रहा हूं कि आप अपना परिवार छोड़ दो। लेकिन, अब जब आप निस्संकोच अपने आप से बाहर निकल सकती हो तो क्यों नहीं? सारी मर्यादाएं निभाते हुए भी शेष ज़िंदगी को बेहतर और खुशनुमा बनाने से कौन रोकता है आपको? आप खुद और कोई नहीं।“
“मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। क्या चाहते हैं आप?”
मैं जो चाहता था वह तो मैंने कर दिया है। आप तक अपने मन की भावनाएं पहुंचा कर मुझे ऐसा लग रहा है, जैसे एक अधूरा बड़ा काम पूरा कर लिया हो। सच कहूं, आइ लव यू उमा जी।“
उमा जी के पूरे शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई। उनका पूरा शरीर कांपने लगा। बिना कुछ बोले कांपते हाथों से उन्होने फोन रख दिया और वे पलंग पर लेट गईं। लेटे हुए भी उनका पूरा शरीर थरथराता रहा।
इस उम्र में उनसे किसी ने वे तीन मैजिक शब्द कहे थे जो उस उम्र में उनके लिए शायद बहुत मायने रखते। लेकिन, गगन सर के ये तीन शब्द इस उम्र में भी उनके भीतर भावनाओं का ज्वार पैदा कर गए थे। उफ, कैसा नशा था यह, जो हर पल उन पर छाया हुआ था। वे तो सरिता नहीं बन पाई थीं, पर कोई गोविंद था उनके जीवन में जो उन्हें प्यार करता था और गली में न सही, उनके आसपास चक्कर काटता रहा था। इस बात का अहसास ही उन्हें अजीब से आनंद से भरे दे रहा था कि वे भी किसी की प्रेम पात्र रही हैं और वह आज भी उन्हें उन्हीं भावनाओं के साथ अपने दिल में बसाए है। फिर, गगन सर जो सबके हीरो रहे थे और जो उन्हें भी अच्छे लगते थे, आज उनके गोविंद बने उनसे प्रेम का खुलकर इजहार कर रहे हैं, यह कोई मामूली बात नहीं थी। यह ख्याल ही उन्हें एक सुखद अनुभूति से भरे दे रहा था।
कई दिन निकल गए, लेकिन गगन सर का फोन नहीं आया। उमा जी सोच रही थीं, कहीं वे उनके अचानक फोन काट देने की वजह से नाराज तो नहीं हो गए। उनका मन बार-बार कर रहा था कि वे खुद ही उन्हें फोन कर लें, पर संकोच के मारे वे फोन नहीं कर पा रही थीं। वे खोई-खोई सी रहने लगीं। पतिदेव ने एक बार उनसे पूछा भी – “उमा जी तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?”
“क्या हुआ है मेरी तबीयत को, कुछ भी तो नहीं।“
“नहीं, आप वैसे ही बहुत कम बोलती हैं, पर कुछ दिनों से देख रहा हूं, लगभग चुप ही हो गई हैं। आजकल तो आपको समय पर चाय देने का भी होश नहीं रहता। पता नहीं आपकी समय की वह पाबंदी कहां खो गई है। मैं ही याद दिलाता हूं, तभी चाय बनाती हैं आप।“
“नहीं, नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है। पत्रिकाओं में कोई कहानी ऐसी पढ़ लेती हूं जो मन को छू जाती है तो उसी के बारे में सोचती रहती हूं।“
“क्या बात है, बड़ी अच्छी पाठिका मिल गई है कहानियों को। अच्छा, आज भी लैंडलाइन फोन की घंटी बजी थी, किसका फोन था?”
“उन्हीं गगन सर का फोन फिर से आया था, उनसे वही स्कूल के जमाने की बातें छिड़ गईं। काफी देर तक बात करते रहे।“
“पहले तो कभी इन गगन सर का फोन नहीं आया आपके पास।“
“पहले की बात और थी, सब अपने में व्यस्त रहते थे, समय ही किसके पास था। अब रिटायर होने के बाद समय ही समय है उनके पास भी और मेरे पास भी। टाइम काटने के लिए बातें करते रहते हैं।“
“हां, यह बात तो है। घर में कोई तुमसे बातें करने वाला है नहीं और मैं भी काम में लगा रहता हूं।“
“छोड़ो ना इन बातों को, आप तो यह बताओ कि शाम को क्या खाना बनाऊं?”
“कुछ भी बना लो” – उन्होंने हमेशा की तरह कहा और फिर से अपने काम में डूब गए।
उमा जी ने राहत की सांस ली। वे नहीं चाहती थीं कि उनके पति को उनके मन की हालत का जरा भी अंदाजा लगे। उन्होंने सोच लिया कि इसके लिए उन्हें थोड़ी सावधानी बरतनी होगी।
उन्हें गगन सर के फोन का इंतजार रहता, पर फोन की घंटी का क्या किया जाए वह तो इतनी तेज बजती थी कि पूरा घर गूंज जाता था। अजीब से पशोपेश में पड़ गई थीं वे, चाहती थीं कि गगन सर का फोन आए, पर उनके पतिदेव को उसका पता न चले। ऐसी बातों को छुपाने का प्रयत्न करना भी एक चुनौती से कम नहीं लग रहा था और उस चुनौती से निपटना भी अनोखे अहसास से भरे दे रहा था।
उस दिन जब फोन उठाने पर गगन सर की आवाज सुनाई दी तो वे रोमांचित हो उठीं। वे पूछ रहे थे – “कैसी हैं आप?”
“मैं ठीक हूं, आप कैसे हैं?” उन्हें अपनी आवाज किसी गहरे कुंए से आती लगी।
“बिलकुल ठीक, आपने हाल पूछा तो और भी ठीक। मेरे फोन का इंतजार किया आपने?”
“हां, नहीं.... लेकिन ......।“
“सच कहूं, फोन करने की हिम्मत नहीं हो रही थी। उस दिन मैंने आपसे जो कुछ खुलकर कह दिया था, पता नहीं आपने उसे किस रूप में लिया हो। नाराज तो नहीं हो गईं ना आप?”
“नाराज..... अगर नाराज होती तो क्या इस समय आपसे बात कर रही होती। सिर्फ भावनाएं ही तो व्यक्त कीं आपने। आपने यह सब किसी गलत इरादे से तो कहा नहीं था।“
“बिलकुल ठीक समझीं आप? क्या गलत इरादा होगा इसमें? दोनों इतनी दूर बैठे हैं। मैंने तो कई साल से आपको देखा भी नहीं है।“
“आपके रिटायरमेंट के बाद मैंने भी कहां देखा है आपको।“
“वही तो कह रहा हूं मैं, भावनाओं के आदान-प्रदान में गलत क्या है? फिर रिटायरमेंट होने के बाद की उम्र में........। एक बात और, सच्चा स्नेह करने वाला कभी भी आपका बुरा नहीं चाहेगा। वह आपकी फिक्र करेगा और भावनात्मक रूप से ही सही, सुख-दु:ख में आपका साथ देगा।“
“हां, यह तो है। किसी अपने का साथ हो तो सुख बढ़ जाता है और दु:ख हो तो बंट जाता है।“
“सही कहा आपने। हम फोन के जरिए ही सही, एक-दूसरे के दिल की सुन सकते हैं और अपने सुख-दु:ख बांट सकते हैं। इसमें किसी को क्या ऐतराज हो सकता है भला।“
“हां, इससे मुझे ध्यान आया, आप लैंड-लाइन पर फोन न करें आगे से।“
“तो फिर?”
“मैं आपको अपना मोबाइल नंबर देती हूं। आप इसी पर फोन करिए। मैं इसे वाइब्रेटर पर रखूंगी और फिर कहीं भी बैठकर बात कर सकूंगी।“
“यह तो बहुत ही अच्छा रहेगा। मोबाइल पर हम कभी भी चैट भी कर सकते हैं। मैं आपको आपके मोबाइल पर मिस्ड कॉल दे दूंगा आप भी मेरा नंबर सेव कर लीजिए।“
“ठीक है, मेरा मोबाइल नं...............है। नोट किया आपने?”
“हां, मैं आपको अपने मोबाइल फोन से मिस्ड कॉल दे रहा हूं, घंटी आई?”
“आ गई, मैं इसे सेव कर रही हूं। आगे से इसी का यूज करेंगे।“
“ओ.के. अब मैं आपको ‘गुड मार्निंग’ और ‘गुडनाइट’ जैसे संदेश भी भेज सकूंगा। यह तो बहुत अच्छा हो गया।“
“ठीक है, मैं अब फोन बंद कर रही हूं।“
उमा जी ने यह कहकर फोन बंद कर दिया और अपने कमरे से निकल कर लिविंग रूम में आ गईं। डाइनिंग टेबिल पर बैठे काम कर रहे उनके पति ने उन्हें बाहर आया देखकर काम करते-करते पूछा - “किसका फोन था, उमा जी?”
उमा जी से कहते नहीं बना था कि गगन सर का फोन था। उन्होंने कुछ हिचकते हुए कहा – “मां का फोन था।“
“हां, आपकी लंबी बात हो रही थी तो मुझे लग ही रहा था कि मां का फोन होगा। बहुत दिन हो गए उनसे बात किए, मेरी भी बात करा देतीं।“
“आप काम में लगे थे, इसलिए मैंने आपकी बात नहीं कराई। वैसे वे आपके बारे में पूछ रही थीं, मैंने बता दिया कि ठीक हैं और हमेशा की तरह अपने काम में डूबे हैं।“
“चलो, कोई बात नहीं। अब अगर उनका फोन आए तो मेरी भी बात करा देना।“
“ठीक है, करा दूंगी।“
उमा जी किचन में आ गईं। काम करते समय उन्होंने देखा उनके हाथ कांप रहे थे। आज शायद पहली बार उन्होंने अपने पति से झूठ बोला था। एक ओर उनका मन उन्हें धिक्कार रहा था, तो दूसरी ओर उन्होंने महसूस किया कि इस झूठ बोलने में भी अनोखा आनंद छुपा था। उन्होंने सोचा, प्रेमी जोड़े जब एक-दूसरे से मिलने, बात करने के लिए इस तरह के झूठ बोलते होंगे तो उन्हें इसी तरह का आनंद मिलता होगा। उन्हें अपनी सोच पर हंसी आने लगी थी, पर जो सच था, वह था।
उमा जी को लगा कि उन्होंने आगे से मोबाइल पर बात करने का निर्णय लेकर बहुत अच्छा किया था। उनके पति को पता नहीं चलेगा कि गगन सर का फोन आया है उनके पास। उन्हें बार-बार जवाब देने और झूठ बोलने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। गगन सर सही कह रहे थे कि मोबाइल पर जब चाहे संदेश भी भेजे जा सकेंगे। वे रोमांच से भर उठीं।