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छूटा हुआ कुछ - 11

छूटा हुआ कुछ

डा. रमाकांत शर्मा

11.

प्रशांत का फोन बहुत दिन बाद आया था। वह और फ्लोरा बहुत देर तक उनसे बातें करते रहे। उनका आग्रह था कि वे कुछ दिनों के लिए ही सही, एक बार यूएस आएं तो। उमा जी ने आवाज लगा कर पतिदेव को भी बुला लिया। प्रशांत और फ्लोरा से वे भी बहुत देर तक बातें करते रहे। यूएस के सारे समाचार लेते रहे। उन दोनों ने उनसे भी आग्रह किया था कि वे यूएस आ जाएं।

उमा जी को यह सुनकर अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ कि पतिदेव ने बिना टाल-मटोल किए शीघ्र ही यूएस आने का आश्वासन दे डाला था। उमा जी से रहा नहीं गया था, फोन बंद होते ही उन्होंने उनसे पूछा – “क्या बात है, आज आपने बहुत सारा काम होने का हवाला देकर यह नहीं कहा कि फिलहाल हमारा यूएस आना संभव नहीं है।“

“तुम्हारा मन नहीं करता बच्चों से मिलने का?” उलटे पतिदेव ने उनसे पूछा।

“क्यों मेरा मन क्यों नहीं करेगा बच्चों से मिलने का? क्यों पूछा आपने? आप ही अपने काम में डूबे रहते हैं।“

“हां, मैं तो अपने काम में डूबा रहता हूं, पर पहले की तरह आजकल आपने बच्चों के बारे में बातें करना बंद सा कर दिया है, इसलिए। पहले तो थोड़ा भी समय हो जाता तो तुम बेचैन हो जाती थीं और खुद ही प्रशांत को फोन कर लिया करती थीं। अब तो प्रशांत को ही फोन करना पड़ता है।“

“वो तो इसलिए कि ...............।“

“मैं तुम्हारी मन:स्थिति समझ सकता हूं उमा जी। अकलेपन की आदत हो गई है तुम्हें। बस, खुद में डूबी रहती हो तुम। अपने कमरे में से भी कभी-कभी ही निकलती हो। अब तो समय पर चाय बनाना भी याद नहीं रहता तुम्हें। सोचता हूं, मैं भी दोषी हूं इस सबके लिए। शुरू से काम को ही ज़िंदगी बना लिया मैंने। कुछ दिनों के लिए यह सब छोड़-छाड़ कर यूएस चलते हैं, मन बदल जाएगा तुम्हारा।“

“ठीक है, प्रोग्राम बना लीजिए। मुझे क्या है, चल दूंगी आपके साथ।“

“हां, ये हाथ के काम निपटा लूं, फिर प्रोग्राम बनाते हैं।“

उमा जी सोच में पड़ गईं। बच्चों के पास जाने और यूएस जैसी जगह देखने का जरा भी उत्साह क्यों नहीं पनप रहा था उनके अंदर। बस उनकी सोच में यही आ रहा था कि यूएस जाने पर वे गगन सर से संपर्क नहीं रख पाएंगी। उनका मोबाइल वहां काम करना बंद कर देगा और फिर बच्चों तथा पतिदेव के हमेशा उनके साथ रहने की वजह से भी यह संभव नहीं हो पाएगा। यूएस जाना, मतलब कम से कम एक माह के लिए तो उन्हें जाना ही पड़ेगा। इतने लंबे समय वे गगन सर से बात या चैट किए बिना कैसे रह पाएंगी और गगन सर को भी कितना बुरा लगेगा, वे तो बुरी तरह परेशान हो जाएंगे। उन्हें समझाना भी मुश्किल हो जाएगा। वे खुद को ही कहां समझा पा रही थीं। लेकिन, वहां जाना टाल भी तो नहीं सकती थीं वे। प्रोग्राम बनते ही उन्हें जी कड़ा करके गगन सर को बताना ही होगा। वे उन्हें बिना बताए यूएस जाकर गोविंद और पुष्पा की कहानी को दोहराना नहीं चाहती थीं।

पूरे दिन उमा जी का मन उखड़ा-उखड़ा सा रहा। वे अभी से यूएस के प्रोग्राम के बारे में गगन सर को बता भी नहीं सकती थीं। कबका प्रोग्राम बनता है, पता नहीं। अभी से उन्हें परेशान करने का कोई मतलब भी नहीं था। आज सुबह से वे गगन सर का मैसेज भी नहीं देख पाई थीं। जरूर वे बेचैन हो रहे होंगे, यह सोचकर उन्होंने हाथ में मोबाइल उठा लिया।

गगन सर ने लिखा था – “गुडमार्निंग उमा जी, जीवन का सबसे मधुर पल किसी का गुडमार्निंग संदेश प्राप्त होना नहीं है, बल्कि यह सोचकर जीवन का वह पल मधुर हो उठता है कि कोई है जो हमें याद करता है और हर दिन अपनी शुभकामनाओं से हमारे दिन को संवारता है।“

गगन सर का संदेश पढ़कर उमा जी भावुक हो उठीं। वाकई कोई था जो उन्हें मन से याद करता था और बिना नागा हर दिन उन्हें अपनी दिली शुभकामनाओं से सराबोर कर देता था। जवाब में उन्होंने “गुडमार्निंग गगन सर” लिखा ही था कि उनका एक संदेश और दिखाई देने लगा – “उमा जी, अभी-अभी एक मित्र ने यह खूबसूरत संदेश भेजा है, सोचा आपको फारवर्ड कर दूं – जब आप खुद को तराशते हैं तो दुनिया आपको तलाशती है।“

सचमुच संदेश बहुत अच्छा था। उमा जी ने उसके जवाब में लिखा – “आपका तो पूरा व्यक्तित्व ही तराशा हुआ है, सभी लोग पसंद करते हैं आपको, इसलिए जरूर तलाशते रहते होंगे आपको।“

“अरे वाह, मुझे तो पता ही नहीं था कि लोग मुझे तलाशते रहते हैं। अच्छा यह बताइये, आपने तलाशा मुझे?”

“मुझे तो आपको तलाशने की जरूरत ही नहीं पड़ी, आप तो वर्षों बाद फोन करके खुद ही प्रकट हो गए।“

“अच्छा, इसका मतलब मैंने तलाश लिया आपको?”

“लगता तो ऐसा ही है। नहीं है क्या ऐसा?”

“आप कहती हैं सब मुझे तलाशते हैं, चलो मान लेते हैं। पर जरा सोचो जिसे सब तलाशते हैं वह आपको तलाश रहा है।“

“ऐसा क्या है मुझमें?”

“कुछ तो जरूर है जिसने मुझे आपकी तलाश में लगाए रखा, है ना?”

“मुझे क्या पता, पर मेरे लिए यह खुशी की बात जरूर है कि आप जैसा तराशा हुआ व्यक्ति जिसे सभी अध्यापिकाएं अपना हीरों समझती रही हों, मुझे तलाशने में लग गया। अच्छा बताइये, हो गई आपकी तलाश पूरी?”

“नहीं, मैं आपको अभी भी तलाश रहा हूं। आपकी इतनी सारी खूबियां सामने आ रही हैं कि मैं हतप्रभ हूं। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि एक रिज़र्व सी अपने में डूबी लड़की के भीतर इतना कुछ कहने-सुनने के लिए भरा है। इतनी जिजिविषा है उसमें। वह ज़िंदगी को भरपूर जीना चाहती है और आकाश की ऊंचाईयां नापने के लिए उड़ना चाहती है। उसके भीतर प्यार का सागर हिलोरें ले रहा है जिसकी अनंत गहराईयों को वह अपने में चुपचाप समाये हुए हैं, जिसके भीतर भावनाओं का तूफान है, जिसके सीने में भी धड़कता दिल है, जो भावनाहीन पाषाण की आकर्षक मूर्ति नहीं है, उसकी प्राण-प्रतिष्ठा हो चुकी है और खुद जिंदगी उसमें सांस ले रही है..........।“

गगन सर लिखे जा रहे थे और उनका एक-एक शब्द उमा जी को आह्लादित करता जा रहा था। वे भूल गई थीं कि यूएस जाने का उनका प्रोग्राम उन्हें व्यथित किए है। बस, वे खुद को ऐसी वादियों में खड़ा महसूस कर रही थीं जहां चारों ओर अथाह स्वर्गिक सौंदर्य बिखरा पड़ा था जिसमें वे लिपटती चली जा रही थीं।

उमा जी की उंगलियां अपने आप की-बोर्ड पर चलने लगीं – “गगन सर, मैंने पढ़ा था कि रिश्ते सूरजमुखी के फूल जैसे होते हैं, जिधर प्यार मिलता है उधर ही घूम जाते हैं। अब मैं खुद इसे महसूस कर रही हूं।“

“हां, मैंने भी कहीं पढ़ा था यह। बिलकुल सच है, रिश्ते का सूरजमुखी प्यार के सूरज की तरफ स्वाभाविक रूप से घूम जाता है। पर, सोचने की बात यह है कि जब सूरज दिखाई नहीं देता तो सूरजमुखी का फूल किधर घूमता होगा?”

“आप किसी और की तरफ घूमने का इरादा तो नहीं कर रहे?”

“जब आपके प्यार के सूरज की रोशनी हमेशा चमकती रहती हो तो मेरा सूरजमुखी और किधर जाएगा?”

“चलिए, अभी सचमुच सूरज चढ़ आया है, बहुत काम पड़े हैं मेरे लिए।“

फोन बंद करने के बाद उमा जी के मन में यूएस जाने को लेकर फिर से हौला उठने लगा। गगन सर से चैट करना कितना सुखद लगता है उन्हें। सुबह-सुबह जो मूड फ्रेश होता है, वह रात तक बना रहता है। वे दोनों ही तो एक-दूसरे से चैट करने के लिए व्याकुल रहते हैं। रोज-रोज फोन पर बात करना संभव नहीं होता, कभी-कभी फोन पर जब बात हो जाती है तो बोनस जैसा लगता है। यूएस जाने के बाद उनकी सुबह कितनी खामोश हो जाएगी और शाम कितनी उदास।

यह सब खुद को सोचते देख उमा जी हैरान हो आईं। उनके दिल में अपने बेटे प्रशांत से इतने लंबे समय के बाद मिलने और यूएस जैसा देश घूमने के उत्साह के बजाय गगन सर से संपर्क टूट जाने का भय समाया हुआ था। कितना बदल गई थीं वे। क्या किसी से भावनात्मक रूप से जुड़ जाने का मतलब दूसरे सारे रिश्तों को पीछे छोड़ देना है? क्या यह रिश्ता खून के रिश्तों से भी बढ़कर है? क्या इस रिश्ते का आनंद इतना ज्यादा है कि अन्य सभी आनंद फीके पड़ जाते हैं? इतनी मजबूत कैसे बन जाती है प्रेम की यह गांठ?

उमा जी थोड़ी भ्रमित हो उठी थीं। जिन गगन सर को उन्होंने वर्षों से देखा नहीं था और जिनके बारे में कभी कुछ सोचा भी नहीं था, उनकी बातों में झलकते प्यार, सम्मान, सहयोग, समर्पण और स्वीकार्यता ने उन्हें उनका इतना घनिष्ठ बना दिया था। वे आजकल उनके अलावा कुछ भी और सोच नहीं पा रही थीं। उनकी पूरी दुनिया सिर्फ और सिर्फ गगन सर तक सिमट कर रह गई थी। खून के रिश्ते से भी ऊपर कब और कैसे हो गया यह रिश्ता, वो भी एक-दूसरे से प्रत्यक्ष संपर्क के बिना? उन्हें खुद से भय लगने लगा, कहां ले जाकर छोड़ेगा उन्हें यह भावनात्मक रिश्ता? उन्होंने घबराकर आंखें मूंद लीं।

उस दिन उमा जी ठीक से सो नहीं पाईं। वे सोचती रही थीं कि कहीं उनके रिश्तों के बीच का संतुलन डगमगा तो नहीं रहा है। क्या वे अति भावुकता से काम ले रही हैं। क्या जिस प्यार के अहसास से वे गुजरना चाहती थीं, उसे सचनुच में महसूस कर लिया था उन्होंने? यह प्रेम है या गगन सर के व्यक्तित्व के प्रति आकर्षण। अगर यही प्यार है तो इसमें रिश्तों के बीच असंतुलन और जिंदगी बर्बाद होने का डर कैसा? कहीं उन्होंने अपनी जिदगी में प्यार और रोमांस के अभाव को दूर करने के लिए पहला मौका मिलते ही अपनी बेलगाम आकांक्षाओं को प्यार का नाम तो नहीं दे दिया था और बिना सोचे-समझे उसमें डूबते चले जाने को ही ज़िंदगी का मकसद बना लिया था?

फिर वे खुद से ही तर्क करने लगीं – भगवान को किसने देखा है, फिर भी उनकी तरफ खिंचाव होता है और उनके प्यार, उनकी भक्ति में व्यक्ति दूसरी सब चीजें भुला देता है। लेकिन, क्या भगवान से और इंसान से प्यार की तुलना की जा सकती है? रिश्ता एक-दूसरे को समझने के बाद बनता है, कितना जानती हैं वे गगन सर को? वे जिन भावनाओं में खुद को डुबोती चली जा रही हैं, कहीं वे भावनाएं ज़िंदगी में प्यार के अभाव की पूर्ति के लिए उनके मन की अव्यक्त सोची-समझी चाल तो नहीं है? उन्हें इन प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल रहे थे या फिर वे उनके उत्तर पाना नहीं चाहती थीं। उनके विचार परस्पर उलझ रहे थे, प्यार अपनापन चाहता है, अधिकार चाहता है और साथ चाहता है। गगन सर से उन्हें अपनापन तो मिल रहा है, पर अधिकार और साथ, क्या ये मिलना संभव है? उमा जी का दिमाग काम नहीं कर रहा था। इस रिश्ते को लेकर उन्होंने ऐसे तो कभी सोचा ही नहीं था। गगन सर से दिल से जुड़ते चले जाना उनके वर्तमान और भविष्य को प्रभावित करेगा, यह बात तो आज से पहले कभी दूर-दूर तक उनके ध्यान में आई ही नहीं।

खिड़की से छन कर आती धूप जब उनकी आंखों पर पड़ी तो उन्हें समझ में आया कि वे उन सब बातों पर विचार करते-करते न जाने कब सो गई थीं। देर से आंख लगने के कारण उनकी आंख खुली भी देर से थी। वे हड़बड़ा कर उठ बैठीं। उफ, कितनी देर हो गई थी, खुले दरवाजे से झांक कर उन्होंने देखा पतिदेव बिना चाय-नाश्ते के ही काम करने बैठ चुके थे।

उमा जी जल्दी-जल्दी तैयार होकर बाहर आईं तो पतिदेव ने पूछा – “क्या बात है उमा जी, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?”

“हां, तबीयत तो ठीक है, पर रात नींद बहुत देर से आई।“

“मैंने भी देखा, तुम बहुत देर तक करवटें बदलती रही थीं। क्या बात है, क्या चल रहा है, तुम्हारे दिमाग में?”

“कुछ भी तो नहीं, पर पता नहीं कल इतनी देर तक नींद क्यों नहीं आई। जागी रही तो यूएस जाने के बारे में जरूर सोचती रही।“

“उसमें क्या सोचना है, प्रशांत का घर याने हमारा अपना घर। यही मान लो कि अपने खुद के घर जा रहे हैं।“

“फिर भी, पहली बार विदेश जाएंगे तो तैयारियां तो करनी ही पड़ेंगी।“

“बस, इतनी सी बात को लेकर इतना परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। कोई और बात हो जिसने आपकी नींद उड़ा रखी हो तो, जरूर बताइये, शायद मैं कुछ मदद कर सकूं।“

“नहीं ऐसी कोई बात नहीं है, अगर होती तो सबसे पहले आपको ही बताती। घर से निकलना होता नहीं, किसी से बात होती नहीं, कौन नींद उड़ाएगा मेरी।“

“चलो, यह तो बड़ी अच्छी बात है। आज चाय तो पिलाएंगी ना?”

“सॉरी, बहुत देर हो गई आज। मैं चाय-नाश्ता बना कर अभी लाई।“

“हां, ले आओ। तुम गहरी नींद सो रही थीं तो मैंने डिस्टर्ब नहीं किया। रात में ही प्रशांत का ईमेल आ गया था। वहां तो उस समय दिन होता है ना। मैंने सुबह उठकर लैपटॉप खोला तभी देखा।“

उमा जी चलते-चलते रुक गई थीं – “क्या लिखा है, उसने?”

“चाय-नाश्ते के साथ ही बताता हूं। पहले ही काफी देर हो गई है, मुझे भूख भी लग आई है।“

उमा जी किचन की तरफ चल दीं, पर उनके दिमाग में यही घूम रहा था कि पता नहीं प्रशांत ने क्या लिखा होगा। मन में उत्सुकता लिए वे किचन में जल्दी-जल्दी काम करती रहीं और थोड़ी ही देर में चाय-नाश्ता लेकर आ गईं। कप में केतली से चाय उंडेलते हुए उन्होंने पूछा – “अब बताओ, क्या लिखा है प्रशांत है?”

“बस, दो मिनट। इस पेज की लास्ट दो लाइनें टाइप कर लूं।“

“ कप में चाय भर दी है मैंने, ठंडी हो जाएगी। पहले चाय पी लीजिए। नाश्ता भी गर्म है अभी।“

“बस-बस हो ही चुका है, आखिरी लाइन है।“

उमा जी को सब्र नहीं हो रहा था। उन्होंने नाश्ता शुरू कर दिया। चाय का घूंट भरते हुए उन्होंने पतिदेव की उंगलियों की तरफ देखा, वे तेजी से की-बोर्ड पर दौड़ रही थीं। “खत्म भी करो ना अब, प्रशांत ने क्या लिखा है?” उन्होंने बेसब्री से कहा।

“लो खत्म हुआ। अब सुनो, एक खुशखबरी दी है प्रशांत ने, हम दादा-दादी बनने वाले हैं।“

“अरे वाह” - उमा जी को दिली खुशी हुई थी। “कब तक?”

“आठवां महीना चल रहा है। उसने लिखा है, वह सरप्राइज देना चाहता था हमें। फिर जानबूझकर भी यह खबर देरी से दी है उसने ताकि डिलीवरी के समय हम वहीं मौजूद हों और कुछ समय छोटे बच्चे के साथ गुजार सकें।“

“उफ, इसका मतलब यह तो कई महीने का मामला हो गया। ऐसे कब तक रुकेंगे वहां? इतने दिन आप रुक पाएंगे?”

“मैंने तो पहले ही कहा था तुमसे, अब कुछ समय के लिए काम लेना बिलकुल बंद कर रहा हूं। वहां से लौटने के बाद मन करेगा तो फिर देखूंगा।“

“लेकिन, अपना घर छोड़कर इतने दिन वहां विदेश में रहना? बच्चे को संभालने के लिए उसने हमसे वहीं रुकने के लिए कहा तो?”

“नहीं, नहीं, इसके लिए तो वह आया रख लेगा। फिर जहां तक अपना घर छोड़कर जाने की बात है तो मैंने कहा ना प्रशांत का घर भी तो अपना ही घर है। फिर यहां क्या रखा है, जिसकी चिंता करें। बेटे, बहू और उनके बच्चे के साथ रहने का मन नहीं कर रहा तुम्हारा?”

“क्यों नहीं कर रहा? मैं तो वहां इतने दिन रुकने की बात कर रही थी। पता नहीं कैसा लगेगा वहां रुकना।“

“हो सकता है, वहां इतना मन लग जाए कि वापस आने का मन ही नहीं करे”– पतिदेव ने चाय-नाश्ता खत्म करते हुए कहा।

“देखते हैं, क्या होता है” – उमा जी ने गहरी नि:श्वास के साथ उठते हुए कहा।

“कहां जा रही हैं उमा जी, अभी तो मेरी आधी बात ही हुई है।“

“मतलब?”

“हमारे पास यूएसए का दस साल का वीजा तो है ही। उसने इस महीने की तीस तारीख का टिकट भी करा दिया है।“

“क्या? सिर्फ ग्यारह दिन बाद का? इतनी जल्दी सबकुछ कैसे होगा?”

“सब हो जाएगा। चिंता मत करो। बस, वहां जाने का मन बना लो और तैयारियां शुरू कर दो।“

चाय-नाश्ते के खाली बर्तन किचन में रखने के बाद वे अजीब सी उद्विग्नता लिए अपने कमरे में आकर बैठ गईं। कहां तो उन्हें यूएस में एक महीना बिताना भी भारी लग रहा था और यहां तो कम से कम तीन महीने की बात हो रही थी। लेकिन, रात में जो प्रश्न उनके दिमाग में घूम रहे थे, वे अब भी अपनी जगह मौजूद थे। उन्हें याद आया देर से उठने की वजह से आज वे गगन सर का संदेश नहीं देख पाई थीं और न ही उन्हें कोई संदेश भेज पाई थीं। वे काफी देर तक वैसे ही बैठी रहीं, फिर उन्होंने मोबाइल उठाया और संदेश पर नजर डालने लगीं – ‘ज़िंदगी मिली है, जीने के लिए, इसे हंस कर जियो क्योंकि आप को खुश देखकर हम भी तो खुश हो लेते हैं।‘

संदेश पढ़कर उमा जी ने सोचा उनकी पूरी ज़िंदगी बिना हंसी-खुशी, रोमांच-रोमांस के निकल गई। गगन सर के संपर्क में आने के बाद से उन्हें लगने लगा कि ज़िंदगी जीने के लिए है। उनके संदेश की ये लाइनें कि आपको खुश देखकर हम भी खुश हो लेते हैं, दिल को कितने सुकून से भर देती हैं।

रात के प्रश्न अभी भी अनुत्तरित थे। पर, गगन सर के इस संदेश ने उन्हें फिर से नए सिरे से सोचने के लिए बाध्य कर दिया। उन्हें गगन सर को यह बताते हुए संकोच हो रहा था कि वे इतने लंबे समय के लिए यूएस जा रही थीं। खुश रहने के लिए मात्र दस दिन थे उनके पास फिर उसके बाद एक शून्य सा भर जाएगा उनकी ज़िंदगी में।

संदेश का जवाब संदेश से देने के बजाय उन्होंने गगन सर का नंबर घुमा दिया। धड़कते दिल से वे उनके फोन उठाने का इंतजार करने लगीं। पांच-सात घंटियां बजने के बाद गगन सर की आवाज आई – “हलो उमा जी। धन्यभाग, आज आपने फोन करके मेरा दिन बना दिया। बोलिए, कैसे किया फोन?”

“आपको फोन करने के लिए मुझे बहाना ढूंढ़ना पड़ेगा क्या?”

“नहीं, नहीं वो बात नहीं है। मुझ पर आपने फोन करने के लिए पाबंदियां लगाई हुई हैं। आप खुद बहुत कम फोन करती हैं। आपसे ज्यादातर संपर्क मोबाइल पर संदेशों के आदान-प्रदान से ही होता है। अगर आपसे चैटिंग न हो तो ...........।“

“वही बताने के लिए फोन किया है मैंने। दस दिन बाद बेटे के पास हम यूएस जा रहे हैं। वहां तीन-चार महीने रुकने का प्रोग्राम है। वहां से ना तो आपसे फोन पर बात हो पाएगी और न ही मैसेजों का आदान-प्रदान।“

“अरे, अचानक बन गया यह प्रोग्राम? आपने तो इसका कोई जिक्र भी नहीं किया।“

“मुझे खुद भी पता नहीं था कि इतनी जल्दी वहां जाने का प्रोग्राम बन जाएगा। यह सोच कर मैं परेशान हुई जा रही हूं कि आपसे इतने लंबे समय तक कोई संपर्क नहीं कर पाऊंगी।“

“हूं, एक आदत सी बन गई है आपसे चैट करने और खुद को खुश रखने की। आपको अपने बहुत नजदीक समझने लगा हूं मैं। एक अच्छा और परवाह करने वाला दोस्त। बुरा तो मुझे भी लगेगा।“

“सिर्फ बुरा? मुझे तो यह सोच-सोच कर चैन ही नहीं पड़ रहा है। इसीलिए आपको फोन लगा लिया।“

“देखिए उमा जी। इसमें इतना परेशान होने की भी कोई बात नहीं है। आपका बेटा वहां रहता है तो कभी ना कभी तो आपको वहां जाना ही पड़ता। मेरा बेटा ऑस्ट्रेलिया में है, मैं खुद कुछ ही समय में वहां जाने की सोच रहा हूं। परिवार हैं तो उनसे बंधी जिम्मेदारियां भी हैं। ज्यादा मत सोचिए, ये कुछ महीने देखते-देखते कट जाएंगे।“

“कमाल है, आपको तो कोई फर्क पड़ता दिखाई नहीं दे रहा। मैं ही सोच रही हूं इतना?”

“मेरी बात समझो उमा जी। दूरी से सबंध समाप्त नहीं हो जाते और ना ही पास रहने से बनते हैं। एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते रहना जरूरी है बस।“

“मतलब अगर हम इतने लंबे समय तक संपर्क नहीं कर पाएंगे तो इससे आपको कोई फर्क नहीं पड़ेगा?”

“क्यों नहीं पड़ेगा? आपसे अपनापन बन गया है, आपकी याद तो जरूर आएगी। पर, इसमें परेशान होने जैसी क्या बात है। मन के संबंध टूटा नहीं करते। जब आप लौटेंगी तब फिर से चैट शुरू कर देंगे।“

“ठीक है, समझ गई मैं” – कह कर उमा जी ने फोन काट दिया।

फोन उनके हाथ में था और हाथ कांप रहा था। उन्होंने सोचा था कई महीनों तक संपर्क न हो पाने की बात सुनकर गगन सर बुरी तरह परेशान हो उठेंगे। उन्हें चैट में लिखी उनकी वे सारी बाते याद आने लगीं जिनसे यह लगता रहा था कि वे गगन सर के दिल में बस गई हैं और वे चौबीसों घंटे उनकी याद में डूबे रहते हैं। ठीक वैसे ही जैसे उनके दिल में गगन सर ने जगह बना ली थी और वे सोते-जागते उनके बारे में सोचती रहतीं। गगन सर का उनके प्रति लगाव और जुड़ाव इस बात से भी प्रकट होता था कि वे सुबह उठते ही पहला काम उन्हें संदेश भेजने का करते हैं और फिर उसके बहाने अपने मन की बात उन्हें पहुंचाने और उनके मन की बात सुनने के लिए लालायित रहते हैं। वे सिर्फ उनकी आवाज का मधुर रस कानों में घोलने के लिए रिस्क उठाकर भी उन्हें फोन लगा देते हैं। उन्होंने ही तो कहा था – ‘मेरा दिल उनका दिल हो गया है।‘ फिर वे उनके मन की बेचैनी को उसी शिद्दत से क्यों महसूस नहीं कर पा रहे जिस शिद्दत से वे इसे महसूस कर रही थीं।

उन्हे पता था उनकी आज की रात भी कल जैसी ही बीतने वाली थी। विचारों का झंझावात उनके मन के चैन को अपने साथ उड़ा रहा था और वे उसे पकड़ने की कोशिश भी नहीं कर रही थीं।

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