छूटा हुआ कुछ
डा. रमाकांत शर्मा
12.
सुबह उठते ही हाथ में मोबाइल उठाना उमा जी की आदत बन गई थी। उन्होंने देखा गगन सर का मैसेज मौजूद था – ‘सुप्रभात उमा जी। कई बार ज़िंदगी में मुश्किल पल आते हैं, इन्हें सहजता से लेना चाहिए। कड़ी परिस्थितियां हमें मजबूत बनाती हैं। खुद पर नियंत्रण रखना इसका सबसे अच्छा उपाय है। जैसी स्थिति हो वैसे ही उसका सामना करना आना चाहिए।‘
“मैं शायद कमजोर हूं अंदर से। आप तो बहुत मजबूत नजर आ रहे हैं” – उमा जी ने लिखा।
“समझ नहीं पा रहा हूं उमा जी, परिस्थितिवश अगर कुछ समय हम संपर्क नहीं कर पाएंगे तो मर तो नहीं जाएंगे। पर, इसमें आपका कुसूर नहीं है, स्त्री अधिक भावुक और संवेदनशील होती ही है।“
“ओह, तो आप पुरुष हैं, इसलिए ना तो भावुक हैं और ना ही संवेदनशील। आपके संदेशों और फिर उन पर टिप्पणियों में तो ये दोनों भरपूर नजर आते हैं। सिर्फ लिखने के लिए लिख देते हैं आप, उसका दिल से कोई संबंध नहीं होता? दूसरे को खुश करने की बेहतरीन कला है आपमें। भावुकता और संवेदनशीलता को वैसे कोई स्थान नहीं है आपके मन में।“
“मैंने ऐसा तो नहीं कहा। पर, हां .........।“
“जाने दीजिए, आपके इन शब्दों ने बहुत कुछ कह दिया है कि अगर हम कुछ महीने संपर्क नहीं कर पाए तो मर तो नहीं जाएंगे। गगन सर, आपने भी कहीं ना कहीं जरूर पढ़ा होगा – एहसास की नमी बहुत जरूरी है हर रिश्ते में, वरना रेत भी सूखी हो तो निकल जाती है हाथों से।“
“पता नहीं, मैं क्या कह रहा हूं और क्या समझ रही हैं आप। रिश्ते शर्तों के साथ नहीं चला करते उमा जी।“
“मैं कौन सी शर्त लगा रही हूं?”
“आपको क्यों लगता है कि कुछ माह संपर्क न रहने की वजह से आपके लिए मेरी भावनाएं मर जाएंगी। मैं इसे सहजता से ले रहा हूं बस। मुझे नहीं लगता कि सिर्फ इस वजह से मैं सब काम छोड़कर सारा दिन दु:खी होकर बैठा रहूं। कहा ना, आपको मिस करूंगा। आपको भावुकता में बहने के बजाय मेरी बात के मर्म को समझना चाहिए।“
“मैं अच्छी तरह से समझ रही हूं, बातों में आपसे जीतना संभव नहीं है। आपकी बातों से ही तो मेरे मन में प्रेम का अंकुर फूटा। एक ऐसा अहसास मिला जो इंसान को खुशी की ओर ले जाता है और दो लोगों के सुख-दु:ख एक कर देता है।“
“हमारे सुख-दु:ख अलग कहां है? बस मैं आपकी तरह हर चीज भावुक होकर नहीं सोच सकता। प्रेक्टिकल होना भी जरूरी है।“
“चलिए, आपने यह भी महसूस करा दिया कि हमारी सोच अलग-अलग है, आप तो कहते थे कि हमारे दिल की धड़कनें एक हैं।“
“उफ, आप मेरे शब्दों के सही अर्थ नहीं निकाल पा रही हैं, मैं कहना चाहता........।“
“गगन सर, मैं इतने दिनों में सिर्फ यही समझ पाई थी कि प्रेम कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति है। जिससे हम भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं, उसे मन से अपना मान लेते हैं। मैंने अपनी सहेली पुष्पा के बारे में बताया था ना आपको, तब मुझे यही समझ आया था कि जिससे हम प्यार करते हैं, उससे पल भर का विछोह भी बर्दाश्त नहीं कर पाते।“
“हां, पुष्पा और गोविंद की कहानी सुनाई थी आपने। लेकिन उमा जी उनकी उम्र और हमारी उम्र में कोई फर्क नहीं दीखता आपको?”
“प्यार किसी भी उम्र में हो, क्या उसकी सीरत, उसका स्वभाव, उसकी नैतिकता और उसकी तीव्रता बदल जाती है?”
“वह उम्र जब प्यार का परिणाम जिंदगी भर साथ रहने की कल्पना से जुड़ जाता है और वह उम्र जब प्यार ऐसा साथी तलाशता है जिससे दिल की बातें की जा सकें, जिसके साथ अपनापन महसूस किया जा सके और जिससे जुड़कर जिंदगी में एक खूबसूरत मोड़ का अहसास किया जा सके, जिसकी वजह से जिंदगी को नए मायने मिल जाएं, इन दोनों में फर्क तो है ना उमाजी?”
“होता हो शायद ऐसा फर्क, मैंने उस उम्र में प्यार का अनुभव नहीं किया। पर, उस उम्र में जिन्हें प्यार के रिश्तों में बंधते देखा, उनकी भावनाओं में और इस उम्र की भावनाओं में मुझे कोई बहुत बड़ा फर्क नजर नहीं आया। फिर कहते भी हैं ना कि प्यार रंग, जाति, छोटा-बड़ा या उम्र नहीं देखता। हां, प्यार में व्यावहारिकता खोजने वाला वह सब कह सकता है जो अभी आपने कहा।“
“आपकी बात में कुछ हद तक सच्चाई है उमा जी। पर, सोचो इस उम्र में आकर प्यार आखिर क्यों खोजता है इंसान? कहीं ना कहीं या तो उसे अपने परिवार में वह माहौल और वह व्यक्ति नहीं मिल पाता जिससे वह दिल की बात कह सके, या फिर उसकी जिंदगी में रोमांच-रोमांस का अभाव हो या हो सकता है प्यार के अभाव में एक अपूर्ण ज़िंदगी जी रहा हो वह।“
“आपने इस उम्र में क्यों ढूंढ़ा प्यार? आपकी ज़िंदगी में तो चाहने वालों की भीड़ लगी रही।“
“आपने भी तो इस उम्र में दिल का रिश्ता बनाया है, उमा जी। खुद से पूछो तो जवाब मिल जाएगा।“
मोबाइल बंद करने के बाद उमा जी को होश आया कि वे सुबह से कितनी लंबी चैट में उलझ गई थीं। उनके पतिदेव सच कह रहे थे, वे बहुत सी बातें भूल जाती थीं आजकल। आज भी सुबह उठकर फ्रेश होना और चाय-नाश्ता बनाना भूल गई थीं वे। पर, गगन सर से जो चैट हो रही थी, वह उसे छोड़ भी तो नहीं सकती थीं। इस चैट ने उन्हें बहुत कुछ सोचने–समझने पर मजबूर कर दिया।
उमा जी काम करती जा रही थीं, पर उनके दिमाग में सुबह की वह चैट घूमे जा रही थी। क्या गगन सर ने उन्हें वह शुरूआती फोन इसलिए किया था कि वे उनके लिए अपने मन में दबे-छुपे आकर्षण को किसी अंजाम तक पहुंचा सकें। क्या वे यह सिद्ध करना चाहते थे कि वे उनके जैसी रिज़र्व और अपने में डूबी लड़की को भी अपने आकर्षण में बांध सकते हैं, या फिर वे इस उम्र में अपने जीवन में रोमांच और रोमांस लाकर, अपने शब्दों में, ज़िंदगी को नए मायने दे रहे थे। वे तो अपने पति के रोमांटिक प्यार से वंचित रही थीं, इसलिए उनका मन उसे तलाशने लगा था, पर गगन सर पत्नी के होते हुए भी इस उम्र में प्यार क्यों ढ़ूंढ़ रहे थे, जबकि उन्हें तो उस उम्र में भी प्यार करने वालियों की कोई कमी नहीं थी। क्या यह प्यार सिर्फ प्यार करने के लिए था, उसमें सच्चाई नहीं थी? उन्होंने गगन सर से यह प्रश्न पूछा तो था। इसके उत्तर में उन्होंने कहा था – ‘आपने भी तो इस उम्र में दिल का रिश्ता बनाया है, उमा जी। खुद से पूछो तो जवाब मिल जाएगा।‘
उन्होंने खुद से पूछना शुरू किया तो एक के बाद एक कई प्रश्न उनके दिमाग में उठने लगे। यक्ष प्रश्न था कि वे रिटायरमेंट के बाद की उम्र में प्यार के रास्ते पर क्यों चल पड़ीं? शायद इसलिए कि ज़िंदगी भर वे प्रेम से वंचित रही थीं। उन्होंने पुष्पा की कहानी और सरिता की कहानी से यह जाना था कि प्रेम ऐसा अनुभव है, जिससे सभी को गुजरना ही चाहिए। वे महसूस करना चाहती थीं कि मन के रिश्ते बनने और किसी के प्यार में आकंठ डूबने पर कैसा लगता है। या वे फिर यह जताना चाहती थीं कि वे भी प्रेम का पात्र हो सकती हैं। या फिर वे यह देखना चाहती थीं कि परिवार के बंधनों से बंधे होते हुए भी दिल के रिश्ते से बंध जाने पर क्या सरिता-किशोर और पुष्पा-गोविंद की तरह की अनुभूतियों से गुजरा जा सकता है? क्या पतिदेव के हर समय काम में डूबे रहने के कारण वे मन ही मन एक ऐसा मीत ढूंढ़ने लगी थीं, जिससे दिल की बातें कह-सुन सकें। क्या प्यार में डूबी कहानियों ने उनके भीतर की स्त्री को प्रेम पाने के लिए उकसा दिया था?
सारे प्रश्नों के जवाब एक-दूसरे में गड्डमड्ड हो गए थे और उमा जी उन्हें सिलसिलेवार लगाने के प्रयास में और उलझती जा रही थीं। क्या स्कूल के दिनों से गगन सर के प्रति उनके आकर्षण ने इस रिश्ते को पनपने में कोई भूमिका निभाई थी? उनकी उस मन:स्थिति में जब गगन सर ने अपना दोस्ती का हाथ उनकी तरफ बढ़ाया था तो क्या वे खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाई थीं। क्या गगन सर से अपनी सच्ची-झूठी प्रशंसा सुनकर वे खुद को भूल बैठी थीं? क्या गगन सर का उन्हें ‘आइ लव यू’ कहना उन्हें भीतर तक स्पर्श कर गया था और क्या उन तीन मैजिक शब्दों ने उनके प्यासे मन को तृप्त कर दिया था और वे गगन सर के मजबूत आकर्षण में बंध कर उनके प्रति समर्पण की हद तक जुड़ाव महसूस करने लगी थीं? क्या गगन सर की बातों ने उन्हें सम्मोहित कर लिया था? क्या उनके भीतर प्यार पाने की जो इच्छा बलवती हो उठी थी, उसकी पूर्ति के लिए अव्यक्त रूप से वे जो सिरा ढूंढ रही थीं, वह उन्हें मिल गया था और उन्होंने उसे अपने हाथ से कस कर पकड़ लिया था?
उमा जी बेचैन हो उठीं। कितना जानती थीं वे गगन सर को? उन्होंने क्यों नहीं सोचा था कि गगन सर की अपनी भी एक ज़िंदगी थी, उन्होंने अपनी खुद की निजी जिंदगी और सरल स्वभाव के अपने पति के बारे में भी क्यों नहीं सोचा? बस, एक बहाव में बहती चली गईं। प्रेम के अहसास से गुजरने की इच्छा ही क्या इस सब पर हावी हो गई थी? उन्होंने गगन सर को अपनी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति बनाने और मानने में कोई जल्दबाजी तो नहीं की थी? क्या उन्होंने भावनाओं में बहकर खुद को भी तो उनकी ज़िंदगी का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति नहीं समझ लिया था। क्या हम सचमुच किसी के लिए उतने जरूरी होते भी हैं, जितना हम सोच लेते हैं?
क्या प्यार को ज़िंदा रखने के लिए रोमांस और शारीरिक निकटता जरूरी है? क्या सिर्फ बातों के बल पर प्यार को जिंदा रखा जा सकता है? क्यों बहुत सी बातों के बाद भी लोग अपने नहीं होते और कुछ मौन रहकर भी अपने बन जाते हैं? क्यों उनका मन करता कि वे गगन सर से बातें या चैट करती रहें? क्या उनकी बातों से एक-दूसरे के अहम् की पूर्ति होती थी? या फिर रिश्ते का नाम कुछ भी हो, इंसान तलाश सिर्फ सुकून की करता है? उनके दिल को इस रिश्ते से सुकून मिल रहा था या फिर वह बेचैनी जिसकी पीड़ा में अपना सुख होता है और वह प्रेमियों के दिलों को सुकून देती है? क्यों यूएस जाने और गगन सर से संपर्क न हो पाने की बात ने उनमें बेचैनी भर दी और क्यों वैसी ही बेचैनी गगन सर में पैदा नहीं हो पाई? क्या प्यार में प्रेक्टिकल हुआ जा सकता है?
एक के बाद एक विचारों का हुजूम उनके दिमाग में सरपट दौड़े चला जा रहा था। गगन सर उनके साथ सचमुच दिल के संबंध बना बैठे थे या फिर अपने इस अहम को संतुष्ट करना चाहते थे कि इस उम्र में भी उनके पास एक प्रेमिका है और वह भी उमा जी जैसी जिसे वे उस उम्र में पटाना चाहते थे, पर उनके स्वभाव के चलते इस तरफ कदम नहीं बढ़ा पाए थे। क्या उनकी बातें दिल से नहीं निकलती थीं, वे अपने साथ उन्हें उलझाए रखने के लिए उनसे प्रेमभरी बातें करते रहते थे? उमा जी के दिमाग में कुछ ही दिन पहले एक पत्रिका में पढ़ी ये लाइनें घूम गईं कि रिश्तों की सिलाई अगर भावनाओं से हुई है तो टूटना मुश्किल है और अगर स्वार्थ से हुई है तो टिकना मुश्किल है। क्या गगन सर की तरफ से यह रिश्ता स्वार्थ पर टिका था? क्या उनकी खुद की तरफ से भी इस रिश्ते में स्वार्थ नहीं था? क्या वे उनसे सिर्फ इसलिए जुड़ती नहीं चली गई थीं कि प्यार के अहसास से गुजरना चाहती थीं। शुरूआत तो शायद इसी को लेकर हुई थी, हां यह बात अलग है कि वे गगन सर से सचमुच भावनात्मक संबंध बना बैठी थीं।
उन्होंने ही तो गगन सर के सामने यह प्रश्न खड़ा किया था कि “प्यार किसी भी उम्र में हो, क्या उसकी सीरत, उसका स्वभाव, उसकी नैतिकता और उसकी तीव्रता बदल जाती है?”
क्या होती है प्यार की नैतिकता? यही कि एक-दूसरे पर विश्वास हो, एक-दूसरे की परवाह हो, एक-दूसरे की भावनाओं की समझ और इज्जत हो और एक-दूसरे के सुख-दु:ख में दोनों मन से सहभागी हों। उनके दिमाग में अचानक यह सवाल उठने लगा था कि क्या नैतिकता सिर्फ प्यार के रिश्ते में ही होती है? हर रिश्ते की अपनी एक नैतिकता होती है, उन्होंने पति-पत्नी के रिश्ते की नैतिकता कितनी निभाई थी? यह सोचते ही उनके रोंगटे खड़े होने लगे थे। पर, वे तुरंत ही खुद को समझाने में कामयाब हो गईं कि गगन सर से उनका रिश्ता सिर्फ और सिर्फ भावनात्मक स्तर पर ही बना, उन्होंने पति-पत्नी के बीच के रिश्ते को तो कभी ........।
उमा जी के सोचने की दिशा बदल गई। वे अपने बेतरतीब विचारों के निष्कर्ष तक पहुंचने का प्रयास करने लगीं। क्या यह सच नहीं था कि वे स्वयं प्यार के अहसास से गुजरना चाहती थीं, वे प्रेम-पात्र बनना चाहती थीं, वे किताबों से नहीं, खुद के अनुभव से ज़िंदगी के उस बेहतरीन पहलू को जानना चाहती थीं। गगन सर के बढ़े हाथ को उन्होंने पहला और आखिरी मौका समझ कर कस कर पकड़ लिया था। उन्होंने प्यार के इस अहसास को जी भर कर जिया भी था और अब भी जी रही थीं। वे गगन सर को अपना सच्चा प्रेमी समझने लगी थीं। इतने लंबे समय तक गगन सर से संपर्क न होने की सोचकर उन्हें जो मानसिक तकलीफ हो रही थी, वैसी ही तकलीफ गगन सर को तब ही हो सकती थी जब उन्होंने भी इस संबंध को उतनी ही शिद्दत से लिया होता। इसका मतलब साफ था कि जिस सच्चाई और गहराई से वे गगन सर से जुड़ती गई थीं, वैसी सच्चाई और गहराई गगन सर के मामले में नदारद थी।
उमा जी को पता था, उनका आगे का समय बहुत बेचैनी भरा गुजरने वाला था। उनकी हर सुबह, हर शाम उदासी में गुजरने वाली थी और वे पूरा दिन मन ही मन उन बातों को दोहराने और मथने वाली थीं जो उनके और गगन सर के बीच होती रही थीं। ख्याल उन्हीं के तो आते हैं ना जिनसे हम दिल का रिश्ता बना बैठते हैं।
उमा जी ने कहीं पढ़ा था कि यदि स्त्री के हृदय में प्रेम का अंकुर फूट जाए तो फिर वह किसी भी हद तक जा सकती है। सच, कितनी ही तो हदें तोड़ डाली थीं उन्होंने। वे अपनी पारिवारिक ज़िंदगी की हदें लांघ चुकी थीं, झूठ बोलना और उसे छुपाने के लिए और झूठ बोलना भी उन्हें आ गया था। पर, शायद ये वो हदें नहीं थीं, जिनको पार करने का जिक्र किया गया था। गगन सर से यह भावनात्मक जुड़ाव कहां ले जा रहा था उन्हें, और ऐसी कौनसी हदें हैं, जिन्हें वे पार करने के लिए तैयार हो जातीं। उनकी सोचने की शक्ति सुन्न हो गई। उन्हें लग रहा था कि यदि थोड़ी देर ही सही, उन्होंने अपने मस्तिष्क को आराम नहीं दिया तो वह फट कर बाहर आ जाएगा। वे पलंग पर जाकर लेट गईं। उन्होंने विचारों के प्रवाह को रोकने के लिए दोनों हाथों में अपना सिर दबा लिया। पर, काश इससे विचारों के प्रवाह पर कोई असर पड़ पाता।
बहुत देर तक ऐसे ही पड़े रहने के बाद वे किचन में चली गईं। खाना बना रखा था, उसे उठाकर वे डाइनिंग टेबिल पर ले आईं। उन्हें खाना लेकर आते देख पतिदेव ने अपना काम रोक दिया और कहा – “उमा जी सुबह से देख रहा हूं आज तुम कुछ ज्यादा ही चुपचुप हो, कोई खास बात?”
“क्या खास बात होगी? वही यूएस जाने और वहां के लिए तैयारियों के बारे में सोच रही थी।“
“अच्छा याद दिलाया, मैं तुम्हें बताने ही वाला था, प्रशांत ने टिकट भेज दिया है। अब हफ्ते भर से भी कम का समय रह गया है हमारे पास। ऐसा करते हैं लंच के बाद दोनों मिलकर एक लिस्ट बना लेंगे वहां ले जाने वाली चीजों की ताकि कोई भी जरूरी चीज छूट ना जाए।“
“हां. यह ठीक रहेगा। खाना खाकर बैठते हैं दोनों। आपके काम में तो कोई हर्जा नहीं होगा?”
“बस, इसके बाद काम ले कौन रहा है। मैंने सबसे कह दिया है कि हम प्रशांत के पास यूएस जा रहे हैं, इसलिए अब मैं और कोई काम नहीं लूंगा। सच बताऊं उमा जी यह सुनकर उनके चेहरे उतर गए थे।“
“उतर ही गए होंगे। आपकी तरह अच्छा और सच्चा काम करके और कौन देगा उन्हें? सारे दिन मेहनत करते हो और अपनी सेहत का भी ख्याल नहीं रखते।“
“कह तो ठीक रही हो, इस काम के चक्कर में किसी का भी तो ख्याल नहीं रख पाता मैं। प्रशांत के पास जाकर पूरा आराम करूंगा बस।“
उमा जी ने हंसते हुए कहा – “वहां भी अदालतें हैं, कहीं वहां भी काम लेने मत चले जाना।“
पतिदेव को भी हंसी आ गई थी – “कमाल है उमा जी तुम तो अच्छा मजाक भी कर लेती हो।“
खाना खाने के बाद दोनों यूएस ले जाने वाले सामान की लिस्ट बनाने बैठ गए। वीजा, टिकट और पासपोर्ट से शुरू हुई लिस्ट खासी लंबी होती चली गई। कुछ चीजों पर दोनों एकमत नहीं थे, इसलिए उनपर निर्णय लेने में कुछ समय भी जा रहा था। कुछ भी हो, पर इस प्रक्रिया में उमा जी का ध्यान बंट गया था और सुबह से दिमाग को परेशान करने वाली बातें कहीं पीछे चली गई थीं।