कर्म पथ पर Chapter 69 श्यामलाल भी अपने कमरे में सोने चले गए थे। पर अब उनकी आँखों से नींद गायब हो चुकी थी। इतने दिनों बाद बेटा घर लौटा था तो इस मनःस्थिति में। जय को इस हालत में देखकर उनका कलेजा फट गया था।
वह अभी तक जय से कोई बात ही नहीं कर पाए थे। उससे यह भी नहीं पूँछ पाए कि इतने दिनों तक कहाँ थे ? इस बूढ़े बाप की ज़रा भी याद नहीं आई। लेकिन जय जिस हालत में आया था उसमें कुछ पूँछा भी नहीं जा सकता था। जय इतना अधिक दुखी था कि कुछ बता ही नहीं पा रहा था। सारी बात उसके साथी मदन ने बताई थी।
वृंदा के अपहरण से जय जिस तरह दुखी था उससे उनकी समझ में आ गया था कि वह वृंदा को बहुत अधिक चाहता है। उन्हें पता था कि जय ने पहले भी क्लब की दो एक लड़कियों से कुछ दिनों के लिए दोस्ती बढ़ाई थी। पर वह उन्हें लेकर ज़रा भी गंभीर नहीं था। श्यामलाल ने उस समय उसकी शादी की बात भी उठाई थी। पर उसने हंसकर कहा था कि पापा मुझे किसी बंधन में नहीं बंधना है।
लेकिन वृंदा के प्यार ने उसे बांध लिया था। उसके ना होने से वह कितना तड़प रहा था। बार बार वृंदा के अपहरण के लिए खुद को दोष दे रहा था। श्यामलाल को डर था कि अगर वृंदा का पता ना चला तो उनका बेटा इस बात को बर्दाश्त नहीं कर पाएगा। वह अब किसी भी कीमत पर जय को खोना नहीं चाहते थे।
मदन ने आशंका जताई थी कि हैमिल्टन ने ही वृंदा का अपहरण कराया होगा। वह बता रहा था कि एक बार और वह उसका अपहरण करवा चुका था। तब वृंदा बहादुरी दिखा कर किसी तरह से उसके चंगुल से भाग आई थी। उस समय हैमिल्टन उसे शहर के बाहर बने अपने किसी बंगले पर ले गया था।
श्यामलाल याद करने की कोशिश करने लगे कि क्या कभी उन्होंने हैमिल्टन या किसी और के मुंह से हैमिल्टन के इस बंगले के बारे में सुना हो। पर बहुत सोचने पर भी उन्हें कुछ याद नहीं आया। वैसे भी वह जानते थे कि हैमिल्टन अपनी बहुत सी बातें छिपा कर रखता है। उसके कुछ खास लोगों को ही उनके बारे में पता होता है।
मदन ने जो बताया था उसके अनुसार हैमिल्टन बहुत ही क्रूर और निर्दयी था। उसने वृंदा और माधुरी के साथ कितना गलत किया था। ऐसा नहीं था कि उन्हें हैमिल्टन या उसके जैसे और अंग्रेज़ अधिकारियों के बारे में नहीं पता था। पर तब उनकी आँखों में निजी स्वार्थों की पट्टी बंधी हुई थी। वह सब देखकर भी अनदेखा करते थे। पर अब उन्हें अंग्रेज़ी हुकूमत से कुछ नहीं चाहिए था। ना पद ना राय बहादुर का तमगा। उनका हर वस्तु से मोह भंग हो चुका था।
वह वृंदा के बारे में सोचने लगे। सचमुच कितनी बहादुर है वृंदा। उस हैमिल्टन के चंगुल से भाग निकली थी। लेकिन इस बार फिर उस निर्दयी के चंगुल में फंस गई है। इस बार वह उसे छोड़ेगा नहीं। ना जाने वृंदा का क्या होगा। उन्होंने मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना की कि उसकी रक्षा करे।
एक बार फिर उन्हें अपने बेटे जय की फ़िक्र होने लगी। उसकी मानसिक दशा बहुत खराब थी। उसके लिए अपने आप पर काबू रखना कठिन हो रहा था। उसने ठीक से कुछ खाया भी नहीं था। वह सोच रहे थे कि पता नहीं दोपहर में भी ठीक से खाया होगा कि नहीं। शाम को तो कुछ खाने का मौका नहीं मिला होगा। मदन ने बताया था कि वृंदा देर शाम को ही लापता हो गई थी। उसके बाद दोनों बड़ी मुश्किल से किसी कलक्टर से मदद लेकर देर रात यहाँ पहुँचे थे।
वह अपने परेशान बेटे को तसल्ली देने के लिए उसके कमरे में जाने के बारे में विचार कर रहे थे। पर उन्होंने घड़ी देखी रात के डेढ़ बज रहे थे। उन्हें लगा कि हो सकता है कि जय और उसका दोस्त सो चुके हों। अतः उन्होंने कल सुबह बात करने का फैसला किया।
कमरे में जय और मदन वृंदा के बारे में ही बात कर रहे थे। जय मदन से कह रहा था कि उन्हें जल्द से जल्द वृंदा का पता लगाना होगा। वह वृंदा की जान के साथ कोई लापरवाही नहीं बरत सकता है।
अतः कैसे भी करके हैमिल्टन के बंगले का पता लगाना होगा।
मदन ने उससे कहा कि जब पिछली बार वृंदा वहां से भागी थी तो वह जंगल में भटकते हुए एक मुख्य मार्ग पर पहुंच गई थी। उस मुख्य मार्ग पर वाह एक ट्रक वाले से लिफ्ट लेकर भवनदा के मकान तक पहुँची थी। पर मुख्य मार्ग तो कई जगहों से लखनऊ की तरफ आते हैं। अतः हमें सही प्रकार से हैमिल्टन के बंगले का पता करना होगा। मदन ने सुझाव दिया कि कल वह दोनों हैमिल्टन की हवेली जाकर पता करने का प्रयास करेंगे। शायद वहाँ किसी से कुछ पता चल जाए। जय को उसका प्रस्ताव अच्छा लगा। वह इस बात के लिए राज़ी हो गया।
सुबह दोनों दोनों जल्दी उठकर तैयार हो गए। एक योजना के तहत जय ने सूट पैंट और हैट पहन रखा था। मदन ने भी उसका पैंट शर्ट पहन रखा था।
श्यामलाल ने उनसे पूँछा कि वह दोनों कहाँ जा रहे हैं। जय ने कहा कि वृंदा का पता करना बहुत जरूरी है। इसी प्रयास में वह दोनों बाहर जा रहे हैं। श्यामलाल समझ गए कि वह लोग हैमिल्टन की हवेली की जाकर कुछ पता करना चाहते हैं। उन्होंने आगाह करते हुए कहा,
"हैमिल्टन बहुत ही शातिर व्यक्ति है। अतः जो भी करना सोच समझ कर करना। खुद को किसी प्रकार की मुसीबत में मत डालना।"
उन्होंने जय की तरफ देखकर कहा,
"मैं समझता हूं कि तुम वृंदा को बहुत चाहते हो। उसका पता करना चाहते हो। पर यह भी याद रखो कि इस दुनिया में तुम्हारा पिता भी है। जिसे तुम्हारी बहुत परवाह है। खासकर जब से तुम घर छोड़कर गए हो तब से मेरा मन किसी भी चीज़ में नहीं लगता है। मैं नहीं चाहता कि तुम्हें दोबारा खो दूँ।"
वह मदन की तरफ मुड़कर बोले,
"बेटा तुम जय के सच्चे दोस्त हो। इसे मुझसे अधिक समझते हो। यह भी मुझसे अधिक तुम पर यकीन करता है। मैं इसे तुम्हारे हवाले कर रहा हूँ। कोशिश करना कि ऐसा कुछ ना करे कि यह किसी मुसीबत में पड़ जाए। इस समय यह सोचने समझने की स्थिति में नहीं है। अतः इसकी जिम्मेदारी मैं तुम पर सौंप रहा हूँ।"
मदन ने श्यामलाल से कहा,
"आप बेफिक्र रहिए चाचा जी। हम दोनों ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे जिससे मुसीबत में पड़ जाएं। आप निश्चिंत रहिए।"
श्यामलाल ने भोला से कहा कि वह उन दोनों के लिए नाश्ता लगा दे। भोला ने सबके लिए नाश्ता लगा दिया। नाश्ता करते हुए श्यामलाल जय से बातें करने लगे।
श्यामलाल ने जय से पूँछा,
"घर छोड़ने के बाद इतने दिनों तक वह कहाँ था ?"
जय ने उन्हें पूरी बात बताई,
"पापा घर छोड़ने के बाद मैंने मदन से सहायता मांगी। वह मुझे विष्णु अग्रवाल के पास ले गया। मैं वहाँ उनकी पैतृक संपत्ति की आय का हिसाब रखता था। उनके साथ ही रहता था। पर मुझे लगता था कि मैं वह नहीं कर पा रहा हूँ जिसके लिए घर छोड़कर गया था। इसलिए मैं उनकी इजाज़त से सिसेंदी गांव में जाकर रहने लगा। वहाँ मैं गांव वालों की सेवा करता था।"
उसकी बात सुनकर श्यामलाल को उस पर गर्व हुआ। उनके मन में एक सवाल था कि बचपन से ऐशो आराम में पला जय यह सब कैसे कर सका। उन्होंने पूँछा,
"बेटा तुम इतने दिनों तक एक छोटे से गांव में कैसे रह पाए ?"
उनकी बात का जवाब देते हुए जय ने कहा,
"पापा मुझे जो भी प्रेरणा मिली वह वृदा से ही मिली। मैं हमेशा से आपके रुतबे और दौलत के सहारे जीता रहा। पर वृंदा ने मुझे एहसास दिलाया कि इंसान के लिए उसकी अपनी पहचान बहुत आवश्यक होती है। अपने कर्म से ही वह अपनी पहचान बनाता है। उसकी प्रेरणा से ही मुझे मेरा कर्म पथ मिला।"
अपनी बात कहते हुए जय भावुक हो गया। अपने आप को संभाल कर बोला,
"पापा मेरे लिए यह बहुत ज़रूरी है कि मैं वृंदा का पता लगाऊँ।"
वह उठा और श्यामलाल के चरण स्पर्श करके बोला,
"पापा आशीर्वाद दीजिए कि मैं वृंदा को ढूंढ़ सकूँ।"
श्यामलाल ने उसे आशीर्वाद दिया कि वह अपने काम में सफल हो। मदन ने भी श्यामलाल के पैर छुए।
मदन और जय हैमिल्टन की हवेली के लिए निकल गए।