Ram Rachi Rakha - 3 - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

राम रचि राखा - 3 - 6

राम रचि राखा

तूफान

(6)

सुबह किसी में उठने की हिम्मत नहीं थी। बच्चे कुनमुनाकर उठे और भूख से थोड़ी देर रोए। लेकिन जल्दी ही अशक्त होकर शांत हो गए।

आधे से अधिक लोग मरणासन्न हो चुके थे। साँसें चल रही थीं, किंतु वे शक्तिहीन थे। शरीर का पानी निचुड़ चुका था। कई लोग सारी आशा छोड़कर अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा करने लगे।

सूरज ऊपर आसमान पर चढ़ता जा रहा था। सप्तमी और अंश को अपनी बाहों में लेकर सौरभ लेटा हुआ था। अंश को बुखार आ गया था। उसका शरीर तप रहा था। सप्तमी अपने पर्स में सदैव दवा रखती है। उसने किसी तरह उसे पैरासीटामॉल का ड्रॉप पिलाया। एक तो पेट में कुछ नहीं था। उपर से बुखार। वह चेतनाहीन हो गया।

“हे भगवान ! कुछ तो करो! यह किस तरह की मृत्यु दे रहे हो!” सौरभ ने आकाश की ओर देखकर कहा और अपनी आँखें बंद कर ली। उसकी आँखों के कोरों से आँसू ढुलक गए।

चारों ओर एक गहरा सन्नाटा छा गया था।

थोड़ी देर बाद किसी मोटरबोट के इंजन की आवाज सुनाई दी। सौरभ तुरंत उठ खडा हुआ। भागकर नाव के किनारे पर गया, जिधर से आवज़ आ रही थी । चिन्मय, देबु, अचिंत तथा अन्य कुछ लोग भी उसके पास आ गए। थोड़ी ही देर में एक बड़ी सी नाव आती दिखाई देने लगी। जिन लोगों में उठने की शक्ति बाकी थी वे सभी लोग नाव के किनारे पर आकर हाथ हिलाने लगे ।

सबके अंदर खुशी की लहर दौड़ गई।

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