दुर्गेश जी का काव्य संग्रह Durgesh Tiwari द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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दुर्गेश जी का काव्य संग्रह

(गाथा बुढ़िया माई का)
चली आ रही बारात एक ओर,
जिसमें लोगो की भीड़ जोड़ एक ओर।
नाच रहा जोकर जोड़-२ एक ओर,
थोड़ी देर में मची शोर जोड़ एक ओर।।

बन्द करो बाजा जोड़-थॉर एक ओर,
रास्ता अभी है डोर-२ एक ओर।
रास्ते मे आयों पुल थोड़ एक ओर,
उस पर बैठी बुढ़िया देख एक ओर।।

कोई कहा जोड़-२,
अरे देख बुढ़िया एक ओर।
मुह खुलयो थोड़-२,
लोगो ने कहा जोड़-2।
बारात चली एक ओर,
बुढ़िया ने कहा होड़-२।
लोगो ने कहा कोड़-२,
व्यंग हुआ दांत खोड़।
चलो बाराती एक ओर।।

बारात चली एक ओर,
लोग भी दौड़े जोड़-तोड़।
जोकर रुका उसी कोर,
नाचा जोकर जोड़-तोड़ उसी ओर।
बुढ़िया हसी जोड़-२ उसी ओर,
मुड़ा जोकर पीछे की ओर।
बुढ़िया- बेटे रुक थोड़ उसी ओर,
जोकर रुका उसी कोर।
बेटे मेरा सुन थोड़।।

मत आना इस पथ की ओर,
जा बेटे बारात की मोड़।
भीड़-भाड़ में बोल जोड़,
मत आना इस पल की ओर।।

भीड़-भाड़ में भूलना थोड़ ,
मां ने कहा मत खोलना पोड।
की ये बात बुढ़िया ने बोल।
जा बेटे बारात की ओर।।

जोकर घुमा पीछे की मोड़,
बुढ़िया दिखी न किसी कोर।
समझा जोकर जोड़-२,
बारात पहुची द्वार की ओर।।

देखन हेतु भीड़-जोड़,
शादी शुरू उसी कोर।
नाचा जोकर जोड़-२,
लोग हँसे जोड़-तोड़।।
दिन बीते उसी ओर,
बात हुआ थोड़-मोड़।
अब चले गृह की ओर,
डोली सजी जोड़-२।।

बारात निकली और जोड़,
जोकर ने कहा होड़-होड़।
मत जाना उस पुल की ओर,
व्यंग हुआ जोड़-तोड़।
जोकर केवल नाच थोड़।।

बारात पहुची पूल की ओर,
जहां बैठी बुढ़िया कोर।
भीड़ निकली जोड़-तोड़,
जोकर बैठा पीछे ही थोड़।।

बारात की मकची पल पे होड़,
जहां बैठी बुढ़िया कोर।
भीड़ निकली जोड़-तोड़,
पुल धंसा नीचे की ओर।
देखा बैठा देखा जोर,
जिसपर पूरा बारातियों का होड़।।

जोकर रोया जोड़-२,
मा मैं जाऊ किस ओर।
करुणामयी पुकार सुन थोड़,
दौरि मा जोकर की ओर।
मा ने कहा सुन बात मोर।।

मत जाना किसी कोर,
पीढ़ी बनाई उसी कोर उसी ओर।
जहां चरणों का पुष्प थोड़,
मा की कृपा ही जोड़।।

जोकर गया अपने गृह की ओर,
परिवार सहित जोकर आया जोर।
और वसा परिवार उसी कोर,
बना दो-तीन घर उसी ओर।।

माता की कृपा सबकी ओर,
मांगो मन्नत कितनी भी बेजोड़।
पूरी होगी अवश्य तोर,
ऐसी मा की कृपा मोर।।

मांगे पूरी की माँ जोड़-२,
मंदिर बना पल के दोनों कोर।
भक्तो का दिल इतना बेजोड़,
मंदिर बनवाये दोनों कोर।
पीढ़ी जिस ओर,
पुराना मंदिर उसी कोर।।
जय माँ बुढ़िया
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(किसान)
कठिन परिश्रम करते किसान,
खेतो में उपाजाते है धन-धान।
खेतो को खूब बनाते है ,
तब जाके धान उपजाते है।।

कठिन परिश्रम करके ओ,
खेती बाड़ी में लग जाते।
खेतो में पसीना बहॉते है,
खुद रूखी शुखी खाते है।।

अपने तो धरती पे सोते,
देश को स्वर्ग बनाते है।
हम सबको अन्न खिलाते है,
खुद भूखे सो जाते है।।

उनकी परिश्रम का फल उनको न मिल पाता है,
लेकिन सबको खिलाते है और जीना शिखलाते है।
उनके अहसानो का बदले,
हम उनको क्या दे पाते है।।

अपने (बच्चे) को कान्वेंट में पढ़ाते ,
उनके को धिक्कार लगाते है।
गरीब-गरीब चिल्लाते है ,
और खूब मजे उड़ाते है।।

धिक्कार-धिक्कार के कहते है,
तुम सब छोटे नाते हो।
जब की हम ये भूल जाते,
रोटी वाही खिलाते है।।

उनको हम मुर्ख बनाते ,
फिर जाकर धन कमाते है।
जिसकी कीमत कम लगाकर,
उनसे अन्न ले जाते है।।

उसी अन्न को अपना नाम दे ,
उनका नाम डुबाते है।
ब्रांड-ब्रांड चिल्लाते है,
खूब पैसे बनाते है।।

कहते है ये हाइब्रिड है,
इसको अगर लजाओगे।
खूब फसल होगी और ज्यादा पैसे कमाओगे,
कितने हम मुर्ख बनाते है।
ओ बेचारे बन जाते है।।

ओ बेचारे भोले है,
यह कहकर ले जाते है।
श्रीमानजी तो पढ़े लिखे है,
कुछ भी न गलत हो पायेगा।
पढ़-लिखकर ये देश के भविष्य बने है,
सब देश के काम आएगा।।

अनपढ़ होकर देश के लिए ,
अपनी जिंदगी कुर्बान किये।
पढ़ लिखकर बड़े होगये ,
उनके अहसानो को तार-2 किये हम।।

अबतक चला ये बहुत चला ये,
अब ना इसको चलाना है।
किसानो के मेनहत का फल,
अब हमें उनको दिलाना है।।

आज अभी इसी वक्त से,
प्रण हम सब को खाना है।
कभी कही किसी किसान को,
ना अब हमें सताना है।
उनके मेनहत का फल ,
अब हमें उनको दिलाना है।।

अपना गांव है अपना देश है,
अपने सारे नाते है।
किसान भी है अपने भाई,
अबसे यही सन्देश है।।

पग-पग साथ बढ़ाना है,
सबको साथ मिलाना है।
कोई न भूखो मर पायेगा,
अब हमें साथ होजाना है।।

किसानो के बच्चों को अब हम कान्वेंट में पढ़ाएंगे,
उनके परिश्रम का फल अब हम उनको दिलवायेंगे।
ये उनका अधिकार है अब हम साथ निभाएंगे,
पग-पग साथ बढ़ाएंगे और देश को आगे बढ़ाएंगे।।
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(शासन)
पहले था अंग्रेज का शासन,
होता था युद्ध खूब घमासान।
मंगल पांडेय ने गोली चलाई,
मारे गए दो अंग्रेज सिपाही।।
तब भारत मे चेतना आयी,
लोगो ने आवाज उठायी।
भारत से अंग्रेज भगाओ,
देश को अपने आजाद कराओ।।
लोगो ने आंदोलन चलाया,
कितनो ने अपना जान गवाया।
कितने लाल भारत मे जन्मे ,
जिन्होंने खड़े किए अंग्रेजो के पलगें।।
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(प्रदूषण के प्रति)
सम्पूर्ण विश्व मे छप रहा पर्चा,
जिसमे लिखा प्रदूषण का चर्चा।
इसमें का एक है इकाई,
जिसका नाम प्रदूषण है भाई।।

यह फैलता है जग भर में,
जल-वायु और ध्वनि के घर मे।
मानव से फैलती ये बीमारी,
जिससे प्रभावित प्रकृति बेचारी।।

गंगा को माने है माता,
जिसमे फेकते कूड़ा भ्राता।
पेड़-पौधे और वन को कटवाते,
वायु को भी वे त्रस्त बनाते।।

लाउडस्पीकर तेज चलाते,
ध्वनि को भी प्रभावित बनाते।
पेड़ पौधे और जल को बचावो,
पर्यावरण में संतुलन पाओ।।

बाग-बगीचे पौधे लगाओ,
ऑक्सीजन को शुद्ध बनाओ।
पेड़-पौधे वन ना कटवाओ,
प्रदूषण से मुक्ति पाओ।।

कूड़ा-करकट बहाओ न भाई।
स्वच्छ पर्यावरण की तुम्हे बधाई।।
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( दिल की बात कुछ लाइनो के साथ)
(१)
"आते हो तो धन आता है,
जाते हो तो नाहि।
पाप जात तो नरक मिलत है,
पूण्य जात तब नाहि।।"

(२)
"मन मे विश्वास है,
चौड़ा ललाट है।
खुला कपाट है,
दिल मे ना आट है।
वाह-२ क्या बात है।।"
(३)
"अंग्रेजो कुत्तो ने जब देश को मेरे छोड़ा।
अपने तो चले गए लेकिन पिल्लों को यही छोड़ा।।"

(४)
"अंग्रेजो ने भारत मे अमिट छाप छोड़ा।
जब भारत ने नकल उतारा, उसने भी मुख मोड़ा।।"

(५)
"लाठी मारें जो न सुधरे,
शब्द मारी पड़ी सुधरी जाए।।"
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Regards
Durgesh Tiwari