कर्म की गति न्यारी कभी कोई राजा तो कोई भिखारी Durgesh Tiwari द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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कर्म की गति न्यारी कभी कोई राजा तो कोई भिखारी

आजकल देखा जा रहा है कि लोग वेवजह के अपना धन बर्वाद करने में लगे हुवे है।
कुछ लोग तो धनी होते हुवे भी निर्धन हो जा रहे हैं। तो कुछ लोग निर्धन होने के कारण कुपोषण का शिकार हो रहे हैं।
इसी पे आधारित आज आप लोगो के लिए एक कहानी लेकर आया हु । ए कहानी एक डॉक्टर साहब और एक किसान के ऊपर मैंने लिखा है। इस कहानी में ये दरसाया गया है की मन में अगर चाह हो तो राह अपने आप बन ही जाता है और मन से अगर गरीब है तो धन से गरीब होने में समय नही लगता है। इसलिए दधन हो या न हो पर इंसान को हमेसा दिल से अमीर होना चाहिए।
चलिए अब हैम कहानी पे आते हैं।
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एक गाँव मे हरिया नाम का एक किसान रहता था। वह बहुत परिश्रमी था जिसके कारण वह दिन प्रतिदिन आगे बढ़ता जा रहा था। उसी गाँव मे एक डॉक्टर साहब रहते थे। वे उस गाँव के सबसे धनी और सम्मानित इंसान थे परंतु डॉक्टर साहब के मन मे घमण्ड और ईर्ष्या भी बहुत अधिक था। उनके रहते कोई भी व्यक्ति बिना उनके आज्ञा के कोई उत्तम कार्य नही कर सकता था।
हरिया धीरे-२ उस गाँव में सभी किसानों से आगे बढ़ता गया अपने परिश्रम के बल पर। और अपने बच्चों को अच्छे स्कूलो में डलवा दिया। अपने और अपनी पत्नी के साथ अपने घर मे खुसी खुसी ही रहने लगा।
वह अन्य मजदूरों की तरह डॉक्टर साहब से अब ऋण नही लेता था। डॉक्टर साहब सोचे लगता है कि कही हरिया का पूरा परिवार कही मार तो नही गया जो अब हमसे ऋण लेने नही आ रहा हैं।
डॉक्टर साहब ये सारी बाते सोचते-२ उसके घर के लिए निकल दिए जब वह हरिया के घर पहुचे तो अचरज में पड़ गए। उसका घर भी अब डॉक्टर साहब की तरह आलीशान और बड़ा था और वहां भी नौकर-चाकर और चौकीदार आदि लगे हुवे थे।
जब वह चौकीदारों से अनुमति लेकर गृह में प्रवेश किये तो एक नौकर से बोले कि इस घर का मालिक कौन है? नौकर ने कहा हरिया जी है।
इतने में हरिया ने डॉक्टर साहब को देख लिया और डॉक्टर साहब को देखते ही बहुत प्रसन्न हुआ और उनका खूब आवाभगत किया।
डॉक्टर साहब अब क्या कहे फिर वहां से खिन्न मुख लिए वापस चले आये।
और उनको अब उस रात नींद नही आई कि एक किसान अब हमसे आगे कैसे हो गया।
फिर उनके मन मे हरिया के प्रति इतनी ईर्ष्या हुई कि उसको बर्बाद करने के लिए सोचने लगे।
की क्या ऐसा करू जिससे हरिया बर्बाद हो जावें? उसको बर्बाद करने के लिए ही अब दिन रात सोचने लगे।
डॉक्टर ने रात में कुछ आदमियों को कुछ पैसे देकर उसके फसल में आग लगवा दिए। जब ये भक्त हरिया को पता चला कि ये कार्य डॉक्टर साहब का है। तो वह चुप हो गया तब भी डॉक्टर साहब का आक्रोश शांत नही हुआ।
वह हरिया के दरवाजे पर आकर उसको बुरा भला कहने लगे और यह भी बताए कि मैंने ही तुम्हारे फसल में आग लगावाई थी।
हरिया यह सब सुनकर एकाग्रचित मन से डॉक्टर साहब से कहा- हे डॉक्टर!
"अगर ऊपर वाला ठीक रहेगा तो तू मेरा कुछ नही बिगाड़ पायेगा"
यही कहकर उनको अपने घर से निकलवा दिया।
डॉक्टर साहब का पारा अब सातवें आसमान पर चढ़ गया था। अब डॉक्टर साहब गुंडों से हरिया को मरवाने का फैसला कर लिए। इसी तरह हरिया को बर्बाद करने के चक्कर मे अब वो अपने काम से भी विमुख हो गए और धीरे-२ उनका सारा धन भी समाप्त हो गया। और जमीन जायजाद भी बेचकर उसको बार-२ मारने का प्रत्यन्त करते रहे।
लेकिन
"जाके राखो साइया, मार सके ना कोय।
बाल ना बाका कर सके, चाहे जग बैरी होय।।"
हरिया को कुछ नही होता था वह हर बार बाख जाता था।
डॉक्टर साहब एकदिन सोये हुवे थे और रात में एक स्वप्न देखे कि
एक आदमी उनसे पूछ रहा है कि- हे डॉक्टर! तुम हरिया को मारकर या उसका धन नाश करके क्या पाओगे?
डॉक्टर साहब बोले कि मैं इस गाँव का सबसे धनी व्यक्ति हु और मेरे से धनी कोई नही हो सकता ओ हरिया भी नही। जब धन रहेगा तो सभी लोग मेरी इज्जत करेंगे । समाज मे मां प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
वह आदमी बोला- हे डॉक्टर! इतनी अच्छी और लम्बी सोच लेकर इतना तुच्छ काम कर रहे हो तुम।
तुम्हारे पास ये सब कुछ था परन्तु तुम्हारे इस छोटी सोच के वजह से अब नहीं है और न ही अब ये कभी आएगा।
क्योंकि अगर तुम इस हरिया को मार दोगे या धन का नाश कर दोगे तो दूसरा धनवान हरिया फिर पैदा होगा।
तुम किस-२ को मारोगे और अब पता नही कितने मजदूर हरिया से प्रेणा लेकर हरिया के जैसे धनवान हो गए है।
बाताओ- डॉक्टर! तुम किस-२ को मारोगे?
डॉक्टर साहब को अब सब समझ मे आगया की वे अहंकार के वशीभूत होकर ईर्ष्या के वश में आकर बहुत गलत कर बैठे और उनको ये महसूस हो गया कि इसका कोई प्रायश्चित नही है।
फिर भी डॉक्टर साहब उस आदमी से बोले- हे बंधु! मैनें बहुत बड़ी गलती कर दी मैं माफी के काबिल तो नही हु पर मुझे माफ़ कर दो । मैं अपने अहंकार के वशीभूत होकर बहुत से गरीब असहाय व्यक्तियों का तथा उस हरिया का भी बहुत अहित किया हु। मैं माफी के काबिल तो नही हूं पर मुझे क्षमा कर दो। ये कहकर डॉक्टर साहब उस आदमी के पैरों में गिर पड़े।
वह आदमी यह कहकर अदृश्य हो गया-
"दूसरे की बुराई मत देखो,
उसकी अच्छाई देंखो।
अगर कुछ पाओगे तो उसकी अच्छाई में,
नही तो बुराई में तेरा ही विनाश है।।"
डॉक्टर साहब सुबह उठकर सबसे पहले हरिया से माफी मांगने गए और माफी मांगे तब हरिया ने उनको माफ कर दिया और कहा- आप कर्म कीजिये फिर आपको ओहले की तरह प्रसिद्धि मिल जाएगी आपकी बात मैन कभी किसी से नही कही इसलिए अभी भी आपकी इज्जत और मानसम्मान वैसे ही है जो नही है उसके लिए आप संघर्ष कीजिये सब आपके पास होगा।
"क्योंकि कर्म की गति न्यारी होती जो राजा को भिखारी और भिखारी को राजा बना देता है।"
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Regards,
Durgesh Tiwari