छूटा हुआ कुछ - 8 Ramakant Sharma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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छूटा हुआ कुछ - 8

छूटा हुआ कुछ

डा. रमाकांत शर्मा

8.

“गुडमार्निंग उमा जी। कैसी हैं आप?” – गगन सर का यह मैसेज पढ़कर उमा जी के दिमाग में वह सूत्र वाक्य घूम गया जो अभी कुछ दिन पहले ही उनकी नजरों से गुजरा था। उन्होंने जवाब में लिखा – “वैरी गुडमार्निंग गगन सर। सुबह-सुबह आपने हालचाल पूछा, अच्छा लगा। किसी का हालचाल पूछना उसके मन में सकारात्मक विचारों का उदय करना है, कोई अपना है, यह अहसास जीवन जीने की ताकत को मजबूती देता है। हाल पूछने से कौनसा हाल ठीक हो जाता है, बस तसल्ली हो जाती है कि भरी दुनिया में कोई अपना भी है।“

“क्या बात है उमा जी, आज तो आप फार्म में हैं। यह बात बिलकुल ठीक है, हमेशा सकारात्मक विचार ही रखने चाहिए और दूसरों को भी सकारात्मक विचारों से उत्साहित करते रहना चाहिए। आप भी कभी-कभी हमारा हाल पूछ लिया करिए। हमें भी लगेगा कि भरी दुनिया में कोई अपना है।“

“मानो तो अपना, नहीं मानो तो .......।“

“मैंने तो वैसे ही कह दिया था, आप तो सीरियस हो गईं। अच्छा सुनो, आज किसी ने बहुत अच्छा मैसेज भेजा है मुझे – “मरहम जैसे होते हैं कुछ लोग, उनके शब्द सुनते ही हर दर्द गायब हो जाता है।“ सचमुच आपका हर शब्द मेरे लिए मरहम का काम करता है उमा जी।

“बातें बनाना तो कोई आपसे सीखे। पहले यह बताइये कि यह संदेश किसने भेजा है आपको?”

“किसने? क्या मतलब? व्हाट्सएप पर तो ऐसे संदेश आते ही रहते हैं। वैसे पुराने दोस्त ही नियमित रूप से भेजते रहते हैं इस प्रकार के संदेश।“

“मेरा मतलब है, यह संदेश किसने भेजा है, दोस्त ने या दोस्तनी ने?”

“किसी ने भी भेजा हो, क्या फर्क पड़ता है?”

“मुझे पड़ता है फर्क।‘

“ओह, यह तो मैंने सोचा ही नहीं। सुनो, मेरे बचपन के दोस्त सुमेर ने भेजा है यह संदेश। अब तो खुश?”

“हां, खुश। चाय बनानी है मुझे, बंद कर रही हूं फोन।

फोन बंद करने के बाद उमा जी को यह सोचकर झटका लगा कि वे अपने स्वभाव के विपरीत ईर्ष्या भी करने लगी थीं। गगन सर को उनकी कोई महिला मित्र संदेश भेजे शायद यह उन्हें बर्दाश्त नहीं हो रहा था। यह कल्पना भी उन्हें बुरी लगने लगी कि उनके अलावा गगन सर किसी अन्य महिला मित्र से भी संदेशों का आदान-प्रदान करते हैं। हालांकि उन्हें इस बात में कोई संदेह नहीं था कि उनकी अन्य महिला मित्र भी होंगी।

वे गंभीरता से सोचने लगीं, क्या होता जा रहा है उन्हें? पूरे जीवन में ईर्ष्या-द्वेष जैसी चीजें कभी उनके पास भी नहीं फटकी थीं। गगन सर से भावनात्मक संबंध छुपाने के लिए वे झूठ बोलने लगी थीं, पति महोदय से छुपकर संदेशों का आदान-प्रदान कर रही थीं। उनका दिमाग कितना शातिर होता जा रहा था, गगन सर का फोन नंबर उन्होंने पुष्पा के नाम से सेव कर लिया था, अपना मोबाइल फोन उन्होंने वाइब्रेटर पर डाल दिया था ताकि जोर से बजने वाली घंटी से उनके पतिदेव को बार-बार यह पूछने का मौका नहीं मिले कि किसका फोन था और उत्तर में उन्हें बातें नहीं बनानी पड़ें। उन्हें लगने लगा कि यह सब गलत है। पर, दूसरे ही क्षण उन्होंने इस विचार को झटक दिया। किसी भी उम्र में किसी से जुड़ाव महसूस करने के बाद यह सब होना तो स्वाभाविक है। किशोर से मन ही मन भावनात्मक जुड़ाव महसूस करने वाली मासूम सरिता ने भी आखिर तक सबसे यह सच छुपाये रखा था। गोविंद के प्रेम को स्वीकार करने वाली मुखर पुष्पा ने भी उसके प्यार को अपने सीने में छुपाए रखने के लिए वह सबकुछ किया था जो उसे जरूरी लगा था।

उमा जी को यह समझ आने लगा कि वे जिन स्थितियों से गुजर रही थीं और उनके स्वभाव में ये जो बदलाव आ रहे थे, वे यूं ही नहीं आ रहे थे, बल्कि वे किसी के प्रेम में सराबोर हो जाने के बाद की स्वाभाविक प्रक्रिया थी। इस सबका अपना एक अलग आनंद था। संभवत: यही सब पाने और महसूस करने के लिए ही तो उनका मन भटकने लगा था। उन्होंने अब जाकर जाना था कि प्रेम में अद्भुत शक्ति होती है और किसी से भावनात्मक जुड़ाव महसूस करना अपने आपमें दिव्य अनुभूति होती है।

ऐसे क्षण भी आते जब उन्हें लगता कि वे कहीं कुछ गलत तो नहीं कर रही हैं, तब वे स्वयं को समझा लेतीं कि वे गगन सर से सिर्फ और सिर्फ भावनात्मक रूप से ही तो जुड़ी थीं। वे दोनों एक-दूसरे से बहुत दूर रह कर उस दिव्य अनूभूति का आनंद उठा रहे थे। कहीं ना कहीं यह सब उनके जीवन को सार्थक बना रहा था। फिर जीवन केवल एक बार ही तो मिलता है, अगर प्रेम जैसी सशक्त और अलौकिक भावना को जाने, समझे और महसूस किए बिना ही जीवन समाप्त हो जाता है तो क्या यह खुद के प्रति अन्याय नहीं होगा। वह खुद ही अपने तर्कों से आश्वस्त हो लेतीं और उस बहाव में तिनके की तरह खुद को बह जाने देतीं।

सुबह उठते ही उन्हें गगन सर के मैसेज का इंतजार रहता। अगर किसी वजह से उनका मैसेज नहीं होता तो वे खुद पहल करके उन्हें गुडमॉर्निंग के साथ-साथ कोई ना कोई भावनात्मक संदेश भेज देतीं। संदेश भेजने या फिर उनका संदेश प्राप्त होने पर उन्हें ऐसा लगता जैसे उस संदेश ने उन दोनों के बीच एक अदृश्य तार खींच दिया हो और उसके बहाने दोनों की भावनाएं एक-दूसरे तक पहुंचने लगी हों। बीच-बीच में गगन सर या वे खुद फोन पर भी बात कर लेते। जिस दिन उनकी फोन पर बात होती उस दिन उन पर एक खुमार सा छाया रहता क्योंकि गगन सर हर बार उन्हें यह अहसास कराते रहते थे कि उनकी आवाज उनके कानों में अमृत की बूंदों जैसी पड़ रही है। उमा जी को यह सुनकर बहुत अच्छा लगता, पर वे ये सतर्कता बरतती थीं कि फोन पर बातें रोजाना न हों। उन्होंने गगन सर को भी आगाह किया था कि वे उन्हें बहुत ज्यादा फोन न करें क्योंकि एक बार उनकी बातें शुरू हो जाती थीं तो उन्हें समय का कोई ध्यान नहीं रहता था और लंबी बातचीत का अंदाजा उनके पतिदेव को हो सकता था।

उस दिन जब वे नहा कर अपने कमरे में लौटीं तो यह देखकर चौंक गईं कि उनके पतिदेव उनका मोबाइल फोन हाथ में लिये खड़े थे। उन्हें देखते ही उन्होंने कहा था – “उमा जी, मैं कुछ काम से कमरे में आया तो देखा तुम्हारा मोबाइल वाइब्रेट कर रहा था। तुम बाथरूम में थीं, मैंने फोन उठाकर देखा किसी पुष्पा का फोन था। जैसे ही मैंने हलो कहा, उधर से फोन कट गया। कौन है यह पुष्पा?”

“मेरे बचपन की सहेली है। वर्षौं से हम आपस में संपर्क में नहीं थे क्योंकि वह शादी के बाद अपने पति के साथ यूएस चली गई थी। अब वे लोग वापस भारत लौट आए हैं। मां से मेरा फोन नंबर लेकर कुछ दिन पहले उसने मुझे फोन किया था, उसका नंबर मैंने सेव किया है।“

“पहले कभी इस सहेली पुष्पा का कोई जिक्र नहीं हुआ?”

“बताया ना, उसकी शादी हमारी शादी से पहले हो गई और वह यूएस चली गई थी। उससे कोई संपर्क ही नहीं रहा तो उसका जिक्र कहां से होता।“

“अच्छा, अच्छा। पर तुमने अपना फोन वाइब्रेटर पर क्यों डाला हुआ है। कभी तुम कमरे में नहीं हुईं और किसी का फोन आया तो पता भी नहीं चलेगा।“

“आप लगातार काम में डूबे रहते हैं। लैंडलाइन फोन की तेज घंटी तो आपको डिस्टर्ब करती ही है, सोचा मेरे मोबाइल फोन की घंटी से भी आप डिस्टर्ब न हों, बस इसीलिए इसे वाइब्रेटर पर डाल दिया है।“

“गुड” - उनके पति ने कहा और हाथ में पकड़ा फोन उमा जी को थमा कर वे बाहर निकल गए।

उमा जी के हाथ में मोबाइल फोन आया तो उनकी सांस में सांस आई। उन्होंने उसे अपनी मुट्ठी में कस कर पकड़ लिया। अगर वे उनकी चैट पढ़ लेते तो....? वे गगन सर की ताकीद के बाद भी उनके साथ हुई चैट को डिलीट नहीं कर पाती थीं और दिन में कई –कई बार उन्हें पढ़कर मुदित होती रहतीं।

उमा जी ने जिस सफाई से झूंठ बोला था, उस पर उन्हें खुद आश्चर्य हो आया। गगन सर का फोन नंबर पुष्पा के नाम से सेव करने की उनकी तजबीज भी काम कर गई थी। कितनी शातिराना चालें चलने लगी थीं वे।

उन्होंने अपने मोबाइल फोन को अपने तकिए के नीचे सरका दिया। वैसे उन्हें पता था कि उनके पतिदेव उनका मोबाइल फोन आज जैसे अपवाद को छोड़कर कभी नहीं उठाते। इसीलिए वे निश्चिंत रहती थीं।