पूर्ण-विराम से पहले....!!!
11.
उस रोज प्रखर ने जब कविता लिखा हुआ कागज़ शिखा को दिया था तो अनायास ही उसके हाथ ने शिखा के हाथों को पहली बार स्पर्श किया| शिखा के हाथों के कंपन से मानो कागज़ पर लिखी कविता भी तरंगित हो उठी....दोनों को एक साथ महसूस हुआ|
शिखा को बारिश की पहली बूंदों-सा प्रखर का स्पर्श महसूस हुआ था| जिसकी छुअन आज भी उसके साथ थी| उस पल में शिखा का दिल सिर्फ बहे जा रहा था और दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था| शायद ऐसा ही कुछ प्रखर के साथ भी हुआ था| तभी तो उन दोनों के बीच पसरी खामोशी लाइब्रेरी में पसरी खामोशी से ज़्यादा मुखर हो उठी थी|
जब प्रखर ने ‘रूह’ कविता को पढ़ा..
‘दिल का एक हिस्सा/मन्नत के धागों से बंधा/रूहो का होता है/सुनते है वहाँ कोई/बहुत दिल से जुङा रहता है/दिखता नहीं वो कोना/ना ही वो रूह नजर आती है/तभी तो ऐसे/रिश्तों को समझ पाना भी/आसां कहाँ होता है../खामोश रूहें वहीं सकूंन से/गले मिला करती हैं/कहने को तो कुछ नहीं/पर महसूस करने को/बहुत कुछ हुआ करता है/दिल के उसी कोने में/रूहों का आरामगाह हुआ करता है..’
तब वो दबे पाँव शिखा के दिल के उसी कोने में कविता के भावों-सा ही जाकर बैठ गया| जिसको प्रखर ने आरामगाह का नाम दिया था| न जाने कितनी देर तक दोनों चुपचाप एक दूसरे को महसूस करते रहे| सिर्फ़ दोनों का साथ होना अंदर-बाहर सब तरफ प्रेम का बिखरना था|
शिखा ने उस रोज लाइब्रेरी से उठते वक़्त प्रखर से बहुत धीमी आवाज़ में कहा था..
“कितना गहरा लिखते हो प्रखर कि सीधे-सीधे रूह में उतरते हो| सिर्फ मेरे लिए तुम्हारा लिखना मुझे बहुत स्पेशल महसूस करवाता है..तुम्हारे कहे-लिखे हुए के साथ-साथ मैं तुममें खो रही हूँ प्रखर| तुम्हारा हर शब्द अब मुझे छूने लगा है| जीवन के मायने बदलने लगे है| बहुत प्यारे हो तुम| तुमसे ही जीना सीख रही हूँ|”
“पागल हूँ तुम्हारे लिए.. हमेशा भगवान से तुमको खुद के लिए माँगता हूँ|.. तुम भी बहुत प्यारी हो शिखा| किशोर अवस्था में तुम्हारी जिस कमी को मैंने महसूस किया है.. उसने मेरी ज़िंदगी के मायने बदल दिए हैँ| उस समय भी बस तुम्हें देखने की चाहत इतनी तीव्र होती थी की मदहोश-सा तुम्हारे स्कूल तक पहुँच जाता था| मेरे पास तुमको और पढ़ाई को सोचने के अलावा कोई काम नहीं था| वादा करो शिखा बस हमेशा मेरे साथ रहना|”
प्रखर की बातों को सुन-सुन कर तो शिखा को भी लगने लगा था उन दोनों का रिश्ता जन्मों का है| शिखा को खोया हुआ देखकर प्रखर मुस्कुरा दिया| प्रखर के लिए शिखा के अंदर झांकना आज कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी| शिखा के न होने पर भी उसने अक्सर उससे घंटों बातें की थी| आज भी समीर की उपस्थिति में दोनों कहाँ से कहाँ पहुँच गए|
तभी समीर की कही हुई बात ने शिखा और प्रखर को वापस वर्तमान में लाकर खड़ा कर दिया|
“अब समझा आप ने आगरा शहर ही रुकने को क्यों चुना......आप तो लिखते भी है प्रखर| पढ़ने का शौक मुझे भी खूब रहा है| पर कभी बहुत ज़्यादा लिख नहीं पाया| हाँ डायरी जरूर लिखता रहा| मुझे बोलने की भी आदत बहुत ज़्यादा नहीं है| सो जो भी महसूस होता है....डायरी में लिख लेता हूँ| पर हाँ तुम्हारी कविताएं जरूर सुनूँगा| श्रोता बहुत अच्छा हूँ|.. तुमसे मिलकर बहुत अच्छा लग रहा है|....”
समीर की बातें सुनकर प्रखर को लगा शायद कुछ है जो समीर कहना चाहता है.|
“समीर कुछ खुलासा करना चाहे तो करिए न..मुझे बहुत अच्छा लगेगा..|”
प्रखर की बात को सुनकर समीर बोला....
“अब तो मिलना होता ही रहेगा..खूब बातें होंगी..अभी तो अपनी बातें बताइए| तुमने तो अकेले इतना कुछ मैनेज किया है...मैं भी कुछ न कुछ समय-समय पर बताता ही रहा हूँ| अब तुम से सुनना चाहता हूँ|”
प्रखर के आग्रह पर समीर बोला..
“प्रखर! कहाँ से शुरू करूँ तुम ही बताओ| मैं खुद बहुत कुछ बताने में असमर्थ रहता हूँ| यह काम मैंने शिखा पर छोड़ दिया है| शिखा बहुत अच्छे से घटनाओं को सुनाती है...बस इसको मौका मिलना चाहिए| अभी तो शायद तुम्हारी बातें ही इतनी तल्लीनता से सुन रही है कि उसको बोलने का मौका नहीं मिल रहा| नहीं तो श्रोताओं को इसकी बातें सचित्र चलती हुई प्रतीत होती हैँ| हमेशा ही स्कूल में यह ज़िम्मेदारी शिखा को ही सौंपी गई| शायद शिखा की इस खूबी की वजह से मैंने कभी पहल करने का नहीं सोचा| तुम इसको मेरा आलस भी कह सकते हो|”
आज समीर के मुंह से अपनी इतनी तारीफ़ सुनकर शिखा को आश्चर्य हुआ| नहीं तो समीर की चुप्पी में शिखा ने हमेशा ही कयास लगाए थे| पर प्रखर के सामने समीर को खुलते देख कर शिखा को बहुत अच्छा लग रहा था| समीर भी प्रखर से बात करते में कब आप से तुम पर आ गए शिखा के लिए बहुत बड़ी बात थी| वरना समीर किसी के भी साथ इतनी जल्दी नहीं खुलते थे|
समीर ने अपनी बात आगे जारी रखते हुए बताया....
प्रखर! शिखा मेरी माँ की सबसे प्रिय बहूँ थी| यह इसको नहीं पता क्यों कि माँ हमेशा कहा करती थी.. ‘बहुत ज्यादा तारीफ करने से नज़र लग जाती है|’ विवाह के बाद शिखा ने घर की सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया| हम दोनों की पोस्टिंग जब आगरा शहर के ही केन्द्रीय विद्यालय में हुई....हम लगभग पाँच साल माँ-बाऊजी के साथ रहे| माँ-बाऊजी दोनों ही उसूल पसंद व अनुशासन प्रिय थे| माँ अक्सर शिखा के लिए कहा करती थी..
‘कामकाज़ी बहु है पर इसने तो कभी मुझे कोई कष्ट ही नहीं दिया| घर में होती है तो माँ ही माँ पुकारती है| इसको देखकर लगता हैं मेरी ही जाई है| ऐसी बहु कर्मों वालों को मिलती है|’
प्रखर जानते हो मैं माँ की बातें चुपचाप सुनता रहता और मुझे लगता अगर माँ खुश है तो सब बहुत अच्छा है| मैंने भी कभी शिखा को यह सब बातें नहीं बताई| मुझे लगता था माँ की नज़र वाली बात शायद सही हो.. पर शिखा को हमेशा लगता था....मैं बहुत रूखा इंसान हूँ|”
आज शिखा को समीर पर बहुत प्यार आया..कितनी मासूमियत के साथ समीर ने अपना सच भी प्रखर के सामने बोल दिया| जैसे ही शिखा ने समीर की आँखों में झाँका उसको खुद ही शर्म आ गई और वो समीर से बोली..
“आप को वैसे तो बोलना आता ही नहीं पर आज क्या हो गया है | हम दोनों तो प्रखर को सुन रहे थे....आपने तो हमारी बातें सुनाना शुरू कर दिया|”
आज शिखा को समीर से जुड़े अनूठे प्यार का अनुभव हुआ| उसे लगा कि काश यह सब समीर ने थोड़ा-सा भी उसे महसूस करवाया होता तो..ज़िंदगी और कितनी खूबसूरत हो जाती|
तभी समीर ने जोर से हँसते हुए कहा..
“हाँ भई प्रखर गलती हो गई.. न जाने तुममें क्या जादू है कि गूंगा समीर भी तुम्हारे रंग में रंग गया है|”
समीर की इस मासूम-सी बात पर तीनों कितना जोर-जोर से हँसे थे| एक दूसरे की बातों को साझा करके तीनों ने खूब अच्छा समय साथ में बिताया|
बहुत रात हो जाने से शिखा और समीर अपने घर लौट आए| घर पहुँचने के बाद भी शिखा प्रखर के साथ गुज़रे अतीत में ही घूम रही थी|
उस रोज शिखा को अतीत के कितने खुले-अधखुले पृष्ठों को पढ़ने का मौका मिला| समीर के बातें साझा करने से शिखा बहुत खुश थी|
शिखा को फिर से बार-बार याद आ रहा था.....कैसे प्रखर उस पर जान छिड़कता था। कैसे उसकी छोटी-छोटी ख्वाहिशों का ख्याल रखता था। वो जब प्रखर को बोलते हुए कनखियों से देख रही थी तो प्रखर भी उसके इस तरह देखने पर कहीं न कहीं बोलते-बोलते अटक रहा था। तभी तो पहले खुद को नॉर्मल करता और बोलता। आज की मीटिंग के बाद दोनो बार-बार अतीत में लौट रहे थे।
लगभग दो घंटे साथ बैठने के बाद जब समीर और शिखा घर लौटे तो समीर ने शिखा से कहा था..
"अपनी बातें बहुत अच्छे से सुनाता है प्रखर|......दिल का बहुत अच्छा आदमी है। मुझे उससे मिलकर बहुत अच्छा लगा। उम्र के इस पड़ाव पर ऐसे ही मित्रों की जरूरत होती है| आज उसके साथ दो घंटे कहाँ निकल गए.....पता ही नहीं चला| इतने बड़े औहदे पर रहा है....पर उसने कहीं भी कुछ ऐसा महसूस ही नहीं होने दिया| किसी रोज समय निश्चित करके उसको फिर से खाने पर जरूर बुला लेना।"...
शिखा ने जैसे ही समीर के मन की बात सुनी उसने हामी में सिर हिलाया और रात के ग्यारह बजने वाले थे सो वो भी सोने के लिए लेट गईं। दोनो खाना खाकर ही प्रखर के यहाँ गए थे। सो अब सोना ही था। लेटते ही समीर को तो नींद आ गईं.....पर शिखा की आंखों से नींद कोसों दूर भाग गई।
क्रमश..