Purn-Viram se pahle - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 3

पूर्ण-विराम से पहले....!!!

3.

शिखा सोचने बैठी तो एक के बाद एक अतीत का पृष्ठ उलटता ही चला गया| स्कूल,कॉलेज, प्रखर का मिलना, फिर समीर से विवाह और समीर के विदा लेने के बाद उसकी डायरियों का मिलना..रिश्तों से जुड़े समीकरण.. कितनी बातें कितनी यादें.. अथाह समंदर के जैसी.. जितना गहरे उतरते जाओ.. कितनी रंग-बिरंगी सीपियाँ आस-पास बिखरी हुई दिख रही थी| कुछ बदरंग सीपियाँ भी जीवन के यथार्थ को सहेजे हुई थी|

माँ-बाऊजी के जाने के बाद घर के बड़े बेटे-बहु होने के नाते समीर और शिखा ने मिलकर पैत्रक घर के सभी निर्णय लिए थे। यह घर आगरा में था| जिसकी वजह से दोनों ने रिटायर होने के बाद आगरा में ही बसने का निर्णय लिया था|

घर में बारह कमरे, खूब बड़ा आँगन,बड़ी रसोई और काफ़ी खुली हुई जगह थी| इतने बड़े घर को कोई एक भाई नही रख सकता था। करोड़ो की प्रॉपर्टी थी| समीर और उसके दो भाइयों का उसमें हिस्सा था| तीन भाइयों का आपस में असीम स्नेह था| समीर के दोनों छोटे भाइयों के लिए आगरा आकर रहना मुश्किल था| दोनों की ही नौकरियों में अभी कई साल बाकी थे| रिटायर होने के बाद वो अपने-अपने बच्चों के साथ रहने की प्लानिंग कर चुके थे| सिर्फ़ एक समीर ही था जो चिर-परिचित जगह पर अपना आखिरी डेरा जमाने का सोच सकता था|

समीर बड़ा होने के बाद भी अपना निर्णय किसी भी भाई पर थोपना नहीं चाहता था| वैसे भी थोपे हुए निर्णय मन-मुटाव ही खड़े करते हैं| समीर को इस बात का भली-भांति एहसास था| सभी निर्णय साझे होने थे|

पहले तीनों भाइयों ने सोचा जो आगरा में रहना चाहता है वही सारी प्रॉपर्टी को खरीद ले| ताकि माँ-बाऊजी की यादगार भी बनी रहेगी| साल में एक-दो बार सब भाई आपस में मिल लेंगे| या कभी तीज त्योंहार पर सब इककट्टा हो जाएंगे| सभी भाइयों को यह सुझाव बहुत पसंद आया था| पर यह सुझाव बहुत व्यवहारिक नहीं था|

समीर ने सभी भाइयों को एक साथ बैठा कर कहा था..

“माँ-बाउजी के बनाए हुए घर के साथ हम तीनों भाईयों का बाईस-पच्चीस साल पुराना बचपन का नाता है..यह घर हम सभी के लिए सिर्फ़ ईंट,पत्थर और गारे का बना हुआ मकान नहीं है| जीवन का बहुमूल्य समय हम सबने यहाँ गुजारा है| इस घर की चिनाई में माँ-बाऊजी के संस्कार और मूल्य मजबूती से जमे हुए हैं| तुम दोनों क्या सोचते हो पहले अपनी-अपनी सलाह दो फिर मैं अपनी बात रखूँगा|”..

अपनी बात बोलकर समीर चुप हो गया था.. और अपने दोनों भाइयों के विचारों को सुनने का इंतजार करने लगा| तीनों भाइयों में प्यार और समझदारी बहुत थी| पर किसी के पास इतना रुपया-पैसा नहीं था कि वो शेष दो भाइयों के हिस्से दे दे और खुद पूरे मकान को रख ले| इस बिन्दु पर निर्णय होना मुश्किल था| समीर के अलावा दोनों भाइयों ने एक मत होकर उससे कहा..

“भैया आप हम दोनों से बड़े है| आपको सबकी स्थितियों का बहुत अच्छी तरह पता है| आप जो भी तय करेंगे हम दोनों उसका मान रखेंगे|”

तब समीर ने दोनों भाइयों को अपने पास बैठा कर बहुत प्यार से कहा था..

“मुझे इस समय जो भी उचित लग रहा है वो बोल देता हूँ| अगर उससे भी बेहतर किसी को सूझे तो जरूर बताना| मिलकर वही करेंगे जिससे सबका हित हो| एक विकल्प तो यह है इस घर को बेच दिया जाए जो भी रुपया आए उसके तीन हिस्से कर दिए जाए|”

इतना बोलकर समीर ने अपने भाइयों की तरफ देखा था ..दोनों भाइयों की आँखों में नमी देखकर समीर ने आगे कहा..

“दूसरा विकल्प यह है कि तीन हिस्सों में से एक हिस्से को बचाकर बाकी को बेच दिया जाए| जो उस हिस्से में रहेगा माँ-बाऊजी की कुछ यादों को सहेज पाएगा| ताकि भविष्य में कभी भी कोई आना चाहे तो इस घर का द्वार हमेशा के लिए खुला रहेगा|”

सभी ने खुशी-खुशी इस बात पर सहमति जताई| फिर बात उठी कि कौन आगरा में रहना चाहता है| इस पर भी समीर के ऊपर ज़िम्मेदारी आ गई| सभी के साथ कोई न कोई मजबूरी थी| उस दिन शिखा को समीर के विशाल कद और भाइयों के प्रति असीम प्रेम का एहसास हुआ|

शिखा को बखूबी पता था कि समीर अपनी ईमानदारी का कभी सौदा नहीं करते| वो अपने परिवार और घर को बहुत अहमियत देते हैं| इस वाकये के बाद शिखा के दिलों-दिमाग में समीर की इज्जत बहुत बढ़ गई| समीर के हर निर्णय और घर से जुड़ी चर्चा में शिखा उसके साथ थी|

मकान का दो तिहाई हिस्से के बिकते ही दोनों भाइयों ने अपनी-अपनी मर्ज़ी के शहर में प्रोपेर्टी खरीद ली। समीर और शिखा दोनो ही केन्द्रीय विद्यालय में सीनियर टीचर के औहदे से रिटायर हुए। आखिर के तीन साल समीर ने तो प्रिन्सपल के पद को बहुत गरिमा से निभाया| जगह-जगह ट्रांसफर होने से दोनो ने अंत में रिटायरमेंट के बाद पुश्तैनी घर में आने का सोच ही रखा था| इसलिए उन्होंने किसी और जगह कोई इनवेस्टमेंट नहीं किया|

यह वही घर था जहां समीर का बचपन गुजरा था और शिखा बहु बनकर आई थी| हालांकि जब बहु बनकर आई थी तब के घर का आकार, आज के आकार से कहीं बहुत बड़ा था| पर स्मृतियों का क्या है.....वो तो भले ही पूरे घर में बिखरी हो....जब सिमटती है तो खुद के आस-पास ही सिमटकर आकार ले लेती हैं|

घर की बड़ी बहु होने के नाते माँ-बाऊजी ने खूब लाड़ किया| इस घर की दीवारों से उनकी आवाज़ें आज भी गूँजती थी|

माँ ने कभी भी शिखा का नाम नहीं लिया था.. वो हमेशा उसे बहु कहकर ही पुकारती थी| घर में घुसते हुए शिखा के चारों ओर पुरानी स्मृतियाँ ही घूम रही थी...शादी दो तीन दिन बाद माँ ने उसे अपने पास बैठाकर कहा था..

“बहु! घर की बड़ी बहु हो तुम..घर को बनाना और खराब कर देना एक औरत के कंधों पर होता है| हम दोनों रहे न रहे इस घर कि नींव बचाए रखना| समीर के बाऊजी ने इस घर में अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई लगाई है| उसको जाया मत होने देना बेटा| तुमको अपने घर में तुम्हारी माँ और भाई से मांग कर लाई हूँ| ..तुमको यह बात तो पता ही होगी|”

माँ की बातें सुनकर शिखा ने उनकी हर बात पर सिर हिला कर सहमति दी थी|

माँ के दिए हुए प्यार व जिम्मेदारियों ने शिखा को वर्तमान को अच्छे से निभाने में मदद की| ज़िंदगी की एक रफ्तार जो विवाह उपरांत शुरू हुई थी....वो रिटायरमेंट के बाद जाकर रुकी|

दोनों को घर की कोई चिंता नहीं थी| विरासत में माँ-बाऊजी का दिया उपहार उनके पास था ही| जो दो जनों के रहने के लिए बहुत काफ़ी था| बंटवारा होने के बाद समीर ने उसको आज की जरूरतों के हिसाब से करवा लिया था| हालांकि मूल ढांचा तो नहीं रहा पर कहने को समीर आज भी उसी ज़मीन पर खड़ा था जहां तीनों भाइयों का बचपन गुजरा था| माँ-बाऊजी की यादों के घर को, समीर जितना सँजो पाया उसने सँजोया|

समीर और शिखा जिस रोज अपना सामान लेकर उस घर में उतरे न जाने कितनी यादें साथ-साथ उतर पड़ी| दोनों की खुशियां आँखों से झलक रही थी| एक-एक कर दोनों भाइयों का फोन आया.....

‘भैया अब आप घर पहुँच गए हैं तो वो भी बचपन की यादें ताज़ा करने जल्द ही पहुंचेंगे|’

भाइयों की बातें सुनकर समीर का कलेजा दूना बढ़ हो गया| उसने ईश्वर से प्रार्थना की.. हे भगवान इस प्रेम को हमेशा बनाए रखना| हर रिश्ते को निभाने में शिखा ने भरपूर साथ दिया| शिखा के किए को समीर ने कभी बोला नहीं| पर उसके भाइयों के अपनी भाभी पर खूब प्यार लुटाया| उसे खूब मान-सम्मान दिया| हमेशा दोनों देवर जब भी मिलते पैर छू कर कहते..

“भाभी! माँ-बाऊजी के जाने के बाद आप दोनों ने हमारा ख्याल रखा है| कभी कोई आज्ञा भी देनी हो तो बगैर सोचे दे देना| आप और भैया ने हमेशा हमारे मन का सा किया है| इस ऋण को आजीवन नहीं चुका पाएंगे|”

उस रोज शिखा और समीर पुरानी बातें याद कर करके भावविव्हल होते रहे थे जैसे ही सुध लौटी समीर शिखा से बोले थे..

“कितने काम बाकी है शिखा| हम दोनों तो यहाँ आकर खो ही गए|”

दोनों ने मिलकर सारा सामान जमाया| इस उम्र में घर में सामान जमाने का काम किसी एक के बस का तो नहीं था| दोनों को सामान जमाने में काफ़ी समय लगा| सामानों से भरे एक-एक कार्टन को दोनों मिलकर खोलते और उसका सामान करीने से जमाते| सवेरे से शाम कब हो जाती दोनों को पता ही नहीं चलता|

अभी तक दोनों को विद्यालय की तरफ से रहने की सुविधा मिलती रही थी| जितनी भी सुविधाएं स्कूल वाले देते रहे दोनों ने हमेशा बहुत संतुष्टि के साथ ही जीवनयापन किया था| यह तो पहली बार था कि दोनों अपने घर में हमेशा के लिए रहने आए थे|

शिखा ने भी अपने घर को खूब दिल से सजाया| दोनों का लगभग रोज ही बाजार का चक्कर लगता| किसी न किसी सामान की जरूरत रोज ही पड़ जाती थी| पर दोनों घर में बहुत ज़्यादा रुपया खर्च करने के मूड में नहीं थे....क्यों कि उनको बहुत अच्छे से पता था कि उनका बेटा सार्थक कभी इस घर में रहने नहीं आएगा|

क्रमश..

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED