पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 12 Pragati Gupta द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 12

पूर्ण-विराम से पहले....!!!

12.

यादों की लड़ियों ने उसे कॉलेज के प्रांगण में लाकर खड़ा कर दिया था। प्रखर से जब भी शिखा मिलती.....साथ में गुज़रे अतीत में चुपचाप ही पहुँच जाती| समय-समय पर अतीत को ओढ़कर उसकी गर्माहट को महसूस करना शिखा की बहुत पुरानी आदत थी| जिसे प्रेम में इतना कुछ मिला हो.....वो इन सुखद एहसासों को क्यों छोड़ना चाहेगा|

उस रोज कॉलेज का पहला दिन था| जब प्रोफेसर गुप्ता ने तीन पीरियड लगातार एक साथ लिए थे| प्रखर का तीनों पीरियड में शिखा को लगातार दो घंटे तक देखते रहना, शिखा के अंदर आज भी कहीं ठहरा हुआ था। प्रखर के लगातार घूरने से शिखा कहीं बौखला रही थी.....पर प्रखर बहुत शांत निश्चल बैठा उसको बराबर देख रहा था। यही क्रम तीन दिन तक लगातार चला|

प्रखर के चेहरे पर कोई ग्लानि का भाव नहीं था| उसको तो बस शिखा को भरपूर निहारना था| जब शिखा से बर्दाश्त नहीं हुआ तो क्लास के बाद उसने प्रखर को रोक कर उसकी क्लास लगाई थी..

"यह क्या बत्तमीजी है तुम्हारी..कौन हो तुम....मुझे ऐसे घूरने वाले। तुमको शर्म नही आती ...कोई भी मेरे या तुम्हारे बारे में क्या सोचेगा। तुमको अपनी इज्जत का खयाल नहीं तो मेरी इज्जत का तो सोचो|"...

"मैं कौन नही.. प्रखर हूँ शिखा...तुम्हारा नाम मैंने तुम्हारी मित्रों से जाना| वो भी आज से नही आज से चार साल पहले। कौन क्या कहेगा यह मुझे नही मालूम..पर जैसे ही तुमको कॉलेज के गेट में घुसते हुए देखता हूँ.. मेरी आँखें मेरा साथ छोड़ कर तुम्हारे पीछे-पीछे घूमती है पगली...मेरे बस में कुछ भी नही रहता..हर रोज इंतज़ार करने लगा हूँ कॉलेज के गेट पर ही तुम्हारा। कब तुम आओ और कब हम साथ-साथ क्लास अटेंड करने पहुंचे।.....तुमसे दूर ही बैठता हूँ ताकि तुमको अच्छे से निहार सकूँ|”

"आज से नही चार साल पहले से...”मानी क्या कहना चाहते हो तुम प्रखर। तुम मुझे पहले से जानते हो...पागल तो नहीं हो गए हो|”

“हां बहुत पहले से जानता हूँ ... वो भी कैसे....यह भी बताऊँगा तुमको।"

"मानी...क्या कहना चाहते हो..साफ-साफ बोलो। मुझे तो तुम्हारी बातें सुनकर कुछ पागलपन-सा लग रहा है। तुम सच में पागल तो नही हो प्रखर।"

शिखा की बातें सुनकर प्रखर उस रोज कितनी जोर से हंसा था। उसकी निश्चल और मासूम हंसी को सुनकर शिखा को घबराहट व उत्सुकता एक साथ जाग्रत हुई थी।

“पहले बताओ क्या सच है।"

तब प्रखर ने कहा था पहले एक बार मेरे साथ कॉफी पीने चलने का वादा करो| सब बताऊँगा| कहीं बाहर नहीं जाएंगे बस यही कॉलेज कैन्टीन में साथ बैठेंगे| उस समय शिखा को सोच में डूबते हुए देखकर प्रखर ने कितनी मासूमियत के साथ कहा था| शिखा इतना क्या सोच रही हो बहुत लोग होते हैं वहाँ| मैं झूठ नहीं बोलता हूँ|

तुमको हमेशा मेरे से बात करने के बाद मुझ पर विश्वास बढ़ेगा| शिखा को तब याद आया कैसे उसके सहमति में सिर हिलाते ही प्रखर के चेहरे पर मासूम-सी मुस्कान फैल गई थी| जब वो दोनों कैन्टीन में मिले प्रखर ने ही बात शुरू की..

"शिखा आज मैं कितना खुश हूँ तुमने मेरी छोटी-सी पहली इच्छा को मान लिया| मैं अपनी कोई भी बात कहने से पहले यही कहूँगा.. मेरी हर बात पर प्लीज भरोसा करना| तुमको याद है शिखा तुम्हारे स्कूल के सामने एक बॉयज स्कूल हुआ करता था। मेरे और तुम्हारे स्कूल की पूरी छुट्टी साथ-साथ हुआ करती थी"..

"हाँ याद है अच्छे से ...आगे बोलो प्रखर तुम....पर रुको....कहीं तुम वो लड़के तो नही जिसने मेरी साईकल दो बार रोकी थी और मुझे से बात करने की कोशिश की थी। एक बार तुमने मेरी साईकल के आगे अपनी साईकल अड़ा दी थी ...और हां.. तुमने बोला था 'मुझे तुम्हारा आज का एग्जाम पेपर देखना है।'

"सही पहचाना शिखा तुमने...और तुमने बोला था....नही दिखाना मुझे। जाओ यहां से। उस दिन तो मैं चला गया पर अगले दिन मैं खुद को फिर से तुमसे मिलने से नही रोक पाया ...फिर पहुंच गया तुमसे मिलने। आज के जैसे ही कितनी प्यारी लगती थी तुम उन दिनों में शिखा। स्कूल कैबिनेट में थी न तुम। तुम्हारे सेश पर सेक्रेटरी लिखा हुआ था और बैच पर भी। स्कूल कैबिनेट में होने से तुमको रौब गाँठना खूब आता था|”

उस दिन कुछ रुक कर फिर से अपनी गलती सुधारते हुए प्रखर ने बोला था....

“ओह! सॉरी भूल गया शुरू में तुम सिर्फ बैच लगाती थी क्लास मॉनिटर का। ग्यारवी-बारहवीं में सेश था सेक्रेटरी का। सही बोल रहा हूँ न शिखा। लगातार चार साल छिप कर देखा है मैंने तुमको। अगर तुमने अपने भाई न भेजे होते तो ...बोलकर प्रखर चुप हो गया था|”..

उस रोज कैन्टीन में पहली बार किसी लड़के के साथ शिखा कॉफी पीने गई थी| जब तक प्रखर के साथ रही....चुपके से बार-बार अगल-बगल झाँकती रही थी शिखा| कहीं कोई देख-सुन तो नहीं रहा| जब इत्मीनान हो जाता बार-बार उसके चेहरे पर आई लाली को देखकर प्रखर अनायास ही मुस्कुरा जाता|

"याद आया तुमको शिखा..साइकिल रोकने के बाद तुमने अपने भाइयों को बोल दिया था। खूब धमका कर गए थे वो मुझे| शिखा तुमको तो पता ही होगा हॉकी लेकर आये थे तुम्हारे भाई..पर मैं भी ढीठ था| छिप-छिप कर तुमको देखने आता था।

"हाँ याद आया प्रखर। मैं भी डर गई थी कहीं तुम...मुझे वापस तंग न करो|”

शिखा ने उस रोज प्रखर को उस दूसरे लड़के के बारे में भी बताया था| जिसने उसे बहुत हैरान किया था| रोज सवेरे-सवेरे वो शिखा की साइकिल के साथ अपनी साइकिल लेकर रवाना होता| उस लड़के का स्कूल भी शायद शिखा के स्कूल ही पास था| लड़के-लड़कियों के काफ़ी स्कूल शिखा के स्कूल के आस-पास थे| उन दिनों ट्रैफिक ज्यादा नहीं होता था| तो काफ़ी बच्चे साइकिल से ही स्कूल-कॉलेज जाया करते थे| सो वो पूरे रास्ते खूब सारे प्रेम गीत गा-गाकर शिखा को सुनाया करता था|

उस रोज अपनी यह बात बताते-बताते अचानक शिखा बहुत जोर से हंस पड़ी थी क्यों कि शिखा दिखने में बहुत सुंदर थी| एक ही एरिया में लड़के-लड़कियों के कई स्कूल होने के कारण ऐसी घटनाएं होती रहती थी|

शिखा ने कैसे-कैसे शरमाते हुए प्रखर से सारी बात साझा की थी| घर से निकलते में उसे कैसे घबराहट होती थी| ..पंद्रह-बीस दिन गुज़रने पर भी जब वो रोज उसके पीछे आता रहा| तो शिखा ने एक दिन अपने सभी चचेरे भाइयों को इस वाकये का बताया|

एक बड़े कॅम्पस में पापा के सभी भाई रहा करते थे और शाम में सभी भाई-बहन एक जगह इककठे होकर खूब गपियाते थे| सभी भाइयों ने उसको सलाह दी कि..

‘एक बार खुद जोर से डाँट लगा.. फिर कोई नहीं आएगा.. अगर फिर भी नहीं माना तो हम देख लेंगे|’

प्रखर को अपनी यह बात बताते-बताते शिखा कितना हंसी थी| भाइयों के जोश ने कैसे उसका खूब हौसला बढ़ाया| अगले ही दिन जैसे ही उसने गाना शुरू किया..उसने साइकिल से उतर कर उस लड़के को खूब झाड़ा...

‘क्या बतमीजी है यह.....इतना ही गाने का शौक है तो घर पर सुर् लगाओ.. मेरे पीछे -पीछे आकर गाने की क्या जरूरत है.. सुधर जाओं नहीं तो.. बोलकर वो चुप हो गई थी|’.. उसके बाद वो कभी उसके पीछे नहीं आया|..

उसने घर लौटकर जब भाइयों को सारा वाकया बताया तो यह भी बताया कि आज पहली बार डांटते में कैसे उसका एक पैर हिल रहा था.. और ऐसे में उसको समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे..| प्रखर को उसने यह भी बताया कि उसके सारे भाई बहुत दुष्ट थे| उन्होंने उसकी हंसी उड़ाते हुए कहा था.. ‘दूसरा पैर भी हिलाने लगती बुद्दू..’ सबने खूब जोर-जोर से हँसकर न सिर्फ़ उसकी हंसी उड़ाई बल्कि बोले..फिर वो तेरे पीछे-पीछे रोज आ जाता.. और फिर एक दिन तेरा रिश्ता मांगने भी|’

शिखा के इस किस्से को सुनकर कितना हंसा था प्रखर भी.. और बोला था

“कितनी निश्चल और मासूम हो शिखा तुम..तभी तो हर जगह तुमको खोजता रहा|”

प्रखर की बातें ऐसी ही होती थी| जिनके साथ-साथ शिखा बहती जा रही थी|

क्रमश..