उर्वशी - 19 Jyotsana Kapil द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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उर्वशी - 19

उर्वशी

ज्योत्स्ना ‘ कपिल ‘

19

थोड़ी देर बाद उसने मम्मी को फोन लगाया यह सूचना दी। यह सुनकर सब भौंचक्के रह गए। कुछ पल उन्हें समझ ही न आया कि क्या करें। फिर तय हुआ कि मम्मी पापा दोनो, अगले दिन लखनऊ आ जाएंगे। उर्वशी ने उमंग व मम्मी से राणा परिवार को यह सूचना देने से मना कर दिया।

" अब ?" उमंग ने उसे देखकर प्रश्न किया।

" अब क्या ? उन्हें ये ख़बर नहीं देनी है। " उसने दृढ़ स्वर में कहा। उमंग गहरे सोच में डूब गया और उर्वशी अपने ख्यालों में गुम हो गई। आज उसे स्वयम में पूर्णता का अहसास हुआ। अब वह पूर्ण स्त्री बन गई है । मातृत्व एक बेहद खूबसूरत अहसास है। उसके भीतर एक नवजीवन अंकुरित हो गया है। उसका अंश पल रहा है। कुछ समय बाद वह जन्म लेगा। उसकी नन्ही नन्ही कोमल उंगलियों के स्पर्श का अहसास करके वह भावुक हो उठी। वह अपनी चमकीली आँखों से उसे देखेगा। उसे माँ कहकर पुकारेगा।

* * * * *

अगले दिन मम्मी पापा आ गए। उनके चेहरे पर गम्भीरता थी। उन्होंने उसे गले से लगा लिया और उसके सिर पर हाथ फेरा। थोड़ी देर में चाय पीकर वे सब इस मसले पर विचार करने लगे। मम्मी की आवाज़ से उसकी तन्द्रा भंग हुई। वह पापा से कह रही थीं

" अब क्या करें ? बच्चे को इस दुनिया मे आने दें या …"

" मम्मी, ये आप कह रही हैं ! आपसे ऐसी उम्मीद नही कर सकती थी मैं। "

" जब तुम उस घर से अब कोई वास्ता ही नही रखना चाहतीं तो इस बच्चे को क्यों जन्म दो ? ये तुम्हारी राह में सौ मुश्किलें खड़ी करेगा। "

" ऐसी कौन सी मुश्किल आ जाएगी ?"

" बात तो सही है बेटा, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है। सारा जीवन पड़ा है, जो अकेले नही काटा जा सकता। किसी का साथ तो ढूंढ़ना ही होगा। तब बच्चे की वजह से दिक्कत आएगी। " इस बार पापा ने उसे समझाना चाहा।

" मुझे किसी के साथ की आवश्यकता नहीं। अपना बाकी जीवन मे इस बच्चे के सहारे काट दूँगी। "

" भावुकता में आकर फैसले नही लिए जाते। अकेले रहना इतना आसान नहीं। हर उम्र की अपनी ज़रूरतें होती हैं। "

" पापा प्लीज़, ऐसे मत कहिये, ये मेरा बच्चा है, और मैं इसे जीवन दूँगी। " उसने कहा तो पापा खामोश रह गए। उन्हें चुप देखकर मम्मी समझ गईं की वह उनकी कोई दलील नही मानेगी।

" तो फिर उन लोगों को यह खुशखबरी दे देनी चाहिए। शायद यह खबर सब ठीक कर दे। "

" बिल्कुल नहीं, जब मैं वह घर छोड़ आयी तो अब उनका मेरी किसी भी बात से कोई वास्ता नहीं। " उसने दृढ़ स्वर में कहा।

" पर बेटा, यह उनके खानदान का वारिस है। "

" यह सिर्फ मेरा बच्चा है। "

" उफ़, तुम इतनी जिद पर क्यों अड़ी हुई हो ?तुम्हारे न मानने से कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला। आँखें मूँद लेने से सच बदल नहीं जाता। "

" आप लोगों को समस्या किस बात से है मम्मा, मेरी शुरुआत हो चुकी है। उनके जितना पैसा न सही, पर इतना ज़रूर कमा लूँगी की उसे ठीकठाक ज़िंदगी दे पाऊँ। मेरा या मेरे बच्चे का बोझ आपलोगों को नहीं उठाना पड़ेगा। "

" तुम इतनी छोटी बात कैसे कर सकती हो बेटा ? तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि हम तुम्हे बोझ समझ रहे हैं ? " पापा गुस्से में आ गए।

" फिर आप लोग बार बार वहाँ का जिक्र क्यों करते हैं ? जब मैं कह चुकी हूँ कि अब मैं उस घर मे किसी कीमत पर वापस नहीं जाऊँगी तो फिर यही बात क्यों उठती है ? जब मेरा उनसे ताल्लुक नहीं,तो मेरे बच्चे का भी कोई सम्बन्ध नहीं।"

" बच्चे पर उनका भी अधिकार है, तुम मानो या न मानो। तुम्हारे बारे में हम नहीं सोचेंगे तो और कौन सोचेगा ? तुम औलाद हो हमारी। "

" जब आप यह खबर उन लोगों को देंगे तो सब मुझपर वापस लौटने का दबाव डालने लगेंगे। बस इसलिए नहीं चाहती कि कुछ भी कहा जाए। "

मम्मी यह सुनकर बहुत मायूस हो गईं। उन्हें तो खुशी हुई थी कि बच्चे का जन्म बेटी के जीवन मे छाए ग्रहण को समाप्त कर देगा। शौर्य दौड़ा आएगा और उर्वशी को अपने साथ मान सम्मान से ले जाएगा। पर यह मूर्ख लड़की बनती बात को बिगाड़ने पर तुली हुई है। बाप और भाई ने इसे बहुत सिर पर चढ़ा रखा है। खामखाह अपना जीवन बर्बाद करने पर तुली हुई है। स्त्री को तो धरती की तरह क्षमाशील होना चाहिए। हर उतार चढ़ाव का सामना धैर्य से करना चाहिए। ठीक है शौर्य ने बहुत गलत बात कह दी,पर पुरूष है, पता नही किस मूड में होगा। अगर कोई गलत बात कह भी दी तो मिट्टी डालो उसपर।

शिखर उस घर का बड़ा होकर कितनी मिन्नतें कर रहा था। सब कुछ करने को तैयार था, पर महारानी जी का दिमाग कुछ ज्यादा ही खराब हो रहा है। ऐसी भी क्या जिद ? और चलो वहाँ वापस नहीं जाना, कोई बात नहीं। तो किसी और का तो हाथ थामना ही होगा। अगर बच्चा हो गया तो फिर कौन अपनाएगा इसे ? अभी तो सुंदरता देखकर दस लोग तैयार हो जाएंगे, पर बच्चा हो जाने के बाद कितनी मुश्किल हो जाएगी। हमलोग क्या सारी जिंदगी बैठे रहेंगे ? और कौन सा भाई सारी उम्र साथ निभा पाता है। कल को उसका परिवार होगा तो क्या उन्हें भूलकर बहन के साथ ही हमेशा खड़ा रहेगा ?

मम्मी पापा सप्ताह भर के लिए लखनऊ आये थे। उर्वशी का स्वास्थ्य देखकर उन्होंने कहा कि वे उसे अपने साथ आगरा ले जाएंगे। पर वह जाने को तैयार न हुई। टेलीफिल्म में उसका काम अभी बाकी था। चटपट एक काम वाली का इंतज़ाम किया गया। उमंग ने भी कहा कि वह उसका पूरा ध्यान रखेगा, वे लोग निश्चिंत होकर जाएं। नील की माँ ने भी सबको विश्वास दिलाया कि वह उसका ध्यान रखेंगी। उमंग ने कहा कि जब उर्वशी का काम पूरा हो जाएगा तो वह स्वयं उसे आगरा पहुँचा जाएगा। आखिर सप्ताह भर बाद उसके माता पिता वापस लौट गए, वह कह गए थे कि समय समय पर वहाँ आते रहेंगे।

* * * *

टेलीफिल्म में उसका काम समाप्त हो गया था। इस बीच लखनऊ दूरदर्शन के एक धारावाहिक में, जो उस समय प्रसारित हो रहा था, उसे महत्वपूर्ण भूमिका मिल गई थी, जिसे उसने बिना किसी से सलाह लिए तुरंत स्वीकर कर लिया था। अब उसे शीघ्रतिशीघ्र थोड़ा धन इकट्ठा करना था, ताकि अपना और अपने होने वाले बच्चे के खर्चे स्वयं कर सके। उमंग ने उसे ज्यादा मेहनत करने से रोकना चाहा पर वह नहीं मानी। उसे इतना पैसा चाहिए था कि जब वह काम करने की स्थिति में न हो तो चार पाँच महीने बिना किसी की मदद लिए अपनी मदों में खर्च कर सके। अब उसे अपनी राह खुद बनानी है, अब जब उसका अंश भी जीवन पा गया है तो वह विश्राम नहीं कर सकती। बेशक वह उसे वह सारी सुविधाएं न दे पाए जो उसके पिता के घर मे उसे मिलती, पर फिर भी एक आरामदायक जीवन अवश्य देना है। ताकि कोई यह न कह पाए कि माँ के अहम की वजह से उसका बच्चा अभावों में पला। इस बीच उसे दो एड भी मिल गए, जिन्हें करके उसने ठीकठाक रकम हासिल कर ली। अब वह बहुत सन्तुष्टि अनुभव कर रही थी।

उस दिन वह धारावाहिक की शूटिंग कर ही रही थी कि शिखर का फोन आ गया। स्क्रीन पर उनका नाम देखकर उसकी धड़कनों की गति दुगुनी हो गई। उसने कॉल रिसीव की तो उन्होंने बताया कि वह लखनऊ आये हुए हैं और उससे मिलना चाहते हैं। उसने आ सकने में अपनी असमर्थता जताई तो उन्होंने कहा कि उनकी गाड़ी आ चुकी है और वह तुरन्त पैकअप करके आ जाए। यह कहकर उन्होंने फोन काट दिया । वह सोच में पड़ गई की शूटिंग अधूरी छोड़कर कैसे जाए, निर्देशक से क्या कहे ? तभी धारावाहिक के निर्देशक ने उससे कहा कि वह उस समय जा सकती है और अपनी बची हुई शूटिंग अगले दिन कर ले। वह आश्चर्य से उनका मुँह देखती रह गई। शिखर के स्रोतों ने फिर उसे आश्चर्य में डाल दिया।

बाहर आई तो उनकी मर्सडीज़ खड़ी थी। उनके गनर संजीव ने उसका अभिवादन किया और सम्मान से पिछला दरवाजा खोल दिया। उसके बैठते ही गाड़ी दौड़ने लगी। वह अपने विचारों में गुम हो गई। शिखर अचानक ही लखनऊ में ? उसकी हर बात की खबर रखते हैं ! कहीं मम्मी पापा ने तो कुछ नहीं बता दिया उन्हें ? उसकी गर्भावस्था के विषय मे ? क्या वह किसी काम से आये हैं या सिर्फ उससे मिलने आये हैं ? यह सब सोच ही रही थी कि गाड़ी होटल क्लार्क अवध में रुक गई। उसे कमरे तक पहुँचा कर संजीव बाहर ही रुक गया।

अंदर पहुँची तो शिखर ने बाहें फैला कर उसका स्वागत किया। वह भी बिना कुछ सोचे समझे उनकी बाहों में समा गई। आज लम्बे समय बाद उसे सुकून मिला था। ऐसा लगा जैसे वीरान, तपते मरुस्थल में भटकते किसी पथिक को शीतल छाँव मिल जाए, और वह सुस्ताने को थोड़ी देर ठहर जाए। वह देर तक उसके बालों को सहलाते रहे और वह उनके स्नेह को अपने भीतर जज़्ब करती रही। उसे लगा मानो वह लम्बे समय से एकाकी और क्लान्त है, इस स्नेह स्पर्श के लिए वह कितनी आकुल थी।

" कितना सुखद है आपके करीब होने का अहसास । " शिखर का भावुक स्वर उभरा। " हमारी बेचैनी को क़रार मिल गया। आज आपको देखकर भीतर तक मन तृप्त हो गया। "

" मुझे तो लग रहा है जैसे कबसे भटकते कदमों को मंजिल मिल गई । " उसका दिल किया कि वह फूट फूट कर रो पड़े।

" आप बहुत जिद्दी हैं उर्वशी, न अपना ख्याल और न हमारा। खुद भी तड़प रही हैं और हमें भी तोड़ रही हैं। "

" आप जानते हैं कि यह सच नहीं है। आपकी खुशी के लिए मैंने खुद को मिटा दिया। जिसे आपने मेरे लिए चुना, न चाहते हुए भी स्वयं को उसे सौंप दिया। इससे ज्यादा और क्या कर सकती हूँ ?" उसका स्वर भीग गया।

" शायरी की भाषा मे कहुँ तो -

तुम मेरे लिए और इल्ज़ाम न ढूँढो, चाहा था तुम्हे इक यही इल्ज़ाम बहुत है " उसके चेहरे पर करुण हँसी छा गई।

" सचमुच हमने बहुत गलत किया। हम बेहद शर्मिंदा हैं। " उन्होंने सर झुका लिया।

" आपको शर्मिंदा करने का मेरा इरादा बिल्कुल नहीं था। न गलत आप हैं, न गलत मैं हूँ, परिस्थितियाँ ही गलत हैं। हमने तो बस प्रेम किया है। "

" आप अपना चेहरा देखिये, कैसा पीला पड़ गया है। आपकी तबियत तो सही है ?"

" जी, मैं बिल्कुल ठीक हूँ। " उसने जल्दी से कहा।

" हम एक बार आपका चेकअप करवा दें, डॉक्टर सब ठीक कह दे तो हम मान लेंगे। " कहते हुए उन्होंने मोबाइल उठाया और कोई नम्बर ढूँढने लगे।

" आप किसका नम्बर ढूँढ रहे हैं ?"

" हम डॉक्टर बुलवा रहे हैं, आपको ऐसा मुरझाया हुआ हमने कभी नहीं देखा है। "

" मैंने कहा न कि डॉक्टर की ज़रूरत नहीं। "

" नहीं उर्वशी, हमें फिक्र हो रही है आपकी। "

" प्लीज़, मत बुलाइये, वजह मैं आपको बताती हूँ। "

" आप जानती हैं ?" उन्होंने हैरानी से पूछा।

" जी " उसने नज़रें झुका लीं " मैं फैमिली वे में हूँ "उसने धीमे स्वर में कहा।

" क्या ? " वह उसका मुँह देखते रह गए " कितना समय हो गया ?"

" साढ़े पाँच महीने। "

" आपने इतनी बड़ी बात हमसे छुपा ली ? क्या हक़ था आपको हमसे इस खुशखबरी को छुपाने का ?" अब वह नाराज़ दिख रहे थे।

" क्योंकि यह जानने के बाद आप सब मुझ पर वापस आने का दबाव डालते। मैं नहीं लौटूँगी। किसी भी हालत में नहीं।"

वह सिर पकड़कर बैठ गए। कभी उसे देखते तो कभी मुट्ठियाँ भींचते।

क्रमशः