आधा आदमी - 31 Rajesh Malik द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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आधा आदमी - 31

आधा आदमी

अध्‍याय-31

‘‘मैंने सबके पीछे अपनी जिंदगी खराब कर ली। पर मुझे कोई समझ नहीं पाया। क्या नहीं किया अपने घरवालों के लिए। देखों कोई अब झांकने तक नहीं आता कि मैं जिंदा भी हूँ या मर गई। जिस तरह से मैं अपनी जिंदगी काट रही हूँ कोई हिजड़ा होती तो अब तक मर खप जाती......।‘‘

मेरी बात से दोनों काफ़ी ग़मगीन हो गए थे।

6-3-1996

दोपहर में हम लोग खाना खाकर बैठे ही थे। कि ड्राइवर की बीबी आई और तुनक उठी, ‘‘सुनो ड्राइवर, तुम तो यहाँ आ के घुसे बैठ हो और वहाँ बिटिया को देखने लड़के वाले आ रहे हैं.‘‘

‘‘जो बात करनी हैं घर के अंदर करो.....।‘‘ मेरे टोकते ही वह मुख्य द्धार से अंदर आ गई और मेरी तरफ मुख़ातिब हुई,

‘‘नईका, बड़ा अच्छा रिश्ता मिला हैं और लड़का भी हमारे साथ आया है। देखभाल लो कल-कदा तुम भी न कहना कि हमे बताया नहीं और चुप्पे-चुप्पे लड़की की शादी तय कर दी.‘‘

‘‘पर लड़का हैं कहाँ?‘‘

ड्राइवर अपनी बीबी के साथ गये और उस लड़के को लेकर आ गये। मैंने उसे नाश्ता कराया और फिर उसके परिवार के बारे में पूछा। जाते वक्त लड़के के हाथ पर मैंने ग्यारह रूपया रख दिया।

‘‘इतना सब कुछ होगा कैसे?‘‘ ड्राइवर की बीबी ने पूछा।

‘‘देखों लड़कियों की शादी रूकती नहीं हैं। किसी न किसी बहाने हो जाती हैं। ऊपर वाले का सहारा करों। अगर रिश्ता मिला हैं तो चट मंगनी पट ब्याह कर डालों.‘‘

‘‘हमारे पास तो फूटी कोड़ी भी नहीं हैं.‘‘ ड्राइवर की बीबी ने अपना रोना रोया।

‘‘जब तुम जानती थी कि तुम्हारे लड़कियाँ हैं तो तुमने पैसा क्यों नहीं बचाया। कोढ़ी-अपाहिज़ भी अपने बच्चों के लिए चार पैसा और चार बर्तन बटोर के रखते हैं.‘‘

‘‘जब तुम हो तब हमें किस बात की चिंता। जब तुमने अपने भाई की शादी की तो दोनों तरफ़ चूल्हा फूक के किया। आज मेरी लड़की की शादी तय हो रही हैं तो क्या आप नहीं खड़ी होगी?’’ ड्राइवर ने चाटुकारी के साथ-साथ व्यग्यं भी कसा।

‘‘मैं तो बहुत कुछ कर सकती हूँ लेकिन तुम लोगों का भी तो कुछ फर्ज़ हैं?‘‘

‘‘दीद्दा, तुम्हारे पास क्या-क्या हैं?‘‘ ड्राइवर की बीबी की कत्थे रंगी बत्तीसी खिली।

‘‘मेरे पास तो बहुत कुछ हैं और कुछ भी नही.‘‘ मैंने गोलमोल में ज़वाब दिया।

‘‘अरी दीद्दा, देखाओं न बक्शा खोल के.‘‘

आखि़रकार दोनों मियाँ-बीबी ने बक्शा खुलवा के देख ही लिया। बक्शे के अंदर का सामान देखकर दोनों की आँखे फटी की फटी रह गई। क्योंकि मैं अपनी बेटी के लिए दहेज का सामान बटोर रही थी।

‘‘तुम्हारी लड़की तो अभी बहुत छोटी हैं। तुम बेकार परेशान हो रही हैं। मैं हूँ न। तुम्हारी बेटी हमारी बेटी हैं.‘‘ ड्राइवर ने चिकनी-चुपड़ी बातें की।

जाते-जाते ड्राइवर की बीबी एक जोड़ी पायल और पचास रूपये ले गई थी।

खाना खाने से पहले हम लोगों ने खिलवा टाका। खिलवा टाकते ही इसराइल ड्राइवर पर अपनी भड़ास निकालने लगा, ‘‘जब देखो, इनके परिवार वाले आते रहते हैं मेरे परिवार के लोग तो यहाँ नहीं आते.‘‘

‘‘लगता हैं तुम्हे ज्यादा चढ़ गई हैं जा के अंदर सो जाओं.‘‘ मैंने उसे समझाया।

‘‘इतने दिन से तो सो ही रहा था.‘‘

बातों ही बातों में मेरी और इसराइल की फक्कड़ हो गई थी। मैंने गुस्से में आकर एक तमाचा मार दिया। ज़वाब में उसने भी मुझे मारा। फिर क्या था ड्राइवर और इसराइल में पटकी-पटकव्वर हो गई थी। इसराइल बिना कुछ कहे ही रात में चला गया था। जबकि इसराइल मेरे भले के लिए समझा रहा था। मगर मैं तो ड्राइवर के प्यार में इस कदर अंधी थी कि उसकी चालों को मैं समझ न सकी। वह नहीं चाहता था कि इसराइल यहाँ रहे और वही हुआ जो वह चाहता था।

7-5-1996

मैं वादे अनुसार ड्राइवर के घर पहुँच गई थी। उसकी बीबी मुझे देखते ही खुश हो गई। उसकी खुशी मुझ में नहीं, मेरी दौलत में थी।

‘‘आप का खाईगी?‘‘

‘‘घर में जो भी नमक-रोटी होगी वह हम खालेगी.‘‘

‘‘दीद्दा! हम्म तुमरे घर जाई तो गोस-मछली खाई अउर तुम हमरे इहाँ आई हों तो नमक-रोटी खावगी?‘‘ ड्राइवर की बीबी ने बड़ी चालाकी से कहा।

‘‘जाव रमजान चिकुवा के इहाँ से दुई किलव मुरगें का गोस मुझे बता कर ले आव.‘‘

मैं ड्राइवर और उसकी बीबी की राग पट्टी समझ गई थी। मैंने बिना कहे बीस का नोट उसकी तरफ बढ़ा दिया था।

खाना खाने के बाद ड्राइवर ने छोटी गाड़ी बुक कराने की डिंमाड की तो मैंने उन्हें समझाया, जब हम लोग कम पैंसे में अपडाउन कर लेंगे तो क्या फायदा इतना पैसा खर्च करने का।

ड्राइवर की बीबी चंग चढ़ा कर बोली, ‘‘अगर ऐसे जाओंगे तो हम सब की बेशती होगी। लड़के वाले यहीं कहेंगे कि इतने बड़े हिजड़े का साथ किया हैं और देखो पैदल आये हैं। तो इसमें सबसे ज्यादा बदनामी आप की होगी.‘‘

‘‘जैसे तुम लोग ठीक समझो.‘‘

गाड़ी बुक करा कर हम सब लोग लड़के वालों के यहाँ पहुँचे। ड्राइवर और उसकी बीबी के डिंमाड अनुसार मैंने ग्यारह किलों लड्डू मंगवाया साथ-साथ 51 रूपये सगुन दिया। शादी की डेट तय होने के बाद हम लोग घर चले आए थे।

यह सब करने-कराने में मेरे तीन सौ रूपये खर्च हो गए थे। मालिक जाने, ड्राइवर और उसकी बीबी ने मुझे क्या घुट्टी पिला दी थी, जो मैं उसकी हाँ में हाँ मिलाती रही।

शाम होते ही मैं उन सबसे इज़ाजत लेकर मैं अपने घर आ गई थी। क्योंकि मेरी अम्मा और बेटी मेरा इंतजार कर रही थी। तभी मेरे पीछे-पीछे ड्राइवर भी आ गये थे।

अम्मा जाने लगी तो मैंने उन्हें यह कहकर रोका, ‘‘अब सुबह जाना, इतनी रात में कहाँ जओंगी.‘‘

सुबह उठकर अम्मा ने हम लोगों के लिए चाय-पराठा बनाया और गौरी के हाथ कमरे में भेजा, ‘‘अंकल! चाय पी लो.‘‘

‘‘अंकल किसे कह रही हो? यह हमसे बड़े हैं। इसलिए तुम्हारे बड़े पापा हुए। पर तुम इन्हें पापा ही कहना.‘‘ मैंने समझाया।

गौरी उसी दिन से ड्राइवर को पापा कहने लगी। उस वक्त मेरी गौरी कक्षा तीन में पढ़ रही थी।

‘‘अच्छा बेटा, मैं चलती हूँ.‘‘ अम्मा बोली।

अम्मा का इतना कहना क्या था। मेरी आँख भर आयी। इससे पहले आँसू मेरा साथ छोड़ते मैं अंदर ही अंदर उन्हें पी गई थी। मैंने अपने आप को संभाला और अम्मा के हाथ पर दस रूपया रख दिया। मगर अम्मा ने लेने से इंकार कर दिया।

मैंने उन्हें समझाया, ‘‘मैं जो दे रहा हूँ वह कोई तुम पर एहसान नहीं कर रहा हूँ। और वैसे भी किसी औलाद से तुम्हें एक पैसे का सहारा नहीं हैं। इसलिए तुम इसे रख लो। मेरी मेहनत का पैसा हैं.‘‘

माँ गौरी को लेकर चली गई थी।

9-9-1996

दर्द में हर कोई मुस्करा नहीं सकता,

अपने दिल की बात सबको बता नही सकता

रोशनी लेने वाला क्या जाने, च़राग जल तो सकता हैं

पर अपनी तकलीफ़ बता नहीं सकता।

ड्राइवर की बेटी की शादी के पन्द्रह दिन शेष रह गए थे। पैसो का कहीं से भी इंतज़ाम नहीं हुआ था। मेरे पास जो भी जेवर थे मैंने उसे बेचकर, उसकी बेटी के देहज का सामान खरीद कर उसे गाड़ी में बुक कराके ड्राइवर के हाथ भेज दिया था।

फिर मैं दिन-रात अपने चेलों को लेकर टोली बधाई करने लगी। जब शादी के दो दिन शेष रह गए तो ड्राइवर बारातियों के खाने का रोना रोने लगे। मैंने जैसे-तैसे उसे भी पूरा किया।

मैं शादी के एक दिन पहले ड्राइवर के साथ उनके घर पहुँच गई। पहले तो दुआ-सलाम हुई। फिर मैंने ड्राइवर की बीबी से बक्शा खोल कर दिखाने को कहा। तो उसने दिखाने से साफ इंकार कर दिया। और यहाँ तक कह दिया, कि मैं अपने घर से एक डररा नमक भी नहीं दूँगी?‘‘

‘‘ऐसा तुम क्यों कह रही हो आखि़र सब कुछ तुम्हारी मर्जी से हो रहा हंै। और वैसे भी दो महीने से ड्राइवर तुम्हें कमा-कमा कर दे रहे हैं वह सब क्या हुआ?‘‘

‘‘ई सब हमसे न पूछव, ई कुत्तवा से पूछव.‘‘ उसने ड्राइवर की तरफ इशारा किया।

यह सुनते ही ड्राइवर तैश में आ गया, ‘‘क्या तुम्हारा दिमाग़ खराब हंै, कमाये-कमाये के तुमका दिया अब तुम कहती हो कि मैं कुछ जानती नहीं हूँ.‘‘

वह अनाप-शनाप बकती चली गई थी। मैं उसका ड्रामा देखकर समझ गई थी।

मैंने ड्राइवर से कहा, ‘‘ऐसा हैं मैंने शादी का सारा बन्दोबंस्त कर दिया हैं अब सिर्फ निकाह कराना बाकी हैं। तुम लोग मिल के करा लेना। क्योंकि तुम्हारी बीबी यह हर्गिश नहीं चाहती कि मैं शादी में शामिल हूँ.‘‘

‘‘ऐसी बात नहीं हैं.‘‘ ड्राइवर ने सफाई दी।

‘‘मैंने धोखे में लीकम नहीं पताया हैं। मैं इंसान का चेहरा देखकर पढ़ लेती हूँ उसके दिल में हैं क्या?‘‘

‘‘आप रहोगी चाहे यह मादरचोद रहे या न रहे.‘‘ ड्राइवर का स्वर ऊँचा हो गया था।

‘‘देखो, ऐसा कोई काम मत करना जिससे हमारे ऊपर बदनामी हो.‘‘ मैं उठकर दरवाजें के बाहर आ गई।

‘‘मेरी बात तो सुनों आपको कहीं नहीं जाना हैं.‘‘

वैसे ही ड्राइवर की बीबी मुँह बिचकाती हुई आयी और सड़क पर हंगामा करने लगी।

‘‘ऐसा है सारी व्यवस्था हम लोगों ने कर दी हैं। अब तुम सारा काम-काज देखो मैं दीपिका को लेकर जा रहा हूँ.‘‘ ड्राइवर आगबबूला हो गये।

इतना कहना क्या था कि वह सीना तान के खड़ी हो गई और आँखें तरेर कर बोली, ‘‘ई जा रही हय तो इन्हें जावे दो, पर तुम नवाबसाब कहा चल दियौं? ई लेड़हें बियाये हव हमरे खातिर?‘‘

‘‘पैदा करना जानता हूँ तो उसे पूरा भी करता हूँ। तुम्हारे कहने से हर काम हुआ हैं फिर भी तुम ड्रामा दिखा रही हो। तुम्हें जो करना है करों मैं तुम्हारे बवाल से नहीं डरता। आखिर ऐसी कौन-सी बात थी जो तुमने इतना बड़ा हंगामा खड़ा कर दिया। सिर्फ़ बक्शा खोलने की ही तो बात थी। अगर तुम इन्हें दिखा देती तो तुम्हारा यह कुछ ले न लेती। इन्होंने सिवाय देने के इलावा आज तक हम लोगों से कुछ लिया हैं?‘‘

बवाल इस कदर बढ़ गया कि मोहल्ले वाले भी इकट्ठे हो गए। मगर ड्राइवर की बीबी कहाँ चुप रहने वाली थी। जब ड्राइवर के बर्दास्त से बाहर हो गया तो वह ज़लाल में आकर अपनी बीबी को तलाक दें दिया।

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