तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 19 - लव इज नॉट ब्लाइंड Medha Jha द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 19 - लव इज नॉट ब्लाइंड

गो एंड गेट मैरिड

पूरे सप्ताह फिर समय नहीं मिला मुझे। अंदर से आक्रोश से भरी थी मैं। उस दिन शाम में संयोगिता का फोन आया। आज तक कोई बात छुपाई नहीं थी उससे। लगातार बोलती गई मैं। अंदर से कहीं उम्मीद थी कि कुछ बोलेगी संयोगिता और हमेशा की तरह मुझे शांत कर देगी।

हमेशा की तरह पूरी बात शांति से सुना उसने और फिर कहा - "कई महीनों से तुमसे कहना चाहती थी मैं ये। हर्ष इज टेकिंग यू फॉर ग्रांटेड। उसे लगने लगा है कि कुछ भी करे वह, तुम उसे छोड़ नहीं सकती।"

सिर घूम गया मेरा उस दिन। यही वजह होती है सामान्यतया पति - पत्नी के रिश्तों में असमानता की, पति जब खुद को परमेश्वर समझ ये सोचने लगता है कि जाएगी कहां ये, तब ऐसा ही रवैया होने लगता है उसका। अभी ये हालत है तो आगे कोई उम्मीद अब नहीं दिख रही थी मुझे इस रिश्ते से। लेकिन तुमको लेकर बुरी तरह से मोह ग्रस्त थी मैं। एक बार प्रेम से बोलते तुम, और फिर मेरी दीवानगी शुरू हो जाती।

जनवरी महीने के शुरू में ही मेरा जन्मदिन होता है। बात होनी काफी कम हो गई थी हमारी। उस दिन सुबह - सुबह मम्मी पापा ने ढेरों शुभकामनाएं दी। फिर मम्मी ने कहा कि नाना बीमार हैं। उनकी इच्छा है कि अब तुम शादी कर लो। अगर तुम्हें कोई पसंद है तो बताओ। निश्चिंत थे सब घर में। सबको पता था कोई पसंद है मुझे और जिस तरह की जिद्दी रही थी मैं, अपनी पसंद का करके रहती - ये अंदाज था सबको।

दिन में तुम्हारा फोन आया शुभकामनाओं के लिए। मम्मी की बात बताई मैंने तुम्हें और पूछा कितना वक़्त चाहिए तुम्हें।

" एक साल, दो साल, या ज्यादा भी हो सकता है। अभी तो मेरे भैया की भी नौकरी नहीं लगी है। जब उनका कहीं हो जाएगा, तब उनकी शादी होगी।और उनकी शादी और मेरी नौकरी के बाद ही मैं सोचूंगा अपनी शादी के बारे में। "

मजाक चल रहा था क्या ये मेरे साथ? हर्ष के भैया सिविल सर्विसेज की तैयारी में लगे थे। अच्छे स्टूडेंट थे, पर दो साल से इंटरव्यू तक जा कर लौटे थे। कोई गारंटी नहीं थी कि उनको कितना वक्त लगेगा।

मैंने तुम्हें नाना के बारे में बताने की कोशिश की। तुम्हारा जवाब ने अब मुझे हतप्रभ नहीं किया।

" गो एंड गेट मैरिड, आई विल कम इन योर वेडिंग।"

" ठीक है, हर्ष। इसी साल शादी करूंगी मैं और पहला कार्ड शादी का, तुम्हें ही भेजूंगी मैं।आने की जरूरत नहीं है। तुम देवदास नहीं हो।" सुलग रही थी मैं।

“हमारे बाद कोई हमसा नहीं होगा,
करिश्मा यह बाराहा नहीं होगा।“
- अनिल करमेले जी की पंक्तियां स्मरण हो आई।

तय कर लिया था इस जीवन में अब कभी बात नहीं करूंगी तुमसे। ईश्वर ने शायद सुन लिया था मेरा संकल्प और उन्होंने मुहर लगा दिया फटाफट उस पर।

जीवनसाथी डॉट कॉम

ऑफिस से निकल तेज कदमों से घर की तरफ बढ़ती जा रही मैं और कहीं से आवाज आ रही थी –
" सांस तेरी मदिर - मदिर जैसे रजनीगंधा,
प्यार तेरा मधुर -मधुर चांदनी की गंगा,
नहीं होंगे जुदा हम,
ली मैंने कसम ली, ली तूने कसम ली।"

अचानक खाली हो गई थी मैं, वर्षों से सहेज कर रखी मेरी पूरी संपत्ति लुट गई थी। सिर्फ ढांचा बचा था , आत्मा तो कहीं विलीन हो चुकी थी। खुद पर जोरों का तरस आने लगा मुझे। घर पहुंच कर खूब रोई मैं। मेरे जीवन का सुंदरतम अध्याय आज खत्म हो गया था। प्रक्रिया तो कई महीनों से चल ही रही थी।

अब क्या? क्या बताऊं मम्मी को। किसका नाम - सौरभ जा चुका था, रीतेश की कुछ दिनों पहले शादी हो चुकी थी, कॉलेज में किसी से इतनी अंतरंगता हुई नहीं थी कि पूछती -" शादी करनी है मुझसे?

दो साल पहले जब पापा ने अपने मित्र के उच्च शिक्षित सुपुत्र से बात चलाई थी तो मैंने इनकार कर दिया था। अब घर पर भी बता नहीं सकती थी मैं। मैंने ही कब सोचा था ऐसा हो भी सकता है।

अपनी चाहत बार - बार स्मृतियों में धकेलती मुझे। प्रत्येक गीत जो तुम्हें याद कर गाए, प्रत्येक जगह जहां तुम साथ थे मेरे मानसिक रूप से, कितनी आदत हो चुकी थी मुझे तुम्हारी। तुम्हारा ये वर्षों पुराना नशा - पागल कर रहा था मुझे। पर इतनी कमजोर तो कभी थी ही नहीं मैं कि नशे से ना उबर सकूं।

छुटकी से बात की मैंने। क्या करना चाहिए अब? घर वालों को अपने हिसाब से परेशान करती आई थी मैं समय समय पर। अब और नहीं। जीवनसाथी. कॉम में खुद को रजिस्टर किया मैंने, अपनी तारीफ की ( उसकी हमेशा आदत रही है मुझे), एक फोटो अपलोड किया जो कि जॉब के लिए खींचा गया था। अब मैं तैयार थी। रोज किसी का इन्विटेशन आता। आराम से ऑफिस के मॉनिटर पर बैठी , साइड में मैसेंजर ऑन करके चैटिंग करती। अचानक से खाली हुए मुझे अच्छा लगता ये करना। रोज एक प्रोफ़ाइल डिस्कस करती बहन से।
अच्छे - अच्छे लड़के संपर्क कर रहे थे मुझे। अच्छा लगता मुझे कि अच्छे पढ़े और नौकरीपेशा लड़कों को पसंद आ रही मैं। प्रेम में चोट खाए मेरे हृदय के लिए ये एक मलहम का काम कर रहा था। एन्जॉय करने लगी थी मैं इस चीज को।
संयोगिता की शादी मेरे ही एक रिश्तेदार एवम् प्रिय मित्र से हुई थी। प्रतिमा एवम् मनीषा शादी कर चुके थे। अब मम्मी रोज पूछती और मैं उन्हें आश्वस्त करती कि जल्द ही।
एक प्रोफ़ाइल पर ध्यान गया। रोज मैसेज आ रहे थे।बात होने लगी तो पता चला कि उसकी गर्ल फ्रेंड छोड़ गई उसे। मुझे लगा यही मेरा दर्द समझ सकता है। अपने बारे में भी बताया। कुछ दिन चैटिंग चली, पता चला दिल्ली आने वाला है। इंटरव्यू था कोई यहां उसका। हमारी मुलाकात हुई। दिल्ली हाट में मिले हम। ठीक लगा मुझे। या सच कहो तो समझ नहीं आया मुझे। अपने हिसाब से जॉब, वेतन , घर के बारे में पूछा मैंने। सही लगा और सब। घर बुलाया मैंने उसे, यहां बहन और मेरे संस्थान के दो मित्र प्रतीक्षा कर रहे थे। बहन चुप थी। कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, मित्रों ने कहा ठीक है। मेरे स्कूल वाले अभिन्न मित्र लोग तो थे नहीं यहां, जो ज्यादा जानते थे मुझे।
उधेड़बुन में थी मैं। बहन की अगले दिन ट्रेन थी पटना की, वो निकल गई। ज्यादा समय मिला नहीं मुझे उससे बातचीत का। ये नवागंतुक भी दो दिन बाद पटना जा रहा था। समझ नहीं आ रहा था मुझे। मैंने उसे कहा कि अगर वो चाहे तो पटना में मेरे पैरेंटस से मिल सकता है। मैंने सोचा पैरेंटस पर छोड़ देते हैं फैसला। वो तैयार हो गया मिलने को।

बहन पटना में थी। सूचना दे दी मैंने। सबलोग घर के मिल लिए।सबको भला लगा। पापा ने कहा कि जब मेरी बेटी को पसंद है तो हम लोग की तरफ से ओके है।

मम्मी ने फोन कर पूछा - " तुम हर्ष से शादी नहीं कर रही? "

मैंने ‘नहीं’ में जवाब दिया।

मैंने बताया इस नए परिचित को कि हमारे घर में नाना सबसे बड़े हैं वही फैसला लेते हैं तो बेहतर होगा आपके पिता बात कर लें नाना से हमारे। उनके पिता तैयार हो गए । संयोग से मेरे नाना और उनके पिता एक दूसरे को जानते थे। दोनों प्रिंसिपल रहे थे एक ही क्षेत्र के कॉलेज में। नाना को मैंने बता दिया कि एक लड़के के पिता फोन करेंगे। लड़का पसंद है मुझे, आप हां बोल दीजियेगा। नाना ने जॉब, वेतन, गांव सबके बारे में जानकारी ली और अंत में पूछा - कौन सी जाति है? मेरे मामले में सब , हरेक चीज के लिए तैयार थे। जब पता चला समान ही है जाति, तो बोले नाना कि अब तो और कोई दिक्कत नहीं। उस साल जून में शादी की तारीख तय हो गई।
भाई को मैंने फोन किया - कार्ड छपते ही हर्ष के घर जाना , उसे कार्ड देना और फिर उसे साथ करके और मित्रों को बांट आना।

भाई ने वैसा ही किया। पहला कार्ड हर्ष को दिया गया। फिर वो साथ गया या नहीं, इसके बारे में ना तो भाई ने बताया ना मैंने पूछा कभी।

लव इज नॉट ब्लाइंड

नया साथी, नया जीवन, नया शहर, नई नौकरी - अगले १० वर्ष जीवन के सुंदर वर्षों में थे। देश के विभिन्न भागों में घूम रही थी मैं - कभी साथ, कभी अकेले। नौकरी में सब जगह प्रतिष्ठा मिल रही थी मुझे।
इस बीच हैदराबाद में कुछ साल रहने का मौका मिला। तिरुपति, श्रीशैलम - सब जगह घूम कर आए हम। घूमना मेरा शौक शुरू से था, अब कोई मौका छोड़ना नहीं चाहती थी मैं। फिर दिल्ली आना हुआ। इस बार दिल्ली प्यार से बांहे पसारे थी मेरे लिए। मेरा छोटा भाई भी आ चुका था दिल्ली। हम सब अच्छे पदों पर थे। जब चाहे हरिद्वार, ऋषिकेश, आगरा, मथुरा , वृंदावन निकल जाते किसी भी सप्ताहांत पर। जीवन में वह सब कुछ था जिसकी आकांक्षा की थी कभी।

फिर नौकरी के सिलसिले में पहले उदयपुर में रहने का मौका मिला, अगल बगल चित्तौड़गढ़, माउंट आबू, रणथंभौर, जोधपुर, जयपुर खूब घुमा मैंने। फिर कुछ साल अल्मोड़ा, नैनीताल, रानीखेत, जिम कार्बेट घूमने का मौका मिला। बीच में गोआ भी कुछ महीने रही मैं, तमिलनाडु , केरल , कर्नाटक के विभिन्न जगहों को देखने जानने का अवसर मिला। गुड़गांव के एक बड़े कंपनी में काम किया और पुनः राजस्थान में थी मैं।

बहन की शादी हो चुकी थी, अब बंगलौर में थी वो , एक अपनी कंपनी चलाते हुए । उसके सारे मित्र भी बड़ी कंपनियों में बड़े पदों पर पहुंच चुके थे।

हम सब अपने जीवन में आगे बढ़ रहे थे। जैसा कि हमने सोचा था , मेरे जन्मदिन के बाद कभी भी हमारी बात नहीं हुई थी। फिर भी पता चलता रहता था कि शादी हो गई तुम्हारी। रांची सचिवालय में हो तुम। प्यारी सी पत्नी है तुम्हारी और एक छोटा सा प्यारा बेटा। फिर सूचना मिली कि परिवार पूरा हो गया तुम्हारा। एक बिटिया ने भी जन्म लिया तुम्हारे घर।

उस दिन अपने ऑफिस में थी मैं। रिंकी का फोन आया - " दीदी, हर्ष भैया के बारे में पता चला कुछ। "

"नहीं, कुछ नहीं। कुछ अच्छा हो, तभी बताना।" आज बाहर से सीनियर्स आए थे ऑफिस में। काफी व्यस्त थी मैं।

" बहुत बुरी खबर है, दीदी।"

" मैं शाम में बात करूंगी।"

फोन काट दिया मैंने। दिन बेचैनी में ही गुजरा। शाम को घर पहुंचते ही फोन लगाया रिंकी को।

" दीदी, भैया नहीं रहे।"

फोन छूट गया मेरे हाथ से। एक क्षण स्तब्ध रही मैं।

रिंकी बता रही थी - " यूजीसी नेट में उनका हो गया था। रिजल्ट लेने अपनी नई कार से गए थे। बहुत खुश थे। आते समय खाना खाया रेस्तरां में और ड्राइवर से चाबी मांगा कार चलाने को। कुछ मिनट बाद सामने से आती ट्रक ने ठोकर मारी । तुरंत चले गए तुम हमेशा के लिए, ड्राइवर अभी हॉस्पिटल में है। "

क्यों जाना मैंने ये न्यूज़।

सारे दृश्य पटल पर घूम गए - जोर से हंसते तुम, मेरी तरफ देखते तुम, बिना टोके घंटों बात सुनते तुम। ये क्या किया तुमने। तुम्हारी सीधी सी पत्नी और बच्चों का क्या होगा अब? एक दिन पहले जो पत्नी और बच्चे खुश हो रहे होंगे नई कार देख कर, पत्नी इतरा रही होगी प्रोफेसर की पत्नी होने के नाम पर - एक क्षण में सब खत्म।

प्यार तो तुम्हें बहुत किया मैंने और करती रहूंगी तुम्हारी तमाम खामियों सहित। याद आई Gabriel García Márquez की किताब ' लव इन द टाइम ऑफ कॉलरा' के आरंभ में किसी द्वारा लिखित ये पंक्ति, जिसने पहले दिन ही आकृष्ट किया था ध्यान मेरा, जब तुमने ये उपन्यास उपहार स्वरूप दिया था:

" Love is not blind. It sees all the faults, but does not mind."

मजा तो तब आएगा जब तुम मुझे चाहोगे उतना , जितना मैंने चाहा तुम्हें और फिर मैं छोड़ूंगी तुम्हें। तब तक बदला एक तरफा रहेगा। तब तक प्रतीक्षा करो मेरी , तुमने भी तो खूब करवाया था ।
अलविदा प्रिय।