छूटा हुआ कुछ - 5 Ramakant Sharma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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छूटा हुआ कुछ - 5

छूटा हुआ कुछ

डा. रमाकांत शर्मा

5.

प्रशांत को बड़ा करने और फिर उसके बाद स्कूल की व्यस्तताओं की वजह से उमा जी को अपने बारे में ज्यादा कुछ सोचने का समय ही नहीं मिला। पतिदेव अपने काम में और भी ज्यादा व्यस्त होते गए। रिटायर होने के बाद तो उनके पति का काम पहले से भी ज्यादा बढ़ गया। घर पर वे लगभग सारा दिन अपने काम में डूबे रहते।

जब तक प्रशांत यूएस नहीं गया था और उमा जी रिटायर नहीं हुई थीं, तब तक समय काटने की कोई समस्या नहीं थी। लेकिन, पढ़ाई के लिए प्रशांत के यूएस चले जाने और फिर वहीं नौकरी पर लग जाने के बाद तो उमा जी के पास समय ही समय था। फिर जब वे खुद रिटायर हो गईं तो समय काटना समस्या में तब्दील हो गया। यही वह समय था जब वे खुद के बारे में, अपनी ज़िंदगी के बारे में और जो कुछ पढ़तीं, उसके बारे में सोचने लगीं। जब भी वे प्रेम कहानियां पढ़तीं स्वयं को उनसे जोड़ लेतीं। बार-बार उनके मन में यह विचार सिर उठाने लगता कि उनकी ज़िंदगी कैसी शुष्क सी बीती है और बची हुई ज़िदगी भी वैसी ही बीतने के लिए अभिशप्त है।

उमा जी जब हिंदी की कक्षा में श्रृंगार-कविताएं पढ़ातीं तो छात्र-छात्राओं को बतातीं कि प्रेम ईश्वर की सबसे बड़ी देन है। यह जीवन की वह मधुरतम भावना है, जो दो दिलों को पास लाती है और जिंदगी को खुशनुमा बना देती है। यह ऐसा गहरा अहसास होता है जो दिमाग से नहीं दिल से उपजता है और अपने प्रेम पात्र के लिए सबकुछ लुटाने को तैयार रहता है। उनकी व्याख्या से छात्र-छात्राएं अभिभूत हो जाते। लेकिन, उन्हें नहीं पता था कि वे यह सब कुंजियों से पढ़ने के बाद ही बोल पाती थीं, उन्होंने खुद तो कभी इस अनमोल भावना का अनुभव नहीं किया था। वे कभी प्रेम के इस रोमांचक और नस-नस में सनसनाहट पैदा करने वाले अहसास से नहीं गुजरी थीं। आखिर उनके साथ ऐसा क्यों हुआ था, यह उनकी समझ से परे था।

उस दिन वे अपने कमरे में बैठी नई आयी पत्रिका के पन्ने पलट रही थीं कि फोन की घंटी बजने लगी। फोन उठाते हुए उमाजी सोच रही थीं कि यूएस के समय को देखते हुए प्रशांत का फोन तो नहीं होगा। फिर किस का फोन हो सकता है, उनके लैंडलाइन फोन पर प्रशांत के अलावा कभी –कभी उनकी मां का तो कभी पतिदेव के गांव से किसी का फोन आ जाता या फिर रांग नंबर होता। ज्यादातर तो लैंडलाइन फोन दिनभर शांत ही पड़ा रहता। पति महोदय के काम से संबंधित फोन उनके मोबाइल पर ही आते थे। खुद उमा जी ने अपना मोबाइल नंबर गिने-चुने लोगों को ही दे रखा था, जिनमें ज्यादातर उनके साथ स्कूल में पढ़ाने वाली अध्यापिकाएं और अरुणा जी शामिल थीं। ट्यूशन पढ़ने आने वाले बच्चों के मां-बाप के भी कुछ नंबर उनके मोबाइल फोन में थे। लेकिन, इन लोगों का फोन भी कभी-कभार ही आता और उनका मोबाइल फोन भी अकसर आराम फरमाता रहता।

उमा जी के रिसीवर उठाते ही दूसरी तरफ से अनजानी आवाज सुनाई दी – “हलो”

“हां जी, हलो, कौन बोल रहे हैं आप?”

“आप मैडम उमा जी ही बोल रही हैं ना?”

“जी हां, आप कौन?”

“पहचानिए मैडम।“

उमा जी ने दिमाग पर जोर डाला, पर आवाज उन्हें जानी-पहचानी नहीं लगी, उन्होंने कहा – “माफ कीजिए, मैं पहचान नहीं पा रही हूं।“

“कभी आपसे फोन पर बात हुई ही नहीं तो आप पहचानेंगी कैसे? मैं गगन भंडारी बोल रहा हूं।“

“अरे, गगन सर आप? मेरा फोन नंबर कहां से मिला आपको।“

“स्कूल के सभी टीचर्स के फोन नंबर की लिस्ट से।“

“अच्छा, अच्छा कैसे याद किया आपने?”

“आपसे एक साल पहले ही रिटायर हो गया था। रिटायरमेंट के बाद आपका शहर छोड़कर अपने शहर आ गया हूं। आज पुराने कागजात देख रहा था, उनमें ही यह लिस्ट मिली। सोचा अपने पुराने साथियों से संपर्क ही किया जाए।“

“अच्छा तो सभी से बात कर रहे हैं आप? किस-किस से बात कर चुके?”

“सबसे पहले आपको ही लगाया है।“

“क्यों? मेरा नाम तो यू से शुरू होने के कारण लिस्ट में सबसे नीचे है।“

“हां मैडम, मैंने लिस्ट में सबसे नीचे से ही शुरू किया है।‘

“क्यों? लिस्ट के हिसाब से कोई भी काम सबसे ऊपर से शुरू किया जाता है।“

कुछ देर उधर चुप्पी रही, फिर गगन सर की आवाज आई – “ठीक है, मुझे सबसे पहले आपसे बात करनी थी।“

“मुझसे? मुझसे क्यों?”

“अब इस क्यों का क्या जवाब दूं। बस, यह समझ लीजिए आपसे बात करने की इच्छा हुई।“

“आश्चर्य है, सिर्फ मुझसे बात करने की इच्छा हुई आपकी।“

“सॉरी मैडम, आपको बुरा लगा हो तो..............।“

“ऐसी बात नहीं है गगन सर। इसमें बुरा लगने जैसा कुछ भी नहीं है। पर, स्कूल के दिनों में भी कभी आपसे काम की बात के अलावा कोई बात नहीं हुई, इसलिए....।“

“आपकी बात सही है। पर, एक बात कहूं, आपको बुरा तो नहीं लगेगा।“

“कहिए।‘

“उस समय भी आपसे बात करने का मन तो करता था, पर आप इतनी चुपचाप और रिज़र्व नेचर की थीं कि कभी हिम्मत नहीं हुई।“

“अच्छा? मैं तो वही हूं, अब आपकी हिम्मत कैसे हो गई?” – वे हंसी थीं।

“देखिए मैडम, अब हम दोनों ही रिटायर हो चुके हैं। अब वो उम्र भी नहीं रही कि बात करने में कोई झिझक हो या फिर इस बात की परवाह हो कि लोग क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे। फिर, आपके शहर से बहुत दूर मैं अपने शहर में बैठा हूं। आपसे पिटाई का डर भी नहीं है” – उधर से खुलकर हंसने की आवाज आई थी।

“पिटाई, क्या मैं इतनी खूंखार नजर आती हूं आपको?”

“माफ करना मैडम, पर आप ना तो हंसती थीं, ना खुलकर बोलती थीं और ना ही किसी के साथ मिक्स-अप होती थीं। ऐसे व्यक्ति से डर तो लगता ही है। और फिर मैं ठहरा सभी से हंसी मजाक करने वाला और कुछ भी कह देने वाला।“

“ये बात तो आपकी सही है। मैं शुरू से रिज़र्व नेचर की रही हूं, पर कोई मुझसे इस हद तक डरे, यह जानकर हैरान जरूर हूं मैं। तब कभी आपने बताया नहीं।“

“इसका मौका ही कब दिया आपने। सच कहूं आप बहुत अच्छी लगती थीं मुझे। आपसे बात करने और दोस्ती करने का मन करता था। पर..........”

“मैं ? और बहुत अच्छी लगती थी?”

“हां, सचमुच।“

“क्यों?”

“आप सुंदर हैं, सुशील हैं, खुद को बहुत अच्छे ढंग से कैरी करती हैं। फिर, आपके पढ़ाने के ढंग की तो सभी तारीफ करते थे।“

“अच्छा, ये इतनी सारी बातें तो मुझे पता ही नहीं थीं, और कुछ?”

“आपमें ऐसा कुछ है कि आप सामने वाले को तुरंत प्रभावित कर लेती हैं और कोई एक बार आपसे मिल ले तो निश्चित तौर पर आपसे फिर मिलना चाहेगा।“

“गगन सर, लगता है आज सुबह से आपको बुद्धू बनाने के लिए कोई मिला नहीं है, इसलिए सोचा होगा चलो उमा जी को बनाया जाए। जितने गुण आप गिना रहे हैं, काश उनमें से कोई मुझमें होता।“

“मैडम, जरा सोचिए, आपकी झूठी तारीफ करके मुझे क्या मिलेगा, वो भी अब जब हम दोनों ही रिटायर हो गए हैं। हां, उस समय आपसे यह कहता तो आप इसे दूसरे रूप में ले सकती थीं। शायद मैं कहना भी चाहता था, पर कह नहीं पाया।“

“हूं, आपकी बात में कुछ दम तो है। पर, ये सब आप कहना क्यों चाहते थे मुझसे?

“कहा ना, अच्छी लगती थीं आप।“

“अच्छे तो आप भी लगते थे सभी को, पर इसका मतलब यह तो नहीं कि ......।“

“क्या मतलब नहीं?”

“यही कि रिटायरमेंट के बाद पूरी फोन-लिस्ट में से सबको छोड़कर सभी अध्यापिकाएं सिर्फ आपको फोन करें।“

‘लगता है मैडम, मेरा फोन करना आपको अच्छा नहीं लगा। आपने इतनी देर बात की मेरे लिए यही बहुत है।“

“नहीं.....नहीं...... इसका यह मतलब नहीं निकालिए। आपने याद करके फोन किया, मुझे अच्छा लगा।“

“तो मैं फिर कभी दुबारा आपको फोन कर सकता हूं, मैडम?’

“जरूर कीजिए, पर पहले यह मैडम, मैडम कहना छोड़िए, अब हम स्कूल में नहीं हैं।“

“ठीक है, आप भी मुझे गगन सर कहना छोड़िए, अब हम स्कूल में नहीं हैं, उमा जी।“

“नहीं, मुझसे नहीं होगा, आप बड़े हैं मुझसे, मैं आपको गगन सर ही कहूंगी, ओ.के.।“

“जैसा आपको ठीक लगे। चलिए, अब मैं फोन रखता हूं। फिर जल्दी ही फोन करूंगा।“

गगन सर ने फोन रख दिया था, पर उनका अचानक फोन आना और उनकी बातें उमा जी के दिमाग में घूम रही थीं। इससे पहले कभी किसी ने इस तरह उनसे बात नहीं की थी और उनकी इतनी तारीफ नहीं की थी। उनकी बातों ने उन्हें अजीब सा सुकून दिया था।

उन्हें याद आया स्कूल में उन्हें मिलाकर कुल ग्यारह टीचर थे। उनमें से आठ अध्यापिकाएं थीं और तीन अध्यापक। उन तीनों में गगन सर सबसे स्मार्ट थे। देखने में तो हैंडसम थे ही, बातचीत का उनका सलीका बहुत अच्छा था। वे बहुत मिलनसार थे, स्टाफ रूम में उनके चुटकले सभी को हंसाते रहते। स्कूल के समारोहों के आयोजन में वे सबसे सक्रिय रहते और उनका खूबसूरत ढंग से संचालन करते। स्कूल के स्पोर्ट्स के भी इंचार्ज थे वे। खुद भी खेलों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते। बच्चे भी उनके दीवाने थे क्योंकि वे पढ़ाते तो अच्छा थे ही, उनके साथ दोस्तों जैसा व्यवहार भी करते। दूसरे टीचर जहां बच्चों के सामने गंभीर बने रहते और उन पर अपना रौब जमाते रहते, वहीं वे उनके साथ भी हंसी-मजाक करने से नहीं चूकते थे। स्कूल के प्रिंसिपल उन्हें कोई भी काम सौंपकर निश्चिंत हो जाते थे क्योंकि वे अपनी जिम्मेदारी बहुत अच्छी तरह निभाते थे।

स्कूल की सभी अध्यापिकाओं के तो हीरो थे गगन सर। उनकी उपस्थिति माहौल को खुशनुमा बनाए रखती। उनसे बात करना सभी को अच्छा लगता। वे सब खुलकर उनकी तारीफ भी करतीं। उमा जी भी मन ही मन उनकी प्रशंसक थीं, पर अपने स्वभाव के कारण उन्होंने कभी इसे प्रकट नहीं होने दिया।
उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि सबके हीरो गगन सर उनसे प्रभावित थे और उनसे डरते भी थे। आज उन्होंने जो कुछ भी कहा था वह सब शायद वे फोन पर ही और वह भी रिटायरमेंट के बाद ही कह पाए। कोई उनके बारे में भी इस ढंग से सोच सकता है और उन्हें याद रखकर फोन कर सकता है, यह सब उमा जी के लिए अविश्वसनीय था। उन्होंने खुद को टटोला तो इस सच की तस्दीक हुई कि उन्हें अपनी इतनी तारीफ और गगन सर का फोन करना अच्छा लगा था।

उनकी सोच को झटका तब लगा जब बाहर से उनके पतिदेव ने आवाज लगा कर पूछा था – “प्रशांत का फोन था क्या? मुझसे भी बात करा देतीं।“

“आप भी कमाल करते हैं, इस समय कभी प्रशांत का फोन आता है क्या? यूएस में इस समय रात हो रही होगी।“

“हां, यह तो मैंने सोचा ही नहीं। तुम बहुत देर तक फोन पर बात कर रही थीं तो मुझे लगा कि इतनी लंबी बातचीत तो सिर्फ प्रशांत या फ्लोरा से ही होती है। हां, कभी-कभी अपनी मां से भी तुम लंबी बातचीत करती हो, पर इतनी लंबी नहीं। इसलिए पूछ लिया बस।“

“अरे, हमारे स्कूल में एक अध्यापक थे गगन सर, वो मुझसे भी पहले रिटायर हो चुके हैं। आज उन्हें अपने कागजों में टीचर्स के टेलीफोन नंबरों की लिस्ट मिल गई। उसी में से नंबर देखकर उन्होंने मुझे फोन लगा दिया। फिर स्कूल के जमाने की बातें छिड़ गईं और बातचीत लंबी होती गई।“

“अच्छी बात है, पुराने साथियों से बातचीत करना अच्छा ही लगता है। अब वो कैलाश या गणेश का फोन आ जाता है तो हम भी बहुत देर तक बातें करते हैं।“

“हां, ये तो है। अच्छा, बहुत देर से काम में लगे हो, अब थोड़ी देर छोड़ भी दो इसे।“

“तुम चाय बना कर पिलाओगी तो दस-पन्द्रह मिनट का रेस्ट मिल जाएगा।“

“बना देती हूं, इसमें क्या है।“

उमा जी थोड़ी ही देर में चाय बना लाईं। उन्होंने अपने लिए भी बना ली और वहीं डाइनिंग टेबिल पर रखकर कुर्सी खींच कर बैठ गईं। चाय पीकर उन्हें भी फ्रेश लगा और फिर वे लंच बनाने के लिए उठ गईं।

खाना बनाते समय उनके दिमाग में गगन सर का फोन और उनसे हुई बातचीत घूमती रही। उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि गगन सर जैसा स्मार्ट और सबका चहेता व्यक्ति उनसे दोस्ती करने का इच्छुक रहा था। कितनी तारीफ कर रहे थे वे उनकी। हो सकता है, वे उन्हें मूर्ख बना रहे हों। पर, अगर ऐसा है तो उसकी वजह उन्हें समझ नहीं आ रही थी। जो भी कुछ था, गगन सर से बात करके उन्हें अच्छा लगा था। वे कह तो रहे थे कि फिर से फोन करेंगे, देखते हैं कि करेंगे या नहीं, इससे सही बात का पता चल जाएगा।

उमा जी को खुद पर आश्चर्य हो रहा था कि वे गगन सर के फोन का इतनी आतुरता से इंतजार कर रही थीं। वे यह भी सोच रही थीं कि अगर उनका फोन आया तो वे बातों ही बातों में पता लगाने की कोशिश करेंगी कि वे सचमुच मन से उनकी तारीफ कर रहे थे या फिर वैसे ही बात करने के लिए कुछ भी कह रहे थे।