उर्वशी
ज्योत्स्ना ‘ कपिल ‘
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उस समय तो शौर्य ने जो मुँह में आया कह दिया, पर गुस्सा शांत होते ही उसे अहसास हो गया था कि सिर्फ गलती ही नही बल्कि वह गुनाह कर बैठा है। उसके माफी माँगने पर उर्वशी ने कोई ध्यान नहीं दिया। बल्कि जब उसने बात करने की कोशिश की और बात नहीं हो पाई तो वह समझ गया कि क्रोध में उर्वशी ने उसे ब्लॉक कर दिया था। इसके बाद उसने बात करने का प्रयत्न छोड़ दिया। माँ और भाई को बात पता लगने पर भाई ने कहा तो कुछ नहीं पर अबोला रखकर अपनी नाराजगी दिखा दी थी। उसे उनकी नाराज़गी से बहुत डर लगता था, इससे बेहतर तो वह उसे डांट डपट लेते। हाँ माँ ने उसे सूखा नहीं छोड़ा और कसकर उसकी लानत मलामत की। अपनी पत्नी का अपमान करके, उसकी आहें लेकर वह कभी सुखी नहीं रह पाएगा। उसने खानदान की प्रतिष्ठा को गहरी ठेस लगाई है। जब भी यह बात फैलेगी की उसकी पत्नी उससे नाराज़ होकर, उसे छोड़कर चली गई है तो वह लोग किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे।
जब उसे पता लगा कि उर्वशी अपने घर जा रही है तो वह तड़प उठा। जी चाहा कि उसे रोक ले, पर वह साहस नहीं जुटा पाया। इतनी बड़ी बात कहकर वह किस मुँह से उसके सामने जाए। उसके जाते समय वह चुपके से खिड़की के पीछे से देखता रहा। वह कल्पना कर रहा था कि शायद कोई उसे मना कर रोक ले। शायद कोई उसे डपटकर, अधिकार जताकर रोक ले, पर कोई कुछ करता हुआ नजर नहीं आया। बस उस पर अपनी नाराजगी दिखाकर जैसे उनका कर्तव्य पूरा हो गया। कैसे लोग हैं ? कोई उसे कुछ कहता क्यों नहीं ? अपना अधिकार दिखाकर रोकना चाहिए था न।
उर्वशी के जाने के बाद वह एकदम उद्विग्न हो उठा, उसका वहाँ ज़रा भी मन नहीं लगा। लगा जैसे वह उसकी हर खुशी सोखकर चली गई । उसने उस क्षण को भी कोसा, जब ग्रेसी से उसकी मुलाकात हुई। उस समय कितनी अच्छी लगती थी वह, लगता था उससे बेहतर लड़की दुनिया मे कोई नहीं। वह बहुत आकर्षक, स्मार्ट और सुंदर लगी थी शौर्य को। उसकी एक एक अदा पर वह मर मिटा था। इससे पहले उसने कभी लड़कियों पर इतना ध्यान नहीं दिया था। हमेशा हॉस्टल में रहकर पढ़ा, उच्च शिक्षा के लिए विदेश भी गया। उसके मित्रो में बहुत लड़कियाँ थीं, जिनके साथ उसके सम्बन्ध मित्रतापूर्ण थे। किसी के साथ वह गम्भीर कभी नहीं हुआ था। प्रारम्भ से ही उसके विचार थे कि वह जिस लड़की के प्रति जुड़ाव महसूस करेगा उसे ही अपना जीवनसाथी बनाएगा।
जब शौर्य ने ऑफिस जॉइन किया तो ग्रेसी उसकी सेक्रेटरी थी। अपने कार्य मे वह बहुत कुशल थी, परिश्रमी थी। हर काम को उसकी अपेक्षानुसार बिल्कुल सही ढंग से निबटा लेती थी। कुछ ही दिनों में वह उसकी कार्यकुशलता से बहुत प्रभावित हुआ था। कई महीने तक उसके साथ काम कर लेने के उपरांत उन दोनों की आपस मे बहुत बनने लगी थी। तब वह महसूस करने लगा कि पत्नी हो तो ग्रेसी जैसी, जो उसे इतनी अच्छी तरह समझती हो कि बिन कहे सब समझ जाए कि वह क्या चाहता है। उसने ध्यान दिया कि ग्रेसी भी उसकी हर बात को बहुत मान देती थी। उसकी आँखो में शौर्य को अपने लिए बहुत प्रेम नज़र आया। ऐसी लड़की साथ हो तो जीवन गुज़ारना कितना आसान हो जाए। ग्रेसी अक्सर उसके लिए कुछ उसकी पसन्द की डिश बनाकर लाती और प्रेम से उसे खिलाती।
अन्ततः उनके मध्य प्रेम सम्बन्ध बन गए। एक बार जब किसी मीटिंग के सिलसिले में वह दोनो दूसरे शहर गए हुए थे तो दोनो के मध्य अंतरंगता भी हो गई। भावनाओं का ज्वार उतरने के पश्चात वह काफी शर्मिंदा भी हुआ। पर ग्रेसी ने यह कहकर उसके मन का बोझ उतार दिया, की जब प्यार बहुत ज्यादा होता है तो यह सब क्रियाएं बहुत स्वाभाविक हैं। शौर्य ने सोच लिया कि वह उसके साथ ही विवाह करेगा। ऐसी समर्पित लड़की भला उसे कौन मिलेगी। सब कुछ अच्छा भला चल रहा था कि एक दिन शिखर ने पूरे परिवार को एक साथ डिनर करने के लिए कहा। उन दिनों उनलोगों की बहन शिप्रा भी मायके आयी हुई थी। तब शिखर ने शौर्य के विवाह का प्रसंग छेड़ा। शौर्य बहुत खुश हुआ कि यही वो वक्त है जब वह अपने और ग्रेसी के विषय मे सबको बता सकेगा। पर तभी शिखर ने कहा कि उन्होंने एक बहुत सुंदर, सजातीय लड़की छोटे भाई के लिए पसन्द कर ली है। उन्होंने बताया कि लड़की मध्यम वर्गीय है, पर इतनी सुंदर व गुणवान है कि सब वाह कर उठेंगे।
शौर्य ने तुरंत सबको बताया कि वह ग्रेसी को पसन्द करता है और उससे ही विवाह करना चाहता है। पर माँ ने दूसरे सम्प्रदाय की लड़की को वधु के रूप में स्वीकार करने से साफ इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि यदि कोई हिन्दू लड़की होती तो ऐतराज़ नहीं करतीं, पर दूसरे धर्म की लड़की को नही स्वीकार कर सकतीं। वह उनके घर की मान मर्यादा, संस्कार व रस्म नहीं समझ पाएगी। शौर्य ने बड़ी आशा से अग्रज की ओर देखा तो वह भी माँ के पक्ष में ही नज़र आये। उसने काफी विरोध किया पर कोई भी उसके पक्ष में नहीं था। अंत मे उसने निश्चय किया कि वह गृह त्याग कर देगा पर किसी और से विवाह नहीं करेगा। जब अपना निर्णय उसने ग्रेसी को बताया तो वह भी इस तरह विवाह करने को राजी न हुई। उसने शौर्य को समझाया कि वह घर वालों की बात मान ले और जहां वो सभी कह रहे हैं वहीं शादी कर ले। ग्रेसी तो उसको समर्पित है ही, वह उससे रिश्ता कभी नही तोड़ेगी। वह हैरान रह गया और मन मार कर उर्वशी से विवाह कर लिया।
पर उसके मन मे उर्वशी के प्रति आक्रोश था। जब भी कोई कहता कि वह बहुत भाग्यशाली है जो ऊर्वशी जैसी अनिंद्य सुंदरी उसकी पत्नी है तो वह चिढ़ जाता। उसे उसकी सुंदरता से चिढ़ हो गई थी। उसने इस सबके लिए उर्वशी को ही जिम्मेदार माना। अगर वह न होती तो शायद भाई उसके विवाह पर इतना जोर न देते। वह तो उन्हें खुले विचारों का मानता था। उसे लगा था और किसी को ऐतराज़ हो या न हो पर भाई ज़रूर उसे समझेंगे। पता नहीं उन्हें उस लड़की में इतनी रुचि क्यों थी ? उसने पत्नी की ओर दृष्टि उठाकर भी नहीं देखा। कहीं न कही शायद यह डर भी था कि वह उसे देखकर पिघल न जाए। उसने निर्णय किया कि वह उसे कभी अपनी पत्नी का अधिकार व सम्मान नहीं देगा। उसकी इस बात का सम्मान ग्रेसी ने भी किया। यद्यपि कई बार शौर्य के मन ने कहा भी की यह गलत है। इसमें उस बेचारी का क्या दोष ? पर उसका अहम यह मानने को तैयार नहीं हुआ। वह उससे बात नही करता था, देखता भी नहीं था।
अब घरवाले उन दोनों के मध्य अंतरंगता की अपेक्षा करने लगे थे। उसे जबर्दस्ती पत्नी के साथ समय व्यतीत करने को भेजते। वह औपचारिक बात तो उससे कर लेता पर उन दोनों के मध्य एक दीवार हमेशा खड़ी रही। जब वह पहली बार मायके गई थी तो शौर्य ने अनुमान लगाया था कि उसके न अपनाए जाने के कारण सम्भवतः अब वह वापस नहीं आएगी। पर जब भाई ने उसे पत्नी को विदा कराकर लाने को बोला तो वह हैरान रह गया। कैसी लड़की है ? क्या इसमे ज़रा भी आत्म सम्मान नहीं ? किसी ने शौर्य से कुछ कहा भी नहीं कि उसने शादी की पहली रात पत्नी के साथ ऐसा सुलूक क्यों किया। फिर जब वह विदा करवा कर ला रहा था तो उसने अपने आक्रोश को कुछ पिघलता सा महसूस किया। न जाने क्यों ? शायद उसके सौंदर्य की आँच से वह पिघलने लगा था । जब वह उसके साथ बैठी थी, सोते हुए उसका सिर शौर्य के कंधे पर आ गया तो उसने चौंककर उसकी ओर देखा। उसकी मनमोहिनी सूरत, व भीनी भीनी देहगन्ध शौर्य को मदहोश करने लगी। बड़ी मुश्किल से उसने स्वयं पर नियंत्रण किया।
पर उस रात, जब वह नशे के हल्के सुरूर में था, उर्वशी को देखा तो दृष्टि नहीं हटा पाया। उसका निर्दोष सौन्दर्य, उसके पास से आती सुगन्ध उसे पागल करने लगी। वह नियंत्रण खो बैठा। उस रात सारी दीवारें ढह गईं। होश में आने पर एक बार उसे अपराध बोध हुआ पर अगले ही पल मन ने कहा ' तो क्या हुआ, वह पत्नी है उसकी। उस पर उसका ही अधिकार है। एक बार उसके अहम ने चेताया भी की उसने तो कभी उसे पत्नी का अधिकार न देने की बात की थी। परंतु पौरुष लोलुपता ने यह बात खारिज कर दी। वह उसके आकर्षण में डूबता चला गया। अब उसे ग्रेसी बहुत साधारण लगने लगी। उसे आश्चर्य होने लगा कि इतनी साधारण लड़की उसे कभी संसार मे सबसे सुंदर कैसे लगती थी।
जब वह हनीमून के लिए यू एस गया तो पहली बार ग्रेसी का माथा खनका। वह तो इस भुलावे में थी कि शौर्य सिर्फ उसका है, पर वह तो अपनी पत्नी नाम की उस बला की संगति में उसे बिल्कुल भुला ही बैठा। उसे याद आया कि दिन में दसियों फोन करने वाला शौर्य धीरे धीरे उसे दिन में एक बार फोन करके ही अपने कर्तव्य की इति समझ लेता था। और हनीमून पर जाने के बाद पन्द्रह दिनों में उसने एक फोन भी नहीं किया था। अब उसे अपना शिकंजा कसना होगा, वरना वह कहीं की न रहेगी। शौर्य के लौटने के बाद बाद उसने बहुत खरी खोटी सुनाई की वह उससे दूर हो गया है। वह हर तरह से ठगी गई। स्वयम को समर्पित भी किया और हाथ भी कुछ न आया। वह उससे अब खुलकर कीमती फरमाइश करने लगी, उसके साथ प्रतिदिन ज्यादा समय व्यतीत करने का दबाव बनाने लगी।
प्रारंभ में तो शौर्य उसकी हर बात का मान रखता रहा यह सोचकर कि वह उसे चाहता था, इसलिए उसकी कोई बात किसी तरह ग्रेसी को आहत न करे। इच्छा न होने पर भी उसकी अधिकतर फरमाइश पूरी करता रहा, कि कभी इस लड़की के साथ उसने बहुत सुंदर समय व्यतीत किया है। उसी ने पहली बार उसे अहसास कराया था कि स्त्री सुख क्या होता है। पर जब वह बहुत मनमानी करने लगी तो वह खीझने लगा।
अब जाकर शौर्य को पहली बार अहसास हुआ कि ग्रेसी ने योजनबद्ध तरीके से उसे अपनी ओर आकर्षित किया था। इसीलिए उसने उसके समक्ष समर्पण भी किया ताकि वह उससे दूर न हो सके। जब वह गृहत्याग करके उससे विवाह करने को तैयार था तो ग्रेसी ने उसे घर वालों की बात मानने को इसीलिए कहा क्योंकि इस सूरत में उसके हाथ कुछ भी न लगता। इस तरह वह एक त्यागमयी लड़की की छवि भी बना पाई। शौर्य को लगा कि वह नही चाहती कि वह अपने घरवालों से दूर हो। उसने उसे भावात्मक स्तर पर ब्लैकमेल भी किया कि वह उसकी सच्ची चाहत को ठुकरा रहा है उसे धोखा दे रहा है। वह बेहद तनाव में आ गया। अब वह बहुत पछता रहा था कि क्यो वह उस धूर्त लड़की से जुड़ा। अब वह यह भी कहने लगी थी कि वह उर्वशी सब कुछ बता देगी की उनदोनो के सम्बन्ध किस सीमा तक पहुंच गए हैं।
शौर्य को उस पर इतना विश्वास था कि वह कल्पना भी न कर पाया कि ग्रेसी इस हद तक जा सकती है।
क्रमशः