कर्म पथ पर Chapter 62
गांव के सरपंच के घर पर जय और कुछ अन्य गांव वाले बैठे थे। सभी इस बात पर विमर्श कर रहे थे कि नहर का काम जल्दी शुरू हो इसके लिए कलेक्टर साहब से मिलकर बात की जाए।
जिला का कलेक्टर कोई दक्षिण भारतीय था। कलेक्टर का नाम रामकृष्ण अय्यर था। अय्यर को हिंदी भाषी क्षेत्र में आए हुए अधिक समय नहीं हुआ था। अतः हिंदी भाषा पर उसकी पकड़ बहुत कम थी। कुछ कामचलाऊ लफ्ज़ ही उसके शब्दकोश में थे। गांव का कोई व्यक्ति अंग्रेज़ी जानता नहीं था। अतः बातचीत की ज़िम्मेदारी जय को सौंपी गई थी।
अभी इस बात की रूपरेखा तैयार की जा रही थी कि कलेक्टर साहब से कहना क्या है। जय ने सुझाव दिया कि बातचीत के साथ एक लिखित प्रार्थना पत्र भी गांव वालों की तरफ से दिया जाना चाहिए। गांव वालों को सुझाव पसंद आया।
जय ने वहीं बैठ कर एक प्रार्थना पत्र तैयार कर लिया। तय हुआ कि कल गांव के सरपंच, उनके छोटे भाई और जय कलेक्टर से मिलकर उन्हें प्रार्थना पत्र सौंप कर नहर का काम जल्दी आरंभ करने की गुज़ारिश करेंगे।
अगले दिन तीनों लोग कलेक्टर अय्यर से मिले। जय ने बड़े प्रभावशाली ढंग से अंग्रेज़ी में अपनी बात उनके सामने रखी। सरंपच ने गांव वालों की ओर से उन्हें प्रार्थना पत्र दिया। चलते समय अय्यर ने अपनी टूटी फूटी हिंदी में सरपंच को आश्वासन दिया कि काम जल्दी हो जाएगा। जय ने उनकी समस्याएं अच्छी तरह से समझा दी हैं।
गांव लौटने पर सरपंच ने सभी को बताया कि कितनी अच्छी तरह से जय ने उनका पक्ष रखा। कलेक्टर साहब ने जल्दी काम हो जाने का आश्वासन दिया है। सभी जय की तारीफ कर रहे थे।
गांव में दिन पर दिन जय की इज्ज़त बढ़ती जा रही थी। जब से वह सिसेंदी गांव में आया था उसने कई तरीकों से गांव वालों की सहायता की थी। गांव वाले उसे आदित्य के नाम से जानते थे। वयस्क उसे आदित्य बाबू कह कर पुकारते थे। बच्चे उसे आदित्य भइया कहते थे।
जिस तरह से जय ने गांव वालों के मन में जगह बनाई थी उसे देखकर वृंदा भी बहुत प्रभावित थी। कभी कभी वह सोचती थी कि जिस जय से वह पहली बार मिली थी। जिसने बड़े घमंड से उसे ए लड़की कह कर अपनी मोटर से हटाया था वह कोई और जय था। उस जय में और आज के जय में ज़मीन आसमान का अंतर है। उस जय में अपने पिता की दौलत और रुतबे का कितना अधिक घमंड था। पर आज जो जय वह इस गांव में देख रही है वह कितना विनम्र और शालीन है। गांव के हर छोटे बड़े से कितने प्यार और अदब से मिलता है। गांव के सुख दुख में सबके साथ खड़ा रहता है।
कुछ दिन पहले जब श्याम बीमार पड़ा था तब जय ही उसकी माँ के साथ उसे शहर के अस्पताल दिखाने ले गया था। ऐसे ही गांव की निर्धन औरत परवतिया की बेटी की शादी में उसने ना सिर्फ बढ़ चढ़ कर काम किया बल्कि अपनी सामर्थ्य भर उसकी आर्थिक मदद भी की।
पहले वह जय का नाम सुनकर ही चिढ़ जाती थी। पर अब जब कोई उसके सामने जय की तारीफ करता था तो वह खुश हो जाती थी। उसका मन अब चाहता था कि वह हर पल जय के साथ रहे। जब भी वह जय को देखती थी तो उसका दिल ऐसे खुश होता था जैसे कोई बच्चा अपनी मनचाही चीज़ को देखकर होता है।
वृंदा पहचान गई थी कि यह सारे लक्षण प्यार के हैं। वह पूरी तरह से जय के प्रेम में डूब गई है। इधर अक्सर ही वह और जय टीले पर मिलते थे। वृंदा परखने की कोशिश करती थी कि क्या जय में भी वह प्यार के लक्षण दिखते हैं। लेकिन वह जय के दिल का अंदाजा नहीं लगा पा रही थी। जय जब भी उससे मिलता था तो उसके व्यवहार से प्यार जैसी कोई चीज़ नहीं झलकती थी। वृंदा महसूस करती थी कि जय उसका सम्मान करता है। कई बार उसने वृंदा के साहस की तारीफ की थी। उस दिन माधुरी की बात बताते हुए उसने कहा था कि माधुरी में उसे वृंदा की झलक दिखाई पड़ती है। क्योंकी वृंदा की तरह वह भी जुझारू है।
जय के मुंह से अपनी तारीफ वृंदा को अच्छी लगती थी। पर अब वह तारीफ की जगह उसका प्रेम प्रस्ताव सुनना चाहती थी। अपने लिए आदर की जगह प्रेम देखना चाहती थी।
उस दिन लता ने जब कहा कि उसका भाग्य फूटा है। इसलिए उसे हर खुशी से दूर रहना पड़ेगा तो उसे उसकी इस दशा पर बहुत दुख हुआ। वह उसके अंतर्मन की पीड़ा समझ सकती थी। इसलिए उस दिन लता के बारे में सोच कर उद्विग्न हो गई थी।
उसे बुरा लग रहा था कि क्यों लोग एक लड़की के विधवा हो जाने का दोष उसे ही देते हैं। उससे एक सामान्य औरत की तरह रहने का अधिकार छीन लेते हैं। उस दिन उसने लता का नाम लेकर जो कुछ भी कहा था उसमें उसका अपना दर्द भी शामिल था।
जय भी उसके मन के भाव नहीं समझ पा रहा था इसलिए उसने अपरोक्ष रूप से अपनी बात उस तक पहुँचाने की कोशिश की थी।
इंस्पेक्टर जेम्स वॉकर के साथ भी यह पहली बार हुआ था कि उसने कोई काम अपने हाथ में लिया हो और पूरा ना हो पाया हो। पर वृंदा को तलाश पाने में वह नाकाम रहा था। इसके लिए उसे हैमिल्टन से सुनना पड़ रहा था। इससे वह चिढ़ा हुआ था।
वृंदा की तलाश उसे अनाधिकारिक रूप से सिर्फ हैमिल्टन के लिए करनी थी। इसलिए वह पुलिस विभाग के संसाधनों का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पा रहा था। उसे इंद्र की मदद लेनी पड़ी थी। इतने सारे लालच देने के बावजूद उसकी तरफ से कोई अच्छी खबर नहीं मिली थी।
जेम्स यहाँ पुलिस की नौकरी छोड़कर जल्द से जल्द अपने वतन इंग्लैंड वापस जाना चाहता था। वहाँ उसका इरादा कोई छोटा सा व्यापार शुरू कर अपनी बचपन की प्रेमिका कैथरीन के साथ शादी करने का था।
कैथरीन अपने परिवार के विरूद्ध जाकर अविवाहित रह कर इंग्लैंड में उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। कुछ दिनों पहले उसका खत आया था। उसमें उसने लिखा था कि अगर जेम्स इंग्लैंड नहीं आ सकता है तो उसे भारत बुला ले। वह यहाँ के अस्पताल में नर्स का काम कर लेगी। पर अब उससे वहाँ अकेले रहा नहीं जा रहा है। घर वालों का दबाव दिन पर दिन बढ़ रहा है।
जेम्स जानता था कि एक बार अगर कैथरीन यहाँ आ गई तो फिर उसके लिए इंग्लैंड जाना कठिन हो जाएगा। वह अपनी नई ज़िंदगी इंग्लैंड में ही शुरू करना चाहता था।
पर वृंदा उसके और कैथरीन के बीच दीवार बनी हुई थी। वैसे उसके पास कोई मजबूरी नहीं थी कि वह हैमिल्टन का काम करे। पर वृंदा को गिरफ्तार किए बिना यहाँ से जाना उसकी हार होती।
वह हारकर नहीं जाना चाहता था।
हंसमुख खुश था। उसके पास इंद्र को बताने के लिए कुछ नया था। इससे पहले इंद्र ने उसे अपने घर बुला कर खूब डांटा था। इंद्र बहुत गुस्से में था क्योंकी जेम्स ने उसे खूब खरी खोटी सुनाई थी। उसने हंसमुख से कहा था कि अगली बार जब उसके सामने आए तो उसके पास बताने के लिए कुछ नया हो।
हंसमुख ने जय के बारे में पता किया। उसे विष्णु के नौकर से पता चला कि जय अब वहाँ नहीं रहता है। वह केवल महीने के अंत में एक दो दिनों के लिए विष्णु का काम करने आता है। बाकी समय वह मोहनलाल गंज के पास किसी गांव में रहता है।
यह खबर इंद्र के लिए सचमुच काम की थी।