कर्म पथ पर - 60 Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कर्म पथ पर - 60


कर्म पथ पर
Chapter 60



गांव की दस लड़कियां नवल किशोर के आंगन में बैठी कढ़ाई कर रही थीं। रोज़ ये सभी लड़कियां दोपहर को यहाँ इकट्ठा होकर सिलाई कढ़ाई सीखती थीं। सिलाई कढ़ाई के साथ वृंदा उन्हें पढ़ाती भी थी।
लड़कियों को सिलाई कढ़ाई सीखने से अधिक रुचि पढ़ने में थी। वृंदा उन्हें और भी बहुत सी ज्ञानवर्धक बातें बताती रहती थी।
लड़कियां अपने काम में लगी थीं। वृंदा वहीं बैठी नवल किशोर से बातें कर रही थी। जबसे उनके आंगन में लड़कियों की कक्षाएं लग रही थीं नवल किशोर बहुत खुश रहते थे।
नवल किशोर ने वृंदा से कहा,
"बिटिया तुम ये बड़ा नेक काम कर रही हो कि गांव की लड़कियों को भी कुछ गुन सिखा रही हो। वरना हमारे यहाँ तो इन्हें चूल्हा चौका सिखा कर ब्याज दिया जाता है। फिर ज़िंदगी भर उसी में पिस जाती हैं।"
"चाचा हमारा समाज इतनी सी बात क्यों नहीं समझता है कि लड़की को पढ़ाने का मतलब है आने वाली पीढ़ी को शिक्षित करना। अब बच्चे की सबसे पहली गुरु तो माँ ही होती है। वो ही अपढ़ रहेगी तो अपनी संतान को क्या सिखाएगी। बाकी शिक्षक तो बाद में आते हैं।"
"सही कह रही हो बिटिया। तुम्हें पता है हमारी अम्मा पढ़ लिख लेती थीं। मानस का नियमित पाठ करती थीं। हमारे पिता तो अंग्रेजी फौज में सिपाही थे। वो तो बाहर ही रहते थे। हम छह भाई बहनों की परवरिश अकेले अम्मा ही करती थीं। उन्होंने हमारी इकलौती बहन को पढ़ना लिखना खुद ही सिखाया था।"
"तभी तो आप समझते हैं कि औरत का शिक्षित होना कितना ज़रूरी है।"
तभी रेनू उठकर वृंदा के पास आई। उसे अपनी कढ़ाई दिखाते हुए पूँछा,
"देखो ना दीदी कैसी है ?"
वृंदा ने उसे ध्यान से देखकर कहा,
"तुम्हारे काम में बहुत सफाई है रेनू।"
उसके बाद वृंदा उठकर बाकी लड़कियों के पास आई। उसने पूँछा,
"तुम लोगों का काम पूरा हुआ ?"
कुछ का काम पूरा हो गया था। कुछ का अभी भी बाकी था। पर सभी लड़कियां अब पढ़ाई करना चाहती थीं। आज हिसाब की कक्षा होनी थी‌। पायल हिसाब में बड़ी तेज़ थी। वह बोली,
"दीदी बचा हुआ काम घर पर कर लेंगे। अभी आप हिसाब के सवाल पूँछिए।"
सब लड़कियों ने उसकी हाँ में हाँ मिलाई। दुर्गा हंसकर बोली,
"दीदी पायल हिसाब में तेज़ है। इससे कठिन सवाल पूँछिएगा।"
सब लड़कियां हंसने लगीं। वृंदा ने उन्हें शांत कराते हुए कहा,
"चलो अच्छा.... मेरे एक सवाल का जवाब दो।"
सब लड़कियां एक साथ बोलीं,
"हम तैयार हैं..."
वृंदा ने मन में एक सवाल सोंचा। उसने पूँछा,
"अच्छा बताओ... तुमको घर से दो आने मिले। तुम उसे लेकर मेले में गई। पहले एक पैसे का तुमने खिलौना खरीदा। फिर दो पैसे की मिठाई। आगे तुमने कढ़ाई के लिए पाँच पैसे का धागा खरीदा। अब घर लौट कर तुम्हारे पास कितने पैसे बचे ?"
सवाल ध्यान से सुनने के बाद सभी लड़कियां जवाब निकालने लगीं। पर किसी का जवाब ही नहीं निकल रहा था। हमेशा की तरह पायल ने हाथ उठा दिया। सब आश्चर्य से उसकी तरफ देखने लगीं। वृंदा ने कहा,
"तुम लोग कोशिश करो। जिसका जवाब निकल आए वो कान में आकर बता दे।"
पायल वृंदा के पास आई और उसे अपना जवाब बता दिया। सबने एक एक कर अपना जवाब बता दिया। केवल नरगिस बची थी। वृंदा ने उससे कहा,
"क्या हुआ नरगिस ? तुम अभी तक उलझी हो।"
नरगिस उदास होकर बोली,
"दीदी हम तो गरीब घर के हैं। इतना पैसा कभी नहीं देखा। कढ़ाई के लिए सामान भी दुर्गा से मांगा है।"
वृंदा उठकर उसके पास गई। उसके सर पर हाथ रख कर बोली,
"बात अमीरी गरीबी की नहीं है नरगिस। सीखने की है। मैंने सबके साथ तुम्हें भी हिसाब सिखाया है ना।"
वृंदा फिर अपनी जगह पर जाकर बैठ गई। उसने कहा,
"सिर्फ दो लड़कियों का जवाब सही है। पायल और सलमा। बाकी सब ध्यान नहीं दे रही हो।"
पयाल और सलमा के चेहरे पर मुस्कान खिल गई। बाकी सही जवाब के लिए उत्सुक हो गईं। वृंदा ने नरगिस से पूँछा,
"अच्छा बताओ कि एक आने में कितने पैसे होते हैं ?"
नरगिस ने याद करके जवाब दिया,
"चार पैसे दीदी..."
"ठीक...तो इस हिसाब से दो आने में आठ पैसे हुए।"
सभी लड़कियों ने हामी भरी। वृंदा ने कहा,
"अब अपने खर्च को देखो...एक पैसे का खिलौना फिर दो पैसे की मिठाई...हो गए तीन पैसे... ठीक।"
लड़कियों ने अपने मन में हिसाब लगा कर फिर हामी भरी। वृंदा ने आगे कहा,
"पाँच पैसे का धागा खरीदा तो पाँच और तीन मिलाकर कितने हुए ?"
नरगिस ने जल्दी से जोड़ कर कहा,
"आठ पैसे दीदी..."
"शाबाश...आठ पैसे लेकर गई थी। आठ खर्च हो गए तो क्या बचा ?"
दुर्गा बोली,
"कुछ नहीं दीदी...ठन ठन गोपाल..."
सब लड़कियां हंसने लगीं। वृंदा ने नरगिस से कहा,
"अब समझ आया हिसाब।"
"हाँ दीदी...."
"तो मन सीखने में लगाओ। धागे भले ही उधार लिए हों पर हुनर तो तुम्हारा है।"
उसके बाद वह सब लड़कियों से बोली,
"अब घर जाओ। जो मैंने सिखाया उसे दोहराना। कढ़ाई का काम करके लाना।"
सब लड़कियां अपना सामान लेकर जाने लगीं। तभी मदन और जय बाहर से आए। लड़कियों ने उन दोनों को नमस्ते किया। जय ने पूँछा,
"तो आज की कक्षा का समय समाप्त हो गया ?"
सब लड़कियों ने एक साथ कहा,
"हाँ भइया...."
सब हंसती हुई निकल गईं। वृंदा भी जाने की तैयारी कर रही थी। नवल किशोर के घर में जय वृंदा और मदन अधिक बात नहीं करते थे। नवल किशोर को नमस्ते कर वृंदा चली गई। नवल किशोर ने पूँछा,
"जिस काम से गए थे वह हुआ ?"
मदन ऊपर अपने कमरे में चला गया। जय नवल किशोर के पास बैठकर बोला,
"चाचा सरपंच जी और गांव के कुछ लोग भी हमारे साथ गए थे। अधिकारी से बात हुई है। उसने आश्वासन दिया है कि नहर के बारे में कुछ करेगा।"
"चलो अगर नहर का काम हो जाए तो खेती के लिए अच्छा होगा।"
जय उठते हुए बोला,
"अब देखिए क्या होता है। मैं ज़रा कमरे में जाकर आराम करता हूँ।"
जय अपने कमरे में चला गया। नवल किशोर चारपाई पर लेट कर कबीर का गीत गाने लगे।

वृंदा नवल किशोर के घर से निकल कर कुछ ही दूर आई होगी कि रास्ते में उसे चंदर अपनी बहन लता के साथ कहीं से लौटता दिखाई पड़ा। वृंदा को देखते ही दोनों बहन भाई ने नमस्ते किया। वृंदा ने पूँछा,
"कहाँ से आ रहे हो दोनों ?"
चंदर ने जवाब दिया,
"दीदी को लेकर शिवजी के मंदिर गया था। दीदी रोज़ सुबह पूजा के लिए जाती है। आज सुबह तबीयत ठीक नहीं थी। इसलिए दोपहर में गई थी।"
वृंदा ने लता से पूँछा,
"अम्मा तुम्हें सिलाई कढ़ाई सीखने भेजने को भी तैयार नहीं हुईं ?"
लता ने नज़रें झुका लीं। वृंदा समझ गई कि उसके पिता की अनुमति नहीं होगी। वह चंदर से बोली,
"जो पाठशाला में सीखते हो वह अपनी बहन को सिखाते हो कि नहीं ?"
चंदर भी चुप रहा। वृंदा ने पूँछा,
"क्या बात है चंदर ?"
"पिताजी ने एक दिन देख लिया था। बहुत गुस्सा हुए। बोले कि अगर आगे से ऐसा करते देखा तो तुम्हारी पढ़ाई भी बंद करा देंगे।"
वृंदा यह जानकर दुखी हुई। लता बोली,
"दीदी अब हमारा भाग ही फूटा है तो क्या किया जाए।"
उसने चंदर से कहा कि अब चले नहीं तो अम्मा परेशान होंगी। दोनों आगे बढ़ गए। वृंदा कुछ देर वहीं खड़ी रही। फिर वह भी चली गई।