Urvashi - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

उर्वशी - 13

उर्वशी

ज्योत्स्ना ‘ कपिल ‘

13

पूरे रास्ते वह मौन रही, शिखर बार बार उसे देखते और फिर दुखी हो जाते। उसके जाने का ख्याल उन्हें परेशान कर रहा था। अब वह कभी लौटकर नहीं आएगी। काश वह किसी तरह उसे रोक पाते। उनका जी चाह रहा था कि गिरेबान पकड़ कर शौर्य को लाएं और उसके कदमो में डाल दें, कि लो, यह रहा तुम्हारा अपराधी। इसे जो चाहे सज़ा दो। पर वह कुछ कर नहीं सकते थे। फ़्लाइट मुम्बई पहुँची तो शिखर के स्टाफ़ से दो मजबूत कद काठी के नज़र आते व्यक्ति, उनके स्वागत के लिए हवाई अड्डे पर मौजूद थे।

" उर्वशी, हमें आधे घण्टे के अंदर मीटिंग अटेंड करनी है इसलिए हम सीधे वहीं जा रहे हैं, आपको आपके रूम तक मिस्टर कुलकर्णी पहुँचा देंगे। जाकर आराम कीजिये, समय से खा पी लीजियेगा। फ्री होते ही हम आते हैं । " उन्होंने कोमल स्वर में कहा। फिर आगे बढ़कर एक काले रंग की इन्नोवा का पिछला दरवाजा खोला और उसे बैठने का इशारा किया। उनके स्टाफ के उन दो व्यक्तियों में से एक उसकी गाड़ी में ड्राइवर के बग़ल में बैठ गया, और गाड़ी आगे बढ़ गई।

होटल ग्रैंड हयात के अपने कमरे में पहुँचकर उसने राहत की साँस ली । अब वह बहुत अच्छा महसूस कर रही थी। अपनी धरती पर कदम रखते ही उसका तनाव कुछ कम हो गया था। अब बस दो दिन बाद वह अपनों के बीच होगी। फिर एक नए सिरे से जीवन की शुरूआत करनी होगी। सबसे पहले उसने शावर लेकर नाइटी डाल ली। अब उसके पास सिर्फ एक जोड़ी जीन्स टॉप ही थे, जिन्हें वह पहनकर आयी थी। इन कपड़ों को धोने सुखाने की कोई जुगाड़ करनी होगी। वह अपने विचारों में गुम थी कि फोन के बजने से व्यवधान पड़ गया। शिखर का फोन था, पूछ रहे थे कि कुछ खाया पिया या नहीं। उसने बोल दिया कि अभी उसका मन नहीं है। थोड़ी देर बाद दरवाजे पर दस्तक हुई। उसने अंदर आने की आज्ञा दी, तो एक बेयरा हाथ में ट्रे लेकर खड़ा था। उसमें एक्सप्रेसो कॉफी और स्नैक्स थी। वह हैरान थी कि उसने ऑर्डर नहीं दिया था कि, तभी कुलकर्णी अंदर आ गया

" मैम, सर ने कहा है कि यह आपको लेना है "

" ओके, थैंक्स। " उसने जवाब दिया। कुलकर्णी चला गया।

अजीब मुसीबत है, मन न हो, भूख न हो, तब भी लेना है। यानी मेरी एक एक बात पर नज़र रखी जा रही है। कुलकर्णी को भी यहीं रोक दिया है। पर मुझे इतनी सिक्योरिटी की क्या ज़रूरत है ? मुझ पर गनमैन बैठाने की क्या ज़रूरत थी ? कौन जानता है मुझे ? मुझे भला किससे खतरा हो सकता है ? जब सब पर इतनी नज़र रखते हैं, तो क्या इन्हें शौर्य की उन सब बातों की खबर नहीं होगी ? जरुर होगी। तो फिर अपने भाई को इन सब बातों के लिए रोका क्यों नहीं ? क्या जानबूझकर चुप थे ? हो सकता है सच मे उन्हें खबर न हो। सोचते हुए उसने कॉफी के घूँट भरे तो तन मन मे ताज़गी भरती चली गई। उसे महसूस हुआ कि वास्तव में उसे कॉफी की ज़रूरत थी। दो दिन से उसने ढंग से न खाया पिया था और न सोई थी। टीवी ऑन किया तो उसमें मन नहीं लग रहा था। बस बेमतलब वह चैनल सर्फ़ करती रही। फिर वह सोने की कोशिश करने लगी। दो घण्टे आँख बंद करके लेटी रही, पर तनाव के कारण नींद नहीं आयी।

वह अर्धजागृतवस्था में थी कि दरवाजे पर पुनः दस्तक हुई। उसने अंदर आने की आज्ञा दी तो एक अटेंडेंट एक बड़ा सा सूटकेस लेकर खड़ा हुआ था। वह उससे पूछ ही रही थी कि किसका सामान है तभी शिखर वहाँ आ गए।

" इसमें आपके लिए कुछ नए कपड़े और ज़रूरत का बाकी सामान है, जो अभी लिया है। "

" मैंने कहा तो था कि मैं अब आप लोगों की कोई भी चीज़ नहीं लूँगी। "

" मूर्खतापूर्ण बात मत करिए उर्वशी, अभी आज और कल का दिन है, फिर ट्रेवल करना है। अगर कहीं और जाना पड़ गया तो ड्रेस तो चाहिए न ।"

वह कुछ देर सोचती रही, फिर उसने अपने गले में पहनी चेन जो वह कई वर्षों से पहने रहती थी, उतारकर उनकी ओर बढ़ा दी। उन्होंने प्रश्नवाचक दृष्टि से उसे देखा

" मेरे पास इस समय सिर्फ यही है, जो मैं इस सामान के बदले … " उसने कहना चाहा।

" उफ़, इतना तो मत गिराइए, हम आपसे यह लेंगे ? आज इस मुकाम पर आप हमारी वजह से ही खड़ी हैं। इतना हक़ तो है हमें । " उन्होंने तड़पकर कहा और उसके आगे हाथ जोड़ दिए। फिर चेन लेकर वापस उसके गले मे डाल दी। इससे पहले की वह कुछ कहे वहाँ से चले गए।

सूटकेस खोलकर देखा तो उसमें पाँच छः जोड़ी विभिन्न प्रकार की ड्रेसेज, दो जोड़ी रात में पहनने के वस्त्र, अंतर्वस्त्रों के जोड़े, दो जोड़ी फुटवियर, पर्स, एक छोटी सी वैनिटी किट, जिसमें ज़रूरत का सभी सामान था, और भी छोटी मोटी सभी वस्तुएं, जिनकी उसे आवश्यकता पड़ सकती थी। वह हैरान रह गई, एक एक चीज़ का कितना ख्याल था उन्हें। काश उनके स्वभाव का थोड़ा अंश उनके भाई में भी होता। ऐश्वर्या जैसी दम्भी स्त्री के साथ वह बरसों से निभा रहे थे। मजाल है जो कभी उसे कुछ कहा हो या कोई रोक टोक की हो। हर एक कि सुख सुविधा का ख्याल रखना उनका स्वभाव था। घर को एक सूत्र में बांध के रखना उनका ही करिश्मा था। सब कुछ इतने ढंग से व्यवस्थित कर रखा था उन्होंने की परिवार संगठित भी था और हर एक को पूरी स्वतंत्रता भी थी। हर क्षण उनकी निगाह सभी पर थी, किसको किस समय किस वस्तु की आवश्यकता है, कब ढील देनी है और कब दबाव बनाना है कि व्यक्ति प्राप्त स्वतंत्रता का गलत इस्तेमाल न कर सके, उन्हें अच्छी तरह पता था।

वह सिर्फ शौर्य के मामले में चूके थे, इसकी वजह थी उस पर उनका विश्वास कि वह परिपक्व हो चुका है, और अब उसका दाम्पत्य जीवन भी पटरी पर आ गया है। उन्होंने कल्पना ही न कि थी कि वह इस प्रकार एक कुटिल लड़की के जाल में फंसकर अपनी खुशियों में आग लगा लेगा। उन्हें लगा था कि अब वह उससे दूर हो चुका है तो उसकी खोज खबर लेनी बन्द कर दी थी। जिसका अब उन्हें अफसोस हो रहा था। पर अब पछताने से कोई फायदा नहीं था। वह जान गए थे कि बात जितनी बिगड़ गई है अब उसके सँवरने की कोई आशा नहीं। काश यह सब न हुआ होता !

शिखर के जाने के लगभग आधे घण्टे बाद कमरे में फ़ल, कुकीज़, चॉकलेट्स आ गईं। उसने ठंडी साँस छोड़ी। इन्हें भी शासन करने की आदत है, कोई उनका हुक्म न माने वह बर्दाश्त नहीं। शाम को फिर बिना ऑर्डर के कॉफी और कटलेट्स आ गए। थोड़ी देर में फिर कुलकर्णी आया

" मैम, आप बीच या कहीं और जाना चाहेंगी ?"

" नहीं ।"

" शॉपिंग, मॉल या मूवी ?"

" नहीं, मुझे कहीं नहीं जाना ।"

" वैसे अक्सा बीच बहुत खूबसूरत है ।"

" फिर कभी ।"

" ओके " वह चला गया।

उफ़, उसने सोचा, मालिक तो मालिक, उनका स्टाफ़ भी जबर्दस्ती पर आमादा है। फिर उसने टीवी पर नज़रें गड़ा दीं। एक चैनल पर ' द हॉलोमैन ' फ़िल्म आ रही थी. वह उसे देखने लगी। तनाव के कारण बार बार उसका ध्यान भटक जा रहा था और फिर उसे मस्तिष्क पर जोर डालना पड़ता कि फ़िल्म में क्या चल रहा है। फ़िल्म कब समाप्त हुई उसे पता ही न चला। फोन के बजने से उसकी तन्द्रा भंग हुई। शिखर का ही फोन था।

" उर्वशी, आप हमारे सुइट में आइए "

" आपका सुइट ?"

" बाहर आइए, कुलकर्णी आपको ले आएगा "

उन्होंने फोन बंद कर दिया। उसने समय देखा तो रात के साढ़े आठ बज गये थे। एक बार उसने दर्पण देखा, फिर नाइटी उतारकर एक खूबसूरत सा सलवार सूट पहन लिया। बाहर आयी तो कुलकर्णी की दृष्टि उस पर पड़ी, उसकी आँखो में प्रशंसा भाव आया और फिर निग़ाह फेरकर वह चल दिया।

" आइए मैम। " उसने विनम्रता से कहा। वह उसके पीछे चल दी। थोड़ा आगे जाकर वह रुक गया और दरवाजा खोलकर उसे अंदर जाने का इंगित किया। अंदर गई तो देखा एक सोफ़े पर शिखर बैठे हैं और टेबल पर भोजन लगा हुआ है। उनका चेहरा कुम्हलाया हुआ लग रहा था और थकान के चिन्ह थे। उसे देखा तो मुग्ध भाव से देखते रह गए

" ब्यूटीफुल, आपके पहनने से इस ड्रेस की खूबसूरती बढ़ गई। " उनकी प्रशंसा से वह लजा गई

" आइए, भोजन करिये। दिन भर आपने कुछ नहीं खाया न ?" शांत स्वर था।

" कितना कुछ तो आपने भिजवा दिया था। "

" इस तरह आप अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ कर रही हैं। " उन्होंने अधिकार भरे स्वर में कहा

" मुझे भूख नहीं थी, फिर भी आप इतना कुछ भिजवाते रहे। " उसने शिकायत की।

" क्या किया दिन भर ? हमारे विचार से सोई भी नहीं हो पिछले दो दिन से ?"

" क्या करती, कुछ था ही नहीं करने को "

" जिम चली जातीं, स्पा ले लेतीं, स्विमिंग कर लेतीं। कहीं घूम फिर आतीं। हमने बहुत कोशिश की, पर जल्दी आ ही नहीं पाये। " उन्होंने एक प्लेट में थोड़ा भोजन परोसकर उसकी ओर बढ़ा दिया।

" मुझे भूख नहीं, इतना सारा नहीं खा पाऊँगी। "

" आप इसे इतना सारा कह रही हैं ? खाइए चुपचाप, हमारा ऑर्डर है। " उन्होंने स्नेह भरी झिड़की दी। उसने चुपचाप भोजन को गले से उतारना शुरू किया।

" आपने क्या विचार किया ? आप क्या करेंगी अब ?" बात आगे बढ़ाई।

" सब कुछ नए सिरे से शुरू करना होगा "

" कहाँ रहेंगी ? दिल्ली या आगरा ?"

" कुछ दिन तो आगरा ही रहूँगी, फिर दिमाग स्थिर होने पर दिल्ली जाऊँगी। कोई जॉब देखनी पड़ेगी। सारी जिंदगी माँ बाप या भाई पर बोझ बनकर नहीं रहूँगी। "

" एक प्रपोज़ल दें आपको ? " उन्होंने सवाल किया तो उसने सवालिया नज़रों से उन्हें देखा। "

" थोड़े दिन मम्मी पापा के पास रह आइए। चेंज हो जाएगा। उसके बाद वापस आ जाइये। शौर्य से नाराज़ हैं, कोई बात नहीं, हम ये नहीं कहेंगें की उन्हें माफ़ कर दीजिये। राणा पैलेस में ही हम आपको एक बिल्कुल सेपरेट पोर्शन दे देंगे। आराम से रहिये, किसी का कोई दखल नहीं होगा। "

" बिल्कुल नहीं। " वह आवेश में आ गई।

" ओके ओके, कूल डाउन । ऐसा करिये ऐज़ ए ट्रेनी हमारी कम्पनी जॉइन कर लीजिये। थोड़े दिन बिज़नेस समझिए, फिर आप वहाँ किसी अच्छे पद पर अपॉइंट कर दिया जाएगा । कम्पनी की तरफ से आपको फर्निश्ड फ्लैट और गाड़ी मिल जाएगी। " अगला पास फेंका गया।

" प्लीज़ डोंट माइंड, लेकिन राणा फैमिली से अब कुछ भी स्वीकार करना मैं अपना अपमान समझती हूँ। " उसका स्वर कठोर हो गया था।

" हम कोई अहसान नहीं कर रहे आप पर, वो हक़ है आपका । आप उस परिवार का ही हिस्सा हैं। प्रॉपर्टी की एक हिस्सेदार आप भी हैं। "

" कैसा हक़ ? जिस व्यक्ति से जुड़ी थी, जब उसने ही अपनी ज़िंदगी से बेदखल दिया है, तो फिर बाकी ही क्या रहा ?"

" मूर्ख है वो, कुछ भी बकवास करेगा और क्या वो बात मान ली जाएगी ? हकीकत यही है कि आप हमारे परिवार का हिस्सा हैं। इसे कोई भी नहीं झुठला सकता। "

" मेरा अब कोई वास्ता नहीं राणा परिवार से, न ही मैं प्रॉपर्टी पर अपना अधिकार मानती हूँ। एक फूटी कौड़ी भी मुझे नहीं चाहिए। न मेरा परिवार इतना गया गुज़रा है कि मुझे खिला न पाए, और न ही मैं इतनी अशक्त हूँ कि अपना भरण पोषण न कर सकूँ। "

" देखिये प्लीज़ गुस्सा थूक दीजिए । कहा न कि शौर्य की तरफ़ से हम आपसे माफी माँगते हैं । हम इस तरह आपको दर दर की ठोकरें खाने को नहीं छोड़ सकते। उस घर का बड़ा होने के नाते यह हमारा आदेश समझिए । यकीन मानिए, शौर्य को आपसे माफ़ी माँगनी पड़ेगी। " उन्होंने फिर उसे मनाने का प्रयास किया।

क्रमशः

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