मैं, मैसेज और तज़ीन - 4 Pradeep Shrivastava द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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मैं, मैसेज और तज़ीन - 4

मैं, मैसेज और तज़ीन

- प्रदीप श्रीवास्तव

भाग -4

उसकी इस बात से मेरी धड़कन बढ़ गई कि कहीं मना न कर दे। लेकिन तभी वह बोली ‘ठीक है मैनेज करती हूं। तुम लोग यहीं रुको मैं दस मिनट में आती हूं।’ यह कहते हुए उसने हैंगर पर से जींस और बदन पर से ट्राऊजर उतारा फिर जींस पहनकर चली गई। मेरी आंखों में उसके इस अंदाज पर थोड़ा आश्चर्य देखकर काव्या बोली ‘हे! तापसी इतना परेशान क्यों हो रही है। उसे ऐसे क्यों देख रही थी। उसने कपड़े ही तो चेंज किए थे।’ मेरे बोलने से पहले ही नमिता ने जोड़ा ‘अरे! यार लड़कों को देखो साले कैसे फ्रेंची पहने अंदर बाहर होते रहते हैं।’

क्षण भर में उसने अपने भाई का किस्सा सुना डाला कि ‘केवल अंडर-वियर पहने ही घर भर में घूमता है। जिस समय पापा की, अपनी गाड़ी धोता है उस दिन बाहर लॉन में घंटों अंडर-वियर में ही रहता है। धुलाई-सफाई करते भीगा हुआ पहने रहता है। सब आते-जाते देखते रहते हैं लेकिन उस पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मैं तो उसे मोगली कह कर चिढ़ाती हूं। लड़के कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं ? मैं तो मम्मी से भी कह देती हूं सिर्फ़ मुझे ही नहीं भाई को भी कहा करो। लो-वेस्ट कपड़े पहनने पर मुझ पर नाक भौं सिकोड़े बिना नहीं रहतीं।’ उसके चुप होते ही काव्या चालू हो गई। बोली ‘यार ये पैरेंट्स भी न बस लड़कियों पर ही सारा हुकुम चला पाते हैं। मैं भी मम्मी को बोल देती हूं कि भइया को नहीं बोलती बस मुझे ही कहती रहती हो।’

दोनों की इन बातों का मैं सिर्फ़ इतना ही जवाब दे सकी कि यहां हम तीनों बाहरी हैं। घर पर तो भाई परिवार के सदस्य हैं। क्या तुम दोनों इस तरह फ्रेंड्स के सामने अपने कपड़े चेंज कर लोगी। मेरा इतना बोलना जैसे उन दोनों को तज़ीन के आने तक बोलने की एनर्जी दे गया। दोनों बिना हिचक बोलीं ‘यार मेरे को इसमें कोई प्रॉब्लम नज़र नहीं आती।’ काव्या सबसे आगे निकल जाने की जैसे ठान चुकी थी बोली ‘यार हॉस्टल में रहते हुए मैं फ्रेंड्स के सामने ट्राऊजर तो क्या सारे कपड़े चेंज़ कर सकती हूं। मैं परवाह नहीं करती इन सारी चीजों की।’

सच यह भी था कि उन दोनों की बातें मुझे ठीक भी लग रही थीं। कि शर्म हया सिर्फ़ हम लड़कियों के लिए ही क्यों ? पुनीत भी घर में यही सब करता है। जब देखो तब अंडर-वियर में ही घूमता है। गर्मी के दिनों में तो अंडर-वियर ही पहन कर सोता है। जब कि हम दोनों बहनें चाहे जितनी गर्मी हो कपड़ों में ढकी-मुंदी ही रहती हैं। घर का बूढ़ा हो चुका पंखा बदन पर कपड़ों के अंदर बहता पसीना सुखा नहीं पाता। मगर मजाल है कि कपड़ों को जरा खुला छोड़ दें। देखते ही मां घुड़क देती है ‘कपड़े ठीक करो बदन दिख रहा है।’ लड़का है तो सारा बदन दिखा दे। लड़की है तो इंच भर भी न दिखे। कपड़ों पर तब तक हम तीनों की बहस चलती रही जब तक दस मिनट को कहकर गई तज़ीन पचीस मिनट में वापस नहीं आ गई।

वह जब आई तो कुछ जल्दी में लग रही थी। उसने मेज की ड्रॉअर से एक मोबाइल निकाला उसमें एक सिम और मेमोरी कार्ड लगा कर मुझे पकड़ाते हुए समझाया कि सारा कुछ कैसे करना है। असल में उसने अपनी कई आई.डी. में से एक मुझे थमा दी थी। उसका जो पैसा आता वह मुझे देती। मगर सबसे पहले वह मोबाइल में लगाया अपना सारा पैसा लेगी। वह फिर से यह बताना भी नहीं भूली कि जितना ज़्यादा बात करोगी उतना ही ज़्यादा फायदा है। तज़ीन हम तीनों से यही कोई चार-पांच साल बड़ी थी। और वह हमारे साथ व्यवहार भी एक सीनियर की ही तरह कर रही थी।

सारे दिशा-निर्देश लेकर हम तीनों वहां से निकल लिए। आते-आते तज़ीन मुझे मेरा आई.डी. नेम तान्या बताना नहीं भूली। मुझे इसी फेक नेम से बात करनी थी। मोबाइल ऑन किए दस मिनट भी नहीं बीता था कि कॉल्स आनी शुरू हो गई थीं। हम तीनों ही अपने-अपने मोबाइल पर आने वाली कॉल्स रिसीव कर रहे थे। मोबाइल पाकर मैं खुश थी। मेरी खुशी दोहरी थी कि चैटिंग तो करूंगी ही पैसे भी मिलेंगे। पहले पैसे देने पड़ते थे। शाम को घर पहुंचने से पहले ही मैंने मोबाइल साइलेंट मोड में करके बैग में रख दिया था।

घर पर मैं नई समस्या का सामना कर रही थी कि बात कैसे करूं। पता चलने पर क्या बताऊंगी कि मोबाइल कहां से मिला। हालांकि आते समय नमिता-काव्या दोनों से मैंने कह दिया था कि यदि घर में पकड़ी गई तो मैं तुममें से ही किसी एक का नाम बताऊंगी, कहूंगी कि कुछ दिन के लिए बस ऐसे ही ले लिया है। घर पहुंचने पर सबसे पहले तो मां को दो घंटे देर से पहुंचने का हिसाब देना पड़ा। लाख सफाई के बावजूद झिड़की मिल ही गई। मेरा मन बराबर मोबाइल पर लगा हुआ था। सबके सो जाने का इंतजार करती रही। रात ग्यारह बजे तक चला यह इंतजार मुझे बरसों लंबा लगा।

रात मैंने ग्यारह बजे जब मोबाइल निकाला तो शाम से लेकर तब तक डेढ़ दर्जन से अधिक मिस कॉल पड़ी थीं। मतलब की अच्छा-खासा नुकसान हुआ था। शुरुआत नुकसान से होगी यह मैंने नहीं सोचा था। कैसे क्या करूं कुछ समझ नहीं पा रही थी। मोबाइल हाथ में लिए उसे तरह-तरह से चेक कर रही थी। मैंने महसूस किया कि मेरी दोनों हथेलियां पसीने से नम हैं। जबकि दीपावली को बीते एक हफ्ता हो चुका था। रात का टेंप्रेचर उन्नीस-बीस डिग्री तक हो जा रहा था। पकड़े जाने का डर मुझे परेशान किए हुए था। मोबाइल हाथ में लिए दस मिनट हो रहे थे लेकिन कोई कॉल नहीं आई थी। तज़ीन ने बताया था कि यह चैटिंग का पीक हॉवर्स होता है। तभी मुझे पेशाब महसूस हुई मैं उठकर जाने लगी कि उसी वक्त कॉल आ गई। टॉयलेट जाने का मतलब था कि कॉल खत्म, मैं एक और नुकसान नहीं उठाना चाहती थी। इसलिए फ़ोन कॉल रिसीव कर ली।

मन चैटिंग के लिए तो पहले से ही मचल रहा था। पेशाब जाना भूल गई। कॉल सुमित नाम के एक व्यक्ति की थी। वह तान्या से रोज इसी टाइम चैट करता था। तान्या यानी तज़ीन से। मेरी आवाज़ उसने पहचान ली। मैंने बार-बार कहा कि मैं ही तान्या हूं लेकिन वह नहीं माना। फिर उसने पहले की गईं तमाम बातों के बारे में पूछ लिया। मैं नहीं बता पाई। हार कर कह दिया कि तान्या मेरी सहेली है। आजकल वह बीमार है तो यह आई.डी. ठीक होने तक मुझे दे दी है। यह जानने के बाद उसने एक से एक बातें शुरू कर दीं। इस बीच पेशाब ने जोर मारा तो फ़ोन लिए-लिए बात करते हुए टॉयलेट चली गई। वहां उसने कुछ और बड़ी गंदी, फूहड़ बातें कीं, जिन्हें सुनकर मुझे घिन सी आने लगी। लेकिन तज़ीन की बात याद आई कि जितना बात करोगी उतना ही पैसा बनेगा। मुझे इस बात की भी चिंता थी कि उसको मोबाइल का पैसा देना है। इस पहली कॉल से छुटकारा पाए कुछ ही मिनट बीते थे कि फिर कॉल आ गई। सबके सब एक सी ही बातें कर रहे थे। सेक्सुअल रिलेशनशिप को लेकर ऐसी-ऐसी कल्पनाएं कि मैं सिहर उठी। मैं तमाम बातें पहली बार जान-सुन रही थी। लगभग साढ़े तीन बजे मैंने फिर से मोबाइल साइलेंट मोड में करके पहले ही की तरह बैग में रख दिया।

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