मैं, मैसेज और तज़ीन - 3 Pradeep Shrivastava द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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मैं, मैसेज और तज़ीन - 3

मैं, मैसेज और तज़ीन

- प्रदीप श्रीवास्तव

भाग -3

नग़मा की इन सारी बातों को मैंने तब सच समझा था लेकिन आज जब चैटिंग की दुनिया का ककहरा ही नहीं उसकी नस-नस जान चुकी हूं तो यही समझती हूं कि उसकी सारी कहानियां झूठ का पुलिंदा थीं। बाकी भी यही करती थीं। महज अपने कस्टमर को बांधे रखने के लिए। मैं भी बंधी रही उसकी बातों में तब तक जब तक कि पहले की तरह बैलेंस खत्म होने के कारण फ़ोन कट नहीं गया। जब बैलेंस खत्म हो गया तो एक बार मैं फिर घबड़ाई की कल फिर पापा कहेंगे कि कंपनी वाले बिना कुछ बताए ही अनाप-शनाप पैसा काट लेते हैं। मैं यह सोच कर और डर गई कि उन्होंने कस्टमर-केयर फ़ोन करके बात कर ली तो उन्हें चैटिंग का पता चल जाएगा। फिर तो वह खाल ही खींच डालेंगे। मगर यह सारी बातें, डर कुछ ही देर तक रहा। जितनी देर बैट्री चार्जिंग के लिए लगाकर बिस्तर पर लेट नहीं गई।

लेटते वक़्त टाइम देखा तो एक बज रहे थे। मगर नेहा की ही तरह नगमा की बातें सोने नहीं दे रही थीं। रात कितने बजे सोई पता नहीं लेकिन सुबह मां के उठाने पर ही जागी। सुबह डर रही थी कि पापा कहीं किसी को फ़ोन न लगा दें । नहीं तो बैलेंस न होने पर पोल सुबह-सुबह ही खुल सकती है। मगर भगवान की दया से ऐसा कुछ नहीं हुआ। पापा कोर्ट गए और मैं भी कॉलेज पहुंच गई। वहां नमिता, काव्या से फिर बात की। दोनों सुन-सुन कर खूब हंसती रहीं। खिल-खिलाती रहीं, छेड़छाड़ करती रहीं। उस दिन काव्या ने मेरे एक अहम ऊपरी अंग को बड़े झटके से अचानक ही मसल दिया था। उसकी इस अप्रत्याशित हरकत से मैं एकदम चिहुंक पड़ी थी। हतप्रभ थी। हल्का दर्द भी महसूस किया था। मैं गुस्सा हुई तो उसी वक़्त नमिता ने एक ऐसी बात कही कि हम सब हंसी रोक नहीं सके। बात थी तो बहुत ही भद्दी, वल्गर लेकिन हंसा-हंसा कर लोट-पोट करने के लिए काफी थी।

जिस बात का डर था शाम को घर पर वही हुआ। बार-बार बैलेंस गायब होने से खिन्नाए पापा ने कस्टमर-केयर से बात कर ली। वहां से उन्हें मालूम हो गया कि बैलेंस क्यों गायब हो रहा है। घर पर आते ही वह स्वभाव के विपरीत बिफर पड़े। मां ने समझाया तो भी काफी देर बाद शांत हुए। वकील आदमी, उन्हें कड़ी जोड़ते देर न लगी। मैं पकड़ ली गई। मां के चलते मार खाने से तो बच गई लेकिन डांट इतनी पड़ी जितनी कि पहले कभी नहीं पड़ी थी। दुनिया भर की बात पूछ डाली, क्या बात की, किससे की, क्यों की। लेकिन मैं बताती भी तो क्या ?

पापा ने नाश्ता करने के बाद ऊपर कमरे का जर्जर बिजली बोर्ड खुद ही खोलकर प्लग ठीक किया और उस दिन से मोबाइल ऊपर ही रखने लगे। भाई, बहन भी उस दिन उनके रौद्र रूप से कांप गए थे। मैं उन दोनों के सामने बड़ी शर्मिंदगी महसूस कर रही थी। अगले दिन कॉलेज जाते समय मां की सीधे घर आने की नसीहत पहली बार मिली। कॉलेज में मेरा मन नहीं लग रहा था। बड़ा उखड़ा-उखड़ा सा था। नमिता-काव्या की हंसी ठिठोली भी अच्छी नहीं लगी। टाइम मिलते ही दोनों ने वजह पूछी तो मैंने इधर-उधर की बातें बताते हुए सिर्फ़ इतना ही बताया कि चैटिंग करते वक़्त मदर ने बातें सुन लीं और मेरा मोबाइल छीन लिया गया। पापा को भी सब मालूम हो गया है। अब मुझ पर सख्त नज़र रखी जा रही है। इस पर दोनों बोली ‘अरे! यार परेशान होने की ज़रूरत नहीं। पैरेंट्स हैं कुछ दिन तो टाइट रहेंगे ही।’ मैंने कहा ‘जो भी हो लेकिन अब मोबाइल तो नहीं मिलेगा न।’ इस पर दोनों ने कहा ‘यार ये कोई प्रॉब्लम नहीं है, तू तैयार तो हो, मोबाइल अरेंज हो जाएगा। और मंथली इंकम भी होगी अलग से।’

फिर दोनों ने पहली बार यह भी बताया कि वह दोनों मोबाइल चैट सर्विस से जुड़ी हुई हैं। मुझे भी शामिल होने को कहा तो मैंने कहा अभी नहीं सोचने दो। मैं अंदर-अंदर डर रही थी, इसलिए हां नहीं कर पाई। इसके बाद आठ-दस दिन और बीत गए। मैं रात होते ही चैटिंग के लिए मचल उठती, मगर मोबाइल तो मेरे लिए दूर की कौड़ी थी। मुझे इतनी बेचैनी, इतनी खीझ, इतना गुस्सा आता कि सो न पाती। इधर कॉलेज में नमिता, काव्या रोज दबाव डाल रही थीं। इतना ही नहीं दिन में एक दो बार चैटिंग के लिए अपना मोबाइल भी दे देतीं। मगर मेरी व्यग्रता व्याकुलता कम न होती। रात होने के साथ ही वह बढ़ती ही जाती।

एक दिन काव्या के मोबाइल से चैटिंग कर रही थी। दूसरी तरफ से जिस महिला ने बात शुरू की वह कोई चालीस-पैंतालीस साल की प्रौढ़ महिला थी। उसने अपना नाम हुमा बताया और बड़े प्यार से बात की। एक भी ओछी या अश्लील बात नहीं की। उसने बड़ी साफ-गोई से बताया कि उसके हसबैंड दर्जी हैं। एक गुमटी में उनकी दुकान है। उसके तीन लड़कियां और तीन ही लड़के हैं। घर का खर्च चल सके इसलिए वह चैटिंग भी करती है। मगर मुझसे बात करके उसे इसलिए आश्चर्य हुआ कि इस चैट सर्विस में बात करने वाले सब मर्द होते हैं। वह इस फील्ड में साल भर से है लेकिन मैं उससे चैटिंग करने वाली पहली लड़की हूं। हुमा की बातें मुझे बहुत अच्छी लगीं। मेरी बातें खत्म नहीं हुई थीं लेकिन क्लास का टाइम हो गया तो कट करना पड़ा।

उस रात हुमा से बात करने को मेरा मन ऐसा तड़पा कि मैंने डिसाइड कर लिया कि कल जैसे भी हो नमिता-काव्या से कह कर इस सर्विस के साथ जुडुंगी ज़रूर। मोबाइल तो मिलेगा ही पैसा भी मिलेगा। घर की आर्थिक तंगी कुछ तो कम होगी। हम सब की पढ़ाई भी सही से चल सकेगी। नहीं तो कभी फीस का रोना, कभी कॉपी-किताब का। कभी टूटी चप्पल तो कभी-कभी पुरानी पड़ चुकी ड्रेस परेशानी का कारण बने रहते हैं। मां का चश्मा टूटे कई महीने बीत गए हैं लेकिन बन नहीं पा रहा है। बेचारा पुनीत पिछले महीने अपने दोस्त की बर्थ डे पार्टी में नहीं जा सका। उसके पास ढंग का एक भी कपड़ा नहीं है। और खाना-पीना, तो बस किसी तरह पेट भरता है। कभी सब्जी है तो दाल नहीं, दाल है तो सब्जी नहीं। त्योहारों में भी कुछ ख़ास बनना बड़ा मुश्किल होता है। यह सब सोचते-विचारते सो गई। सवेरे उठी तो अपने निर्णय पर और दृढ़ हो गई।

दिन में बडे़ उत्साह के साथ काव्या और नमिता से बात की। कहा ‘मुझे भी जुड़ना है इस सर्विस से।’ वह दोनों जैसे मुझसे यही सुनने का इंतजार कर रही थीं। कॉलेज से एक क्लास पहले ही निकल लेने का प्लान बना। वह दोनों मुझे अपनी उस सहेली के पास ले जाने वाली थीं जो यह सब बैठे-बैठे अरेंज करा देती है। वह मास्टर है इस फील्ड की। कॉलेज से निकल कर पंद्रह-बीस मिनट में कॉफी हाउस के पास नरही में एक गर्ल्स हॉस्टल के पास पहुंचे, जहां वह मिलने वाली थी। काव्या ने अपने मोबाइल से अपनी सहेली को मिस कॉल दी तो वह पांच मिनट में आ गई। हॉस्टल के ऊपरी हिस्से में वह रहती थी। काव्या ने उससे परिचय कराते हुए कहा ‘तज़ीन यही है तापसी।’

यह नाम मैं पहली बार सुन रही थी। तज़ीन बड़े उत्साह के साथ हम तीनों से मिली। हम तीनों को लेकर ऊपर कमरे में पहुंची। मकान हॉस्टल के उद्देश्य से ही बनवाया गया था। एक-एक रूम सेट थे। कमरे बमुश्किल बारह फीट लंबे और दस फिट चौड़े थे। मगर बने थे अच्छे ढंग से। ज़्यादा से ज़्यादा सामान अलमारी में ही आ जाए इसके लिए कई बड़ी अलमारियां थीं। कमरे में सारी चीजें, उनकी हालत देख कर लग रहा था कि रहने वाला साफ-सफाई, सलीके से रहने में ज़्यादा यकीन नहीं करता है।

बेड पर अस्त-व्यस्त चादर-तकिया, कई मैग्ज़ीन, चिप्स का पैकेट पड़ा था। मेज पर, अलमारी पर किताबें भी अस्त-व्यस्त पड़ी थीं। एक बढ़िया लैपटॉप, टैबलेट और कई मोबाइल भी थे। लाखों रुपए से ऊपर के यह सारे इलेक्ट्रॉनिक सामान देख कर मैं दंग रह गई। कमरे की हालत और तज़ीन की हालत दोनों एक सी थी। एक अच्छा-खासा कमरा अस्त-व्यस्त चीजों के कारण मन में खिन्नता पैदा कर रहा था। ऐसे ही खूबसूरत तज़ीन के अस्त-व्यस्त कपड़े और केयरलेसनेस ने उसे भी नॉन अपीलिंग बना दिया था। उसने पतले कपड़े का ट्राऊजर और वैसी ही एक टी-शर्ट पहन रखी थी। बालों को देख कर ऐसा लग रहा था मानो कई दिन से कंघी नहीं की है। कंधे से थोड़ा नीचे तक कटे हुए बालों को ऊपर समेट कर सी-पिन लगा रखी थी। औसत कद की बेहद गोरी भरे-पूरे शरीर की तज़ीन बहुत आकर्षक नैन-नक्स वाली थी। मगर अपने को उसने कमरे की ही तरह अस्त-व्यस्त बना रखा था। वह काव्या और नमिता से जिस तरह खुलकर बातें कर रही थी, उससे साफ था कि वे सब आपस में गहरी मित्र्र हैं।

तज़ीन बड़ी खूबसूरती से मुझे भी बातों में शामिल कर रही थी जिससे मैं बोर नहीं होऊं। उसने चिप्स के दो नए पैकेट खोल कर हम सबके सामने रख दिए। मेरा संकोच देख वह बार-बार मुझे लेने को कह रही थी। जैसी हंसी-मजाक वह कर रही थी उससे साफ था कि वह बहुत बिंदास किस्म की तेज़-तर्रार लड़की है। नमिता-काव्या ने कुछ मिनट के बाद ही चैट सर्विस के लिए मेरी इच्छा बता दी। उसने सुनते ही एक नज़र मुझ पर डाली और कहा ‘यार तापसी सोच ले एक बार। चैटिंग के लिए साले एक से एक कमीने लाइन पर आते हैं। छूटते ही ऐसी बातें करते हैं कि तन-बदन में आग लग जाए। मन करता है कि साले सामने पड़ जाएं तो बीचो-बीच से चीर कर रख दें । साले बात सीधे प्राइवेट पार्ट से ही स्टार्ट कर देते हैं। भूले-भटके कुछ अच्छे भी मिल जाते हैं। मगर इन सबके बावजूद इन को ज़्यादा से ज़्यादा समय तक लाइन पर एंगेज किए रखना ही इस लाइन में सक्सेज की एक मात्र चाबी है। सोच लो कर पाओगी।’

मेरे कुछ बोलने से पहले ही काव्या बोली ‘तज़ीन, तापसी पहले ही हफ्तों बात कर चुकी है। यह सब जान चुकी है कि कैसे सक्सेज मिलेगी।’ यह सुनते ही तज़ीन बोली ‘ओह मतलब टेस्टेड ओके। स्मार्ट गर्ल। ठीक है अभी अरेंज करती हूं।’

उसके इतना बोलते ही नमिता बोली ‘तज़ीन एक प्रॉब्लम है। तापसी के पास अभी पैसे नहीं है। तुझको ये भी मैनेज करना पड़ेगा।’ नमिता की बात सुनकर तज़ीन एक पल को रुकी फिर बोली ‘यार तूने तो मुश्किल में डाल दिया।’

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