इनामी डाकू Kumar Gourav द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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इनामी डाकू



सावन बरसता है तो दिलों में आग लग जाती है । सावन मतलब दनादन चाय पकौड़े भुट्टे और रोमांस । अकेले रहनेवाले शहरियों को ये किसी नाग की तरह डसता है ।
तीन दिन से लगातार हो रही बूंदाबांदी से बाजार में कीचड़ ही कीचड़ हो रहा है ग्राहकी तो दूर रहवासी भी दरवाजा खोलकर नहीं झांकते । ऐसे माहौल में ग्राहक का आना किसी देवदर्शन से कम सुख नहीं देता ।
लेकिन आनेवाले ग्राहक को देखकर बाई एकदम से ठस्स हो गई ,ये तो भूरा है पाँच लाख का इनामी खूनी , बड़ी मुश्किल से संभाला खुद को उसने ।
सभी लड़कियां सो रही है किसे उठाऊं कौन संभालेगा इसे। विमला.. जगी तो है लेकिन नई है धंधे में कहीं भूरा को देखकर ही बेहोश न हो जाए। सलमा ठीक रहेगी, ऐसों को वही अच्छी तरह संभालती है ।
भूरा को बैठा बाई सलमा के कमरे की तरफ बढ़ी तो सामने से "बाई इसमें जर्दा तो है ही नहीं " , झुंझलाती गालों पर लट बिखेरे पान का डिब्बा हाथ में लिए विमला आती दिखी ।
भूरा को देख, ग्राहक जान उसके होंठ गोल हो गए " ओह्हो! सावन में लग गई आग
दिल मेरा धक धक बोले .."
भूरा ने आँख दबाई और बाई को टोका " रहने दे यही बढ़िया है । "
भूरा को अंदर गये ज्यादा वक्त नहीं बीता था कि एकबार फिर दरवाजे पर दस्तक हुई । लगता है मौसम मेहरबान हुआ है दो दिन की मंदी के बाद आज रोटी पानी लायक ग्राहकी हो जाएगी । सोचती हुई बाई ने दरवाजा खोला तो आगंतुक को देखकर मुँह बिचका लिया।
पुलिसिया वर्दी वो भी कंधे पर तारे , आ गया मुफ्तखोर ।
आगंतुक को इससे कोई फर्क न पड़ा वो सोफे पर पसर गया और बेल्ट में फंसा अध्धा निकालते हुए बोला " आज तो मौसम आशिकाना हो रहा है , कहाँ है तुम्हारी नई वाली कली! बुलाओ उसे । "

उसने हिकारत से मुँह फेर लिया " ग्राहक के साथ है टाइम लगेगा । "

" कोई बात नहीं, ऐसी हसीन चीज के लिए थोड़ा इंतजार भी कर लेगें ", कहकर वो अध्धे में व्यस्त हो गया ।

भूरा जब फारिग होकर निकला तो विमला मुस्कुराते हुए उसे विदा करने चौखट तक पहुंची । भूरा ने सौ का नोट ब्लाउज में ठूँस दिया । जिसे विमला ने फौरन आँचल से ढंक दिया ताकि बाई की नजर न पड़े ।
पुलिसिया लाल आँखें लिए विमला की तरफ बढ़ा तो एकबारगी भूरा सकपका गया लेकिन बाई ने पीछे से उसे शांत रहने का इशारा किया ।

अंदर आते ही पुलिसिये ने दरवाजा बंद करते हुए विमला से पूछा " ऐसे ऐसे खूँखार लोग आते हैं तुम्हारे पास , तुम्हें डर नहीं लगता । "

ब्लाउज से नोट निकालकर एक छोटे से टीन के डब्बे में रखती हुई वो मुस्कुराई " ग्राहक तो देवता होता है देवता से कैसा डर ।"

मुँह कसैला हो गया पुलिसिये का " अच्छा अच्छा भाषण मत झाड़ , बिस्तर ठीक कर पहले", उसने अस्त व्यस्त हो चुके चादर की तरफ इशारा किया ।

नये ग्राहक की आशा में बाई ने गली में झांका तो देखा गली के मोड़ पर पुलिस की गाड़ी खड़ी है और भूरा दूसरी तरफ उसी बिजली के खंभे की जड़ में मूत रहा है जिसपर उसने कल इनामी अपराधी पकड़वायें वाला इश्तहार देखा था ।