अरेंज मैरिज Kumar Gourav द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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अरेंज मैरिज



" बधाई हो आप बाप बनने वाले हैं । "
सुनकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। उसने उत्साह से पूछा "कब? "
डॉक्टर मुस्कुराई " बस चार महीने और इंतजार । "
उसकी खुशी जाती रही उसने धीरे से पूछा " अगर हम अभी न चाहें तब ? "
"सॉरी अब बच्चा बड़ा हो चुका है, और मां काफी कमजोर है उसकी जान को खतरा हो सकता है । "
उसके बदले रूख से डॉक्टर भी हैरान हो गई। लेकिन वह क्या बताता की शादी को अभी कुल तीन महीने ही हुए हैं ।
रिपोर्ट और पत्नी को लेकर चुपचाप निकल दिया ।
गाडी में भी खामोशी छाई रही। बहुत हिम्मत करके पत्नी की तरफ देखा " कौन था । "
"क्या फायदा शादी की रात ही वह सुसाईड कर चुका है। "
थोडी देर चुप रहने के बाद धीरे से बोला " दुनिया भर के मेडिकल सॉल्यूशन भी तो होते हैं ।"

" उसके विजातीय होने से घर में इतना बवाल मचा था कि अपने शरीर की तरफ ध्यान ही नहीं गया , फिर शादी और यहाँ नई बहू की रस्में सच पूछो तो अपने बारे में सोचने का मौका ही नहीं मिला " , कहते हुए उसने सर झुका लिया ।

" क्या ये पत्थर सीने पर रखकर जीना होगा ?"

" यही जीवन है । मैं भी तो एक मौत का कारण बनकर जी रही हूं न ", रूखा सा जबाब देकर उसने मुंह फेर लिया ।

" लडकियां बहुत बहादुर होती है " कहकर दरवाजा खोला उसने और चलती गाड़ी से पुल के नीचे छलांग लगा दी । अचानक से शरीर ने पीछे की तरफ झटका खाया और वह वापस गाड़ी में खींच लिया गया था। सर गाड़ी के किसी हिस्से से टकराया था शायद, उसने चोट पर हाथ रखा ।
उसका चेहरा आँसुओं से भींगा हुआ था " मत करो ये । एक और बोझ सीने पर लेकर जी नहीं पाऊंगी । मैं कोई बहादुर नहीं हूं । बस अंदर पल रहे जीव के लिए रूक गई । ऐसे मुश्किल वक्त में तुमने मेरा हाथ थामा तो हौसला हुआ कि अब शायद किसी और की मौत का कारण नहीं बनूंगी । "

उसने उसकी आँखों में बह रही दरिया को देखा वहाँ सिर्फ और सिर्फ वही था " लेकिन दूसरे का पाप मैं सीने पर नहीं उठा सकता। तुम जानती हो कितना मुश्किल होता है ।"

" हाँ लेकिन ये मेरा पाप नहीं प्रेम का उपादान है, जो मुझे उससे मिला है जिससे रूढियों ने मुझे मिलने नहीं दिया।"

वो झुंझलाया "आखिर तुम चाहती क्या हो ?"
"थोड़ा वक्त ताकि इस अनचाहे पेड़ को कोई बाग नसीब करवा सकूं।"
" तो तुम चाहती हो मैं उस बाग का माली बन जाऊं ? "
ऐसे कोमल क्षण में भी वो हँसी " नहीं मैं तुमसे कोई बलिदान नहीं माँगती ,बस चाहती हूं तुमने हाथ थामा है तो मुश्किलों में साथ दो । मेरा वादा है तुम मुझे भी हमेशा अपने मुश्किलों में साथ पाओगे " कहकर उसने हाथ बढ़ा दिया । गाड़ी के फर्श पर बैठा वो उसका हाथ पकड़कर उठने की कोशिश करने लगा तो उसने झटके से खींच कर उसे सीट पर बिठा दिया ।
वह पुश्त पर सर टिकाते हुए बुदबुदाया " जाने किसने ये अफवाह फैला रखी है औरत कमजोर होती है ।"