गाँव में पेट्रोल डिजल का रोना नहीं है। उहाँ विकासवा आराम से चाय की टपरी पर सुर्ती मलता है । गाँव छोड़े सालों हो गये लेकिन गाँव हमें नहीं छोड़ रहा । पछियारी टोल का सारा खबर विकासवा फोन लगाकर देता है हर महीने दो महीने पर । हाल चाल के नाम पर ओकरे खिस्सा, जानते हो रामनिवास की छौरीं गदहिया टोल वाले परमेसरा के बेटे के साथ भाग गई ।
कौन ललितिया कि बड़की । इ परमेसरा कौन , वही बाजावाला न।
अरे वही जिसपर तुम्हरी नजर थी।
का बात करते हो !
और क्या! पूरा टोला फनफनाये घूम रहा है थाना पुलिस सब जुटा के पंचायत हुआ है। तेवर देखते तुम परमेसरा का। बड़का बड़का बाबू के आँख में आँखि डाल के सीधे कह दिया हमरा का मालूम कौन किसको लेके भागा है। हमरा भी तो बेटा गया है। पता लगाइए कौन किसको लेके भागा है।
हुंह हुंह की फ्रिक्वेंसी से विकासवा अंदाजा लगा लेता था कि अब ये बोर हो गया तो फोन काट देता है।
फिर अचानक से महीने भर बाद फोन आता है ..ऐ मरदे रामनिवास का तो खून पनिया गया है कुच्छो नहीं किया हो। परमेसरा का भी मन बढ़ गया है काल्हे बह्मदेव चाचा को कह रहा था अब तो समधियौरा हो गया इ टोला।"
फिर दो तीन महीने बाद अचानक से खबर दिया ..रामनिवास का तो लौटरी निकल गया हो । बेटा को सीबीएसई स्कूल में भरती किया है । छोटकी के बियाह में आल्टो दे रहा है। खबर है बड़की पैसा भिजवा रही है।
मन रिसिया गया ..ससुर के नाती कभी हमरा चाल भी पूछ लिया करो । जब देखो तब लुसुर फुसुर बतिआते रहते हो।
हीही करके हँस दिया विकासवा ..अरे तुम तो स्कूल टॉपर थे। जानते हैं , कुछ न कुछ बढ़िया कर ही लोगे । वैसे भी यूपीएससी कोई हलवा तो है नहीं , पढ़े नहीं लेकिन समझते हैं टाइम लगता है । साल में एकबार परीक्षा होता है उसमें तुम जनरल में आते हो रोज रोज हाल पूछेंगे तो कहोगे बेईज्जत कर रहे हैं तुमको।
मन भिन्ना गया ..सुनो नया बात सुनाते हैं। मन उचट गया है पढ़ाई लिखाई से । अगले महीने परीक्षा है इसके बाद नहीं पढ़ेंगे । चौरी वाला जमीन में मुर्गी फार्म डालेंगे । सब हिसाब लगा लिये हैं बस तुम एकाध ठो परमानेंट लेबर का बतिया के रखना।
पहाड़ पर खड़ी चढ़ाई चढ़ना सबसे मुश्किल काम है। फिसले तो सीधे खाई में । मतलब बाबू उन्नीस सौ अड़सठ की हरक्यूलिस साइकिल आज भी घसीट रहे हैं इस उम्मीद में कि बेटा कलेक्टर बनेगा और तुम ससुरे मुर्गी .. का काम करने की सोच रहे हो। पता भी है गाँव का हाल।
सामने होता तो मुँह तोड़ देते इस बात पर लेकिन एक तो बात भी सहिए कह रहा था ,दूसरे अब जब बैक टू पेवेलियन होने की स्थिति थी तो विकासवा से ज्यादा अपना कोई गाँव में याद नहीं आ रहा था।
ठंढ़े दिमाग से उसको समझाना पड़ा " रे बाबू हम कौन खूटा पर बैठे हैं हमीं जानते हैं। ससुरा साल भर रगड़ के कट ऑफ के आसपास पहुंचते हैं तो पता चलता है किस्मत लुल हो गई और कट आफ बढ़ गया। सीट जितना सुनते हो उतना थोड़े रहता है उसमें तो बहुत कुछ रिजर्व सीट भी रहता है। उसका अलग रोना है।
दिन खराब हो तो माछियो लात मार के भाग जाता है। विकासवा भी एकचरण ले लिया " फकैती मत झाड़ो बाबू तुमको एक्के सीट न चाहिए केतनो आरक्षण हो एक सीट पर तो बिना आरक्षण वाला बहाल होता ही होगा न। "
नहीं जानता है तो काहे दिमाग चाट रहा है। आरक्षण का कमाल सुनोगे बाबू तो सुनो एमभीआई के आफिस में किरानी का बहाली था सत्ताईस ठो सीट था जनरल में और बाकि सीट एस एसटी और सब के लिए। चौरानवे नंबर पर सीट फुल सब के सब। हम नब्बे नंबर लेके डोलाते रह गये। और उसी वैकेंसी में जानते हो आरक्षणवाला सब एकसठ बासठ नंबर पर बहाल हो गया।
गाँव का हाल तुम क्या सुनाओगे हम सुनाते हैं सुनो। उ जो परमेसरा का बेटा गाँव से भागा है न। उ छौंरी को लेके। उ यहीं नगर निगम में लगा है। परमानेंट है, कामधाम कुछ नहीं खाली नेतागिरी झाड़ता है। रामनिवास भी आते जाते हैं यहाँ । तुम जो लौटरी की बात कर रहे थे उ यही बेटी बियाह से लगा है।
अच्छा बेटा इ कहो न सुलगी पड़ी है तुम ससुरे चले थे कलेक्टर बनने और यहाँ तुम्हरी वाली को ले उड़ा नगर निगम का स्वीपर । सही है भाई, तुम देवदास बनो न बनो सौ पचास ग्राम उदास होना तो बनता है। बस खाली चुन्नीलाल वाला काम हमसे मत कहना। आव गाँव तो मिलो रोने के लिए कंधा भी देंगे और आँसू न निकले तो विक्स भी मलेंगे आँख पर तुम भी क्या याद करोगे।
वैसे दोष तुम्हारा भी नहीं है। सारा दोष है हिंदी वाला मास्टर के तुमको पढ़ाया 'कारज धीरे होत है काहे होत अधीर' और उसको जाके पढ़ा दिया 'कल करे सो आज कर '।
Kumar gourav