मैं उस दिन उसके ठीक सामने बैठी थी।तब तक उसने मेरे से " मैं तुमसे प्यार करता हूँ।"
नहीं कहा था।वह मेरे चेहरे को देख रहा था। शायद मुझे समझने का प्रयास कर रहा था।मैं बार-बार उसे देखती और बार -बार नजर हटाती। वह उस दिन अपने गाँव की घटना बता रहा था। कह रहा था।"उस दिन गाँव से दूर, गाँव के तीन परिवार जंगल में अपनी गाय चरा रहे थे।उसी बीच एक चीता एक गाय के बछड़े पर झपटा।ग्वालों ने तुरंत हल्ला मचाना शुरु किया और उनके हल्ले और आक्रमकता को देख चीता बछड़े को छोड़ ,पहाड़ी में ऊपर को भाग गया। वह क्रोध में पीछे देख रहा था क्योंकि उसका शिकार छूट गया था।पहाड़ी के ऊपर से भी एक रास्ता था,उस रास्ते से उसी समय गाँव के निवासी सुजान सिंह और उनका बेटा जिसकी उम्र १० वर्ष थी जा रहे थे।चीता देख सुजान सिंह ने चीता को भगाने के लिए जोर की आवाज में "हट" बोला।उसकी आवाज सुनते ही क्रोधित चीता उनकी ओर तेजी से आने लगा। अपनी ओर आता देख सुजान सिंह डर से काँपने लगा। और स्थिति यह हो गयी कि "मरता क्या नहीं करता?" वाली हो गयी।उसने बेटे से कहा," बेटे,तू भाग और गाँव वालों को बुला ला।"उसका बेटा गाँव की ओर भागा। तब तक चीता भी सुजान सिंह तक पहुँच चुका था। सुजान सिंह के हाथ में तेज धार कुल्हाड़ी थी।उसने पूरी शक्ति से कुल्हाड़ी चीता के सिर पर दे मारी।चीता बिहोश हो गया और सुजान सिंह के हाथ कुल्हाड़ी के हथीने से जकड़ गये।वह हकबकाया हुआ वहीं बैठ गया।वह एक क्षण पहले अपनी मौत को वहीं पर देख रहा था।मौत से बचने के लिए वीरता दिखाने के सिवाय उसके पास कोई विकल्प नहीं था। उधर उसका बेटा गाँव वालों को घटना स्थल पर बुला लाया।गाँव में दो लोगों के पास एक नली वाली दो बन्दूकें थीं।वे बन्दूक लेकर आये। घटना स्थल पर सुजान सिंह के हाथ कुल्हाड़ी की मूठ पर जकड़े थे। दो लोगों ने उसके हाथों को खोला।फिर बिहोश चीता को गोली से मार दिया गया। किसी ने इस बात की चर्चा बाघ संरक्षण कानून के चलते बाहर नहीं की। अन्यथा सुजान सिंह को आत्म रक्षा में दिखाये गये साहस के लिए इनाम मिलना चाहिए था।"
उसने मेरी ओर देख कर कहा," तुम्हारा क्या विचार है?" मैंने कहा," जो विचार आपका है, वही मेरा है।" उसके बाद वह चुप हो गया। इधर-उधर की कुछ बातें करते-करते, हमने चाय पी और फिर अपने-अपने काम से बिखर गये।
एक दिन उसकी लिखी तीन रचनाएं पढ़ी और आँखों में आँसू भर आये।
१.
"मैं ढूंढ़ता रहा तुम्हारे कदम
जो कहीं मिले नहीं,
खोजता रहा यादें
जो कभी सोयी नहीं,
देखता रहा समय
जो कभी रुका नहीं,
पूछता रहा पता
जो कहीं लिखा नहीं गया,
सोचता रहा तुम्हारा नाम
जिसे किसी ने माना नहीं,
कहता रहा कहानी
जो कभी सुनी नहीं गयी,
गिनता रहा आँसू
जो कभी गिरे नहीं,
ढूंढ़ता रहा तुम्हारे कदम
जो कहीं मिले नहीं।"
२.
"तुम से लिया जो
वह विदाई नहीं थी
पहाड़ों की लम्बी चढ़ाई न थी,
बरफ सी जमती ठंड भी नहीं थी
आसमान जैसा रंग भी नहीं था,
कोहरे में दिखती छवि भी न थी
धुन्ध का बिछा आवरण नहीं था
धूप सी बनी चमक भी न थी
गाड़-गधेरों की दौड़ तो नहीं थी
चीड़ के जंगलों का संगीत नहीं था
घराट पर मिली कथा नहीं थी
गूल से जाता जल भी नहीं था
बाँज को देखता दृश्य नहीं था
आकाश से टूटा तारा नहीं था
पत्थरों में पड़ी कठोरता न थी
देश पर लिखा गीत नहीं था
इंसान का पढ़ा पाठ नहीं था,
तुमसे लिया जो
बहुत कुछ अलग था।"
३.
"आज सपने में
मैं मन्दिर में खड़ा
ईश्वर से मांग कर रहा था
देश के लिए
एक वाणी, एक भाषा
एक संस्कृति, एक सभ्यता
जन -जन के स्वाभिमान के लिए
एक जीवित हिन्दी।
मैं हिन्दी बोल रहा था
वे समझ रहे थे,
मैं कन्याकुमारी में था
रामेश्वरम में ठहरा था
काश्मीर के बारे में बता रहा था
दिल्ली मेरे आस पास खड़ी थी
मैं नैनीताल के विषय में कह रहा था
वह आदमी गिना गया
मसूरी,देहरादून,केदारनाथ,
बद्रीनाथ,अल्मोड़ा, रानीखेत
एक ही सांस में।
मैं मन्दिर में खड़ा था
"बसुधैव कुटम्बकम" मांग रहा था
"सर्वे भवन्तु सुखिन:" चाह रहा था"
उसने मेरी लिखावट चाही
मैं गदगद हो बोला
"सब बहुत अच्छा है।"
कन्याकुमारी के छलकते मन में,
अब नींद भी मेरे पास थी
और सपना भी।"
अभी तक उसने मेरे से " मैं तुमसे प्यार करता हूँ।" नहीं कहा था।