रहस्यों से भरा ब्रह्माण्ड
अध्याय 2
खण्ड 3
रात को अपने पति की बातों से झुंझलाहट में उस सुंदरी को नींद नहीं आ रही थी। बस उसके दिमाग में साबू की बातें ही चल रही थी। अचानक उसका मन हुआ कि एक बार इंटरनेट पर हिटलर के बारे में सर्च तो करें के आखिर ये बला क्या है। जो साबू को इतना परेशान कर रहा है।
उसने साबू को सोता पाया और अपनी मेक बुक पर सर्च करने लगी। बहुत खंगालने के बाद उसको एक ब्रिटिश सोल्जर हेरनी ताण्ड्य का लेख मिला जिसमें सोल्जर के साथ में हिटलर का नाम भी लिखा था
वो लेख कुछ इस प्रकार था। जिसमें सोल्जर अपनी आप बीती बताता हुआ बोलता है।
Henry tandey
1918 प्रथम विश्व युद्ध समाप्ति पर था हमारे बहुत से साथी दुश्मनों के हाथों जंग में शहीद हो चुके थे। अच्छी किस्मत और थोड़ी सावधानी बरतने के कारण मैं किसी प्रकार जीवित बच गया था। उसी बीच मुझे एक 18 या 19 वर्षीय नाज़ी सोल्जर मिला जो घायल था उसे देख कर मैं निर्णय नहीं ले पा रहा था मैं क्या करूँ। एक तरफ मेरी अंतर आत्मा उसको छोड़ देने के लिए कह रही थी। तो दूसरी ओर मेरा फ़र्ज़ मुझे इसकी इजाजत नही दे रहा था मैंने बड़े भारी मन से उसके पास जा कर उससे उसका नाम पूछा। जिसपर उसने काँपते होंठों से अडॉफ हिटलर कहाँ। उसके बाद मैंने उसको सॉरी बोला और अपनी बंदूक उसके सर पर तान दी। ये देख कर वो फुट फुट कर रोने लगा। और बार बार प्लीज़ बोलता रहा उसकी आँसुओं से भरी आंखों में देखते हुए उसको मारना मेरे लिए बहुत मुश्किल था।
इसलिए ट्रिगर दबाते वक़्त मैंने अपनी आंखें बंद कर ली और अगले ही पल गोली की आवाज़ के साथ सब कुछ शांत हो गया। अपने हाथों से मैंने कई दुश्मनों का वध किया था। मगर उस को मारना मेरे लिए किसी श्राप से कम साबित नहीं हुआ। और आज भी उसकी सूरत मेरे सपनों में आकर मुझे डराती है। और मैं बस यही सोचता हूँ। काश मैंने उसको ना मारा होता।
इस आर्टिकल को पड़ कर, साबू की पत्नी को लगा। के ज़रूर साबू ने भी इस आर्टिकल को पड़ा होगा। और अपनी किसी मानसिक कमजोरी के कारण साबू अपने ही दिमाग में अलग कहाँनी गढ़ रहा हैं।
और अगले दिन सुबह को भी साबू को उसकी पत्नी वही आर्टिकल दिखा कर समझाने का प्रयास करती है। कि उसको हिटलर का नाम इस आर्टिकल को पढ़ कर पता चला होगा। और किसी दिमागी कमजोरी के चलते तुम्हारे दिमाग ने ये मन घड़ंत कहाँनी रच डाली।
इस तरह की कई और मनोवैज्ञानिक बातों को बोल कर साबू की पत्नी साबू को समझाने की भरपूर कोशिश करती है। कि मानसिक बीमारी में रोगी को स्वयं के रोग का पता नहीं होता। और आज के आधुनिक युग मे इसका सटीक इलाज उपलब्ध है।
मगर साबू उसकी एक नहीं सुनता। और वहाँ से बिना कोई उत्तर दिए चला जाता है। साबू के लिए उसकी जिंदगी एक पहेली सी बन गई। इन सब से उकता कर वो अपने ऑफिस जा ही रहा था के उसकी नज़र एक लोकल साइंटिस्ट के विज्ञापन पर पड़ी। उसके विज्ञापन में जो बातें लिखी थी। वो बिल्कुल वैसी ही थी जैसी साबू के साथ अजीब घटनाएं घट रही थी।
साबू को एक आशा की किरण नज़र आ गई। साबू ने बिना देरी किए, उस साइंटिस्ट का पता नोट किया और पहुँच गया उसके घर, वो साइंटिस्ट आम साइंटिस्टों की तरह अपने जीवन का अधिकतर हिस्सा लेब में रिसर्च करके काटने वालो के जैसा बिल्कुल नहीं था। बल्कि अपनी मस्ती में मग्न मस्त बॉडी और सिक्स एप बनाए, केवल हाफ पैंट पहनकर लाउड म्यूजिक पर बियर पिता और नाचता हुआ एक मस्त मोला युवक था जिसे देख कर साबू को उसपर तुरंत विश्वास नहीं हुआ। पर साबू को देख कर वो युवक फौरन म्यूजिक ऑफ करके बड़ी ही सज्जनता से उसका स्वागत करता है। इस व्यवहार ने साबू के मन को कुछ हद तक शांत कर उसकी बातों को सुनने का मन बना लिया।
और दोनों के बीच बातें शुरू हुई। तो साबू की सारी बातों को गौर से सुनने के बाद वो बोला।
तुम्हारी घटना का सीधा सम्बन्ध पैरलल यूनिवर्स से है।
साबू चोंक कर बोला" पैरलल यूनिवर्स मतलब
साइंटिस्ट साबू को पैरलल यूनिवर्स की थ्योरी को समझाता हुआ आगे बोला।
" देखो जिस तरह हमारा ग्रह पृथ्वी है। उसी तरह तुम्हारा ग्रह भी पृथ्वी है लेकिन है दोनों अलग अलग
साबू रोनी सूरत दिखाते हुए " सर थोड़ा सिम्पल करके समझाओ ना,
मेरे भेजे के ऊपर से जा रही है आपकी सारी बातें, आप बस इतना समझ लो मैं कभी दसवीं भी पास नहीं कर पाया, इतना नालायक था साइंटिस्ट " देखो जिस तरह से इंसान के हमशक्ल होते है ठीक उसी तरह से भ्रमाण्ड के कई ग्रह ऐसे है जिनके हमशक्ल होते है अच्छा ये बताओ तुम इतना तो जानते हो ना के सौर मंडल क्या होता है
साबू " हाँ बिल्कुल सूर्य के आस पास 8 ग्रहों का चक्कर लगाता समूह हमारा सौर मंडल कहलाता है।
साइंटिस्ट " सही कहाँ, अब सुनो जिस प्रकार हमारे सूर्य के इर्दगिर्द चक्कर लगाते 8 ग्रह है। ठीक उसी प्रकार ब्रह्माण्ड के किसी ओर छोर पर हमारे सूर्य का जुड़वा होगा जिसके चारों ओर घूमते हमारे ग्रह जैसे ग्रह भी होंगे उनमें से एक बिल्कुल हमारी पृथ्वी का हमशक्ल होगा जिसके चारों ओर घूमता एक चाँद भी होगा और उस पृथ्वी में भी हमारे भारत देश जैसा देश होगा जिसकी राजधानी दिल्ली में मेरे ही जैसा एक आदमी बैठा हो सकता है।
इसी प्रकार से ना जाने कितने ही सौर मंडल हमारे सौर मंडल के जैसे जुड़वा इस भ्रमाण्ड में मौजूद है जो समय के अलग अलग आयाम में होंगे
साबू " ये समय के अलग अलग आयाम का मतलब क्या है।
साइंटिस्ट " अलग अलग आयाम का मतलब जितने भी इस भ्रमाण्ड में हमारी पृथ्वी के रूप है मान लो उन सब में मैं मौजूद हूँ। तो उन सब का जीवन समय के अलग अलग भाग में होगा यानी कुछ वो जीवन जी रहे होंगे जो मैं अब तक जी चुका हूँ और कुछ वो जीवन जी रहे होंगे जो मैं भविष्य में जियूँगा
साबू " यानी कि मैं उस पृथ्वी पर आ गया हूँ जो मेरे समय से बारह साल आगे है। मगर यहाँ पर जो मेरे माता पिता और परिवार के सदस्य है। वो 2006 में ही मर चूके है। जबकि मेरी दुनिया मे 2010 तक मेरे माता पिता और परिवार के अन्य लोग जिंदा थे ये कैसे मुमकिन है।
साइंटिस्ट " इसको समझाने के लिए मैं तुम्हें एक कहाँनी सुनाता हूँ।
दो धर्मा नाम के व्यक्ति जो अलग अलग पृथ्वी पर रहते थे। दोनों के जीवन एक दम समान थे बस दोनों के बीच में एक महीने का अंतर था यानी aधर्मा जो जीवन जी रहा था bधर्मा वो जीवन एक महीने बाद जीता
अपनी 28 वर्ष की आयु में एक दिन aधर्मा कही के लिए यात्रा पर निकला तो दुर्भाग्य से जिस बस में धर्मा यात्रा कर रहा था वो बस बीच रास्ते मे ही खराब हो गई। जिसके कारण बस के सारे यात्रियों ने 1 मील पैदल चल कर अगले बस स्टैंड से दूसरी बस पकड़ने का निर्णय लिया लेकिन aधर्मा ने ऐसा ना करके वही रुक कर किसी से लिफ्ट लेने का फैसला किया, ताकि उसको पैदल ना चलना पड़े लगभग 3 घंटे इंतज़ार करने के बाद
aधर्मा को एक गाड़ी ने लिफ्ट दी जिसमें संयोगवश aधर्मा के जैसा ही एक बैग था अब धर्मा को उस बैग को खोल कर देखने का कौतूहल हुआ तो उसने गाड़ी के मालिक की नज़रों से बच कर वो बेग खोल कर देखा तो उसके होश उड़ गए।
एक दम साबू बीच मे बोल पड़ा " ऐसा क्या था उस बेग में
साइंटिस्ट " वो बेग नोटों से भरा पड़ा था। जिसे देख कर धर्मा को लालच आ गया और बिना किसी को भनक पड़े उसने अपने बैग के साथ वो बेग बदल दिया और बड़ी आराम से बस स्टैंड पर उतर कर अलग अलग तीन अनजान जगह की टिकट ली
साबू " क्यों
साइंटिस्ट " ताकि कोई उसका आसानी से पता न लगा सके और फिर अपनी चुनी हुई तीन में से एक जगह पहुँच कर उसने रेल द्वारा अपने घर की यात्रा की
साबू " और जिस जगह उसको जाना था वहाँ का क्या हुआ।
साइंटिस्ट " उसको जिस भी जगह जाना था या जिस भी काम से जाना था धर्मा के लिये उसका महत्व धर्मा के हाथ लगे पैसों से अधिक नहीं था तो उसकी प्राथमिकता पैसा बन गई और जल्द से जल्द उन पैसों को सुरक्षित करने के लिये उसने अपने घर जाना बेहतर समझा।
साबू " कमाल है ना सर थोड़ी देर पहले मिले पैसों से धर्मा को इतना लगाव हो गया तो सोचो जिसका वो पैसा था उसका क्या हाल हुआ होगा ये बात कैसे धर्मा के दिमाग में नहीं आई।
साइंटिस्ट " धन के प्रति मनुष्य के भीतर सदियों से लोभ रहता आया है। जिसके वश में आने वाला व्यक्ति केवल स्वार्थी ही होता है। खेर aधर्मा ने उन पैसों से एक व्यवसाय किया, और पाँच वर्षों के भीतर उसने कई गुना तरक्की कर ली और शहर के नामी लोगों में उसकी गिनती होने लगी। वही दूसरी ओर वो गाड़ी चालक जब घर पहुंचा तो उसके पास उसके मालिक का फोन आया और उसको बोला पैसों का बैग वो निकालना भूल गया।
वो जल्दी से उसको वापिस लाये इतना सुन उस गाड़ी वाले कि साँसे थम गई क्योंकि थोड़ी देर पहले उसने किसी अनजान व्यक्ति को लिफ्ट दी थी वो तभी गाड़ी के ओर भाग कर पहुँचा और गाड़ी खोल कर उस बैग को देखा।
बैग को सही सलामत देख कर गाड़ी चालक की जान में जान आई फिर उसने एक बार बैग खोल कर देख लेने की सोची और बेग खोल लिया उस में कुछ मेले कुचले कपड़े देख कर मानो उसकी दुनिया लूट गई। उसने खुद अपने हाथों से गिन कर वो पैसों से भरा बैग वहाँ से लिया था जहाँ उसके मालिक ने पैसा लेने भेजा था।
पर अफसोस वो मालिक के घर जा कर भी वो पैसा देना भूल गया और उसकी इसी भूल के कारण अब वो पैसा बैग में नहीं था उसके हाथ पाँव फूल गए। उसने तुरंत अपनी गाड़ी को बस स्टैंड जाने के लिए इस उमीद पर मोड़ा के शायद वो आदमी धोके से बेग बदल कर ले गया हो और वो एक भला मानस निकले जो अभी भी बस स्टैंड पर उसकी प्रतीक्षा कर रहा होगा। मगर जल्द ही उसका ये भ्रम टूट गया और जब उसको वास्तविकता का एहसास हुआ तो उसने शर्म से आत्महत्या कर ली ताकि उसकी सच्चाई पर लोग भरोसा कर ले मगर ये सब कुछ बेकार गया।
उसके मालिक ने उसका घर बार सब कुछ नीलाम करवा दिया और जितना हो सके अपना पैसा वसूल कर लिया उस गाड़ी चालक की पत्नी और 17 वर्षीय लोता लड़का सड़क पर आ गए ना तो कोई रहने को ठिकाना ना ही उनके पास खाने के लिए कुछ था उन विकट स्थितियों ने लड़के के दिमाग पर बुरा असर डाला और वो गलत कामों में घुस गया जिसके जरिए उसको कुछ ही दिनों में अपने और अपनी माँ के लिये एक छत और पेट भर खाने की व्यवस्था हो गई। देखते ही देखते आने वाले पांच वर्षों में वो लड़का एक नामचीन अपराधी बन गया।
एक बार वो शहर के एक मशहूर रेस्टोरेंट में कुछ साथियों के साथ खाना खा रहा था कि तभी उसके ऊपर उसके विरोधी अपराधियों ने हमला कर दिया दोनों और दनादन गोलियों की बौछार होने लगी उनके बीच घमासान मुठभेड़ हुई जिसके अंत परिणाम में केवल वो लड़का ही जीवित बचा था साथ में इस लड़ाई के दौरान उस लड़के के हाथों एक गोली गलती से उस होटल के मालिक को जा लगी जिसकी तुरंत मौत हो गई। और जानते हो वो रेस्टोरेंट का मालिक कौन था
साबू " कही वो धर्मा तो नहीं
साइंटिस्ट " हाँ वही aधर्मा
साबू " शास्त्रों में सच ही लिखा है। आपके कर्म ही आपका भविष्य बनाते है। और देखो अनजाने में उस लड़के ने अपना बदला भी ले लिया।
जिसका उसको पता ही नहीं फिर उस लड़के का क्या हुआ उसको कभी पता चला कि उसने किसको मारा था।
साइंटिस्ट " नहीं उसको कभी पता नहीं चला और धर्मा की मृत्यु पश्चात उसकी सारी संपत्ति सरकार ने जब्त कर ली क्योंकि अपनी अय्याशियों के कारण उसने कभी शादी नहीं की थी और वो मरते समय अकेला था इसलिये सरकार द्वारा वो सम्पत्ति बेनाम घोषित कर के जब्त कर ली गई।
अब आते है। bधर्मा पर याद है वो बस के ख़राब होने वाला किस्सा...
साबू " हाँ याद है सर।
साइंटिस्ट " bधर्मा के सामने जब ये स्थिति आई तो उसने अन्य यात्रियों के जैसे पैदल चल कर जाने का निर्णय लिया, जिसके कारण ना तो उसको कभी पैसा मिला ना ही उस गाड़ी वाले ने आत्महत्या की ना ही उसका बेटा अपराधी बना और ना ही उसके हाथों bधर्मा की कभी हत्या हुई बल्कि उसका जीवन एक दम उलट हो गया आगे चल कर उसने एक सर्व गुण संपन्न कन्या से विवाह किया और उसको एक पुत्री हुई जिसके भाग्य से उसको एक लॉटरी लगी और bधर्मा ने उस से एक व्यवसाय शुरू कर काफी नाम कमाया और अपनी 80 वर्ष की आयु तक एक आनंदमय और खुशहाल जीवन बिताया।
साबू " कर भला तो हो भला
साइंटिस्ट " ये भी कह सकते हो पर फैक्ट ये है। एक छोटे से निर्णय ने दोनों के जीवन में कितना बड़ा अंतर पैदा किया यहां तक कि कितने ही लोगों के जीवन में प्रभाव डाला। बस ठीक इसी तरह से किसी एक निर्णय के कारण तुम्हारे अपने पृथ्वी के जीवन में और इस पृथ्वी के जीवन में इतना अधिक अंतर है। अब वो निर्णय क्या था किसका था ये तो केवल ईश्वर ही जानता है।
साबू " बस इतना ही, किसी एक निर्णय से इतना बड़ा अंतर मेरे अपनी पृथ्वी और इस पृथ्वी के जीवन मे सुनने में हजम नहीं होता
मगर जो कहाँनी आपने सुनाई है। उसके बाद नकारना भी मुश्किल है। लेकिन इन सब से मेरी दुविधा तो दूर हो गई मगर मेरे वापस जाने का कोई रास्ता नहीं मिला।
क्या में कभी वापस जा पाऊंगा।
इतना बोलते ही साबू का गला भर आया उसकी आवाज़ कंपकंपाने लगी और वो आगे के शब्द नहीं बोल पाया
शायद अब उसको अपने परिवार का सही मूल्य समझ आ गया जो किसी भी धन कुबेर से बढ़कर होता है।
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