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रहस्यों से भरा ब्रह्माण्ड - 3 - 2

रहस्यों से भरा ब्रह्माण्ड

अध्याय 3

खण्ड 2

गजेश्वर राज्य में अब्दुला नाम का एक गरीब किसान था जिसकी एक सुंदर बीवी और एक तेरह वर्षीय बेटी थी।

अब्दुल्ला दुनिया दारी की अधिक चिंता ना करके केवल अपने छोटे से परिवार पर ही ध्यान देता। उसके लिये उसका परिवार ही उसकी दुनिया थी हष्टपुष्ट होने के कारण वो खेती में दुगनी मेहनत करता जिससे वो आसानी से राजा को लगान चुका कर अपने परिवार का पेट पाल लेता था। उसको राजा की क्रूरता का सम्पूर्ण ज्ञान था मगर उसने इस माहौल में दब कर जीना सीख लिया,

वही एक दिन रोजाना की तरह उसके घर से दोपहर का भोजन खेत पर लेकर उसके घर से कोई नहीं आया, जिसपर उसको लगा, शायद उसकी पत्नी की तबीयत ठीक नहीं होगी इसलिए शाम को सूर्य अस्त होने से पहले ही वो अपने घर पहुँच गया। लेकिन घर पर पहुँच कर उसको पता लगा कि उसकी पत्नी और उसकी बेटी आज दोपहर का भोजन लेकर उसके पास के लिए निकली थी और तब से ही वापस नहीं आई, ये बात सुनकर अब्दुल्ला घबरा गया और भाग कर अपने खेतों पर वापिस पहुँचा। रास्ते में भी उसने खूब छान बिन की मगर उसकी पत्नी और बेटी का कोई नमो निशान ना मिला। सुबह तक वो पागलों की तरह इधर से उधर अपने परिवार को खोजता रहा। लेकिन कोई पता ना चला।

दिन के उजाले में उसको एक आदमी मिला जो नाले की ओर तेजी से जा रहा था और अब्दुल्ला के पूछने पर उसने बोला नाले के सामने के कुम्हार को नाले में से एक महिला और बच्ची की लाश मिली है। ये खबर सुनकर अब्दुल्ला बदहवास दौड़ता हुआ नाले पर पहुंचा पर वहाँ खड़े कुछ लोगों ने अब्दुला को आगे जाने ना दिया। बस उसको रोक कर बोलने लगे “ भाई शायद भगवान की यही मर्जी है। लगता है, भाभी और गुड़िया जब तुम्हारे लिए खाना लेकर आ रहे थे तो वो दोनों नाले में गिर गई और उनकी मृत्यु हो गई। अब इस बात को सुन अब्दुल्ला से और ना रुका गया। और अपने मजबूत बदन का भरपूर जोर लगा कर उन सब को धकेलता हुआ दोनों लाशों के पास जा पहुंचा।

अपनी पत्नी और बेटी को इस अवस्था में देख वो चीख चीख कर रोने लगा। यहाँ तक कि अपनी बेटी के गन्दे शव को बाँहों में भर ऐसे लाड दुलार करता है। जैसे वो अब भी जीवित हो और अपने पिता से नाराजगी जताने के लिए मरने का नाटक कर रही है। वहाँ मौजूद हर एक शख्स जानता था कि अब्दुल्ला के लिए उसका परिवार क्या महत्व रखता था वो अपनी बेटी को राजकुमारी की तरह पालता था कभी उसको कोई काम नहीं करने देता। और आज उसके ही मृत शरीर को अपने हाथों में लिए बैठा है। इस दर्द भरे पिता विलाप ने प्रत्येक व्यक्ति को भावुक कर दिया।

लोगों ने कैसे तैसे अब्दुल्ला को संभाला और उसकी पत्नी और बेटी को दफन किया।

इन सब के बाद कुछ दिनों तक अब्दुल्ला ने ना तो किसी से बात की और ना ही खेतों पर गया। बस एक प्रकार का सन्नाटा समेटे घर के एक कोने में पड़ा रहा। उसकी ये खामोशी आने वाले किसी भयानक तूफान का संकेत कर रही थी।

दो चार दिन के बाद जब वो अपने दुख से थोड़ा उभरा तो उसके दिमाग में एक बात आई कि जिस नाले में उसके बीवी बच्चों की लाश मिली वो नाला उसके खेत से घर तक के रास्ते में दूर दूर तक नहीं आता और जब वो गिरी तो नाले के पास रहने वाले कुम्हार ने उनकी आवाज़ क्यों नहीं सुनी।

बस फिर क्या था पहुँच गया कुम्हार के घर अब्दुल्ला और सीधा सवालों की बौछार कर दी उसपर।

उसके दिमाग में शायद ये ख्याल दूर तक न था कि इस समय अब्दुल्ला उसके घर पर आ धमके गा, इसलिये वो अब्दुल्ला को देख कर हड़बड़ा गया। जिस पर अब्दुल्ला का शक यकीन में बदल गया। लेकिन खूब डराने धमकाने पर भी कुम्हार केवल झूठ ही बोले जा रहा था तभी गुस्से में आ कर अब्दुल्ला ने अपने पीछे से गंडासा निकाल कर कुम्हार के 10 वर्षीय बालक के गर्दन पर रख दिया।

अपने खून पर जब संकट आता है। तो बड़े से बड़ा शूरवीर धराशायी हो जाता है। फिर ये तो केवल एक कुम्हार था। इस तरह की परिस्थिति में फंसा जान वो भावुक होकर बोला" मुझे ये तो नहीं पता तुम्हारे बीवी और बेटी के साथ क्या हुआ, लेकिन ये बात सही है। कल डर से मैंने जो कुछ भी कहा वो सब झूठ था।

असल में कल संध्या समय मुझे कोई भारी चीज़ नाले में गिरने की आवाज़ आई तो मैं बाहर निकला मैंने देखा हमारे राजा के सिपाही नाले को घेरे खड़े है। और फिर एक और बार कुछ भारी चीज़ उन्होंने नाले में फेंकी, उस समय मुझे लगा जरूर कोई सड़ा हुआ जानवर फेंकने आये होंगे। क्योंकि ये लोग अकसर ऐसा करते है। लेकिन जब भोर को मैंने नाले में देखा तो मेरे पैरो तले जमीन खिसक गई। मगर तुम ही बताओ राजा का मामला देख अपने परिवार की सलामती के लिए मैं झूठ नहीं बोलता तो और क्या करता।

इस बात को सुन अब्दुल्ला ने कुम्हार के बालक को छोड़ दिया, और फिर गहरी सोच में डूब गया। अगले ही क्षण अब्दुल्ला कुम्हार से बोला" क्या उन सिपाहियों में से किसी की सूरत देखी तुमने?

कुम्हार " हाँ एक को मैंने पहचान लिया था वो थड़ी वाले चौधरी का बेटा था लेकिन मेरी तुमसे विनती है। हम लोग बहोत छोटे लोग है। यदि किसी तरह राजा या उसके लोगों को पता चला कि तुम्हें ये सब मैंने बताया है। तो हमारा बचना असम्भव होगा। कृपा करके मेरा नाम किसी प्रकार से किसी को पता न चले, मुझे मृत्यु का भय नहीं है। बस अपने परिवार की चिंता है जो तुम अच्छे से समझ सकते हो।

अब्दुल्ला " तुम चिंता न करो, मैं वचन देता हूँ। यदि मैं पकड़ा गया तो चाहे वो मेरे शरीर की बोटी बोटी नोच डाले मगर मैं तुम पर आंच तक ना आने दूँगा।

इतना बोल अब्दुल्ला वहाँ से चला जाता है। और सीधा साहूकार के पास पहुँच कर अपने खेत, घर और मवेशी सब बेच डालता है। साहूकार के पूछने पर

“ तुम ये सब बेच कर कही जा रहे हो। तो अब्दुल्ला बोलता है। इन जगहों पर मेरे लिए मेरी पत्नी और बेटी को भुला पाना मुश्किल था। इसलिए अब से मैं किसी के पास मजदूरी करूँगा और अपनी सम्पत्ति दान धर्म में लगा दूँगा। ताकि अल्ला उनकी रूह को सुकून दे।

लेकिन अब्दुल्ला का असल मकसद कुछ और था। पहले वो कुछ दिनों तक बारीकी से उस परिचित सिपाही पर नज़र रखता है। सौभाग्य से एक दिन सिपाही अकेला था बस इसी समय को उचित अवसर मान कर अब्दुल्ला सिपाही को बेहोश करके। एक सूनसान क्षेत्र में ले गया। जहाँ दूर दूर तक कोई नहीं था। पहले अब्दुल्ला सिपाही से थोड़ी सख्ती से अपनी पत्नी और बेटी के बारे में पूछता है। पर कोई विशेष उत्तर ना मिलने पर वो विभिन्न प्रकार के औज़ारों से उसको कष्ट देता है, ताकि वो सच बोले अब्दुल्ला सिपाही के सारे नाखून उखाड़ देता है उसके कई दांतो को तोड़ डालता है। अंत में जब उसकी नाक को काटने वाला होता है। तो वो बोल पड़ा " राजा का वज़ीर नागेश्वर कुछ दिन पहले कुछ सिपाहियों के साथ शिकार के लिए निकला था तभी बीच रास्ते में उसको तुम्हारी पत्नी और बेटी दिखी। नागेश्वर का मन तुम्हारी बेटी के मोहक रूप पर रीझ गया, तो उसने अपने एक सैनिक द्वारा दोनों को अपने पास बुलाया। और तुम्हारी पत्नी से तुम्हारे बेटी को एक रात के लिए छोड़ने को कहाँ साथ में ढेर सारे धन का प्रस्ताव भी दिया।

तुम्हारी पत्नी को ये बात इतनी बुरी लगी के उसने सभी सैनिकों के सामने नागेश्वर के एक जोर का चांटा लगा दिया। जिस पर नागेश्वर भड़क गया। और दोनों का अपहरण कर के अपने एक निजी निवास में ले आया। पहले उसने तुम्हारी पत्नी के साथ फिर तुम्हारी बेटी के साथ बलात्कार किया।

इतने पर भी उसका मन नहीं भरा तो उसने अपने खास सिपाहियों से उनके साथ दुष्कर्म करवाया। तुम्हारी बेटी अधिक छोटी होने के कारण पीड़ा सहन नहीं कर सकी और वही उसकी मौत हो गई। और ये देख कर नागेश्वर ने तुम्हारी पत्नी की भी हत्या कर दी।

इस सारे किस्से को सुनते समय अब्दुल्ला की आंखों से निरन्तर आँसू निकले जा रहे थे और उसके चेहरे पर क्रोध की अग्नि बढ़ती जा रही थी। जब सैनिक की बातें पूरी हुई तो अब्दुल्ला ने उससे एक अंतिम प्रश्न पूछा " क्या उस समय तुम भी वहाँ थे। सैनिक शर्म से सर झुका देता है। जिस पर अब्दुल्ला उसे बोलता है। तुम्हारा जीवित रहना या तुम्हें मार देने का निर्णय मैं अल्ला पर छोड़ता हूँ। और एक चाकू लेकर उसकी और उसकी रस्सी खोलने के लिए आगे बढ़ा।

पर ये क्या अब्दुल्ला ने उसकी रस्सी न खोल कर उसकी दोनों आंखों की पलकें काट डाली और उसके जख्मों पर शहद लगा कर उसके मुंह में कपड़ा ठूस कर वहाँ से चला गया। और जाते समय कह गया, अब से तुम्हारा जीना मरना दोनों खुदा के हाथ में है पर जो किसी निर्बल की सहायता नहीं करता, अल्लाह उसकी सहायता नहीं करता।

अब्दुल्ला के जाते ही उस सिपाही को विभिन्न प्रकार के कीड़े मकोड़ों ने घेर लिया और थोड़ी ही देर में उसको नोच नोच कर खाने लगे।

अब उसने एक योजना बनाई। जिसके अनुसार उसने नागेश्वर पर कड़ी निगरानी रखी, और अंत में उसको एक अहम जानकारी प्राप्त हुई।

असल में राजा भानु और नागेश्वर दोनों सप्ताह में एक बार अय्याशी के लिए एक वेश्यालय में जाते थे उनका समय देर रात का होता, और उनके साथ कुछ दो तीन सैनिक ही होते थे जो वेश्यालय के बाहर ही ठहरते थे। बस फिर क्या था सप्ताह भर तक वो रोज़ वेश्यालय में जाता और जानकारी इकट्ठी करता, वो दिखावे के लिए वेश्याओं को भी पैसे दे कर उनके साथ कमरे में जाता लेकिन उनसे केवल जानकारी ही लेता और बदले में उनको मोटी रकम देता। जिससे उस पर किसी को शक नहीं हुआ सब को लगा। कोई अमीर परदेसी है जो किसी मुर्गी से कम नहीं।

उसका जानकारी प्राप्त करने का तरीका भी बड़ा अनूठा था उदाहरण के तौर पर जब उसको ये जानना था कि राजा कौन से कमरे में किस वेश्या के साथ जाता है। तो वो मूल्यवान भेस भूसा पहन कर, नशे में होने का ढोंग करते हुए चिल्ला चिल्ला कर बोलता है। हम अपने देश के राजा है। हमें वही कमरा चाहिए जो इस देश के राजा के लिए है। हमें वो ही कन्या चाहिए जो इस देश के राजा की प्रियतमा है। हमें हर वो सुख सुविधा चाहिए। जो इस देश के राजा को मिलती है। किंतु ध्यान रहे अगर हमारे साथ छल किया, तो हम तुम्हारे राजा यानी अपने प्रिय मित्र से कह कर तुम सब को मृत्यु दंड दिलवा देंगे।

अब एक ओर धन का लोभ और दूसरी ओर अपने सनकी राजा का भय तो किसकी मजाल थी जो उसको मना करता।

अंत में छठे दिन रात को वो उस कक्ष में सोया नहीं केवल सोने का ढोंग करता रहा। और जब उसके साथ आई सेविका सच में सो गई तो वो बड़ी सावधानी से एक ऐसी जगह पर जा कर छुप गया जहाँ उसे कोई ना ढूंढ पाए। जब सेविका उठी तो अपने पास से अब्दुल्ला को गायब देख कर समझी वो इसके उठने से पहले ही चला गया।

अब्दुल्ला पूरा दिन उस जगह पर छुप कर बैठा रहा, और रात को जब उस कक्ष की सजावट होने लगी तो उसको समझ आ गया। कि बस राजा अब आने ही वाला है। जल्द ही राजा भी आ गया। और जब राजा ने अपने कपड़े उतारे तभी अब्दुल्ला ने एक हाथ में नंगी तलवार और दूसरे हाथ में कुल्हाड़ी ले कर राजा के ऊपर आक्रमण कर दिया इससे पहले राजा कोई प्रतिक्रिया देता अब्दुल्ला ने राजा को तलवार की नोक पर अपने अधीन कर दिया। वहाँ मौजूद कन्या की हल्की सी चीख भी निकली, लेकिन अब्दुल्ला ने उसको डरा कर चुप करा दिया।

फिर अब्दुल्ला उस वेश्या से बोला " जाओ नागेश्वर के कक्ष में जा कर बोलो राजा ने तुम्हें अभी याद किया है। और ध्यान रहे इसके सिवा कोई और चालाकी की तो राजा की मौत की ज़िम्मेदार तुम खुद होगी।

वेश्या अब्दुल्ला के कहे अनुसार नागेश्वर को बुला लाई। भीतर के दृश्य से अनजान जब नागेश्वर अंदर पहुँचा। तो वो भी सकपका गया, उसने कभी इस तरह की अपेक्षा नहीं की थी और उसके हथियार भी दूसरे कक्ष में छूट गए थे। नागेश्वर के सामने एक आदमी ने राजा को हत्यार की नोक पर बंधी बना रखा था तो राजा की सुरक्षा के खातिर नागेश्वर को उस आदमी की बात माननी ही थी।

अब्दुल्ला नागेश्वर और उस वेश्या से कक्ष के भीतर आ कर कक्ष को बंद करने का आदेश देता है। नागेश्वर अब्दुल्ला के कहे अनुसार करके अब्दुल्ला की और आराम से बड़ने लगा। तभी अब्दुल्ला ने अपने एक ही वार से तलवार द्वारा राजा के सर के दो टुकड़े कर दिए। ये देख कर नागेश्वर का रंग पीला पड़ गया और वो वापिस दरवाज़ा खोलने के लिये भागा मगर भाग ना सका। अब्दुल्ला किसी बाघ की तरह उसपर झपटा और अपनी कुल्हाड़ी से लगातार उसके सर पर कई वार किए। और तब तक करता रहा जब तक उसके सर का कीमा ना बन गया। उसके बाद अब्दुल्ला ने वेश्या को देखा, जिसपर वेश्या का दहशत से बुरा हाल हो गया। मगर अब्दुल्ला ने उसको कोई नुकसान नहीं पहुँचाया और दरवाज़ा खोल कर वो वहाँ से बाहर निकला असल में अब्दुल्ला ने पहले ही सोच लिया था कि इस को करने में पक्का उसकी मृत्यु हो जाएगी। तो क्या फर्क पड़ता है। अगर उस वेश्या ने उसको देख भी लिया। और सौभाग्य से वो किसी प्रकार बच भी गया तो फौरन उस राज्य को छोड़ देगा।

जब अब्दुल्ला वेश्यालय के बाहर निकला, तो उसको खून में सना देख सैनिकों ने उस पर हमला कर दिया।

एक तो बलिष्ठ ऊपर से परिवार के प्रतिशोध की अग्नि का उसके भीतर वास ऐसे में अब्दुल्ला पर 10 सैनिक भी भारी नहीं पड़ते। तो भला वेश्यालय के बाहर खड़े दो चार सैनिक कैसे टिक पाते। अंत में अपना रास्ता साफ देख अब्दुल्ला वहाँ से भाग निकला।

और गजेश्वर राज्य की सीमा को लाँघने में सफल हुआ।

वसुंधरा का छोटा राजकुमार नरसिम्हा राज्य की सुरक्षा जांच करता हुआ पर्वतों पर पहुँच गया।

वो पर्वतों की चोटी पर बैठे सैनिकों की समस्याओं को सुन रहा था तभी ना जाने कैसे जिस जगह वो खड़ा था उस जगह का पत्थर सरक कर नीचे गिर गया। उसके साथ ही नरसिम्हा भी गिर पड़ा, नरसिम्हा गिर कर मर ही जाता के तभी किसी प्रकार उसके हाथ पर्वत की दरारों में जा फंसे अब सारे सैनिकों में हड़कम सा मच गया। सभी सैनिक रस्सी लेने दौड़े पर तब तक काफी देर हो चुकी थी और नरसिम्हा का हाथ उन दरारों से भी छूट गया।

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