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रहस्यों से भरा ब्रह्माण्ड - 3 - 4

रहस्यों से भरा ब्रह्माण्ड

अध्याय 3

खंड 4

जब वो 1000 सैनिकों का समूह वापिस आएगा। तो हमें सरल मार्ग की जानकारी के लाभ के साथ साथ अन्य सैनिकों का जंगल के प्रति जो भय है। वो समाप्त करने का भी लाभ होगा,

राजा इन्द्र को ये योजना उपयुक्त लगी, और अगले दिन जंगल की सीमा पर पहुँच कर 1000 सैनिकों को अपनी सेना में से राजा इन्द्र ने चुना, और उनको योजना समझा कर अपने सेना पति के साथ जंगल में भेज दिया।

राजा और अन्य महान अनुभवी लोगों की गणना के आधार पर वो जंगल अधिक से अधिक 5 दिनों की यात्रा में पार हो जायेगा।

जिसके अनुसार जंगल में गए सैनिक 10 से 12 दिनों के भीतर वापिस आ जाएंगे, इसलिये जंगल की सीमा पर ही बड़े बड़े पंडाल लगाए गए,

अभी सैनिकों को गए हुए केवल 2 दिन ही हुए थे कि राजा इन्द्र को अपने खेमे के बहार लोगों की हाहाकार सुनाई देती है। जब राजा इन्द्र ने बाहर आ कर देखा तो कुछ सैनिक एक जगह गुट बना कर किसी चीज़ को घेरे खड़े थे और बहुत से सैनिक उस गुट की ओर भाग कर उस गुट की विशालता को लगातार बढ़ाए जा रहे थे। हालातों का जायज़ा लेने के लिए राजा इन्द्र भी वहाँ पहुँचे जिन्हें देख कर भीड़ ने बड़ी सरलता से राजा को रास्ता दिया। जब राजा ने उस चीज़ को देखा तो बड़े दंग हुए। वो चीज़ असल में मानव के अर्ध भस्म कंकाल थे। जिसमें अभी भी तपिश थी। राजा इन्द्र इस को देख कर बड़े ही आश्चर्य से पूछता है। ये क्या है।

इस पर एक सैनिक आगे आकर बोला " महाराज 1000 सैनिकों की टुकड़ी आपने जंगल में भेजी थी। उन में से एक सैनिक थोड़ी देर पहले भयभीत होकर भागता हुआ जंगल से निकला और दो चार कदम बढ़ा कर वो अपने आप ही अग्नि से भस्म हो गया। जैसे किसी दैवीय शक्ति का उस पर प्रहार हुआ हो, और उसके जलने से पहले उसको देख कर ऐसा नहीं लग रहा था कि वो दो दिन पहले ही जंगल में गया हो बल्कि लगता था वो कई महीनों से उस जंगल के भीतर था।

राजा इन्द्र को उस सैनिक की बातों पर विश्वास नहीं हुआ तो उन्होंने किसी अन्य सैनिक को आगे बुला कर घटना का विस्तार पूछा पर उसने भी वही बोला।

राजा इन्द्र इन सब को देख काफी गहरे असमंजस में पड़ गए। वो हर बार की तरह कोई तर्क सोचने लगे के तभी जंगल के भीतर भेजे अन्य सैनिकों को एक के बाद एक उसी तरह जंगल के बाहर आता और भस्म होता देखा, जिस प्रकार उस सैनिक ने बताया था और देखते ही देखते उस सीमा पर भस्म सैनिकों के सेकड़ो कंकाल वहाँ इकट्ठा हो गए,

राजा इन्द्र को अब उस जंगल की वास्तविकता पर कोई संदेह न रहा, वो वापिस अपने राज्य की ओर चला गया ताकि शेष रहे सैनिकों के साथ किसी और रणनीति का उपयोग कर वो वसुंधरा को पराजित करें।

वृद्ध के सुझाव ने एक छोटी सी टुकड़ी के बलिदान द्वारा विशाल सेना के साथ साथ अपने राजा इन्द्र के प्राण भी बचा लिए,

इस के बाद से राजा इन्द्र उस वृद्ध को अत्यंत आदर देते।

एक लम्बा समय बिताने के बाद राजा इन्द्र ने एक योजना बनाई। जिसके अनुसार वो अपने कुछ विश्वास पात्रों को वसुंधरा राज्य में गजेश्वर राज्य के भगोड़े बना कर भेजेगा, और सही समय आने पर वो लोग राजा को उसके सम्पूर्ण परिवार समेत मार देंगे।

राजा इन्द्र की ये योजना एक हद तक सफल भी हुई, किन्तु वे लोग केवल वसुंधरा के राजा की ही हत्या करने में सफल हो पाए , बाकी और किसी की वो हत्या करते उससे पहले ही युवराज हम्जा ने अब्दुल्ला के साथ मिल कर उनका वध कर दिया।

अब राज गद्दी का अधिकार राजा हम्जा को दिया गया, जिसको संभालते ही हम्जा ने गजेश्वर राज्य पर आक्रमण करके उनको परास्त करने का निर्णय लिया, हम्जा नहीं चाहता था कि अब कोई और इन्द्र की कूट नीति का शिकार बने।

दोनों राज्यों के बीच आमने सामने का एक भयंकर महायुद्ध हुआ कोई भी राज्य किसी भी रूप में कम नहीं था भले ही सैनिकों के अस्त्र नष्ट हो जाते या उनके अंग कट कर धरती पर गिर जाते, तब भी वो युद्ध भूमि को नहीं छोड़ते और अपनी अंतिम सांस तक युद्ध करते रहते।

मानव इतिहास का सबसे बड़ा नरसंहार इस युद्ध में यहाँ की युद्धभूमि ने देखा।

युद्ध भूमि रक्त से लाल हो गई। कोई भी रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। तो हम्जा को और अधिक मानव संहार को रोकने का एक ही उपाय सुझा राजा इन्द्र का वध जिसके चलते उनकी सेना अपने अस्त्र डाल देगी।

हम्जा राजा इन्द्र की ओर एक कुशल बलिष्ठ योद्धा की भांति बढ़ने लगा। जिसे राजा इन्द्र के कुछ निष्ठावान सैनिकों ने देखा तो स्वयं को राजा इन्द्र की सुरक्षा दीवार बना कर मजबूती से खड़ा कर लिया। किन्तु इस समय राजा इन्द्र अन्याय के साथ थे और राजा हम्जा न्याय के प्रतीक जो अन्याय की बड़ी से बड़ी दीवार को तोड़ कर बहार निकल ही आता है। और वही हुआ भी,

राजा हम्जा ने निरंतर सैनिकों से युद्ध करते हुए अंत में राजा इन्द्र का सर धड़ से अलग कर दिया।

जिसके बाद गजेश्वर राज्य के शेष बचे सैनिकों के पास अपने अस्त्र डाल देने के सिवा कोई अन्य मार्ग ना था।

चारों दिशाओं में शीत लहर दौड़ने लगी, वातावरण में गहरी खामोशी छा गई। दोनों राज्यों के सैनिकों की नज़रें अपने नए नरेश अपने नए स्वामी हम्जा की ओर जा रुकी, उस शांत वातावरण में हम्जा सैनिकों से कुछ बोलने वाला था तभी एक अज्ञात घुड़सवार जिसने नकाब पहना था राजा हम्जा पर फुर्ती से वार करता हुआ निकला, राजा हम्जा अपने ऊपर हुए इस अचानक प्रहार से बचने का भरपूर प्रयत्न करते है। फिर भी उनके बाजू में उस घुड़सवार की तलवार से घाव हो जाता है। वो घुड़सवार बिना रुके बस दौड़ता ही चला गया, जिसका पीछा हम्जा ने अपने घोड़े पर बैठ कर किया।

राजा के पीछे उसके कुछ अन्य सैनिक भी दौड़े लेकिन थोड़ी ही दूर पहुँच कर सैनिकों ने देखा राजा हम्जा उस घुड़सवार के पीछे पीछे उन शापित जंगलों में जा घुसे, जिस पर वो जंगलों के भीतर न जा कर उनकी सीमा पर ही रुक गए।

उस अंतिम अलौकिक घटना ने दोनों राज्य में खोफ भर दिया था जिसके कारण वो सैनिक जंगल के भीतर जाने का साहस ना जुटा पाए।

काफी देर तक जब युवराज नरसिम्हा ने अपने भाई को वापिस आते ना देखा तो उसको अपने भाई की चिंता होने लगी। और वो भी उस दिशा में बढ़ चला, आगे जा कर जब उसने जंगल की सीमा पर अपने सैनिकों को खड़ा पाया, तो उनसे पूछने पर उसको सारा किस्सा पता चला।

युवराज नरसिम्हा ने दो दिन तक अपने बड़े भाई की वहाँ प्रतीक्षा की किन्तु कोई भी सूचना प्राप्त ना कर पाया तीसरे दिन वो वापिस लौट ही रहा था कि वहाँ मौजूद सैनिकों ने शोर मचाना शुरू कर दिया।

शोर को सुन कर युवराज नरसिम्हा पीछे मुड़े तो उन्होंने अपने बड़े भाई को जंगलों से बदहवास हालत में बाहर आता देखा,

युवराज तुरंत अपने घोड़े से उतरे और अपने बड़े भाई के सीने से जा लगे। युवराज ने अपने बड़े भाई को बताया कि उसको लगा उसने उन्हें खो ही दिया है। और इतना बोल कर युवराज रोने लगे।

लेकिन युवराज की बात का हम्जा कोई उत्तर दे उससे पहले ही हम्जा ठंडी काली राख में परिवर्तित हो कर वही बिखर गए।

अब इस दृश्य ने युवराज की बची कूची आशा को भी नष्ट कर दिया। और अपने भाई की मृत्यु शोक ने उनको भी भीतर तक से झंझोर दिया।

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