भुइंधर का मोबाइल
- प्रदीप श्रीवास्तव
भाग 3
जानती हैं अम्मा आपका पूत बड़ा जबरा है। इतना जबरा कि मारे भी और रोने भी न दे। मगर मेरी भी एक ही धुन थी कि इन्हें रास्ते पर लाना है, तो मैं अपनी बात पर अड़ी रही। फिर अचानक ही इन्होंने मेरी साड़ी का आंचल पकड़ कर खींच लिया कस कर। मगर मैं इनकी पकड़ से बचने के लिए दूसरी तरफ लुढ़कती गई। इनके हाथ मैं नहीं सिर्फ़ मेरी साड़ी लगी। अब इनका सुर बदलने लगा। बोले ‘देख नौटंकी न कर सीधे आ जा। नहीं तो दुशासन की तरह चीर हरण करते देर नहीं लगेगी मुझे। इतना कह कर यह बाज की तरह झपट पड़े मुझ पर, अब साड़ी के बाद मेरा दूसरा कपड़ा इनके हाथ में था। पर मैं फिर इनके हाथ न लगी। अब मैं खाली ब्लाउज में रह गई थी। तो एक तकिया जो मेरे हाथ लगा उसे लगा लिया अपने सामने।
अम्मा यह पढ़ कर तुम्हें अचंभा हो रहा होगा और गुस्सा भी आ रहा होगा। लेकिन मैं यही कहूँगी कि आप गुस्सा न हों , पहले बात को पूरा पढ़ लीजिए। ये रात में हमारे साथ रोज यही नंगई का खेल खेलते हैं। ये सोच कर भी न परेशान हों कि हम छत पर यह सब कर रहे थे तो दुनिया देख रही थी। मैं पहले ही बता चुकी हूँ कि किसी और मकान की छत से इस मकान की छत पर नहीं देखा जा सकता। अच्छा तो जब यह दूसरी बार भी मुझे न पकड़ पाए तो एकदम भन्ना पड़े और बोले ‘साली छिनारपन दिखाती है। नहीं ...... है तो न ......। यहां साहब की बीवी ...... को..... पीछे पड़ी रहती है, उसकी ...... हूं तेरी क्या औकात। चल हट यहां से छिनार कहीं की।’
इतना कह कर इन्होंने पेटीकोट खींच कर मेरे मुंह पर मारा और दूसरी तरफ मुंह करके करवट लेट गए। मैं हक्का-बक्का तकिया पकड़े खड़ी रह गई। क्यों कि इतना जोर का एक नया तमाचा मेरे चेहरे पर पड़ा था कि साहब की बीवी के साथ इनके संबंध हैं। मेरे काटो तो खून नहीं। मैं थरथर कांप रही थी। इतना बड़ा धोखा यह साहब को दे रहे हैं। मेरे साथ इतना बड़ा विश्वासघात कर रहे हैं। यह कुकर्म एक दिन ज़रूर खुलेगा। और तब इनकी क्या हालत होगी मैं यह सोच कर पसीने-पसीने हो गई। क्योंकि अम्मा साहब बहुत गुस्से वाला आदमी है। इन्होंने ही एक बार बताया था कि पहले किसी बड़ी कंपनी में काम करते थे लेकिन वहां के मालिक से झगड़ कर अलग हुए और अपनी कंपनी खोली रात-दिन मेहनत कर आज खुद बहुत बड़ी कंपनी के मालिक बन गए हैं।
मगर आज भी सोलह-सत्रह घंटे काम करते हैं। कंपनी के काम से आए दिन हवाई जहाज से इधर-उधर जाते रहते हैं। अम्मा तुम ऐसे आदमी को देवता कह सकती हो। मैं तो यही मानती हूं। मगर अम्मा एक मामले में वह बड़ा दुर्भाग्यशाली है। उसकी बीवी बहुत हरामजादी है। नहीं ये गाली तो उसके लिए कुछ नहीं है। मुझे उससे बड़ी कमीनी औरत दुनिया में दूसरी नहीं दिखाई देती। जानती हैं आदमी मेहनत करके खियाए जा रहा है और इस चुड़ैल को अय्याशी के सिवाय कुछ और नहीं सूझता। एक लड़का है। वो बहुत ऊंची पढ़ाई के लिए बाहर विदेश गया है। ये कमीनी घर में अकेली रहती है। जब देखो तब चमचमाती गाड़ी में घूमती रहती है। और जब उस दिन तुम्हारे भुइंधर के मुंह से यह सुना कि इसने हमारे आदमी को भी नहीं बख्शा तो तब से वह हमें फूटी आंखों नहीं सुहाती। खैर उस दिन रात भर मैं सोई नहीं, आंसू बहाती पड़ी रही। ये तमाचा इतना तेज़ था कि मैं बरदाश्त नहीं कर पा रही थी। कई बार मन में आया कि इस सबसे ऊंची छत से नीचे कूद कर मर जाऊं। आखिर किसके लिए जीयूं। जिसके सहारे यहां आई वही इतना बड़ा धोखेबाज निकला तो इस बेगानी दुनिया में कौन मेरा होगा। फिर सोचा यह तो कायरता होगी। हार मान कर जान देने से क्या फायदा। कोशिश करती हूं कि इन्हें धोखेबाजी, अय्याशी, शराबखोरी की दुनिया से बाहर निकालूं।
अम्मा आप गुस्सा हो सकती हैं कि मैं आपके लड़के को धोखेबाज कह रही हूं। मगर आप ही बता दें क्या कहूं ? मैं समझ रही हूं अम्मा तुम्हारे पास भी इसके अलावा कोई जवाब नहीं है। मैं अंदर ही अंदर घुटती इनको रास्ते पर लाने की कोशिश में लगी रही। सोचा कि चलो लड़का-बच्चा हो जाएंगे तो यह बदल जाएंगे। मगर मुझ करमजली के ऐेसे भाग्य कहां ? आज तक एक बच्चे की खातिर तरस रही हूं। न जाने कितनी बार डॉक्टर के यहां चलने को कहा मगर शराब और उस चुड़ैल के साथ अय्याशी के आगे इनके कान पर जूं नहीं रेंगती। एक बार कुछ सोच कर हमने कहा ‘ऐसा करो कहीं और इससे अच्छी नौकरी ढूंढ़ लो। किसी और मुहल्ले में चलो। जहां अपने तरह के लोग हों, यहां सब बड़े-बड़े लोग हैं। किसी से हम बात नहीं कर पाते। मन बड़ा ऊबता है। इतने दिन हो गए इसी कमरे में पड़े-पड़े।’ जानती हो अम्मा सब कहा सुना बेकार गया। ये चिकने घड़े से भी ज़्यादा चिकने निकले। बस उसी हरामजादी के दीवाने बने बौराए हुए हैं। साहब के न रहने पर जब वह चुड़ैल इनको लेकर निकल जाती है तो मैं हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं कर पाती हूं।
मगर कब तक सहती, हर चीज़ की एक सीमा होती है न, तो मैंने भी एक दिन ठान लिया कि इनको तब रंगे हाथों पकड़ूंगी जब ये यह कहकर नीचे चुड़ैल के पास जाते हैं कि मेम साहब बुला रही हैं। और साथ ही मैंने यह भी तय किया कि जब रंगे हाथ पकड़ू़ंगी तो इतना चीखूंगी -चिल्लाऊंगी कि उसकी काली करतूत से दुनिया वाकिफ़ हो जाए और तब यह हमारे पति-परमेश्वर भुइंधर को भी निकाल देगी। ऐसे इस कमीनी से फुरसत मिल जाएगी। मैं मौक़े की ताक में थी। अम्मा जल्दी ही एक अवसर मिल गया। साहब एक हफ़्ता के लिए टूर पर बाहर गए। जिस दिन वह बाहर गए उसके अगले ही दिन यह दिन भर कहीं गायब रहे। अम्मा वह चुड़ैल इतनी चालाक है कि हम क्या बताएं।
दुनिया को उसकी करतूत पर शक न हो इसके लिए न सिर्फ़ भुइंधर को हमेशा ड्राइवर की सफेद वर्दी में रखती है बल्कि बातचीत भी खुर्राट मालकिन की तरह करती है। अपमान करने की हद तक। खैर उस दिन शाम को लौटने के बाद यह उसके पास नहीं गए। खाने-पीने की ढेर सारी चीजें लेकर आए। मगर मुंह लटका हुआ था। इसलिए उस दिन मैं कुछ न बोली सिवाय इसके कि ‘तबीयत खराब है क्या?’ ‘नहीं! क्या ज़रूरी है तुम्हें हर चीज बताना ?’ उनकी इस झिड़की से मैं एकदम शांत हो गई।
अगले दिन उस चुड़ैल ने एक पार्टी रखी। जिसमें उसी की तरह की पंद्रह-सोलह औरतें आईं। जमके खाना-पीना, ताश खेलने से लेकर शराब पीने तक का काम हुआ। ऐसी बेहयाई अम्मा हमने यहीं आ के देखी। तन उघारे इन औरतों को तुम बेहया औरतों की देवी कह सकती हो। ऐसी पार्टियों के बारे में वहां थी तब पिक्चरों में देखा सुना था। यहां उसका असली रूप देख कर दंग रह गई।
खैर शाम होते-होते सब खतम हुआ, रात हुई, दिनभर उनकी पार्टी का काम-धाम देख कर थके हारे भुइंधर भी आए ऊपर। खाना-पीना सब नीचे से आया था। लेकिन वह भ्रष्ट खाना हमारे गले से नीचे नहीं उतर सकता था तो हमने दूसरा बनाया। फिर इनकी ना नुकुर, हां ना, दुनिया भर के नखरे उठाए। तब ये थोड़ा सा खाके टहलने लगे छत पर। इनको देख के लग रहा था कि मन इनका कहीं और है। रात ग्यारह बजे के करीब सोने के लिए लेटे। यह भी लेट चुके थे। कि तभी मेरी सौतन बन चुकी इनकी मोबाइल की घंटी घन-घना उठी। मेरा जी जल उठा। इन्होंने नंबर देखा और उठकर कमरे से बाहर छत पर जाकर बात की जिससे मैं न सुन सकूं। बात करके मेरे पास आए बोले ‘मैं काम से जा रहा हूं, हो सकता है देर हो जाए।’ मेरा इंतजार मत करना सो जाना। फिर यह जल्दी-जल्दी तैयार हो कर चल दिए।
मुझे शक था सो इनके निकलने के बाद मैं छत पर आकर देखने लगी कि यह कौन सी गाड़ी लेकर जा रहे हैं। दरअसल साहब ने कई गाड़ियां रखी हैं। मैं छत पर खड़ी देखती रही लेकिन यह बाहर दिखाई नहीं दिए। बस गेट-कीपर ऊंघता नजर आया। मैंने मन में उमड़ती-घुमड़ती शंकाओं के बीच ठान लिया कि चाहे जो हो आज नीचे चल कर देखूंगी, जान कर रहूंगी कि नीचे क्या-क्या कुकर्म होते हैं। यह ठाने मैं दबे पांव नीचे पहुंची। अम्मा घर में जगह-जगह बेहद फैंसी झाड़-फानूस लगे हैं। हल्की-हल्की रोशनी हर तरफ थी। मैंने देखा बाहर जाने वाला रास्ता अंदर से बंद था मतलब घर से कोई भी बाहर नहीं गया था। अब मेरा शक और पक्का होता जा रहा था। मैं दबे पांव मालकिन के कमरे तक पहुंच गई। मगर अंदर से कोई आहट नहीं मिल रही थी। दरअसल अम्मा एयरकंडीशन कमरा है तो वह हर तरफ से एकदम बंद रहता है। तो बाहर आवाज़ नहीं आ सकती। अब मैं परेशान हो उठी कि कैसे पता करूं। मगर एक जिद मुझे बराबर आगे बढ़ा रही थी कि आज चाहे जैसे हो पता करना है सब कुछ।
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