भुइंधर का मोबाइल - 4 - अंतिम भाग Pradeep Shrivastava द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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भुइंधर का मोबाइल - 4 - अंतिम भाग

भुइंधर का मोबाइल

- प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 4

अंततः मुझे कमरे के अंदर झांकने का रास्ता नजर आ गया। मैंने खाने वाली मेज के पास लगी कुर्सियों में से एक खींच कर उस खिड़की के पास लगाई जिसके ऊपरी हिस्से के पास पर्दा कुछ इंच हटा था और वहां से अंदर देखा जा सकता था। मेरे पैर थरथरा रहे थे। अम्मा पूरे बदन में मैं पसीने का गीलापन महसूस कर रही थी। दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। मगर जिद के आगे सब बेकार था। मैं अपने पति-परमेश्वर की रक्षा के लिए कुछ भी करने को तैयार थी। इसीलिए कुर्सी पर चढ़ कर मालकिन के कमरे के अंदर झांकने लगी। अम्मा अंदर मैंने जो देखा उसे लिखते हुए हाथ कांप रहे हैं। मैं शर्म के मारे पानी-पानी हो रही थी मगर अंदर जिन दो प्राणियों को देख कर मैं पानी-पानी हो रही थी उन पर तो

शर्म की छाया भी न थी। क्रोध के कारण मेरा खून उबल रहा था। अम्मा मैं हतप्रभ थी। बस देखती ही रह गई। जानती हैं मैंने अंदर क्या देखा ?

अम्मा अगर आपके बेटे और मेरे पति-परमेश्वर के प्राणों की बात न होती तो मैं कभी मुंह न खोलती मगर मज़बूर होकर लिख रही हूं। अंदर वह कमीनी शराब पी रही थी और सिगरेट फूंक रही थी। और जानती हैं उसके तन पर कपड़ों के नाम पर एक ऐसा टुकड़ा था जो कुछ हद तक समीज जैसा था। जिसमें ऊपर दो पतली पट्टी थी जिसके सहारे वह उसके तन पर टिका था। कपड़े की लंबाई उसकी जांघ तक थी। इसके अलावा उसने कुछ नहीं पहना था। उसकी बड़ी-बड़ी छाती थल-थल कर हिल रही थी। वह बेड पर मोटी तकिया के सहारे अधलेटी पड़ी थी। और हमारे पति परमेश्वर...! अम्मा कहते हुए मैं शर्म से गड़ी जा रही हूं कि हमारे पति परमेश्वर खाली कच्छा पहने उसके पैरों के पास बैठे शराब पी रहे थे। सिगरेट का जैसा धुंआ वह चुड़ैल छोड़ रही थी वैसे ही यह भी छोड़ रहे थे। दोनों का मुंह मानो पुराने जमाने वाले कोयला और भाप से चलने वाले इंजन बने हुए थे। गांव में बड़की महराजिन जैसे हुक्का पीके धुंआ छोड़ती थीं, अम्मा यह दोनों उससे भी ज़्यादा धुंआ छोड़ रहे थे।

इतना ही नहीं अम्मा इससे आगे भी और जान लीजिए कि हमारे प्राण प्यारे पति-परमेश्वर ने उस चुड़ैल के साथ और क्या किया! अपने लड़के के कारनामें जो आगे पढेंगीं तो आपका खून उबल सकता है। वैसे एक बात बताएं अम्मा शहर में यह सब खूब हो रहा है। समझ लो कि पूरे कुंए में ही भांग मिली हुई है। और हमारे पति-परमेश्वर वह भांग पीकर बौराए हुए हैं। अब आगे पढ़िए। उस चुड़ैल ने फिर अपना एक पैर हमारे पति-परमेश्वर की जांघों पर रख दिया तो वो उसको सहलाते रहे। इस बीच वह चुड़ैल दीवार पर टंगे बड़े टीवी पर, अम्मा एक चीज पहले आपको और बता दें कि अब यहां ज़्यादातर लोग पहले की तरह वह मोटे वाले टीवी मेज पर रख कर नहीं देखते। अब नए तरह के पतले-पतले टीवी आते हैं जिसे कैलेंडर की तरह दीवार पर टांग कर देखो।

वह चुड़ैल भी टीवी पर एक बहुत गंदी पिक्चर दारू पीते हुए देख रही थी। अम्मा इस तरह की पिक्चरों को ब्लू फ़िल्म कहते हैं। असल में इसमें आदमी औरत जो कुछ रात में अपने कमरों में करते हैं वही बल्कि उससे हज़ार गुना अंडबंड तरह से सब करते हुए पिक्चर में दिखाते हैं। अम्मा ये जान कर आपका मुंह खुला का खुला रह जाएगा कि एक साथ कई-कई औरतें और मर्द होते हैं। ये नारकीय लोग जानवरों तक को नहीं छोड़ते। यही सब कुकर्म टीवी पर वह चुड़ैल देख रही थी। और हमारे पति-परमेश्वर उसके पैर मसल रहे थे। उनके हाथ कपड़े के अंदर तक जा रहे थे।

अम्मा एक मिनट रुकिए एक बात और साफ कर दें। आप ये तो समझ गई होंगी कि ब्लू पिक्चरों के बारे में हमें कैसे पता चला। मगर मैं फिर भी बता रही हूं कि यह सब हमें हमारे परमेश्वर ने बताया, दिखाया। अपने मोबाइल पर आए दिन हमें दिखाते हैं। जबरिया दिखाते हैं और उसी तरह का कुकर्म करने को कहते हैं। जब हम नहीं करते तो हमें कूंचते हैं। महतारी, बहिन गरिया के कहते हैं ‘साली सारा मूड बरबाद कर देती है।’

खैर उस चुड़ैल ने आगे क्या किया उसे भी जान लीजिए। कुछ देर बाद नशे में तुम्हारे भुइंधर और वह चुड़ैल एकदम चैती के बौराए कुकुर और कुकुरिया नजर आ रहे थे। अचानक उसने हमारे पति-परमेश्वर का हाथ पकड़ कर खींच लिया अपने ऊपर, फिर पलट कर भुइंधर के ऊपर चढ़ बैठी। हमारे पति परमेश्वर एकदम चिंचियाए पड़े उस भैंस के वजन से। अम्मा एक बात फिर बता दें कि इन दोनों की कोई आवाज़ नहीं सुनाई दे रही थी। भुइंधर जिस तरह मुंह खोले उसके बैठने पर उससे बात एकदम साफ थी कि वह चिंचियाए।

उस चुड़ैल ने इनके होंठ...लाल कर दिए। इसके बाद बेहयाओं की उस महारानी ने अपना वह झबला उतार कर हमारे परमेश्वर के हाथ छि... अम्मा वह सब लिखने की हिम्मत लाख कोशिशों के बाद भी नहीं कर पा रही हूं। खैर अम्मा मैंने पहले ही आपसेे कहा था कि मैं इस इंतजार में थी कि इन दोनों को रंगे हाथ पकड़ने पर इतना बवाल करूंगी कि दुनिया जान जाएगी फिर यह हमको लेकर वहां से हट जाएंगे। लेकिन जब मैंने रंगे हाथ पकड़ा तो स्तब्ध रह गई। मेरा दिमाग एकदम सुन्न पड़ गया, ठस हो गया था जैसे। कल्पना से एकदम उल्टी तसवीर देख कर हकबका गई थी। इसी लिए उस नारकीय काम को होते देखती रह गई। अपने नारकीय कुकृत्यों के बाद यह दोनों काफी देर तक पसरे पड़े रहे।

फिर अचानक वह चुड़ैल कुछ बोली और उठ कर बैठ गए दोनों। इसके बाद चुडै़ल उठ कर कमरे से लगे बाथरूम की तरफ चल दी। बेहया ने अब भी एक कपड़ा तन पर नहीं डाला था। अम्मा यहां बड़े शहरों में कमरे से लगा हुआ ही बाथरूम भी बनाए रहते हैं जिससे कमरे से बाहर न जाना पड़े। उधर वह बाथरूम में गई इधर हम अपने परमेश्वर का एक और घिनौना रूप देख रहे थे। जिस बिस्तर पर दोनों ने नरक मचाया था हमारे परमेश्वर ने उस पर बिछी चादर खींच कर उठाई और कमरे से बाहर वाले बाथरूम में लेकर चले गए। हमारे वही पति-परेमश्वर जो हमारे सामने पानी का गिलास भी बाएं से दाएं खिसकाने में अपनी बेइज्जती समझते हैं वह उस चादर को उठाकर बाथरूम में कपड़े धोने वाली मशीन में डालने गए थे। जब वह कमरे से निकलने लगे तो मैं जल्दी से उतर कर मेज के नीचे छिप गई थी। कुछ देर बाद हमारे परमेश्वर बाथरूम से निकल कर फिर कमरे में दाखिल हो गए। दरवाजा फिर बंद कर दिया था।

मैं फिर कुर्सी पर चढ़ कर अंदर देखने लगी। अब हमारे परमेश्वर दूसरी चद्दर बेड पर बिछा कर तौलिया लपेट कर खड़े थे। कुछ ही देर में वह बेहया भी बाथरूम से बाहर आई। गनीमत थी कि अब तन पर तौलिया लपेटे थी हालांकि तौलिया उसकी जांघ और आधी छाती ही ढके थी। चुड़ैल आकर बैठ गई और फिर हमारे परमेश्वर ने सिगरेट सुलगा कर उसे दी और खुद भी पीने लगे। इस बीच दोनों कुछ बतियाते रहे। फिर शराब निकाली गई और पीनी शुरू की गई। अब तक कुर्सी पर पंजे के बल खड़े-खड़े मैं बुरी तरह थक गई थी और पूरी तरह पस्त होकर निराश भी कि हमारे परमेश्वर अब हमारे लिए नहीं सिर्फ़ अपने लिए जीते हैं। दिल में बनी पति-परमेश्वर की सुन्दर पवित्र मूर्ति खंड-खंड हो टूटती जा रही थी।

मुझे लगा कि जितना देख रही हूं वह उतनी ही तेज़ी से बिखर रही है। इस डर से कि कहीं वह पूरी तरह से न बिखर जाए और मेरी आस्था परमेश्वर की तरफ से एकदम नेस्तनाबूत न हो जाए, मैं कुर्सी से नीचे उतरी, उसे सही जगह पर रखा और ऊपर कमरे में आ गई।

अम्मा तब ऐसा लग रहा था कि इस दुनिया में मैं एकदम अकेली हूं। दुनिया के सारे लोग कहीं दूसरे लोक में चले गए हैं। इंसान ही नहीं बल्कि सारे जीव जंतु भी, पेड़ पौधे भी, ताल, पोखर, नदी, समुद्र का पानी भी। पूरी धरती एकदम खाली-खाली विरान पड़ी है और मैं निपट अकेली खड़ी हूं। कोई नहीं है मेरे साथ सिवाय धरती के । मैं फफक-फफक कर रो रही हूं, बार-बार तुम्हें, बाबूजी, माई, बाबू को चिल्ला-चिल्ला कर बुला रही हूं मगर कोई मेरी नहीं सुन रहा है। तब मैं पछताने लगी, खीझ कर अपना सिर पीटने लगी, कि क्यों तुम्हारी इच्छा के खिलाफ मैं अपनी मर्जी से, अपनी जड़ से कट कर यहां बेगाने सूखे हृदयहीन भीड़ से भरे शहर में आ गई। क्यों पति-परमेश्वर को इस बात के लिए उकसाती रही कि वह मुझे साथ ले कर शहर चलें । अम्मा आज यह बात खोल रही हूं कि मैं ही इन्हें बराबर कहती थी कि मुझे ले कर शहर चलो। इतना ही नहीं अम्मा उस समय तुम मुझे एक खलनायिका दिखती थी, बड़ी गुस्सा आती थी तुम पर जब तुम कहती थी कि ‘अरे आपन देश दुनिया छोड़ के कहां जइयो, भुइंधरवा का जाय द्यो नौकरी करै वह बीच-बीच मइहा आवा करी।’

अम्मा क्षमा करना तब तुम्हारी बातें हमें जहर लगतीं थीं। लगता था कि तुम हमारी खुशियों की सबसे बड़ी दुश्मन हो। जानती हो तब मैं बड़े-बड़े सपने देखती थी कि अपने पति-परमेश्वर के साथ शहर की रंगीन ज़िदगी का मजा लूंगी। मेरे साथ सिर्फ़ मेरा पति होगा। उस समय मुझे परिवार के बाकी सारे सदस्य दालभात में मूसर चंद नजर आते थे। मगर अम्मा आज बस यही कहती हूं ज़िंदगी का मजा केवल अपनों के साथ है। बेगानों के साथ नहीं। जानती हो अम्मा उस दिन मैं खूब रोई, रोती रही मगर कोई भी आंसू पोंछने या सांत्वना देने वाला नहीं था। मैं रोते-रोते न जाने कब सो गई। जब आंख खुली तो देखा पति परमेश्वर अपनी सफेद वर्दी में सूजी हुई लाल-लाल आंखें लिए सामने खड़े हैं। मैं हकबका कर उठ बैठी। मेरी आंखें बुरी तरह जल रही थीं। पूरा बदन टूट रहा था। बाहर नजर गई तो देखा सवेरा हो चुका है। और हमारे परमेश्वर अब अपनी खरखराती आवाज़ में गरज रहे थे कि दरवाजा बंद करके नहीं सो सकती थी। फिर खुद पसर गए सोने के लिए।

मुझे अजीब सी नफ़रत हो रही थी। ऐसा लग रहा था मानो मेरे कमरे में मेरे बिस्तर पर कोई गैर मर्द आकर सो रहा है। मैं जितना इन्हें न देखने की कोशिश करती उतना ही नजर बार-बार इन्हीं पर जा ठहरती और मेरा क्रोध बढ़ता जा रहा था। अंततः मैंने इनके कपड़ों की तलाशी लेने की सोची। मगर करीब पहुंच कर भी हाथ न लगा सकी। मुझे ऐसा लग रहा था कि कपड़ों से उस चुड़ैल की बदबू आ रही है। काफी कसमकस के बाद आखिर तलाशी ले ही ली। मोबाइल उठा कर चेक किया तो दंग रह गई। मुझे लगा कि यह बात एकदम बकवास है कि किसी मर्द को उसकी बीवी से ज़्यादा कोई और नहीं जान सकता। कम से कम मेरे साथ यही हो रहा था।

मैं पति की दगाबाजी का एक और रूप देख रही थी। रात मालकिन के साथ मिल कर इन्होंने जो भी कुकर्म किए थे वह सब इनके मोबाइल में रिकॉर्ड था। जाहिर था कि यह सब धोखे से ही किया गया था। इसका उद्देश्य मालकिन को ब्लैकमेल करने या फिर इसे गंदी पिक्चरों वाली दुनिया में बेच कर पैसा कमाना ही था। यह देख कर मेरी घबराहट और बढ़ गई। मैंने तय कर लिया कि इनसे अब बात कर के ही रहूंगी चाहे अंजाम कुछ भी हो।

यह करीब चार घंटे बाद सो कर उठे और तैयार होने लगे तो मैंने बिना कुछ बोले किसी तरह पराठा सब्जी बनाकर सामने रख दिया। जब यह खा चुके तो मैंने बात छेड़ दी। अनजान बनने लगे तो मैंने सारी बातें खोल कर सामने रख दीं कि मुझे सब मालूम है, सब अपनी आंखों से देखा है मैंने। बस अम्मा इतना कहना था कि इन्होंने जी भर के मुझे मारा-पीटा। उसी दौरान यह भी बोले कि मालकिन की आदतों का फायदा उठा कर वह मोटी रकम कमाना चाहते हैं। जिससे अपना व्यवसाय खड़ा कर सकें। अब अपनी योजना के पूरा होने के बेहद करीब हैं। और यह सब गलत नहीं है। सब ऊटपटांग ढंग से ही अमीर बने हैं। मैं भी बनूंगा।

अम्मा उनकी योजना सुन कर मेरी रुह कांप गई। क्योंकि मालिक बहुत खूंखार है। इनकी हरकत पता चलते ही वह हम दोनों को जिंदा नहीं छोड़ेगा। मालकिन भी कम नहीं है। वह दोनों ही हम दोनों को कहां मार कर फेंक देंगे अम्मा यह कभी पता नहीं चलेगा। बस अम्मा यही सोच कर घबरा गई हूं और यह चिट्ठी लिख रही हूं। यह पढ़ते ही तुम किसी भी तरह एक बार बुला लो। उसके बाद मैं भूल कर भी अपनी जड़, अपना घर-द्वार छोड़ कर शहर का नाम न लूंगी। यहां यह जितना कमाते हैं उतना वहां भी कमा लेंगे। बस अम्मा एक बार बुला लो। मैं तुम्हारे पैर पड़ती हूं। बचा लो मेरा सुहाग, मेरे पति-परमेश्वर को। अपने प्यारे भुइंधर को। अम्मा देर बिल्कुल न करना, देर करोगी तो हमारे मरने की खबर पाओगी। अभी तो और न जाने कितनी बातें हैं अम्मा जो आकर आपको बतानी हैं, आपके भुइंधर और उनके मोबाइल की। अच्छा अम्मा जो भी गलतियां मुझ से हुई हैं उसके लिए क्षमा करना।

तुम्हारी बहू निर्मला

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