भुइंधर का मोबाइल - 1 Pradeep Shrivastava द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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भुइंधर का मोबाइल - 1

भुइंधर का मोबाइल

- प्रदीप श्रीवास्तव

भाग १

अम्मा आज विवश होकर आपको यह पत्र लिख रही हूँ , क्योंकि मोबाइल पर यह सारी बातें कह पाने की हिम्मत मैं नहीं जुटा पाई। आप जानती हैं कि मैं ऐसा क्यों कर रही हूं? क्योंकि आपका बेटा भुइंधर! सुनो अम्मा आप इस बात के लिए गुस्सा न होना कि मैं अपने पति-परमेश्वर और आपके बड़े बेटे का नाम ले रही हूँ । क्योंकि दिल्ली में आकर आपका बेटा बहुत बदल गया है। जिन साहब के यहां गाड़ी चलाते हैं, यह उन्हीं की तरह सब कुछ करने की कोशिश करते हैं। उनकी एक-एक बात की नकल करते हैं।

साहब की बीवी और साहब नाम लेकर एक दूसरे को पुकारते हैं, यहां आने पर यही सनक इन पर भी सवार हुई। मुझसे जब पहली बार ऐसा करने को कहा तो मैंने तो पूरा जोर लगाया, मना किया कि ये गलत है, ऐसा न करिए, अपनी संस्कृति, अपने कुल में ऐसा कभी नहीं हुआ है कि औरत अपने पति का नाम ले, आप कुल की मर्यादा मुझ से क्यों भंग करा रहे हैं? जो अम्मा जानेंगी तो उनको बुरा लगेगा। बहुत गुस्सा होंगी, आपसे भले कुछ न कहेंगी क्योंकि आप उनके बड़े बेटे हैं। मगर हमारी तो खाल ही खींच लेंगी। यही कहेंगी कि ‘हे करमजली, कुलबोरन अपने मनई क्यार नाव लेत है।’

ये सब समझाने के बावजूद अम्मा ये टस से मस न हुए। अड़े रहे एकदम अड़ियल बैल की तरह। बल्कि यह कहें तो ज़्यादा ठीक होगा कि एकदम बभनै की तरह अड़ियाए गए। अपनी कसम दे दी। मैं तब भी नहीं मानी तो मारने पीटने पर उतारू हो गए। हमने सोचा कि आज तक नहीं मारा, शादी के पांच साल हो रहे हैं तो अब क्या मारेंगे। मगर अड़ियाय गए तो अड़ियाय गए। और जब कई थप्पड़ मेरे पड़ गए, मेरे कान सुन्न पड़ गए, आंखों के आगे अंधेरा छा गया, तो मैंने हार मान ली। क्यों कि मैं यह अच्छी तरह जानती हूं कि यहां बचाने के लिए न आप हैं, न बाबू जी, न पड़ोस वाली काकी, और न ही छोटके भइया। तो मैंने हार मान ली। तब इन्होंने मुझ से कहा ‘सात फेरे ली थी शादी में तो इसी समय सात बार नाम लो।’ मार खा-खा कर तब तक हलकान हो चुकी मैंने मन ही मन भगवान से माफी मांगते हुए सात बार इनका नाम लिया।

अम्मा आप मेरी बात पर यकीन करें, यह सब एकदम सच है। उस दिन यह अपने नाम को एकदम चरितार्थ कर रहे थे। पूरी धरती सिर पर उठाए हुए थे। मैं एकदम मज़बूर हो गई थी। और एक बात यह भी मान गई कि आपने इनका नाम भुइंधर एकदम सही रखा है। बचपन में भी ऐसे ही धरती सिर पर उठाते रहे होंगे तभी आपने यह नाम दिया होगा।

अम्मा यह चिट्ठी और आगे पढ़ने से पहले एक काम और कर लीजिए। अपने पास जग भर कर पानीे और कुछ खाने-पीने का सामान रख लीजिए। क्योंकि आगे बहुत सारी बातें लिखी हैं। आपको पढ़ने में टाइम लगेगा। सिर्फ़ टाइम ही नहीं आगे ऐसी-ऐसी बातें लिखीं हैं जिनको पढ़ कर आपका दिल जोर से धड़क सकता है। आपका गला सूख सकता है। आप परेशान हो सकती हैं। इसलिए आप पानी और कुछ खाने का सामान ज़रूर रख लें । फिर आगे पढ़ें।

अम्मा देखिए मैंने आप को कभी सासु मां नहीं, अपनी सगी अम्मा की तरह माना है। मैं सबसे यही कहती हूं कि हमारी सास हमें मां से भी बढ़ कर मानती हैं। अपनी बिटिया की तरह हमारा ख़याल रखती हैं। सच बताएं अम्मा जब मैं सास-बहू के झगड़ों के बारे में सुनती हूं तो यकीन नहीं होता है कि आखिर सास-बहू कैसे लड़ती हैं। अगर सारी सास आप जैसी हो जाएं और बहुएं तुम्हारी बहू जैसी, मतलब की मेरी जैसी तो सोचिए अम्मा इस दुनिया में सारे घर स्वर्ग भले न बन पाएं लेकिन कम से कम घर तो ज़रूर बन जाएंगे। लेकिन पता नहीं अम्मा ये सब घर कब बनेंगे ।

अम्मा मैं ये चिठ्ठी आपको सिर्फ़ इसलिए लिख रही हूँ जिससे कि हमारा घर जो घर है वह घर बना रहे। नर्क न बन जाए। यह चिट्ठी इस लिए भी लिख रही हूं कि जब घर छोड़ कर मैं आपके पुत्र के साथ यहां दिल्ली आ रही थी तो आपने एक आग्रह किया था जो मेरे लिए भगवान के दिए आदेश से कम न था, आपने कहा था कि ‘मैं बेटे के साथ भेज रही हूं उसका ध्यान रखना। उसे कोई भी परेशानी नहीं होनी चाहिए। बस समझ लो तुम्हारे हवाले कर रही हूं अपना बेटा। कुछ भी हुआ तो तुम्हीं से पूछुंगी।’ तो अम्मा तुम्हारी यह बात मेरे दिलो-दिमाग में हमेशा रहती है या यह कहो कि मेरे रग-रग में बस गई है। मैंने इनका पूरा ध्यान रखा। क्यों कि एक तो आपका आदेश था और दूसरे मेरे पति-परमेश्वर जो ठहरे। इनको जरा सी छींक भी आ जाए तो मैं व्याकुल हो जाती हूं। और ऐसे में जब बात इनकी जान पर आ गई हो तो मैं आपको यह चिट्ठी कैसे न लिखती।

अम्मा पहले तो आपसे हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रही हूं कि इस चिट्ठी के बारे में कभी भी किसी से कुछ न कहना। नहीं तो इन्हें पता चल जाएगा। और तब तुम्हारी यह बहू जिंदा न बचेगी। इसलिए मैं आपको अपनी कसम दे रही हूं कि कभी न बताना किसी को। और इसे चुगली भी मत समझना। तुम्हें यह बताना ही बताना है। क्योंकि मेरे सुहाग की रक्षा का प्रश्न आ खड़ा हुआ है। उसकी रक्षा के लिए ज़रूरी है आपको यह सब बताना। आपका बेटा सदैव सुरक्षित रहे इसलिए भी यह बताना ज़रूरी है।

अम्मा हुआ यह कि जब हम यहां आए तो शुरू में इनकी यहां पर जो स्थिति थी, घर इन्होंने जिस ढंग का बना रखा था उसे देख कर मैं बड़ी परेशान हो गई। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या है। घर तो क्या था कि पूरा भटियारखाना था। चार मंजिले मकान के सबसे ऊपर एक बड़ा कमरा और उससे लगा एक छोटा कमरा है। इस छोटे कमरे को ही रसोई बना रखा है। बाकी बहुत बड़ी सी छत है। रसोई में सामान के नाम पर कुछ बर्तन गंदे-संदे पड़े थे। खाने का सामान कहीं खुला तो कहीं बंद। कहीं पॉलिथीन में तो कहीं किसी में पड़ा था। हर तरफ धूल-धक्कड़ थी। चलो कोई बात नहीं इतना सब तो ठीक था क्योंकि बिना औरत के घर-घर कहां बन पाता है। इसलिए इससे कोई दिक्कत नहीं हुई। हां दिक्कत कमरे से घर गृहस्थी के अलावा बाकी जो चीजें मिलीं उनसे हुई। यह दिक्कत ऐसी थी कि कलेजा फट गया। आप पढ़ेंगी इस बारे में तो आपको भी बहुत कष्ट होगा। मैं आपको कष्ट नहीं देना चाहती थी इसीलिए इतने दिनों तक नहीं बताया था। लेकिन अब क्यों कि मुझे लगता है कि इनके कामों के बारे में आपको बता कर, इन्हें रोकने की कोशिश न की तो गलत होगा। क्योंकि मुझे लगता है इनकी आदतें न बदली गईं या इनके कामों पर रोक न लगाई गई तो इनकी जान खतरे में पड़ी रहेगी। आपको बता कर मैं आपसे मदद चाहती हूं।

हां अम्मा! कमरे के बारे में आपको बताना इसलिए ज़रूरी समझती हूं जिससे कि आप सारी बात आसानी से समझ सकें। आप अभी तक यही समझती रही हैं कि आपका बेटा शराबी-कबाबी नहीं है। मगर ऐसा नहीं है। यह रोज शराब भी पीते हैं और मीट की तो हालत यह है कि इंसान का मांस मिल जाए तो वह भी न छोड़ें। लेकिन अम्मा यह जानकर आप घबराइए नहीं। आजकल सब खा रहे हैं। फिर इन शहरों में तो यह सब फैशन है। और आप तो जानती हैं कि अपने देश के लोग तो अब फैशन के दीवाने हो गए हैं। फैशन के नाम पर तो कहो सब कपड़े उतार कर चलें। और चलें क्या बल्कि चल ही रहे हैं। शहरों में तो जैसे आग लगी है।

खैर अम्मा इनके कमरे में जो कुछ मिला उसे देख कर मेरे बदन में आग लग गई। इनकी अलमारी में कई लड़कियों की फोटो मिलीं। मगर आग तो इससे लगी कि फोटो में कई लड़कियां नंगी थीं। एक में यह एक नंगी औरत को बांहों में दबोचे हुए थे। गुस्से की आग में मैं एकदम जल गई। तिलमिला उठी। मन में आया कि अभी पूछूं इनसे इन सब के बारे में। मगर कुछ कहने करने की हिम्मत नहीं कर सकी। क्योंकि आपके भुइंधर के गुस्से और मार से मेरी रुह कांपती है।

बात यहीं तक होती तो भी गनीमत थी। कमरे को साफ करते-करते एक के बाद एक तन-बदन को आग लगाने वाली चीजें मिलती ही जा रही थीं। यह सब आपसे बताने की हिम्मत मैं कभी न कर पाती। मगर फिर कह रही हूं कि बात इनके प्राणों की है तो मैं सब लिख दे रही हूं। मैं इतना घबरा गई हूं कि बताने में कोई शर्म-संकोच नहीं कर सकती। चाह कर भी नहीं क्यों कि यह करके मैं बता ही न पाऊंगी। और तब इनकी जान खतरे में पड़ी रहेगी और साथ ही मेरी भी। इसलिए आप भी बात को पूरे ध्यान से पढ़िए और समझिए, घबराइए नहीं, घबराने से काम नहीं चलेगा। अम्मा मेरी इस बात को नसीहत नहीं पूरी तरह से मेरी प्रार्थना समझना।

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