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कर्म पथ पर - 52



कर्म पथ पर
Chapter 52



बनारस में भी हैमिल्टन को निराशा ही हाथ लगी। इसने उसकी खीझ को और बढ़ा दिया था।
इससे पहले सुजीत कुमार मित्रा के मकान का पता चलने पर उसे लगा था कि बस अब वृंदा उसके कब्ज़े में आने वाली है। पर वहाँ पता चला कि वो लोग मकान छोड़कर चले गए। उसके बाद से उसका कोई पता नहीं चल रहा था।‌
महेंद्र माधुरी की एकदम सटीक खबर लाया था। पर जब हैमिल्टन के आदमी वहाँ पहुँचे तो स्टीफन और माधुरी वहाँ नहीं थे।
हैमिल्टन ने एक बार फिर महेंद्र को जिम्मा सौंपा था कि वह उन दोनों का पता करे। इस बार उसने महेंद्र को हिदायत दी थी कि उन दोनों का पता चलने पर वह स्वयं उसके पास ना आए। बल्कि फोन पर उसे सूचित करके वहीं रहकर उन पर नज़र रखे।
महेंद्र सबसे पहले बनारस के उस चैरिटेबल अस्पताल में पहुँचा जहाँ स्टीफन एक डॉक्टर की हैसियत से काम कर रहा था। वहाँ उसने इस बात का पता लगाने की कोशिश की कि स्टीफन उस अस्पताल को छोड़ कर कहाँ गया है।
एक वार्ड ब्वॉय ने उसे कुछ पैसों के बदले में जानकारी दी कि स्टीफन गोरखपुर के चैरीटेबल अस्पताल में है। इस बात की सूचना हैमिल्टन को देकर महेंद्र गोरखपुर चला गया था।
हैमिल्टन ने इंस्पेक्टर जेम्स वॉकर से फोन पर बात करके पूँछा था कि वृंदा के केस में कोई कामयाबी मिली या नहीं। पर वहाँ से निराशा ही हाथ लगी। वह बौखला गया। नौकर ने चाय लाकर दी तो सारा गुस्सा उस पर निकाल दिया। चाय का प्याला फेंक कर चिल्लाया,
"यू फूल.... अभी तक चाय बनाना भी नहीं आया।"
उसके गुस्से को देखकर नौकर थर थर कांप रहा था। हैमिल्टन फिर चिल्लाया,
"खड़ा क्या है ? साफ कर।"
नौकर फौरन कपड़ा लाने दौड़ गया। तभी फोन की घंटी बजी। दूसरे नौकर ने पास रखे फोन का रिसीवर उठा कर उसे पकड़ा दिया। फोन पर बात करने के बाद हैमिल्टन का चेहरा चमक उठा।

स्टीफन कल शाम को ही वापस लौट कर आया था।‌ अभी सो रहा था। माधुरी रोज़ की तरह तैयार होकर अपनी किताबें लेकर बैठ गई थी।
रामरती ने आकर कहा,
"बिटिया बिना कुछ खाए पिए किताबें लेकर बैठ गईं। इस हालत में अपना ध्यान रखा करो।"
"अम्मा बहुत दिनों के बाद स्टीफन के साथ नाश्ता करने का मौका मिला है। उनके साथ ही खाऊँगी।"
"इत्ती बार तुमसे कहा है कि अपने पति का नाम ना लिया करो। पर तुम सुनती ही नहीं।"
माधुरी हंस दी। रामरती को अच्छा नहीं लगा। माधुरी ने समझाते हुए कहा,
"अम्मा वो मेरे पति और दोस्त दोनों हैं।"
रामरती ने कुछ नहीं कहा। पर उसके चेहरे से लग रहा था कि बात उसकी समझ में नहीं आई। वह बोली,
"तुम लोग पढ़ी लिखी हो। नई रीति चला रही हो। पर अभी साहब सो रहे हैं‌। हम दूध लेकर आ रहे हैं। चुपचाप पी लेना।"
रामरती चली गई। माधुरी उसकी बात पर विचार करने लगी। जब वो अपने अम्मा बाबूजी से मिलने गई थी तो उसकी अम्मा को भी उसका अपने पति का नाम लेना अच्छा नहीं लगा था। पर माधुरी को किसी और तरह से पुकारना अच्छा नहीं लगता था।
स्टीफन और माधुरी बैठ कर नाश्ता कर रहे थे। स्टीफन ने उससे पूँछा कि वह अपना खयाल रख रही है या नहीं। इस बात पर माधुरी पास खड़ी रामरती को देखकर बोली,
"अम्मा हैं ना। मैं थोड़ी लापरवाही कर भी जाऊँ। पर ये पूरा ध्यान रखती हैं।"
रामरती को पुरुषों के सामने घूंघट करने की आदत थी। अपने घूंघट की ओट से बोली,
"पर आप इन्हें थोड़ा डांट लगाओ। बड़ा कहे कहे खाती हैं।"
स्टीफन ने माधुरी को शिकायत भरी नज़र से देखते हुए कहा,
"एक डॉक्टर की पत्नी होकर ऐसी लापरवाही करती हो। ये बात ठीक नहीं है।"
माधुरी ने अपने कान पकड़ते हुए कहा,
"आप दोनों माफ कर दीजिए। आगे से ऐसा नहीं होगा।"
स्टीफन मुस्कुरा दिया। रामरती अपना काम करने चली गई। उसके बाद स्टीफन माधुरी को गांव में अपने अनुभवों के बारे में बताने लगा।

महेंद्र स्टीफन के घर के बाहर खड़ा था। वह समझ गया था कि पिछली बार उससे कुछ असावधानी हो गई थी। जिसके कारण शायद स्टीफन सावधान हो गया था। इसलिए ‌इस बार उसका पीछा करते हुए वह बड़ी सावधानी बरत रहा था।
महेंद्र स्टीफन का पता लगाते हुए उस गांव तक पहुँच गया था जहाँ वह अपनी टीम के साथ था। पर उसके पहुँचने के साथ ही स्टीफन अपनी टीम के साथ वापस लौट आया। महेंद्र भी उसके पीछे पीछे यहाँ आ गया था। इस समय वह आसपास के माहौल का जायजा ले रहा था।
यह मकान थोड़ा बड़ा और खुला हुआ था। मकान की चारदीवारी बहुत ऊँची थी। मकान सड़क के आखिरी छोर पर था। उसके बाद कुछ ही दूर पर कच्चा रास्ता था जो जंगल की तरफ जाता था।‌
सब देखकर महेंद्र ने हैमिल्टन को फोन किया।
सब सुनकर हैमिल्टन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा‌। उसने महेंद्र से कहा कि वह वहीं रहे। वह जल्द से जल्द वहाँ पहुँचने की कोशिश करता है।

दोपहर को खाना खाने के बाद माधुरी और स्टीफन अपने कमरे में बैठे थे। स्टीफन को किसी खयाल में उलझा देखकर माधुरी ने कहा,
"क्या बात है ? किस उलझन में हैं ?"
"मैं सोंच रहा था कि बच्चे के आ जाने से तुम्हारी पढ़ाई में बाधा आ जाएगी।"
"कोई बाधा नहीं आएगी। मैं और अम्मा मिलकर संभाल लेंगे। मैं अपनी पढ़ाई जारी रखूँगी।"
"मेरे मन में एक विचार था।"
"कैसा विचार ?"
"मैं सोंच रहा था कि तुम मेडिकल की पढ़ाई का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ो।"
माधुरी के मन में भी ये बात थी। एक बार उसने अपने बाबूजी से इस विषय में कहा भी था। उसे लगता था कि डॉक्टर बनकर वह मानवता की अच्छी तरह से सेवा कर सकेगी। पर वो यह भी जानती थी कि स्टीफन के लिए उसकी मेडिकल की पढ़ाई का खर्च उठा पाना मुश्किल होगा। बच्चे के आने के बाद तो यह और भी मुश्किल हो जाएगा। उसने कहा,
"स्टीफन मेडिकल की पढ़ाई का खर्च उठाना मुश्किल नहीं होगा ?"
"तुम उसकी फिक्र मत करो। सब हो जाएगा।"
"पर कैसे ? बच्चे की भी ज़िम्मेदारी हो जाएगी।"
स्टीफन ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेर कर कहा,
"तुम बस अब खुद को डॉक्टर बनने के लिए तैयार करो। मुझ पर यकीन करो। मैं सब कर लूँगा।"
"ठीक है.... फिर मैं भी आपकी तरह डॉक्टर बनने की तैयारी करती हूँ।"
स्टीफन फिर किसी विचार में खो गया। माधुरी हंसकर बोली,
"अब क्या हुआ ? आज आप घड़ी घड़ी ना जाने किन खयालों में खो जा रहे हैं।"
"मैंने तुम्हें बताया था कि जिस गांव में मैं गया था वहाँ छोटी छोटी बीमारियों के लिए भी गांव वालों को इलाज उपलब्ध नहीं है। उन्हें बहुत कष्ट झेलने पड़ते हैं। उनके कष्ट देखकर मुझे बहुत बुरा लगता था।"
"हाँ हमारे देश में गरीबों के पास अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं।"
"मेरे पिता आयुर्वेद और अन्य भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के जानकार थे। वह अपने ज्ञान से गरीब लोगों की मदद करते थे। मेरे डॉक्टर बनने का भी यही मकसद था। पर कई उलझनें आ गईं।"
"मैं जानती हूँ...."
"एक बात इधर कई दिनों से मेरे मन में उठ रही है। मैं सोंचता हूँ कि भविष्य में यदि इस लायक बन पाया तो गरीबों के मुफ्त इलाज के लिए एक अस्पताल खोलूँगा।"
"ये तो बहुत नेक खयाल है। मैं भी आपके काम में साथ दे पाऊँगी।"
"तभी कह रहा हूँ। मन लगा कर मेहनत करो।"
माधुरी मन ही मन स्टीफन के महान काम में साथ देने के सपने देखने लगी।

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